भगवान राम एक परमहंस की सलाह लेकर साधना की अगली कड़ी पूरी करने के लिए काशी चल पड़े. सावन बदी 8 (सन् 1951) की सुबह पंद्रह वर्ष की अवस्था में भगवान राम विश्वनाथ के दर्शन के लिए दशाश्वमेघ घाट पर खड़े थे कि एक वृद्धा आई और उसने उन्हें स्नान करने का आदेश दिया तथा बाद में ले जाकर भगवान विश्वनाथ के दर्शन कराए और फिर अन्नपूर्णा मंदिर ले गई. वहां अंदर जाकर वह गायब हो गई. आगे डेढ़सी के पुल पर वह वृद्धा फिर दिखाई दी, तो भगवान राम को आश्चर्य हुआ. उस महिला ने कहा, यहां से अस्सी की ओर जाओ. रास्ते में परमहंस साधकों का मठ है, वहीं तुम्हारा अभीष्ट सिद्ध होगा. भगवान राम हरिश्चंद्र घाट की ओर बढ़े. कुछ आगे जाने पर उन्हें क्रीं कुंड पर श्री किनाराम स्थल मिला. साढ़े सात बजे थे. बाबा रामेश्वर राम जी सो रहे थे. भगवान राम वहीं दालान में बैठ गए.
बाबा रामेश्वर राम जी से भेंट हुई. उन्होंने कुछ काम भगवान राम को सौंपे, जिन्हें संपन्न करने के पश्चात बाबा रामेश्वर राम ने उन्हें दीक्षा दी. इन्हीं दिनों सूर्योदय के समय हनुमान घाट पर आकंठ गंगा में खड़े रहकर भगवान राम ने मंत्र जाप किया. एक दिन वह धूनी के पास ही आश्रम में अर्द्धनिद्रित अवस्था में पड़े थे. उन्हें ऐसा भास हुआ कि किसी दिव्य पुरुष ने खड़ाऊं समेत अपने पैर उनकी छाती पर रख दिए और कुछ मंत्रोच्चार किया. भगवान राम ने आंतरिक प्रेरणावश वह मंत्र दोहराया और वह उन्हें याद हो गया. कुछ दिनों पश्चात बाबा किनाराम की समाधि पर भगवान राम झाड़ू लगा रहे थे कि उन्हें दक्षिण दिशा की ओर से स्पष्ट रूप से वही मंत्र फिर सुनाई दिया. साथ ही यह दिव्य आदेश मिला कि तुम इसी मंत्र का जाप किया करो. कुछ काल तक भगवान राम यहीं रहे. इसके बाद भगवान राम ने अज्ञात साधना की. इतना निश्चित है कि विंध्याचल में अष्टभुजा देवी के सानिध्य में कुछ दिनों तक भगवान राम ने कठोर साधना की.
एकांत साधना पूरी होने के साथ ही भगवान राम को औघड़ पद की प्राप्ति हो गई. साथ ही उन्होंने तय किया कि अब मुझे लोकहित के काम करने चाहिए. महड़ौरा श्मशान में कुछ भक्तों को बाबा ने प्रथम दर्शन दिया. यहीं बाबा ने भक्तों के आग्रह पर विष्णु यज्ञ कराया. जब उसकी पूर्णाहुति हुई, तब सभी खर्च निकाल कर भी कुछ धनराशि बची हुई थी. बाबा की प्रेरणा से उससे गणेश मंदिर की स्थापना की गई. धीरे-धीरे वह स्थान अधिक प्रसिद्ध हो गया तथा वहां बड़ी भीड़ एकत्र होने लगी. इसलिए बाबा वहां से चल पड़े और हरिहरपुर गांव में तालाब के किनारे एक बेल वृक्ष के नीचे रहने लगे. गांव वालों का कहना था कि इस स्थान पर ब्रह्म-राक्षस रहता है. अत: वे दिन में भी इधर नहीं आते थे. यहां गांव वालों ने एक कुटिया बनवा दी. रात में अब भी किसी के जाने का निषेध था. यहां भी बाबा ने कठोर साधना प्रारंभ की. जेठ की दोपहरी में सूखे ताल में जाकर वह पड़े रहते थे. यहां रहकर कई कठिन यज्ञ भी बाबा द्वारा कराए गए.
बाबा ने सबसे महत्वपूर्ण काम 1962 में कुष्ठ सेवा आश्रम की स्थापना करके किया. जिस जगह उन्होंने कुष्ठ आश्रम बनाया, वहीं अपने रहने के लिए निवास स्थान भी चुना. इसके पूर्व बाबा का कहीं कोई स्थायी निवास नहीं था. बाबा का मानना है कि कोढ़ियों को समाज सबसे घृणा की दृष्टि से देखता है, अत: उनकी सेवा होनी चाहिए. इस समय केवल वाराणसी आश्रम में 60 शैय्याओं वाले अस्पताल का निर्माण हो गया है.
औघड़ भगवान राम ने 21 सितंबर, 1961 को काशी में अपने भक्तों एवं साधकों के बीच सर्वेश्वरी समूह की स्थापना की. इसकी लगभग 80 शाखाएं देश के प्राय: हर भाग में स्थापित हो चुकी हैं. हर शाखा बच्चों की शिक्षा, जन्म-मरण तथा विवाह संस्कारों में रूढ़िवादी परंपराओं का विरोध, सुगम विवाह पद्धति से बिना तिलक-दहेज के शादी कराना, विधवा विवाह कराने आदि के प्रयास कर रही है. हर शाखा गोष्ठियों का आयोजन करके कुरीतियों और धर्म के नाम पर चलने वाली कुपरंपराओं के विरुद्ध वातावरण बना रही है. छुआछूत, वर्ण व्यवस्था आदि के भेदभाव को दूर करने एवं सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बनाने हेतु समूह ने अपने संस्थापक औघड़ भगवान राम के निर्देशन में सहभोज, लंगर प्रथा, चक्रपूजन एवं सामूहिक पूजन की व्यवस्था की है. हर शाखा अपनी क्षमता के अनुकूल चिकित्सा व्यवस्था भी करती है.
बाबा ने सबसे महत्वपूर्ण काम 1962 में कुष्ठ सेवा आश्रम की स्थापना करके किया. जिस जगह उन्होंने कुष्ठ आश्रम बनाया, वहीं अपने रहने के लिए निवास स्थान भी चुना. इसके पूर्व बाबा का कहीं कोई स्थायी निवास नहीं था. बाबा का मानना है कि कोढ़ियों को समाज सबसे घृणा की दृष्टि से देखता है, अत: उनकी सेवा होनी चाहिए. इस समय केवल वाराणसी आश्रम में 60 शैय्याओं वाले अस्पताल का निर्माण हो गया है. महिला रोगियों के लिए 10 शैय्याओं का अलग कक्ष भी है. उनका इलाज आयुर्वेदिक पद्धति से होता है. आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि बाबा द्वारा बताई गई जड़ी-बूटियों का चमत्कारिक असर होता है. आश्रम में कुष्ठ पीड़ितों को खेती, गोशाला आदि की देखभाल स्वयं करनी होती है. अत: उनमें आत्मविश्वास जागृत होता है. बाबा कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए कार्यकर्ताओं को प्रशिक्षण भी दिलवाते हैं.
बाबा के आश्रम में राजनीतिज्ञों, सामाजिक कार्यकर्ताओं तथा वैज्ञानिकों का तांता लगा रहता है. सभी को ग़रीबों की भलाई में लगे रहने के लिए बाबा कहते रहते हैं. बाबा माला-कंठी या पूजा-पाठ को प्रोत्साहित नहीं करते. उनका मानना है कि यदि दुर्गा या काली की पूजा करनी है, तो जन को संगठित करना होगा, क्योंकि जनशक्ति ही दुर्गा और काली हैं. दुखियों के आंसू पोंछना तथा उनके हक़ की लड़ाई में खड़े रहना ही भगवती की पूजा है. बाबा के बारे में, उनकी सहृदयता के बारे में, उनकी भविष्यवाणियों के बारे में, उनके चमत्कारों के बारे में बहुत-से लोगों के पास बहुत-से अनुभव हैं. मोरारजी देसाई, जगजीवन राम, इंदिरा गांधी, चंद्रशेखर, कर्ण सिंह, दिनेश सिंह, डॉ. सरोजनी महिषी, हनुमंतैया, बीपी कोइराला जैसे लोगों को जहां बाबा ने समय-समय पर सहायता पहुंचाई, वहीं यज्ञ नारायण चतुर्वेदी, सागर सिंह, कतवारू राम, केडी सिंह, देव कुमार चौबे, मोहन तिवारी, बुल्लार जी मिस्त्री, अघोरी कृष्णदेव, अघोरी सुरेंद्र नाथ, वैद्य शिवकुमार शास्त्री, सज्जन कुमार कनोडिया जैसे लोगों को भी रास्ता दिखाया है. बाबा के आश्रम की देखभाल में लगे युवक हरी जी ने कहा कि बाबा का सबसे बड़ा चमत्कार यदि कोई है, तो यही है कि इतनी बड़ी ताकतों को अपने अधिकार में रखने के बावजूद वह हमारे जैसे लोगों से बातें करते हैं, हमारी समस्याएं सुलझाते हैं तथा हमें अपना प्यार देते हैं.