बीते 11 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वाधीनता दिवस के अवसर पर की गई अपनी घोषणा के अनुसार नई दिल्ली के विज्ञान भवन में सांसद आदर्श ग्राम योजना (एसएजीवाई) लॉन्च की, जो निश्चय ही बहुत महत्वपूर्ण एवं असाधारण है. भारत के तमाम गांव आदर्श बनें, यह वह सपना है, जो स्वयं राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था. गांव की हैसियत एवं अहमियत का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि संविधान में भी इसे मान्यता दी गई है. इसी लिहाज से पंचायती राज की व्यवस्था स्थापित है, जिसमें ग्राम पंचायत को बुनियादी हैसियत हासिल है. 1992 में भारतीय संविधान के तहत 73वें संशोधन द्वारा देश में लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण योजना शुरू हुई, ग्राम सभा उसका एक महत्वपूर्ण भाग है. ग्राम सभा का मतलब है कि व्यक्तियों के एक ऐसा समूह, जो गांव की सतह पर पंचायत क्षेत्र के अंदर गांव से संबंधित चुनावी सूची में पंजीकृत हो. एक ग्राम सभा किसी राज्य की विधायिका की तरह गांव के स्तर पर अपने अधिकारों का इस्तेमाल कर सकती है और अपना काम अंजाम दे सकती है. नए प्रावधानों के अनुसार, ग्राम सभा के अलावा महिला सभा एवं बाल सभा भी अस्तित्व में आ गई हैं. आइए, अब देखते हैं कि सांसद आदर्श ग्राम योजना आख़िर है क्या और यह कितनी व्यवहारिक है?
सांसद आदर्श ग्राम योजना एक ऐसा मंसूबा है, जिसके अंतर्गत देश के हर सांसद को 2016 तक एक तथा 2019 तक दो और गांवों को गोद लेना है और उन्हें पूर्ण रूप से इसी अवधि में विकसित भी करना है. मतलब यह कि 2019 तक 2500 गांव लोकसभा एवं राज्यसभा के तमाम सदस्यों द्वारा उनकी सांसद निधि के इस्तेमाल से विकसित किए जाएंगे. इस कार्यक्रम के तहत एक सांसद को यह आज़ादी है कि वह अपने क्षेत्र में अपनी पसंद के किसी गांव को गोद लेने के लिए चुने. लेकिन विडंबना तो यह है कि उक्त सांसद निधि का मतलब हमेशा यह समझा जाता है कि उससे निर्वाचित सांसद के क्षेत्र का ही विकास किया जाएगा. इस कार्यक्रम की मांग यह है कि योजना के क्रियान्वयन पर प्रगति की हमेशा निगरानी की जाए. प्रत्येक सांसद को अपने क्षेत्र में हो रहे विकास और वह किस प्रकार अपनी सांसद निधि प्रत्येक वर्ष खर्च कर रहा है, आदि जानकारियां राइट टू इंफॉर्मेशन (आरटीआई) से संबंधित नए नियमों की रोशनी में आधिकारिक तौर पर अपने क्षेत्र संबंधी वेबसाइट पर अपलोड करनी पड़ेगी.
ग़ौरतलब है कि अभी हाल में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग द्वारा एक विज्ञप्ति सभी केंद्रीय मंत्रालयों एवं विभागों को भेजी गई है, जिसमें निर्देश दिया गया है कि सभी आरटीआई के उत्तरों एवं प्रथम अपीलें संबंधित मंत्रालय एवं विभाग की वेबसाइट पर अपलोड की जाएं. एक सांसद जिस गांव को गोद लेने जा रहा है, वह पंचायती गांव होना चाहिए. यानी वह ऐसा गांव हो, जिस पर पंचायत का नाम रखा गया हो, जो आम तौर पर वहां का सबसे बड़ा गांव होता है. इस शर्त का कारण यह है कि इससे गांव एवं पंचायत दोनों स्तरों पर दो प्रकार का विकास दिखाई पड़ेगा. जाहिर-सी बात है कि इस प्रकार सांसद आदर्श ग्राम योजना एवं आरटीआई के नए नियमों से संबंधित सरकारी विज्ञप्ति की रोशनी में पूरे पंचायती गांव को वाई-फाई जोन बनाना पड़ेगा और इसके लिए पूरे पंचायती गांव को नेशनल डिजिटल लिटरेसी मिशन (एनडीएमएल) के तहत पूरी तरह से डिजिटलाइज़ करना होगा.
इस पूरे मंसूबे को व्यवहारिक रूप देने के लिए अभी हाल में घोषित डिजिटल इंडिया प्रोग्राम (डीआईपी) को सांसद आदर्श ग्राम योजना से भी जोड़ना होगा. इसी के साथ-साथ आरटीआई योजना को मतदाताओं के पास सकारात्मक जवाबदेही के दिशानिर्देश के सिद्धांतों के तौर पर ले जाना पड़ेगा. यह मानते हुए कि डिजिटल इंडिया प्रोग्राम एवं सांसद आदर्श ग्राम योजना एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं, तब पांच वर्ष की अवधि समाप्त होने पर हमारे देश में 2500 डिजिटल गांव अस्तित्व में आ जाएंगे, जहां ऐसे विद्यालय एवं स्वास्थ्य केंद्र होंगे, जो ब्रॉडबैंड कनेक्टेड भी होंगे. इसके अलावा साइबर स्पेस पर तमाम संसदीय क्षेत्र मौजूद होंगे, जिससे इंफॉर्मेशन हाईवे पर भारत की मौजूदगी संभव हो सकेगी. लेकिन सवाल यह है कि क्या ये हाईटेक आदर्श गांव भारत जैसे देश में, जहां गांव अभी वर्तमान हाईफाई टेक्नोलॉजी से कोसों दूर हैं, व्यवहारिक रूप ले पाएंगे? इसके साथ-साथ यह कटु सत्य भी नज़रअंदाज नहीं करना चाहिए कि डिजिटल ढांचे के विभागों में फंड देने के लिए सांसद निधि के दिशानिर्देशों में गुंजाइश बहुत कम है. जब तक केंद्र सांसदों को दी जा रही धनराशि फिर से सुनियोजित नहीं करता, तब तक सांसद निधि बहुत ज़्यादा लाभदायक या उपयोगी नहीं हो सकती. ज़रूरत इस बात की है कि दिशानिर्देशों में पर्याप्त गुंजाइश हो, ताकि सांसद अपने क्षेत्रों में इस बावत बजट सुनिश्चित कर सकें. इस सत्य से कौन इंकार कर सकता है कि देश की कुल दो लाख पचास हज़ार पंचायतों में इस समय हमारे लक्ष्य में शामिल 2500 गांव मात्र एक प्रतिशत के बराबर हैं. मतलब यह कि अगर हम 2500 पंचायती गांवों को पांच वर्षों में आदर्श गांव बनाने जा रहे हैं, तो देश के सभी दो लाख पचास हज़ार पंचायती गांवों को सांसद आदर्श ग्राम योजना के अंतर्गत आदर्श गांव बनाने में कई दशक लग जाएंगे. वैसे भी किसी मंसूबे पर जब सांसद से जुड़कर देखा जाता है, तब यह प्रश्न स्वाभाविक तौर पर उठता है कि ये सांसद तो वही हैं, इनकी सांसद निधि भी वही है और गांव के विकास के लिए सरकारी योजनाएं भी कमोबेश वहीं हैं, तो फिर अचानक कोई जादू कहां से हो जाएगा? यह मंसूबा तभी व्यवहारिक रूप ले सकता है, जब इसे व्यवहारिक बनाया जाए, ज़मीनी सतह से जोड़ा जाए और वे लोग सांसद निर्वाचित हों, जिनमें समाज सेवा की सच्ची भावना हो. ग़ौरतलब है कि लोक नायक जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन (11 अक्टूबर) के अवसर पर सांसद आदर्श ग्राम योजना लॉन्च करते हुए प्रधानमंत्री ने तीन विकसित गांवों का उदाहरण दिया, जिनमें एक स्वयं उनके अपने राज्य गुजरात में है पंसारी, जिसे देश का नंबर वन गांव कहा जाता है. दूसरा तेलंगाना में गंगा देवी पल्ली और तीसरा महाराष्ट्र में हिवारे बाज़ार है. जाहिर-सी बात है कि ये तीनों एवं अन्य गांव सांसद आदर्श ग्राम योजना से पहले स्थानीय निवासियों की मेहनत एवं लगन के परिणाम हैं. इसमें कोई संदेह नहीं है कि ऐसे गांवों ने अपने ग्रामीण इलाके हर तरह से विकसित कर दिए हैं और रा़ेजगार के लिए शहरों की ओर पलायन वहां बड़ी हद तक रुक गया है, लेकिन छात्रों-नौजवानों का करियर में बेहतरी और महारथ के लिए गांव से बाहर जाने का सिलसिला जारी है और आगे रहेगा भी.
इस संदर्भ में प्रधानमंत्री ने जन-भागीदारी पर फोकस करते हुए कहा कि सही लोगों के चयन के लिए इस योजना की शुरुआत ऑनलाइन कंपटीशन द्वारा की गई है. इसके तहत ग्रामवासी स्वयं अपने कार्यक्रमों एवं गतिविधियों का लक्ष्य तय करेंगे. खैर, यह तो आने वाला समयबताएगा कि सांसद आदर्श ग्राम योजना किस प्रकार जनता से जुड़ती है और ज़मीनी सतह पर फ़ायदा पहुंचा पाती है? उल्लेखनीय है कि दक्षिण दिल्ली के भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने छतरपुर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर दिल्ली-रोहतक सीमा पर स्थित भट्टी गांव को गोद लेने की घोषणा की है, जो यहां का सबसे पिछड़ा गांव है. सच तो यह है कि दिल्ली में इस प्रथम गांव का विकास इस योजना की प्रथम परीक्षा होगी.
सांसद आदर्श ग्राम योजना : बहुत कठिन है डगर पनघट की
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