हरीश रावत की जनसेवा और उन्हें मिल रही सफलता ने भाजपाई थिंक टैंक के माथे पर पसीना उकेर दिया है. भाजपा के दिग्गज येन-केन-प्रकारेण हरीश सरकार को धराशायी करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और उन्होंने एक बार फिर विजय बहुगुणा को अपना हथियार बनाया है.
राज्य की हरीश रावत सरकार इन दिनों एक गंभीर संकट से गुज़र रही है. हरीश रावत चक्रव्यूह में फंसे नज़र आ रहे हैं. उन्हें भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने निशाने पर ले रखा है. पतजंलि पीठ पहुंच कर अमित शाह ने रामदेव के साथ जो हुंकार भरी थी, उसे हरीश की सक्रियता ने बेअसर कर दिया था. पंचायत एवं छावनी परिषद के चुनाव में भी भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. विरोधियों ने शपथ ग्रहण के बाद से ही हरीश की राह में रोड़े अटकाने शुरू कर दिए थे, लेकिन विजय बहुगुणा और हरक सिंह रावत दिल्ली दरबार में बेअसर साबित हुए. प्रदेश में आई केदारनाथ आपदा के बाद मुख्यमंत्री बने हरीश रावत ने राहत कार्यों को तेजी प्रदान की. इस बार तीन फुट से अधिक बर्फ से ढंके केदारनाथ धाम में गणतंत्र दिवस मनाया गया. चार धाम यात्रा के लिए सेना के सहयोग से केदारनाथ धाम में पांच हज़ार यात्रियों के ठहरने की व्यवस्था कराई जा रही है. हरीश रावत की जनसेवा और उन्हें मिल रही सफलता ने भाजपाई थिंक टैंक के माथे पर पसीना उकेर दिया है. भाजपा के दिग्गज येन-केन-प्रकारेण हरीश सरकार को धराशायी करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और उन्होंने एक बार फिर विजय बहुगुणा को अपना हथियार बनाया है. हेमवती नंदन बहुगुणा का पुत्र होने के नाते उत्तराखंड के मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल करने वाले विजय बहुगुणा का इस काम में साथ देने की ज़िम्मेदारी कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए सतपाल महाराज और उनकी विधायक पत्नी अमृता रावत को सौंपी गई है. सतपाल महाराज अपनी पूरी ताकत विजय बहुगुणा के साथ लगाकर हरीश सरकार को धराशायी कराने की योजना पर जुट गए हैं. बावजूद इसके मुख्यमंत्री हरीश ने पीडीएफ को अभयदान देते हुए कांग्रेस का भविष्य उज्ज्वल होने की बात कही. हरीश ने साफ़ कहा कि जो लोग बुरे दिनों में कांगे्रस के साथ थे, उन्हें छोड़ने का कोई सवाल नहीं उठता. उनका इशारा पीडीएफ को साथ रखने से है.
भारतीय जनता पार्टी ने जो राजनीतिक प्रयोग दिल्ली चुनाव में किया है, उसी को अब वह देवभूमि उत्तराखंड में दोहराना चाहती है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह कांटे से कांटा निकालने की रणनीति पर काम कर रहे हैं और शायद इसी वजह से विजय बहुगुणा को आगे किया जा रहा है. उधर भाजपा के अंदरखाने भी हालात अच्छे नहीं हैं, क्योंकि लोकसभा चुनाव में पार्टी द्वारा सभी पांच सीटें जीतने के बावजूद उत्तराखंड के किसी नेता को केंद्र सरकार में शामिल नहीं किया गया. आने वाले समय में यह बात पार्टी हाईकमान के लिए आत्मघाती साबित हो सकती है. वहीं भाजपा ने जिन बाबा रामदेव को उत्तराखंड के लिए अपना खेवनहार बनाया, उन्हें जनता एक व्यवसायी संत से अधिक कुछ नहीं मानती है.