1.

राजनीति हो या
धर्म
सभी लगभग चीख रहे हैं

बहुत भीड़ है चारों तरफ़
घबराहट उलीचती हुई
आवाज़ें
लग रहीं हैं लू की तरह

ऐसे में मैं कामना करता हूंँ
कहीं से आ जाए आवाज़
बांसुरी पर कोई धुन की
या कोई सुना दे हारमोनियम पर कोई राग
चंद लम्हों में ही
मिल जाएगी शीतलता

2.

मैंने नहीं देखा कभी
भीमसेन जोशी को
वे अभी भी
गूंजते हैं
अपनी पुरकशिश तानों के संग

समय के उन हिस्सों में
कोई नहीं आता
किसी और को न आने देने
का जादू ही होता है सुरों में

भीमसेन जोशी
कितने करीब लगते हैं
जब सुनता हूं
जो भजे हरि को सदा
वहीं परम पद पाएगा।

3.

कितनी प्रिय लगती हैं
वे जगहें
किसी वाद्य यंत्र
का नाम आता है जिनमें
कब ध्यान जाएगा
नामकरण करने वालों का
कि वे सारंगी, तानपुरा
बांसुरी पखावज़
या हारमोनियम जैसे शब्दों को भी
सोचें अमर करने के बारे में

कब तक केवल
व्यक्तियों के नामों को
अमर करने की चिंता करेंगे हम
कब पहचानेंगे हम
हृदय को राहत देने वाली चीज़ों
को उपयोगी
दिन चर्या में कब शामिल होंगी
स्वरलहरियां

4.

किसकी वजह से
कहीं कोई खुश नहीं है
शायद कला के छद्म शत्रुओं की वजह से

जो समझा समझा कर
दूर कर देते हैं बच्चों को
संगीत से या नृत्य से
रूचियों से

क्यों ऐसे हालात हैं
सिर्फ़ रुपया कमाने वाले
कैक्टस उगाए जा रहे हैं घर घर

किसकी वजह से
कलाशत्रु कहलाना मंजूर है उन्हें
मगर बेरोजगार बच्चों के अभिभावक नहीं

5.

अविनाश तिवारी
जब ख़त्म हुए तो
छोड़ गए
एक बांसुरी
माउथ आरगन
हारमोनियम और सैक्सोफोन भी
संगीत वाले इसी तरह
देखते हैं वसीयतों को
दुनिया वाले इस तरह नहीं देखते
वे देख रहे होते हैं
मकान और ज़मीनें

अविनाश तिवारी होते
तो मुझे अभी हाल सुनाने लगते
बांसुरी पर नया गाना
फलाने की तरह नहीं
कि कहते
आज तो मुझे काम है।

6.

संगीत का भी एक देश होगा
उसके नागरिक होंगे
गायन वादन की दिनचर्या वाले

सरकार में होंगे श्रोता
वे ही कभी कभी मंच पर
देश ही एक मंच होगा
संसद में होती बहसें
शोर में नहीं सुरों में होंगीं
साजिंदे ही मंत्री होंगे
तालीम होगी फ़न की लागू
ज्यादा टैक्स उनसे लिया जाएगा
जो न गाएंगे न बजाएंगे
न कविता लिखेंगे
किसान हो या वैज्ञानिक या साधु संत
सभी उठते ही उठाएंगे कोई वाद्य यंत्र
गीतों में मानवता ही होगी
कोई नारे नहीं लगाएगा

तब राष्ट्रवाद भी सुहाना ही होगा।

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