आभारी हूं अभय कुमार दुबे और संतोष भारतीय जी का । अभय जी का इसलिए कि उन्होंने मेरी समीक्षा की समीक्षा की । और संतोष भारतीय जी का इसलिए कि उन्होंने मुझे दिल की लगी के साथ दो नसीहतें भी दीं। यह सब कल के ‘अभय दुबे शो’ में था जो ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर हर रविवार सुबह 11 बजे आया करता है और जिसके मुरीद देश के असंख्य लोग होते हैं । लगे हाथ संतोष जी का इसलिए भी आभार व्यक्त कर दूं कि उनकी वेबसाइट ‘चौथी दुनिया’ में मेरे लेख नियमित रूप से प्रकाशित होते हैं और मुझे उनकी सहयोगी फौजिया आर्शी मैडम ने बताया कि यह सौ से ज्यादा देशों में जाता है । शायद एक सौ बहत्तर देशों में । बहुत लंबे समय से यह आभार अटका हुआ था मेरे दिल दिमाग में ।
मैंने अपने पिछले लेख में अभय जी को लेकर कुछ द्वंद्व का जिक्र किया था । वह संघ और भाजपा को लेकर था । लेकिन कल अभय जी ने अपनी स्मृति से मेरे हवाले से जो कहा उसमें कुछ संशोधन करना चाहता हूं । अभय जी ,मैंने यह बिल्कुल नहीं कहा था मोदी संघ के सरसंघचालक जैसे हो गये हैं या संघ को देख रहे हैं । आप बोलते हैं और मैं लिखता हूं । यदि मेरे लिखे पर आप गौर करें तो मैंने यह लिखा था कि नरेंद्र मोदी के सामने अब मोहन भागवत की कोई हैसियत नहीं रह गयी है । ऐसा पहले अभय दुबे जी ने कहा था । बस इतना ही संशोधन था । मोदी सरसंघचालक कैसे हो सकते हैं या उन जैसे कैसे व्यवहार कर सकते हैं ।
सच तो यह है कि संघ और भाजपा का अंतर्संबंध समय समय पर एक जैसा नहीं रहा। स्वयं अभय जी ने कल कहा कि अटल बिहारी वाजपेई के समय और मोदी के समय में संबंधों में काफी अंतर रहा । अटल जी के समय संघ के बहुत से लोग सरकार में थे लेकिन मोदी की सरकार में उतने लोग नहीं हैं। मैं संघ और भाजपा के रिश्ते दूसरे अर्थों में देखता हूं । मेरी बात अभय जी स्वीकारेंगे कि अटल जी के समय, 2014 से पहले और उसके बाद । फिर 2019 से पहले और 2019 के बाद और अब आज । रिश्तों में गर्मी – नरमी आती रही है।‌ संघ की मोदी के कामों में दखल के लिए डेढ़ साल तक लगाम भी उसी अर्थ में मानिए । वही वक्त था जब भागवत की हैसियत भी सिकुड़ गयी थी मोदी के सामने, जो आज नहीं है । आज रिश्ते मधुर ही नहीं बल्कि लगभग समान से हैं ‌।‌दरअसल मोदी को समझना बड़ी टेढ़ी खीर रही है हर किसी के लिए । प्रो. आनंद कुमार ने तो किसी चर्चा में कहा था कि जब आरएसएस तक मोदी के मन की थाह नहीं ले पायी तो हम क्या हैं । मुझे याद पड़ता है कि एक भाषण में अभय जी ने यह भी कहा था कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी संघ की पसंद नहीं थे । संघ लाल कृष्ण आडवाणी को चाहता था । पर मोदी ने सब कैसे किया और क्या क्या किया यह एक कहानी है । अभय जी देश के जाने-माने कुछेक बेहद सुलझे बुद्धिजीवियों में से एक हैं । उनकी बात का बहुत मान होता है । वे जो कहते हैं और मैं मानता हूं कि जो कोई भी कुछ कहता है, इसमें गांधी जी को भी जोड़ लीजिए, वह वर्तमान के परिप्रेक्ष्य में कहता है । चीजें और राजनीति वक्त के साथ बदलती रहती हैं । गांधी जी तो कहते ही थे मैंने कल क्या कहा वह नहीं, आज क्या कह रहा हूं यह देखो ।
मोदी एक सशंकित व्यक्ति हैं । तानाशाही प्रवृतियों वाला हर व्यक्ति हर वक्त सशंकित रहता है । इसलिए वे संघ से ही नहीं अपने मंत्रिमंडल के साथियों से भी सचेत रहते हैं बावजूद इसके कि वे अब अच्छी तरह जान गए हैं कि वे संघ की मजबूरी हैं । हिंदुत्व को जितना वे साध सकते थे उन्होंने साध लिया । फिर भी वे नये सिरे से सशंकित हैं देश की अंदरूनी हालत के चलते । इसलिए अब वे पसमांदा मुसलमानों को अपनी ओर खींचना चाहते हैं इसकेे लिए उन्हें संघ और मोहन भागवत की सख्त जरूरत है लिहाजा बकौल अभय दुबे इस समय भाजपा के आलाकमान में तीन व्यक्ति हैं – मोदी शाह और भागवत । यह समय भाजपा और संघ के रिश्तों को देखने का नहीं है बल्कि मोदी और संघ के रिश्तों की परख का है । मोदी को हर हाल में सालों तक राज करते जाते देखने का है । फिर चाहे उसके लिए ‘कुछ’ भी क्यों न करना पड़े । फिलहाल कांग्रेस की यात्रा उन्हें परेशान करती दिख रही है ।
संतोष भारतीय जी ने भी मुझे कल बेहद इज्जत बख्शी । लेकिन साथ ही उन्होंने दो नसीहतें भी दीं कि मुझे अपनी समीक्षा में नया पन लाना चाहिए , कभी कभी मैं उपदेशक की भूमिका में आ जाता हूं और दूसरा मुझे सभी चैनल और सोशल मीडिया के दूसरे कार्यक्रमों की भी समीक्षा करनी चाहिए । मुझे लगता है कि मैं जो अधिकांश ‘सत्य हिंदी’ या ‘वायर’ आदि पर लिखता हूं उससे इतर मुझे जाना चाहिए । संतोष जी का यदि यही मंतव्य है तो वे बिल्कुल सही हैं । पर संतोष जी हर व्यक्ति की नितांत व्यक्तिगत, पारिवारिक और पेशेवर मजबूरियां भी होती हैं आप जानते ही हैं । मैडम फौजिया आर्शी ने कितना ही मुझसे आग्रह किया था। वे चाहती थीं कि मैं लाइव आऊं । वे तो मुंबई से मोबाइल का स्टैंड तक भेजने को तैयार थीं पर मैं ही तैयार न हो सका । दरअसल आज भी मेरी वही मजबूरियां हैं । जैसे तैसे मैं लिखता हूं । आंखें अंतिम दौर में लगती हैं , बुढ़ापा है, नितांत अकेलापन है , कोई हैल्पर या साथी नहीं तिस पर रीढ़ की चोट । ऐसे में सारे चैनल कहां से देखूं जबकि मेरे यहां टीवी भी नहीं है । एक था तो किसी गरीब को दे दिया ‘2014’ के बाद । अब जो है सो मोबाइल है । तो इसमें भी यूट्यूब पर कितना कोई देखें । लिखना भी मोबाइल के छोटे ‘कीबोर्ड’ पर होता है । इसलिए संतोष जी आप समझेंगे मेरी पीड़ा । फिर भी कोशिश होती है कि जितना ज्यादा हो सके समेट लूं । पिछले पूरे हफ्ते सत्य हिंदी ने निराश किया । कांग्रेस आलाकमान, अशोक गहलोत, सचिन पायलट , राजस्थान दिल्ली सब बकवास । क्योंकि यहां अब रचनात्मक कुछ होता नहीं । प्रोग्राम छः छः हैं । घुमा फिरा कर वही वही चेहरे । उनमें भी एक चेहरा कल कुछ बोला आज कुछ जबकि मुद्दा वही ।
संतोष जी की एक बात से मैं विचलित हूं। उपदेशक वाली । इससे तो मैं स्वयं भयभीत रहता हूं । यह भाव आना नहीं चाहिए । कोई इसके लिए मुझे टोके तो ज्यादा बेहतर होगा ।
मैंने कहा था कि यह समीक्षाओं की समीक्षा का दौर है । अभय जी ने भी इस संदर्भ में कुछ नाम लिए । एक फिल्म भी इन्हीं दिनों आती है ‘चुप’ । बहुत बेहतर फिल्म है । संयोगवश इसका भी विषय फिल्म समीक्षा से है । गुरुदत्त की ‘कागज़ के फूल’ फिल्म के बहाने । इस फिल्म का एक डायलॉग देखिए , कातिल जो फिल्मों से बहुत प्यार करता है और चाहता है कि फिल्में जिंदा रहें, वह कहता है कि ‘कागज़ के फूल को कागज़ पर कलम चलाने वालों ने चुप कर दिया ‘ । और उसके बाद उसके ठहाके । इसी तरह एक और डायलॉग देखिए , ‘जिंदा रहने की फीलिंग चाहिए तो सिनेमा देखिए ‘। जो फिल्म सबसे बेहतरीन है उसे एक डेढ़ स्टार देने वाले ये कौन हैं । यह कातिल ऐसे ही लोगों का खून करता है ।
जैसा मैंने कहा इस हफ्ते सत्य हिंदी ने बड़ी ऊब पैदा की । मुकेश कुमार जैसे बेहतरीन लोग भी उस सब की गिरफ्त में आ गये । निकला कुछ नहीं । दरअसल आशुतोष नाम के प्राणी को शोहरत और पहचान की बड़ी भूख है । कल अचानक से मैंने उनकी और संबित पात्रा के बीच हुई फूहड़ दर्जे की तू तू मैं मैं देखी । ये भी कुछ लोगों के लिए बड़े आदरणीय हैं । पर कभी कुछ कभी कुछ । अपने शो में किसी के बीच में कोई मित्र भी बोले तो उसे रोकने का प्रपंच लेकिन एक बार विजय त्रिवेदी के शो में ही एक भाजपा के प्रवक्ता से ऐसे तू तू मैं मैं की कि … तब उन्हें खयाल नहीं आया कि यह सत्य हिंदी का ही शो है । गोदी मीडिया पर जाना उन्हें बुरा नहीं लगता । वे इसे बोलने की आजादी कहते हैं और इस आजादी की याद वे दर्शकों को तब भी दिलाते हैं जब सांस भर कर नमस्कार बोलते हैं बल्कि तान छेड़ते हैं । उनके हिसाब से वे लोग जो धीरे से और प्यार से नमस्कार कहते हैं वे मूर्ख हो सकते हैं ।
सत्य हिंदी पर ही कुछ कार्यक्रम बेहद पसंदीदा हैं जैसे किसी किताब के लेखक से बातचीत । इस बार राजेश बादल की जगजीत सिंह पर आयी किताब पर चर्चा थी। मुकेश कुमार का ताना-बाना, अमिताभ का सिनेमा संवाद । वायर पर हिंदी की बिंदी ‌।
रवीश कुमार पिछले पूरे हफ्ते नहीं आये । लोगों ने बहुत फोन किये , चिंता भी जताई । मैंने भाई प्रियदर्शन से पता किया तो पता चला तबियत नासाज है । आरफा से मैंने अनुरोध किया कि यह वक्त है शशि थरूर से बढ़िया इंटरव्यू लेने का । उन्होंने तीसरे दिन ही ले डाला । संभव है वे पहले भी कोशिश कर रही हों । शशि थरूर को इतनी अच्छी हिंदी बोलते देखा । मजा आया । जीतेंगे तो खड़गे ही । खड़गे मतलब मैडम , मैडम मतलब खड़गे । याद तो आते ही हैं देव कांत बरुआ ।
संतोष जी ने अभय जी से पूछा कि 2024 का चुनाव अभी भी खुला है या … हम तो कहेंगे संतोष जी बंद कर दिया मोदी जी ने । परसों 5G की घोषणा हुई और मुकेश अंबानी और सुनील मित्तल ने घोषणा कर दी कि मार्च 2024 तक पूरे देश में छा जाएगा । इसका मतलब आप समझ जाएं । असंगठित क्षेत्र तो अपना है ही अब खाती पीती पीढ़ी और न्यू इंडिया भी अपनी मुट्ठी में । बेशरमी मोदी जी के पांव से गुजर जाती है । इन दिनों राष्ट्रपति से लेकर पूरी सरकार और उसकी नीतियां गुजरात के लिए बिछी हुई हैं । विपक्ष कंगूरे पर बैठा है ।

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