संभ्रम की दुनिया में जादूगर जीतता है । इसलिए कि उसे जीतने के लिए पहले संभ्रम का जाल बिछाना पड़ता है । लेकिन इस संभ्रम की सबसे बड़ी शर्त हर जादूगर के लिए यह होती है कि उसके सामने जनता कैसी है । क्या वह जनता जर्मनी की है, रोम या इटली की है , रवांडा की है या भारत की है । मनुष्य एक ही है, उसकी मनुष्य जाति भी एक ही है ।मगर देशों की मानसिक तबियत भिन्न है । इसलिए भारत हमेशा भारत ही रहेगा । न जर्मनी बनेगा न इटली । भारत की गरीबी के इतिहास की कोई लकीर नहीं । इसलिए इस गरीबी पर बादशाहत जमती है । महात्मा गांधी को छोड़कर कौन ऐसा होगा जिसने इस गरीबी पर बादशाहत का स्वप्न न देखा हो । नेहरू में महात्मा गांधी के आदर्शों का अक्स था और समाजवाद का नशा था इसलिए उन्हें छोड़ दीजिए ।पर बुरा क्या है अगर इस गरीबी पर बादशाहत का स्वप्न हो तो भी ।बस इतना सोचिए कि बादशाहत के पीछे की मंशा क्या है । तो आइए सीधे तर्क पर आते हैं ।
इन दिनों देश में संभ्रम के बादल पूरे उत्तर भारत में छाए हुए हैं । इन बादलों के बीच आये दिन चर्चा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अस्तित्व को लेकर चल रही है ।इस बहाने से कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में योगी सरकार लौटेगी कि नहीं । संभ्रम के बीच द्वंद्व है । विशेषज्ञ कहते हैं कि बीजेपी को बढ़त है । जनता के नुमाइंदे कहते हैं कि बीजेपी की ऐतिहासिक हार निश्चित है । सारा खेल इसी टंटे का है । पागल कौन हो रहा है – वह आदमी जो फेसबुक पर हैं । सोशल मीडिया ने इंसान को नंगा और मैला कर दिया है और बादशाह इसी में पेट से थुल थुल करके हंसता है , कहिए कि मजा लेता है और यह मजा तब और बढ़ जाता है जब बड़े बड़े सर्वे उसे शीर्ष पर बैठा देते हैं । इसका मतलब क्या है । सीधा सा मतलब है कि उसका फैलाया संभ्रम का मकड़जाल रंग ला रहा है ।वह लाएगा ही ।कल की बनाई रोटी आज तक बेस्वाद नहीं हुई है ।
मोदी जी हंसते हैं । विपक्ष की बेचारगी पर । जिसका इंद्रधनुष उन्होंने ही बनाया है ।और सच बात यह है कि यह इस सफलता से बनाया है कि कांग्रेस और उसका राजकुमार चारों खाने चित्त होकर गरदन तक को सीधी नहीं कर पा रहे ।इतने के बाद भी मोदी जी नहीं रुकते वे बराबर हमलावर रहते हैं ।सच बताइए यह रणनीति पचास सालों वाली है या नहीं । विपक्ष के लिए एक शब्द लिख दूं तो नाराज मत होइएगा । विपक्ष को मोदी ने किसी रंडुवे की स्थिति में ला रख छोड़ा है ।और इसका सीधा सीधा लाभ हर कोण से ब्याज के रूप में मोदी को मिल रहा है । आप देखिए कि मोदी की सेना में एक से एक कार्टून कैरेक्टर भरे पड़े हैं । तात्पर्य यह कि मोदी के बिना समूची बीजेपी का पिरामिड ताश के पत्तों की भांति भरभरा कर गिर पड़ेगा । मोदी इस आशंका से अनजान नहीं हैं । लेकिन भाईसाहब, दिमाग का लोचा अपनी तरह से आनंद में शुमार रहता है । मोदी को मजा आ रहा है । यहां सवाल यह है कि मोदी के इस आनंद का कितना बड़ा खतरा यह देश उठा रहा है । और अगर यूपी में बीजेपी की सत्ता दोबारा आती है तो देश की मासूम और आजाद हवा का क्या होगा । क्योंकि चौबीस तक आते आते तय है कि हम जैसों का गला घोंट दिया जाएगा और मोदी के अनपढ़, जाहिल ,भूखे , नंगे, अधनंगे वोटरों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा । बल्कि ऐसों की तादाद में इजाफा होगा । यानि चौबीस तक गोदी मीडिया और ट्रोल आर्मी के चलते देश मोदी का विश्व रूप देखेगा । फिर किन्हीं राष्ट्रीय- अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों का कोई दखल बेमानी हो जाएगा ।यह सब विशुद्ध ‘लोकतंत्र’ के नाम पर होगा । संविधान रहे , न रहे । दिखाने को अद्भुत ‘लोकतंत्र’ जरूर रहेगा । तो हम क्या करें । कुछ भी करने का समय ही कहां रह गया है । मैंने बहुत पहले और कई बार यह लिखा है कि प्रबुद्ध लोगों और समाज का हित चाहने वालों की टोलियां देश में भ्रमण करें ।गांव देहात के लोगों को जाकर समझाएं ।पर मैंने लिखा, लोगों ने पढ़ा फिर अपनी अपनी राह ।
पिछले सात आठ सालों से समाज में जो कुछ बुरा हो रहा है उसकी कोई भरपाई के नहीं है । पर इसी बुरे पर चंद रंग बिरंगे ललचाये टुकड़ों के जरिए भ्रमों की बिसात बिछा दी गयी है । जैसे , ‘महंगाई’ के बदले देश की सीमाएं सुरक्षित हैं ऐसे नये नये जुमलों से भरमाया गया है । जो हम आते दिन तरह तरह के वीडियोज में देखते सुनते हैं । मुसलमान से नफ़रत हर तीसरे चौथे घर में विद्यमान है ।वही बीजेपी का अंतिम हथियार या कहिए ब्रह्मास्त्र है ।
कल लाउड इंडिया टीवी पर संतोष भारतीय को सुना । ‘बेचारे’ मोदी जी का टेली प्रोम्पटर फेल हो गया और देश दुनिया में हंसी उड़ी । संतोष भारतीय ने अपने हिसाब से ही इस विषय चटखारे लेते हुए अपना विश्लेषण दिया । अच्छा लगा ।यों भी वे अपनी बात बिना किसी औपचारिकता के दिल से कहते हैं ।वे सोशल मीडिया के तमाम एंकरों और पैनलिस्टों में अलग और अनोखे हैं । दूसरे अर्थों में संपूर्ण पत्रकार । अनोखे तो अपने पुण्य प्रसून जी भी हैं ।पर कोई उन्हें पूरा तो सुन ले !! पूरा सुनने वाला सचमुच दाद पाने के काबिल तो होगा ही ।
‘सत्य हिन्दी’ वालों से कभी कभी बड़ी ऊब होती है । लेकिन एकाध बातचीत अच्छी हो जाती है तो सब धुलने लगता है । पिछले सप्ताह के सारे दिनों के ज्यादातर वीडियो ऊब पैदा करने वाले थे । चन्नी सिद्धू योगी मोदी मौर्य बस यही सब ले दे कर ।देश की और समस्याएं और जगहों के चुनाव जैसे मायने ही नहीं रखते ।न विषयों में ताजगी, न पैनलिस्टों के चेहरों में ।और सबसे ज्यादा ऊब तो तब होती है जब लौट लौट कर हर रोज आने वाले चेहरों के परिचय कराते जाते हैं । सैंकड़ों बार आशुतोष बोल चुके होंगे ‘सीएनबीसी के पूर्व संपादक …’ और इसी तरह हर किसी का घिसा-पिटा परिचय जैसे जब तक विजय त्रिवेदी यूनीवार्ता के संपादक नहीं बने थे तब तक उनके द्वारा संघ और बीजेपी पर लिखीं सारी किताबों का परिचय में जिक्र किया जाता था । मुझे लगता है हर रोज आने वाले चेहरों का परिचय देना न केवल उबाऊ है, समय की बरबादी भी है । मेरे विचार में मुकेश कुमार शायद परिचय नहीं देते या कम देते हैं, अच्छा करते हैं ।दूसरा , आलोक जोशी से निवेदन है कि अपने सब साथियों को एंकरिंग सिखायें और बताएं कि एंकरिंग में कितने धैर्य की जरूरत होती है । खासतौर पर नीलू व्यास को । पर इन सारी बातों बहसों के कोई मायने हैं ?
फिर भी सबसे ठोस कार्यक्रम इन दिनों मुझे वह लगा जिसमें यशवंत देशमुख, कमर वहीद नकवी, आलोक जोशी, विजय त्रिवेदी और आशुतोष थे । सौरभ द्विवेदी ने भी इस पर ‘नेता नगरी’ का कार्यक्रम किया ।
इस बार मुकेश कुमार का यूक्रेन पर युद्ध की आशंका को लेकर जो कार्यक्रम में किया गया, अच्छा लगा । क्योंकि विषय में जो ताजगी थी । ‘ताना-बाना’ कार्यक्रम तो अपनी जगह है ही ।कल ‘पत्थलगढ़ी’ कविता संग्रह पर अपूर्वानंद के साथ समीक्षा और अशोक वाजपेई का स्तंभ रोचक और आकर्षक रहे । मुकेश जी को नयी तरक्की मिली है – ‘डीन – प्रोफेसर’ बनने की ।बधाई । उर्मिलेश जी जब चर्चाओं में रहते हैं तो बेहतर लगते हैं , बनिस्बत अपने कार्यक्रमों के । कार्यक्रमों में विषयों का दोहराव रहता है । यह सब भी तो संभ्रम में इजाफा ही करते हैं । 10 मार्च बहुत कुछ तय कर ही देगा । इंतजार कीजिए !

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