रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पिछले दिनों यूक्रेन के मुद्दे पर बोलते हुए कहा कि यूक्रेन और रूस एक-दूसरे के भाई हैं. पुतिन का यह बयान दोनों देशों में काफी लोकप्रिय हुआ. लेकिन, यूक्रेन के ताजा हालात को देखते हुए उनके इस नारे को 1962 में भारत और चीन के बीच जंग के पहले पंडित जवाहरलाल नेहरू के उस नारे से जोड़कर देखा जा सकता है, जब नेहरूजी ने हिंदी-चीनी, भाई-भाई का नारा दिया था. बाद में चीन ने भारत पर हमला किया और यह महज एक नारा बनकर ही रह गया.
हालांकि, रूसी राष्ट्रपति के बयान को इससे अलग समझने की जरूरत है. क्योंकि, यूक्रेन और रूस की समस्या भारत-चीन से काफी अलग है. आज यूक्रेन में जो कुछ हो रहा है उसमें आश्चर्यजनक कुछ भी नहीं है. ऐसा इसलिए कि वर्ष 1990 में युगोस्लाविया में यह हो चुका है. तब युगोस्लाविया संघ के सात राज्यों में विरोध के सुर काफी तेज थे. सातों राज्यों में अलग जातीय समूह के लोग थे. लेकिन, सबसे प्रभावशाली सर्ब समूह ने काफी तेजी से अन्य समूह के लोगों का सफाया करना शुरू किया. इसके बाद नाटो ने पहली बार यूरोप में हस्तक्षेप किया. नाटो ने हवाई हमला किया और स्लोबोदन मिलोसेविक की सर्बियाई सरकार को नियंत्रण में रखा. नाटो के हमले ने सोवियत संघ (अब रूस) को नाराज कर दिया, क्योंकि वह सर्बिया का मित्र था. लेकिन इसके बावजूद रूस कुछ नहीं कर सका, क्योंकि रूस खुद साम्यवाद की ढह रही दीवारों से जूझ रही था. उसके बाद 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया. 1991 से लेकर 2014 में हालात बिल्कुल अलग हैं. एक तरफ अमेरिकी अर्थव्यवस्था मजबूती से आगे बढ़ने के लिए जद्दोजेहद कर रही है, तो रूसी अर्थव्यवस्था पहले से काफी मजबूत हो चुकी है. अब बारी नाटो के नाराज होने की थी, क्योंकि रूस ने यूक्रेन के प्रभुत्व वाले क्षेत्र क्रीमिया में अपनी सेना भेजी और उसने वहां की सरकार को आगे की कार्रवाई की धमकी भी दी. हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने पुतिन को सख्त चेतावनी देते हुए कहा कि वह यूक्रेन मामले से दूर रहे. लेकिन, रूस ने ओबामा की चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया. फिर क्रीमिया में रायशुमारी कराई गई और उसके बाद रूस ने उसके विलय की घोषणा कर दी. यूक्रेन की जनता में विद्रोह की भावना है. यूक्रेन के लोग अपनी ही सेना का विरोध कर रहे हैं. विश्लेषकों के मुताबिक, यूक्रेन की जनता का एक समूह क्रीमिया की तरह रायशुमारी की मांग कर रहा है.
क्यों है महत्वपूर्ण
रूस भले ही यूक्रेन को अपना भाई बता रहा हो, लेकिन वह दरअसल में रूस के पालनकर्ता की तरह है. दरअसल, सोवियत संघ के विघटन के बाद 15 अलग-अलग देशों का निर्माण हुआ और यूक्रेन भी उनमें से एक है. लेकिन, आज भी रूस के लोग और सरकार यूक्रेन को अपना सांस्कृतिक और आध्यात्मिक केंद्र बिंदु मानते हैं. सोवियत संघ के पतन के बाद कई लोगों को उम्मीद थी कि शीत युद्ध वाली विचारधारा अब अतीत की चीज होकर रह जाएगी. यह मान लिया गया था कि नाटो का काम अब खत्म हो चुका है. ऐसे कई तरीके थे, जिनसे पूर्वी यूरोप में सोवियत संघ के पूर्व सदस्यों को भविष्य के लिए सुरक्षा दी जा सकती थी. नाटो ने यह सुरक्षा देने के लिए पूर्व की तरफ बढ़ते हुए रूस की सीमा तक अपने पांव जमा लिए. दरअसल, यह ऐसा इलाका है, जहां परंपरागत रूप से रूस का प्रभाव रहा है. लेकिन नाटो गठबंधन की सेना रूस की सीमा तक पहुंच गए. तब यहां तक कहा गया था कि सेनाओं की तैनाती यूक्रेन और जॉर्जिया तक हो जानी चाहिए.
इस समय क्रीमिया में जो कुछ हुआ, वह दरअसल पश्चिम की उन्हीं गलतियों का नतीजा है. पश्चिमी देश एक साल से भी ज्यादा समय से यही कोशिश कर रहे हैं कि किसी तरह यूक्रेन नाटो में शामिल हो जाए. लेकिन, वहां की जनता इससे अलग राय रखती है. रूस की सेना पहले से ही क्रीमिया में मौजूद थी और उसने रायशुमारी के बाद अंततः अपने में शामिल कर लिया. अब यूक्रेन में भी विरोध के सुर देखे जा रहे हैं. रूसी समर्थकों ने पूर्वी यूक्रेन के शहर में पुलिस मुख्यालय पर कब्जा कर लिया. रूसी सेना यूक्रेन में हस्तक्षेप करने को तैयार है. यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर रूसी समर्थकों द्वारा जबरन कब्जे के बाद यूक्रेन ने भी अब सख्त कदम उठाने के संकेत दिए हैं. वहां की संसद में एक ऐसा बिल पेश किया गया है, जिसमें 1994 की परमाणु अप्रसार संधि को खत्म करने की मांग की गई है. इससे अंदाजा लगाया जा रहा है कि यूक्रेन रूस का मुकाबला करने के लिए परमाणु हथियार पाने की कोशिश कर सकता है. हालांकि, अब यूक्रेन समस्या के समाधान के लिए रूस, यूरोपीय संघ और अमेरिका ने सहमति जता दी है. लेकिन, यह सहमति कितने दिनों तक कायम रह पाती है, यह भी देखने वाली बात होगी. सीरिया के मुद्दे पर अमेरिका और रूस दोनों आमने-सामने आ चुके हैं और सीरिया संकट का समाधान किस तरह हुआ, यह हमारे सामने है. अगर यूक्रेन मामले में भी ऐसा होता है, तो जैसा कि आशंका जताई गई है कि एक और देश गृहयुद्ध की चपेट में जा सकता है. रूस पहले से ही चेचेन्या की समस्या को झेल रहा है और यूक्रेन भी उसके लिए एक बड़ी समस्या बन सकती है.
रूस के लिए यूक्रेन समस्या है या समाधान
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