16 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बिहार एवं झारखंड की राजनीति में भूचाल आना तय है. दलबदल क़ानून के कारण दो-तिहाई विधायकों के समर्थन के बिना पार्टी टूटना मुश्किल है और उतने जदयू विधायकों का जुगाड़ तो और भी मुश्किल है, इसलिए गेम प्लान बदला जा रहा है. अगर लोकसभा चुनाव के नतीजे जदयू के पक्ष में ठीक नहीं निकले, तो सारा फोकस जदयू विधायक दल का नेता बदलने में लगा दिया जाएगा. अगर साठ विधायकों का भी जुगाड़ हो गया, तो फिर नेेता बदल दिया जाएगा. इस कवायद में  सरकार भी बनी रह जाएगी और सबसे बड़ी बात यह होगी कि जदयू का अस्तित्व बरकरार रहेगा. लेकिन, अगर नीतीश कुमार ठीकठाक सीटें लाने में कामयाब रहे, तो यह उनके लिए संजीवनी का काम करेगा और उनके ख़िलाफ़ सारी नाराज़गी धरी की धरी रह जाएगी. 
4बिहार एवं झारखंड में मतदान और चुनाव प्रचार का काम चरम पर है और जीत एवं हार के दावों से सत्ता के गलियारे गुलजार हैं. लेकिन, इस राजनीतिक कवायद के बीच एक और राजनीतिक कहानी की पटकथा लिखने की कोशिश बड़े ही गुप्त तरीके से जारी है और इस पटकथा के क्लाइमेक्स की अंतिम लाइनें इशारा कर रही हैं कि बिहार में नीतीश कुमार और झारखंड में हेमंत सोरेन का सिंहासन डोल रहा है. बिहार में अब तक जो वोट डाले गए हैं, उसका लब्बोलुआब यही है कि नीतीश कुमार की पार्टी यहां बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं करने जा रही है. बताया तो यह भी जा रहा है कि उनके गृहक्षेत्र नालंदा में भी जदयू को कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है. तमाम सर्वे भी इस ओर इशारा कर रहे हैं कि जदयू दहाई का आंकड़ा पार नहीं कर पाएगा. ये हालात नीतीश की उलझनें और भी उलझा रहे हैं. ग़ौरतलब है कि सरकार के कामकाज से लेकर टिकट वितरण तक का जो सफर है, उसमें जदयू के कई नेताओं ने खुलकर, तो कई नेताओं ने पर्दे के पीछे से नीतीश कुमार को चुनौती देने का काम किया है.
मंत्री परवीन अमानुल्ला यह कहकर अलग हुईं कि सिस्टम ऐसा है कि काम करने की आज़ादी नहीं है. उधर चुनावी बयार में रेणू कुशवाहा, पूनम यादव एवं सुजाता कुमारी ने पार्टी का साथ छोड़ा, तो दल ने भी उन तीनों को निष्कासित कर दिया. अन्नू शुक्ला और छेदी पासवान ने भी पार्टी छोड़ दी है. जमुई में चुनावी मंच पर मंत्री नरेंद्र सिंह ने मुख्यमंत्री के सामने ही जिस तरह से हुंकार भरी, उससे साफ़ हो गया कि लोेकसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर सब ठीक नहीं है. नरेंद्र सिंह नहीं चाहते थे कि उदय नारायण चौधरी जमुई से जदयू के प्रत्याशी हों, लेकिन नीतीश ने उनकी भावना का सम्मान नहीं किया. इसलिए जब मंच पर उन्होंने उदय नारायण चौधरी की जमानत जब्त करा देने जैसी बात कही, तो किसी को आश्‍चर्य नहीं हुआ.
रमई राम हाजीपुर से चुनाव लड़ना चाहते थे, पर उन्हें दरकिनार करके रामसुंदर दास को टिकट दिया गया. इसी तरह वृषिण पटेल का दावा वैशाली से दरकिनार कर दिया गया. उनकी नाराज़गी आगे क्या गुल खिलाएगी, उसे देखना दिलचस्प होगा. बताया जा रहा है कि छपरा से सलीम परवेज को टिकट देने से अली अनवर भी बहुत खुश नहीं हैं. इन सबसे अलग विधायकों का एक बड़ा तबका ऐसा भी है, जो सरकार में लगातार अपनी उपेक्षा और कुछ चाटुकारों की सलाह में आकर भाजपा से गठबंधन तोड़ने के ़फैसले को पचा नहीं पा रहा है. बिहार में अगले साल विधानसभा के चुनाव होने हैं. इन चार सालों में विधायकोें के हाथों में इतनी कम ताकत थी कि वे चाहकर भी अपने समर्थकों और क्षेत्र के लिए बहुत कुछ नहीं कर पाए. इसे लेकर क्षेत्र में उनके प्रति नाराज़गी है.
नीम पर करेला यह चढ़ गया कि भाजपा के साथ गठबंधन टूटने से क्षेत्र का चुनावी सामाजिक समीकरण ध्वस्त हो गया. जिताऊ सामाजिक-जातीय समीकरण ध्वस्त हो जाने से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव में जदयू के बहुत से विधायकों का चुनावी सफर बेहद कठिन हो गया है. दर्जनों विधायक ऐसे हैं, जिनका मौजूदा समीकरण में जीतना लगभग नामुमकिन है. ऐसे विधायकों की बेचैनी काफी बढ़ गई है. उन्हें सूझ नहीं रहा है कि वे क्या करें. लोकसभा चुनाव में अगर करारी हार हुई, तो हालात और भी बदतर हो जाएंगे. जानकार बताते हैं कि 16 मई को लोकसभा चुनाव के नतीजे आने के बाद बिहार एवं झारखंड की राजनीति में भूचाल आना तय है. हाल यह है कि नतीजे आने से पहले ही नाराज़ विधायकों की गोलबंदी शुरू हो गई है. सूत्रों पर भरोसा करें, तो हाजीपुर और पटना में ऐसी कई बैठकें हो चुकी हैं. तैयारी 60 से 70 विधायकों को गोलबंद करने की है. कितने विधायक गोलबंद होंगे, यह तो वक्त बताएगा, लेकिन एक बात तो साफ़ है कि मंशा यह है कि पार्टी के तौर पर जदयू को कोई आंच न आए. दलबदल क़ानून के कारण दो-तिहाई विधायकों के समर्थन के बिना पार्टी टूटना मुश्किल है और उतने जदयू विधायकों का जुगाड़ तो और भी मुश्किल है, इसलिए गेम प्लान बदला जा रहा है.
अगर लोकसभा चुनाव के नतीजे जदयू के पक्ष में ठीक नहीं निकले, तो सारा फोकस जदयू विधायक दल का नेता बदलने में लगा दिया जाएगा. अगर साठ विधायकों का भी जुगाड़ हो गया, तो फिर नेेता बदल दिया जाएगा. इस कवायद में  सरकार भी बनी रह जाएगी और सबसे बड़ी बात यह होगी कि जदयू का अस्तित्व बरकरार रहेगा. जानकार बताते हैं कि अगर नतीजे खराब रहे, तो इस प्लान के सफल होने की संभावना बढ़ जाएगी. भाजपा के लिए यह अच्छी स्थिति होगी कि जदयू विधायक दल का नेता नीतीश कुमार की जगह कोई दूसरा बन जाए. भाजपा फिर आगे की राजनीति की संभावना भी तलाश सकती है. कुछ जानकारों का कहना है कि अव्वल तो ऐसी स्थिति आने की संभावना कम है और अगर ऐसे हालात बने भी, तो नीतीश कुमार विधानसभा भंग करने की सिफारिश करके चुनाव में जाने का ़फैसला कर सकते हैं, लेकिन यह तब होगा, जब लोकसभा चुनाव के नतीजे नीतीश कुमार के पक्ष में बेहद खराब होंगे. वहीं अगर नीतीश कुमार ठीकठाक सीटें लाने में कामयाब रहे, तो यह उनके लिए संजीवनी का काम करेगा और उनके ख़िलाफ़ सारी नाराज़गी धरी की धरी रह जाएगी.

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