-हज आवेदकों को लुभाने लगाए बड़े हॉर्डिंग्स
-आवेदकों की अरुचि, एक तिहाई आवेदन भी नहीं हुए जमा

भोपाल। प्रदेश हज कमेटी एक तरफ कंगाली का रोना लेकर बैठी है, चार माह से कर्मचारियों का वेतन जारी नहीं हुआ है, दूसरी तरफ मंहगे हॉर्डिंग्स पर फिजूलखर्ची की नई कवायद कमेटी ने शुरू कर दी है। हज आवेदकों को लुभाने के लिए शहर के कई स्थानों पर हॉडिंग्स लगाने के बीच सत्ताधीश पार्टी को सहेजने की कवायद भी कमेटी प्रशासन ने कर डाली है। इसके विपरीत सउदी अरब सरकार की इजाजत की कमी, खर्च में हुई बेतहाशा वृद्धि और कई तरह की पाबंदियों का असर यह है कि करीब एक माह की आवेदन प्रक्रिया के दौरान प्रदेश के कोटे से भी एक तिहाई आवेदन ही कमेटी तक पहुंच पाए हैं।
सूत्रों का कहना है कि प्रदेश हज कमेटी ने पहली बार हज आवेदकों को अर्जियां जमा कराने की जानकारी देने के लिए शहर के कई स्थानों पर बड़े हॉर्डिंग्स लगाए हैं। देश के प्रधानमंत्री से लेकर केन्द्रीय अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री तक इन पोस्टरों में विराजित हैं तो कुछ पोस्टरों में मुख्यमंत्री और प्रदेश के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री अपीली मुद्रा में दिखाई दे रहे हैं। परंपरा से हटकर किए जाने वाले इस काम को लेकर इस बात की चर्चाएं गर्म हैं कि महज सियासी लोगों को खुश करने की गरज से कमेटी जिम्मेदारों ने इन पोस्टरों पर बड़ी रकम खर्च की है। दूसरी तरफ कमेटी के हालात यह बताए जा रहे हैं कि उसके पास अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी राशि मौजूद नहीं है। जिसके चलते करीब चार माह से कर्मचारियों को वेतन नहीं मिल पाया है। पोस्टर लगाने की जरूरत और इसके पीछे मकसद को जानने के लिए कॉल किए जाने पर कमेटी सीइओ दाऊद अहमद खान फोन पर उपलब्ध नहीं हो पाए।
इधर आमद के रास्ते हो रहे बंद
सूत्रों का कहना है कि सेंट्रल हज कमेटी द्वारा हज आवेदन के बदले आवेदकों से तीन सौ रुपए प्रति आवेदक वसूल किया जाता है। नॉन रिफेंडेबल इस मद से प्रदेशभर से मिलने वाली कुल रकम का 50 फीसदी प्रदेश हज कमेटी को दिए जाने की व्यवस्था है। बताया जाता है कि हर साल हज आवेदकों का आंकड़ा 20 हजार से ऊपर जाता रहा है। जबकि प्रदेश का हज कोटा महज 5 हजार के आसपास ही सिमट जाता है। बताया जा रहा है कि जहां पिछले साल आवेदन प्रक्रिया के 27 दिनों में अर्जियों की तादाद 13 हजार पार पहुंच गई थी, वहीं इस बार इस अवधि में यह आंकड़ा महज 1723 पर अटका हुआ है। आवेदन राशि से मिलने वाली रकम से होने वाली बड़ी आमद के रास्ते बंद होते दिखाई देने के बाद भी हज कमेटी की फिजूलखर्ची की तरफ बढ़ना लोगों के लिए सवाल उठाने की वजह बनता जा रहा है।


फिजूलखर्चियों का आलम यह भी
प्रदेश के इकलौते हज हाउस के निर्माण को करीब 12 साल हो चुके हैं। शुरूआती दौर में इस भवन को इंबारकेशन पाइंट बनाकर प्रदेश के हाजियों को रवाना किया जाता रहा है। लेकिन पिछले दो सालों से यहां से इंबारकेशन खत्म हो चुका है। इसके अलावा भी इस भवन की जरूरत साल में महज एक-दो महीने तक ही पड़ती है। बावजूद इसके हज कमेटी जिम्मेदारों ने इस बिल्डिंग की निगरानी करने के लिए बड़ी तादाद में निजी सिक्युरिटी कंपनी के गार्ड तैनात कर रखे हैं, जिनके मासिक वेतन के लिए करीब 51 हजार रुपए अदा करना पड़ रहे हैं। इधर हज हाउस में मौजूद जनरेटर के सुचारू संचालन के लिए डीजल के नाम पर एक तयशुदा राशि भी कमेटी द्वारा खर्च की जा रही है। इस दौरान इस बात का ख्याल भी नहीं रखा जाता कि महिने में कितनी बार बिजली गुल हुई है।
बॉक्स
इसलिए घट रही आवेदन संख्या
सूत्रों का कहना है कि करीब एक महीने से जारी हज आवेदन की प्रक्रिया के दौरान महज प्रदेश ही नहीं, बल्कि राष्टÑीय स्तर पर भी कमी आई है। बताया जाता है कि इस अवधि में पूरे देशभर से मात्र 36 हजार आवेदन ही जमा हुए हैं। जबकि आवेदन की शुरूआती तारीख 10 दिसंबर को खत्म होने वाली है। हज आवेदन में आई कमी की वजह इस साल हज खर्च में हुई बेतहाशा वृद्धि को बताया जा रहा है। जहां पिछले साल हज खर्च के रूप में आवेदक को दो लाख बीस हजार रुपए खर्च करना थे, वहीं यह राशि इस साल बढ़कर 5 लाख 20 हजार पर पहुंच गई है। इसके अलावा सेंट्रल हज कमेटी द्वारा लागू की गर्इं नई पाबंदियों के बीच आवेदकों से हज के लिए खर्च किए जाने वाली रकम का ब्यौरा देने की बाध्यता भी आवेदन संख्या में आई कमी की एक वजह है। इससे हटकर इस बात से भी लोगों को संतोष नहीं है कि पिछले साल कोरोना के कारण निरस्त हुए हज सफर के बाद इस साल अब तक सउदी अरब सरकार ने इस बात का ऐलान नहीं किया है कि हज-2021 के लिए वह लोगों को परमिशन देगा या नहीं। ऐसे में आवेदकों को कई महीनों के लिए अपनी रकम डम्प होने का भी डर सताने लगा है। गौरतलब है कि पिछले साल जनवरी और फरवरी में जमा की गई पहली और दूसरी किश्तों की रकम हजयात्रा निरस्त होने के बाद करीब 6 माह बाद अगस्त में लोगों को वापस मिली थी।

खान अशु


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