कैनवास, मंच, रुपहली पर्दा : हर दौर में जिंदाबाद ‘बुलाती है मगर जाने का नहीं’, शायरी की ये पंक्तियां आप सभी ने कहीं न कहीं जरूर सुनी होगी। अगर आप टिक टॉक यूजर रहे हैं तो जरूर इस शायरी को सुना होगा। आमतौर पर डॉ. राहत इंदौरी को लोग महज एक शायर के रूप में जानते हैं, लेकिन शायरी की शुरूआत से पहले वे एक अच्छे पेंटर और आर्टिस्ट भी रहे हैं। जिस दौर में उनकी शायरी बुलंदियों पर थी, उस जमाने में उन्होंने फिल्मों की तरफ रुख भी किया, लेकिन मंच की तात्कालिक वाहवाही चाहने वाले शायर को फिल्मी दुनिया के रंग ज्यादा दिन तक नहीं लुभा पाए। अपने मायानगरी के सफर में उन्होंने जो कुछ भी लिखा, वह एक तेहरीर होकर रह गया। उनके लिखे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं और बेहतर शायरी को पसंद करने वाले श्रोता इन गीतों पर झूमते भी नजर आते हैं।

सर से हुआ फिल्मी सफर

राहत इंदौरी कई बॉलीवुड फिल्मों के लिए गाने लिखे हैं। उन्होंने सबसे पहले साल 1993 में आई फिल्म सर के लिए गाना लिखा था। इसमें उनके द्वारा लिखा गीत ‘आज हमने दिल का हर किस्सा’ काफी पॉपुलर हुआ था। इसके बाद उन्होंने खुद्दार, मर्डर, मुन्नाभाई एमबीबीएस, मिशन कश्मीर, करीब, इश्क, घातक और बेगम जान जैसी करीब 90 फिल्मों में गाने लिखे।

-तुमसा कोई प्यारा कोई मासूम नहीं है (फिल्म- खुद्दार)।
-तुम मानो या न मानो, पर प्यार इंसां की जरूरत है (फिल्म- खुद्दार)।
-दिल को हजार बार रोका रोका रोका (फिल्म- मर्डर)
-एम बोले तो मास्टर मैं मास्टर (फिल्म- मुन्नाभाई एमबीबीएस)
-बुम्बरो बुम्बरो श्याम रंग बुम्बरो (फिल्म- मिशन कश्मीर)
-देखो-देखो जानम हम, दिल अपना तेरे लिए लाए (फिल्म- इश्क)
-नींद चुराई मेरी किसने ओ सनम तूने (फिल्म- इश्क)
-कोई जाए तो ले आए मेरी लाख दुआएं पाए (फिल्म- घातक)
-ये रिश्ता (फिल्म- मीनाक्षी : ए टेल ऑफ थ्री सिटीज)
-मुर्शिद (फिल्म- बेगम जान)

आज-कल के गानों को लेकर कही थी ये बात

एक इंटरव्यू में राहत इंदौरी ने आज के पॉप और रिमिक्स गानों को लेकर कहा था कि अब फिल्मों के गानों से शब्द गायब हो चुके हैं। यही वजह कि वर्तमान में शायर की शायरी बॉलीवुड गानों से दूर होती जा रही है। उन्होंने एक गाने का उदाहरण देते हुए कहा था कि अब फिल्मों में ढिंक चिका, ढिंक चिका.. जैसे गानों की डिमांड है, ऐसे ही गाने लिखे और गाए जा रहे हैं। राहत ने कहा था कि ऐसे गानों में शायर का कोई काम नहीं है इसे तो कोई भी लिख देगा।

राहत के बारे में

इंदौरी का असली नाम राहत कुरैशी था। हालांकि, इंदौर में पैदाइश और पलने-बढ?े के कारण उन्होंने अपना तखल्लुस (शायर का उपनाम) इंदौरी चुना था। उनके पिता एक कपड़ा मिल के मुंशी थे और उनका बचपन संघर्ष के साये में बीता था। इंदौरी की शायरी अलग-अलग आंदोलनों के मंचों पर भी गूंजती रही है। संशोधित नागरिकता कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या पंजी (एनपीआर) के खिलाफ प्रदर्शन करने वाले लोगों के लिये उनका मशहूर शेर सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में, किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है, जैसे कोई नारा बन गया था। राहत के करीबी लोग बताते हैं कि पिछले कुछ बरसों में वह दुनिया भर में लगातार मंचीय प्रस्तुतियां दे रहे थे और अपने इन दौरों के कारण गृहनगर में कम ही रह पाते थे। बहरहाल, कोविड-19 के प्रकोप के कारण वह गुजरे साढ़े चार महीनों से उस इंदौर के अपने घर में रहने को मजबूर थे जो देश में इस महामारी से सबसे ज्यादा प्रभावित जिलों में शामिल है।

बुलाती है मगर…
इंदौरी ने अपनी मशहूर गजल ‘बुलाती है, मगर जाने का नईं (नहीं)’ का एक शेर 14 मार्च को ट्वीट किया था-
वबा फैली हुई है हर तरफ, अभी माहौल मर जाने का नईं…।

ठंड ऐसी के सूरज दुहाई मांगे…

राहत साहब ने अपने दौर में एक शेर में कहा था कि, ‘ठंड ऐसी के सूरज भी दुहाई मांगे, जो हो सफर में तो किससे रजाई मांगे….!’ 1 जनवरी को डॉ राहत इंदौरी का जन्मदिन है, जिन्होंने बीसवीं और इक्कीसवीं सदी में लगभग पांच दशकों तक अपनी अनूठी शायरी से लोगों के दिलों पर राज किया। उम्र के 71वें जन्मदिन पर वे आज दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनके चाहने वालों ने उनकी याद में दुनियाभर में अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए हैं। इंदौर और बुरहानपुर भी ऐसे आयोजनों से आबाद हुए हैं। सर्दी और सफर के काम्बीनेशन पर उनका यह शेर इसलिए भी मौजू कहा जा सकता है कि उन्होंने अपनी जिंदगी का आधे से ज्यादा हिस्सा सफर में ही गुजारा है।

‘लहू से मेरे माथे पे हिन्दुस्तान लिख देना…’

राहत की शायरी को उनके मिजाज के साथ जोड़कर उनके विरोधियों ने बहुत कुछ कहा और लिखा। लेकिन राहत ने हमेशा देश के लिए बहुत कुछ लिखा, कहा और जज्बा अपने दिल में रखा है। पाकिस्तान से बुरे रिश्तों के चलते उन्होंने ताउम्र इस देश के मुशायरे पढ़ने से इंकार कर दिया था। अमेरिका से जिस दौर में देश की पटरी नहीं बैठ रही थी, उन्होंने अमेरिकी मुशायरों का बायकाट भी कर दिया था। कोरोना काल में उन्होंने लोगों को समझाईश के लिए कई वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल किए। जाते-जाते उनके इस शेर को भी लोगों ने याद किया, ‘मैं जब मर जाऊं तो मेरी अलग पहचान लिख देना, लहूू से मेरी पेशानी पर हिन्दुस्तान लिख देना…!’

खान अशु

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