Mukesh-Ambaniनिजी क्षेत्र की सबसे बड़ी भारतीय कंपनी रिलायंस पेट्रोलियम पर केंद्र सरकार ने केजी बेसिन से निर्धारित लक्ष्य से कम गैस का उत्पादन करने की वजह से चौथी बार 57.9 करोड़ डॉलर (3500 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया है. रिलायंस केजी बेसिन के डी-6 ब्लॉक से नेचुरल गैस का उत्पादन कर रही है. लोकसभा में पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने बताया कि रिलायंस इंडस्ट्रीज और सरकार के बीच जो समझौता हुआ था, उसके अनुसार केजी बेसिन के धीरू भाई-1, धीरू भाई-3 और केजी डी-6 ब्लॉक से रिलायंस को रोज़ाना 80 मिलियन स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर गैस का उत्पादन करना था, लेकिन रिलायंस ने वित्तीय वर्ष 2011-12 में 35.33, 2012-13 में 20.88 और 2013-14 में केवल 9.77 एमएमएससीएमडी गैस का उत्पादन किया, जो निर्धारित लक्ष्य से बहुत कम है. सरकार ने वर्ष 2013-14 में उत्पादन लक्ष्य पूरा न कर पाने के कारण 10 जुलाई, 2014 को रिलायंस को नोटिस जारी किया और उस पर 57.9 करोड़ डॉलर (3500 करोड़ रुपये) का जुर्माना लगाया है. चालू वित्तीय वर्ष में रिलायंस केवल 8.05 एमएमएससीएमडी गैस का उत्पादन कर सकी है. सरकार पहले भी रिलायंस पर केजी बेसिन में उत्पादन लक्ष्य पूरा न कर पाने के लिए जुर्माना लगा चुकी है.
रिलायंस पर वित्तीय वर्ष 2010-11 में 45.7 करोड़, 2011-12 में 54.8 करोड़ और 2012-13 में 79.2 करोड़ अमेरिकी डॉलर का जुर्माना लगाया जा चुका है. कुल मिलाकर सरकार द्वारा अब तक रिलायंस पर 237.6 करोड़ अमेरिकी डॉलर का जुर्माना लगाया जा चुका है. केंद्र में एनडीए सरकार के गठन के बाद नेचुरल गैस के दाम 4.2 डॉलर एमएमबीटीयू (मिलियन मीट्रिक ब्रिटिश थर्मल यूनिट) से बढ़ाकर 8.4 डॉलर एमएमबीटीयू करने के लिए सहमति दे दी गई है, लेकिन उस पर तीन महीने की रोक लगी हुई है. आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने इस मुद्दे को उठाते हुए केंद्र की यूपीए सरकार पर आरोप लगाया था कि वह गैस के दाम बढ़ाकर रिलायंस को फ़ायदा पहुंचा रही है. सरकार द्वारा मूल्य वृद्धि करने के फैसले से रिलायंस को 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का अतिरिक्तमुनाफ़ा होने का अंदाज़ा लगाया गया था, लेकिन आम चुनाव की वजह से अदालत ने यूपीए सरकार के गैस की क़ीमत बढ़ाने के ़फैसले पर नई सरकार के गठन तक रोक लगा दी थी.
रिलायंस अब तक केजी बेसिन से गैस का उत्पाद स़िर्फ इसलिए नहीं कर रही थी, क्योंकि वह उससे मनमाफिक मुनाफ़ा नहीं कमा पा रही है. सरकार के साथ उसका प्रॉफिट शेयरिंग एग्रीमेंट भी है, जिससे जितना ज़्यादा गैस का उत्पादन होगा, सरकार को भी उतनी ज़्यादा आमदनी होगी, लेकिन लगातार गैस उत्पादन कम होने की वजह से सरकार को पर्याप्त आमदनी नहीं हो पा रही है. रिलायंस और सरकार के बीच हुए समझौते के अनुसार, रिलायंस को 2.1 डॉलर क़ीमत पर दस वर्षों तक गैस सप्लाई करनी थी, लेकिन यूपीए सरकार ने इसे बढ़ाकर 4.2 डॉलर कर दिया था. यूपीए-2 का कार्यकाल पूरा होते-होते रिलायंस ने क़ीमत बढ़ाकर 8.4 डॉलर कराने की पुरजोर कोशिश की. इसके पीछे रिलायंस का तर्क था कि अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में गैस की जो क़ीमत है, उससे कम में गैस बेचने पर उसे नुक़सान होता है. लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने गैस की क़ीमत में वृद्धि को मुद्दा बनाया और उसके बाद यह मामला अदालत में चला गया. अदालत ने गैस की क़ीमत में वृद्धि के फैसले पर चुनाव तक रोक लगा दी. इसके बाद केंद्र में मोदी सरकार का गठन हुआ, जिसने क़ीमत में वृद्धि को मंजूरी दे दी. फिलहाल इस फैसले पर तीन महीने के लिए रोक लगी हुई है.
पेट्रोलियम मंत्रालय और डायरेक्टर जनरल (हाइड्रोकार्बन) के मुताबिक, रिलायंंस ने निर्धारित लक्ष्य के उत्पादन की क्षमता वाला प्लांट लगाया है, लेकिन नए कुओं की खुदाई न होने की वजह से उत्पादन लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है. वहीं रिलायंस एवं उसकी सहयोगी कंपनियों का तर्क है कि भौगोलिक जटिलताओं, जैसे रेत और पानी की वजह से उत्पादन कम हो पा रहा है. जबकि सच यह है कि वास्तविक स्थिति ऐसी नहीं है. केंद्र सरकार ने अब तक रिलायंस पर जो जुर्माना लगाया है, उसमें से कितनी धनराशि जमा कर दी गई है, इसकी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. सरकार जुर्माना लगाती जा रही है, साथ ही गैस के दाम भी बढ़ाती जा रही है. इससे तो यही समझ में आ रहा है कि सरकार जुर्माने की धनराशि की भरपाई गैस की क़ीमत बढ़ाकर कर रही है. भले ही गैस के दाम बढ़ने में देरी होती हो, लेकिन रिलायंस को एक मोटा मुनाफ़ा हो जाता है. उसके पास दुनिया की आधुनिक तकनीक और संसाधन मौजूद हैं. बावजूद इसके वह एवं उसकी सहयोगी कंपनियां भौगोलिक परेशानियों का हवाला देकर स्वयं को पाक-साफ़ साबित करना चाहती हैं.
हालांकि, एनडीए सरकार ने इस बार जुर्माने की भरपाई के लिए सरकारी तेल एवं गैस कंपनियों द्वारा गैस की खरीद पर रिलायंस को दी जाने वाली धनराशि सरकार के खाते में जमा करने का आदेश दिया है. केजी डी-6 से उत्पादित गैस गेल और चेन्नई पेट्रोलियम आदि सरकारी कंपनियां खरीदती हैं. सरकार ने उनसे कहा है कि वे पेट्रोलियम उत्पाद के बदले रिलायंस को दी जाने वाली धनराशि सरकार के खाते में जमा करें, जिससे सरकार रिलायंस से जुर्माने की वसूली कर सके. सरकार के फैसले से कई लोग अचंभे में हैं. प्रो-कॉरपोरेट समझी जाने वाली एनडीए सरकार लेस गवर्नमेंट-मोर गवर्नेंस का वादा करके सत्ता में आई है. सरकार ने रिलायंस के ख़िलाफ़ ़फैसला लेकर अन्य कॉरपोरेट घरानों को यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह उनका सहयोग करेगी, लेकिन गलत काम करने पर वह उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से भी नहीं चूकेगी. अब देखना यह है कि अन्य कंपनियां सरकार के इस क़दम से क्या सबक लेती हैं.

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