पुनर्वास नीति एवं पुनर्वास पर उच्चतम न्यायालय और नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के आदेश का उल्लंघन बड़े पैमाने पर चल रहा है, जो आगे चलकर विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकता है. दल का कहना है कि वसाहट स्थलों की हालत दयनीय है, वहां सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. साथ ही विद्यालय एवं स्वास्थ्य केंद्र का भी अभाव है, जिसके चलते विस्थापित लोग वहां रहने से इंकार कर रहे हैं.
नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध से विस्थापितों का पूर्ण पुनर्वास (जैसा कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दावा किया है) और विस्थापितों के पुनर्वास एवं मुआवज़े की गुणवत्ता-वस्तुस्थिति समझने के लिए एक केंद्रीय सत्य शोधन दल (फैक्ट फाइंडिंग टीम) ने बीते दिनों नर्मदा घाटी के तीन ज़िलों के लगभग 10 गांवों में दौरा किया. उक्त दल ने मध्य प्रदेश एवं गुजरात की राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के उस दावे कि शत-प्रतिशत प्रभावित लोगों को पुनर्वास हो चुका है, की पड़ताल की. बेक वाटर लेवल, जिसके आधार पर सरकार ने लोगों का विस्थापन तय किया है और दावा किया है कि बांध की ऊंचाई बढ़ने से कोई अतिरिक्त डूब नहीं आएगी, उसकी भी जांच की गई. नर्मदा घाटी के लोगों से मिली शिकायत कि हज़ारों लोग अभी भी पुनर्वास से वंचित हैं, सरकारी दावे पर सवाल खड़े करते हैं.
विस्थापितों के पुनर्वास और मुआवज़ा संबंधी ज़मीनी सच्चाई जानने के लिए गठित उक्त छह सदस्यीय दल में भारतीय किसान सभा के महामंत्री एवं आठ बार सांसद रह चुके हन्नान मोल्लाह, राष्ट्रीय भारतीय महिला महासंघ की महासचिव एनी राजा, केरल के पूर्व वन मंत्री एवं भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बिनोय विस्वम, अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त जल विशेषज्ञ राज कचरू, भूतपूर्व विधायक एवं समाजवादी समागम के मार्गदर्शक डॉ. सुनीलम और ऊर्जा एवं पर्यावरण विशेषज्ञ सौम्य दत्ता शामिल थे. अपने दो दिवसीय दौरे में सत्य शोधक दल ने धार ज़िले के खलघाट-गाजीपुर बस्ती, धरमपुरी नगर, एकल्वारा, चिखल्दा एवं निसरपुर, बडवानी ज़िले के भीलखेड़ा, राजघाट, पिपरी एवं खर्या भादल आदि गांवों का दौरा किया. इसके अलावा अलीराजपुर ज़िले के ककराना, सुगट एवं झंडाना, महाराष्ट्र के भादल, दुधिया, चिमाल्खेदी, झापी, फलाई एवं डनेल आदि गांवों के आदिवासियों और गुजरात के धरमपुरी वसाहत के प्रतिनिधियों ने दल के सामने अपने बयान दिए. दल ने बडवानी के वर्तमान विधायक रमेश पटेल और ज़िला अध्यक्ष से भी मुलाकात कर सच्चाई जानी.
प्रभावित लोगों के बयान, उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए दस्तावेज़ों और विभिन्न क्षेत्रों में मौक़े पर जाकर जायजा लेने के बाद दल इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि हज़ारों प्रभावित परिवार अभी भी मुआवज़े एवं पुनर्वास से वंचित हैं और सरकारें वर्षों से उनकी इस समस्या के प्रति उदासीन है. सैकड़ों परिवार, जिनके घर डूब क्षेत्र में आने वाले हैं, वे प्रभावितों के सरकारी आंकड़े से अभी भी बाहर हैं. सौम्य दत्ता के मुताबिक, सरदार सरोवर बांध की 122 मीटर की वर्तमान ऊंचाई पर भी ऐसे बहुत सारे परिवार प्रभावित हो रहे हैं, जो सरकारी आकलन से बाहर हैं. बांध की ऊंचाई 17 मीटर और बढ़ाने के केंद्र सरकार के ़फैसले से निमाड़ का समतल क्षेत्रफल डूब क्षेत्र में आ जाएगा, जिससे एक बड़ी तबाही की शुरुआत हो सकती है. हज़ारों एकड़ उपजाऊ ज़मीन डूब क्षेत्र में चली जाएगी और खाद्य सुरक्षा के स्थानीय प्रबंधन को हानि पहुंचाएगी.
दल का कहना है कि पुनर्वास नीति एवं पुनर्वास पर उच्चतम न्यायालय और नर्मदा जल विवाद न्यायाधिकरण के आदेश का उल्लंघन बड़े पैमाने पर चल रहा है, जो आगे चलकर विस्फोटक स्थिति पैदा कर सकता है. दल का कहना है कि वसाहट स्थलों की हालत दयनीय है, वहां सड़क, पानी, बिजली जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं. साथ ही विद्यालय एवं स्वास्थ्य केंद्र का भी अभाव है, जिसके चलते विस्थापित लोग वहां रहने से इंकार कर रहे हैं. पुनर्वास की अनिवार्य मांग ज़मीन के बदले ज़मीन है, जिसे पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ज़मीन को चिन्हित और उपलब्ध कराना सरकार की ज़िम्मेदारी है. लेकिन, मध्य प्रदेश सरकार की ओर से इस दिशा में कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा है और उसकी यह उदासीनता पुनर्वास में सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आ रही है. दल के अनुसार, कई लोगों ने यह बताया कि ज़मीन फर्जी तरीके से अपात्रों को दे दी गई. यही नहीं, कई विस्थापितों के मुआवज़े की धनराशि का एक बड़ा हिस्सा सरकारी अधिकारी और दलाल हजम कर गए.
दल के अनुसार, भारतीय संविधान द्वारा आदिवासियों के लिए बनाए गए विशेष प्रावधानों का सरकार खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रही है. पुनर्वास के लिए गुजरात में डबोही नगर पंचायत के पास दी गई वसाहट की ज़मीन अब विस्थापितों से वापस ली जा रही है. आजीविका आधारित पुनर्वास के उच्चतम न्यायालय के आदेश का उल्लंघन किया जा रहा है. महाराष्ट्र की तरह मछुआरों को मछली मारने का अधिकार देने में मध्य प्रदेश सरकार नाकाम रही है. दल के सदस्य एवं जल विशेषज्ञ राज कचरू ने बताया कि बेक-वाटर से प्रभावित क्षेत्र सरकारी आकलन से काफी ज़्यादा है और बांध की ऊंचाई पूरी होने के बाद मानसून में घाटी में बाढ़ के कारण अप्रत्याशित क्षति होगी, जिसे सरकार मानने को तैयार नहीं है. ग़ौरतलब है कि 2012 और 2013 में बाढ़ का पानी कई गांवों में सरकारी अनुमानों को ध्वस्त कर चुका है. बावजूद इसके, सरकार सही तरीके से आकलन के लिए तैयार नहीं है. सत्य शोधन दल के अनुसार, इस मामले की विस्तृत रिपोर्ट जल्द ही केंद्र सरकार, संबंधित राज्य सरकारों एवं प्राधिकरणों को सौंपी जाएगी और देश की जनता के सामने सारी सच्चाई लाई जाएगी. इस संदर्भ में विभिन्न राजनीतिक दलों, किसान संगठनों एवं सामाजिक संगठनों ने दल को पूर्ण सहयोग का आश्वासन दिया है.