2 अप्रैल 2018 तक जिन सांसदों का कार्यकाल पूरा होने वाला है, उनमें दो केंद्रीय मंत्री भी हैं- धर्मेंद्र प्रधान और रविशंकर प्रसाद. इनके अलावा जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, जदयू के ही महेंद्र प्रसाद और अनिल कुमार सहनी का कार्यकाल भी अप्रैल 2018 में पूरा हो रहा है. राज्यसभा की इन सात सीटों पर होनेवाले चुनाव को लेकर विभिन्न दलों में गतिविधियां तेज हैं.
बिहार में नए साल में जमकर सियासी घमासान मचने वाला है. आम चुनाव और विधानसभा चुनाव में भले ही अभी देरी है, लेकिन राज्यसभा की सात और विधान परिषद की 11 सीटों के लिए अभी से ही सियासी गोटियां सेट करने का दौर शुरू हो गया है. इन चुनावों के मार्च 2018 में होने की संभावना है. राज्यसभा और विधान परिषद जाने वाले दावेदार पटना से लेकर दिल्ली तक दौड़ लगा रहे हैं. इस बार मुकाबला इतना जबरदस्त है कि कोई भी दावे के साथ यह कहने की स्थिति में नहीं है कि मेरा टिकट तो पक्का है ही. गौरतलब है कि राज्यसभा में बिहार कोटे की कुल 16 सीटें हैं. इनमें छह सीटों का कार्यकाल अप्रैल 2018 में पूरा हो रहा है. राज्यसभा की बिहार कोटे की जो सीटें रिक्त हुई हैं, उनमें शरद यादव व अली अनवर की सीटें भी शामिल हैं. वैसे तो शरद यादव का कार्यकाल जुलाई 2022 तक का था, लेकिन अब उनकी सीट भी रिक्त हो गई है. वहीं अली अनवर का कार्यकाल पूरा होने में पांच माह बचे हैं. वैसे तो उम्मीद है कि शरद यादव की रिक्त हुई सीट के लिए चुनाव भी बाकी रिक्त सीटों के चुनाव के साथ ही होगा, लेकिन यह चुनाव आयोग पर निर्भर करता है कि वह कब उपचुनाव कराता है.
2 अप्रैल 2018 तक जिन सांसदों का कार्यकाल पूरा होने वाला है, उनमें दो केंद्रीय मंत्री भी हैं- धर्मेंद्र प्रधान और रविशंकर प्रसाद. इनके अलावा जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह, जदयू के ही महेंद्र प्रसाद और अनिल कुमार सहनी का कार्यकाल भी अप्रैल 2018 में पूरा हो रहा है. राज्यसभा की इन सात सीटों पर होनेवाले चुनाव को लेकर विभिन्न दलों में गतिविधियां तेज हैं. बिहार विधानसभा कोटे से राज्यसभा के लिए सभी सदस्यों का चुनाव किया जाना है. इधर, 243 सीटों वाले बिहार विधानसभा में भाजपा विधायक आनंद भूषण पांडेय और राजद विधायक मंद्रिका सिंह यादव के निधन के कारण दो सीटें रिक्त हो गई हैं.
जानकारों की मानें, तो राज्यसभा की एक सीट के लिए किसी भी दल को कम-से- कम 35 विधायकों के मतों की आवश्यकता होगी. वर्तमान में बिहार विधानसभा में राजद के 79, जदयू के 71 और भाजपा के 52, कांग्रेस के 27, भाकपा माले के 3, लोजपा-रालोसपा के 2-2, हम के 1 और 4 निर्दलीय विधायक हैं. जदयू, भाजपा, लोजपा, रालोसपा और हम के विधायकों को मिला दें, तो ये संख्या 128 हो जाती है. दूसरी ओर राजद-कांग्रेस गठबंधन को मिलाने पर कुल विधायकों की संख्या 106 हो जाती है. इसके अनुसार, जदयू-भाजपा का चार और राजद-कांग्रेस गठबंधन का तीन सीटों पर चुना जाना तय है.
मोटे तौर पर देखें, तो इस बार जदयू को दो सीटों का नुकसान हो रहा है. भाजपा भी घाटे में रहेगी, लेकिन राजद को दो सीटों का फायदा होने जा रहा है. इसी तरह कांग्रेस भी राज्यसभा के लिए बिहार से अपना खाता खोल सकती है. लेकिन राजनीतिक पंडितों का कहना है कि अगर आपरेशन कांग्रेस हो गया तो फिर एनडीए को एक सीट का फायदा हो सकता है. आंकड़ों के हिसाब से अगर सब कुछ सामान्य रहा, तो तीन सीट एनडीए और तीन सीट यूपीए को मिलना तय है. शरद यादव की सीट पर चूंकि उपचुनाव होगा, तो इसपर सत्ताधारी दल की जीत तय है. राजनीतिक जानकारों का कहना है कि कांग्रेस में अभी सब कुछ शांत नहीं हुआ है. कभी भी पार्टी में विद्रोह की ज्वाला भड़क सकती है. कुछ विधायक तो गुजरात चुनाव के नतीजों का भी इंतजार कर रहे हैं.
भरोसेमंद सूत्रों की मानें, तो एनडीए नेताओं ने कांग्रेसी विधायकों को अभी कुछ इंतजार करने की सलाह दी है. एनडीए के पास राज्यसभा चुनाव में 23 अतिरिक्त वोट हैं. अगर कांगे्रस के 12 विधायक क्रास वोटिंग कर देते हैं, तो एनडीए को एक सीट का फायदा हो सकता है. एनडीए के नेता इस समय के हालात का आकलन करने के बाद ही कोई अंतिम फैसला लेना चाहते हैं. छठी सीट के लिए एनडीए और कांग्रेस दोनों ही किसी धनपशु की खोज कर रहे हैं. अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक हुआ, तो बिहार का राज्यसभा का चुनाव देश विदेश के अखबारों की सुर्खियां बन सकता है.
राज्यसभा जाने वाले दावेदारों की बात करें, तो भाजपा के दो केंद्रीय मंत्री बिहार से राज्यसभा सदस्य हैं- धर्मेंद्र प्रधान और रविशंकर प्रसाद. दोनों ही नरेंद्र मोदी के प्रिय हैं और नीतीश कुमार भी इन्हें चाहते हैं. लेकिन भाजपा को इनमें से किसी एक का चयन करना होगा. उम्मीद है कि रविशंकर प्रसाद इसमें बाजी मार लेंगे. जदयू की ओर से तीन नाम सबसे आगे हैं- के सी त्यागी, वशिष्ठ नारायण सिंह और किंग महेंद्र. के सी त्यागी शरद यादव की सीट पर होने वाले उपचुनाव से राज्यसभा जा सकते हैं. इसके अलावा वशिष्ठ नारायण सिंह का नाम तय माना जा रहा है. किंग महेंद्र को लेकर चर्चा है कि वे एनडीए के छठे उम्मीदवार भी हो सकते हैं. ऐसे में नीतीश कुमार जदयू कोटे से किसी अतिपिछड़ा को उम्मीदवार बना सकते हैं.
जहां तक राजद का सवाल है, तो लालू प्रसाद ने पहले ही मायावती को राज्यसभा भेजने का ऐलान कर रखा है. अब यह मायावती पर निर्भर करता है कि वे लालू प्रसाद के न्योते को स्वीकार करती हैं या नहीं. राजद की दूसरी सीट के लिए बहुत सारे दावेदार हैं, जिनमें पहला नंबर रघुवंश सिंह का है. बताया जा रहा है कि लालू प्रसाद के एक समधि भी इस दौड़ में हैं. कांग्रेस का अभी बिहार से राज्यसभा में कोई नुमाइंदा नहीं है. लालू से नजदीकी के कारण अखिलेश सिंह इस दौड़ में अभी आगे चल रहे हैं. वैस कुछ लोग सी पी जोशी का नाम भी ले रहे हैं. लेकिन यह तभी संभव है, जब कांग्रेस एकजुट बनी रहे. गुजरात चुनाव के बाद बिहार में होने वाले इस दिलचस्प चुनाव से कई परदे हट जाने की संभावना है. जैसे जैसे परदा उठेगा चुनाव का मजा बढ़ता जाएगा.
चुप बैठने के मूड में नहीं शरद
शरद यादव को जानने वाले अच्छी तरह जानते हैं कि वे किसी भी हाल में चुप होकर घर में बैठने वाले नहीं हैं. साझी विरासत के बैनर तले देश भर में वे अपनी भड़ास तो निकाल ही रहे हैं, अदालत की चौखट पर भी फरियाद कर रहे हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ने तीर निशान को लेकर चुनाव आयोग को नोटिस भी दिया है. शरद यादव इस लड़ाई को लंबा चलाना चाहते हैं, इसलिए वे तमाम कानूनी विकल्पों का अध्ययन कर रहे हैं. इधर शरद यादव ने विपक्षी एकता के लिए भी प्रयास तेज कर दिए हैं. गुजरात के नतीजों के बाद शरद यादव नए सिरे से राजनीतिक बिसात बिछाने का काम शुरू करने वाले हैं, ताकि 2019 में नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार को सबक सिखाया जा सके.
राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराए जाने के बाद शरद यादव ने कहा है कि इन्हें लोकतंत्र की खातिर बोलने की सजा मिली है. उन्होंने कहा कि बिहार में बने महगठबंधन को तोड़ने संबंधी अपनी पार्टी के फैसले की मुखालफत करने के कारण उन्हें संसद की सदस्यता गंवानी पड़ी है. इन्होंने ट्वीट किया, मुझे राज्यसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित किया गया है. बिहार में राजग को हराने के लिए बने महागठबंधन को 18 महीने में ही सत्ता में बने रहने के मकसद से राजग में शामिल होने के लिए तोड़ दिया गया. यदि इस अलोकतांत्रिक तरीके के खिलाफ बोलना गुनाह है, तो लोकतंत्र को बचाने के लिए मेरी ये लड़ाई जारी रहेगी.
राज्यसभा में जदयू संसदीय दल के नेता आरसीपी सिंह ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के कारण यादव और अनवर की सदस्यता रद्द करने की अनुशंसा सभापति से की थी. यादव ने पार्टी विरोधी गतिविधि में शामिल होने के आरोप पर कहा कि मुझे राज्यसभा के लिए अयोग्य घोषित किया गया है, क्योंकि मैंने लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान किया, पार्टी के संविधान का पालन किया और बिहार के 11 करोड़ लोगों द्वारा महागठबंधन के पक्ष में दिए गए जनादेश का सम्मान किया. मैं इस सिलसिले को न सिर्फ बिहार, बल्कि देश की खातिर जारी रखूंगा.
इधर जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा है कि राज्यसभा के सभापति एम वेेंकैया नायडू का फैसला आया है, इसके लिए शरद यादव स्वयं जिम्मेदार हैं. उन्होंने कहा कि शरद पर कार्रवाई होनी ही थी. वे पार्टी के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे थे. कई लोग पार्टी से संपर्क में हैं. अच्छे काम से लोग प्रभावित हो रहे हैं. राजनीतिक और सामाजिक रूप से जनाधार वाले लोग भी जदयू में आने की तैयारी में हैं. उन्होंने कहा कि पार्टी सर्वोपरि होती है. पार्टी से बड़ा कोई व्यक्ति नहीं होता. पार्टी के निर्देश के बावजूद शरद यादव कार्यक्रमों में शामिल नहीं हुए. ऐसा कर उन्होंने स्वेच्छा से दल का त्याग कर दिया.
यह पूछे जाने पर कि क्या इनके अलग होने से पार्टी को नुकसान होगा, वशिष्ठ ने कहा कि जनाधार नहीं होने के बावजूद इन्हें पार्टी द्वारा सम्मान दिया गया, जब उन्होंने स्वयं इसका उल्ल्ंघन किया, तो नुकसान किस बात का.उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने भी शरद यादव और अली अनवर की राज्यसभा सदस्यता समाप्त होने के निर्णय का स्वागत किया है. उन्होंने कहा कि यह निर्णय पहले आना चाहिए था. दोनों नेताओं ने जदयू के साथ धोखा किया था. उन्होंनें भ्रष्टाचारियों से जाकर हाथ मिला लिया था. जदयू नीतीश कुमार के साथ है. शरद यादव के दावे का कोई मतलब नहीं था. मोदी ने सवालिया लहजे में यह भी कहा कि क्या अब कांग्रेस शरद यादव को राज्यसभा में भेेजेगी.
राज्यसभा में जदयू के नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह ने इस मुद्दे पर कहा कि राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद घृणा और मतलब की राजनीति करते हैं. मतलब निकल जाने के बाद वे लोगों को पहचानते तक नहीं. शरद यादव ने लालू की रैली में जाने के लिए जदयू से बगावत तक कर दी. अब दलबदल विरोधी कानून में शरद की सदस्यता छिन गई, तो लालू उनको पहचान तक नहीं रहे. जब बसपा प्रमुख मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दिया, तो लालू ने तुरंत उनको राजद से राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव जारी कर दिया.
आरसीपी सिंह ने कहा कि राज्यसभा के सभापति ने शरद यादव और अली अनवर अंसारी की सदस्यता खत्म कर, ऐसी मानसिकता रखने वालों को कड़ा संदेश दिया है. दल से उपर कोई नहीं होता है. शरद अपने-आप को जदयू समझने लगे थे. वे कहते थे कि लोकतंत्र लोकलाज से चलता है, लेकिन खुद अपनी सदस्यता बचाने के लिए ऐसे-ऐसे काम किए कि लोकलाज की धज्जियां उड़ गईं. इनके लोग तो चुनाव आयोग पर ही उंगली उठा रहे हैं और राज्यसभा के सभापति पर आरोप लगा रहे हैं. क्या यही लोकलाज है? शरद और अंसारी अपनी सदस्यता बचाने के लिए तारीख पर तारीख बढ़वाते रहे. इन्हें तो खुद इस्तीफा दे देना चाहिए था.