बावड़ियां, जोहड़, छतरियां, किले, मंदिर, सुंदर हवेलियां एवं उनकी कहानियां. हवेलियों की दीवारों पर छिटके रंग. आलों में बिखरे रंग. झरोखों से झांकते रंग. हरा, नीला और पीला रंग. रंगों के समुच्चय के बीच उकेरी गई तस्वीरें. हर तस्वीर का एक अलग अंदाज़. एक अलग संदेश. विशाल दरवाज़ों पर सुंदर नक्काशी और धातुओं की बारीक़ सजावट. संकरी गलियां और उनमें पसरा अपनापन. नवलगढ़ के ग्रामीण क़स्बाई लोकजीवन की यह एक छोटी सी झलक भर है. पूरी तस्वीर की बात करें तो उसके कई आयाम हैं. चौबारे, ऊंघती हवेलियों के प्रवेश द्वार और मनिहारों की दुकानों के बीच से होकर टेढ़ी-मेढ़ी गलियां रेतीली पगडंडियों की ओर निकल जाती हैं. जिन पर चलते हुए दिख जाती हैं पनघट पर ठिठोली करतीं पारंपरिक पोशाक पहने हुए पनिहारिनें एवं सेर भर रंगीले सूत का झीना सा कपड़ा सिर पर लपेटे हुए बूढ़े बरगद की छांव में सुस्ताते लोग, जो टकटकी लगाकर परदेसियों को देखते हैं और परदेसी भी उन लोगों के भोलेपन एवं भाव-भंगिमा को एकटक निहारने लगते हैं. राजस्थान में शेखावटी अंचल में स्थित नवलगढ़ अपने आप में इतिहास की किसी पोथी से कम नहीं है. नवलगढ़ ही नहीं, अपितु पूरे शेखावटी के ग्राम्य जीवन और वहां की सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारंपरिक विविधता के आधार पर इसे अगर राजस्थान की खिड़की कहा जाए तो ग़लत नहीं होगा.

सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारंपरिक विरासत की गोद में पसरा लोकजीवन, उसमें समाए लोकानुरंजन के विविध प्रकार, ठेठ ग्रामीण खानपान और खेतों की पगडंडियों की सैर का अनुभव निश्चित ही एक रोमांचक अनुभव होता है. शायद यही वजह है, जिसके चलते ग्रामीण पर्यटन की अवधारणा साकार रूप ले रही है.

सात समंदर पार से आए सैलानी इस खिड़की से झांककर  गांवों का देश कहे जाने वाले भारत की लोक परंपरा, संस्कृति, लोकजीवन और लोकाचारों को क़रीब से देखना, छूना और महसूस कर लेना चाहते हैं. लक्ष्मणपुरा तहसील के गांव सिंहासन के ठाकुर गिरवर सिंह को भी विदेशी मेहमानों की ख़ातिरदारी का अवसर मिला है. वह बताते हैं कि मेहमानवाजी तो राजपूतों की परंपरा है और हमें अपने अतिथियों का स्वागत-सत्कार करके ख़ुशी होती है. ग्रामीण जीवन की इसी सहजता के आधार पर ग्रामीण पर्यटन की संकल्पना का विकास हुआ है. ठाकुर गिरवर सिंह की पुश्तैनी हवेली में उन्हें पर्यटकों के लिए कोई औपचारिक व्यवस्था नहीं करनी पड़ती और न ही घर की महिलाओं को इसमें असहजता होती है. जो जैसा है, ठीक उसी रूप में मेहमानों को देखने के लिए मिलता है.
रोज सुबह योग और आयुर्वेद की चर्चा एवं अभ्यास, हिंदी भाषा की कक्षाएं, ग्रामीण खेल जैसे हरदड़ा, ठीया लाठी, रूमाल झपट्टा, कबड्डी, आंधो भैंसो, लंगड़ी टांग आदि के रोचक मुक़ाबले, ऊंट-घोड़े की सवारी, ट्रैक्टर पर सैर और ख़ूब सारा पैदल चलना दिनचर्या का अहम हिस्सा होता है. गांव के हुनरमंद परिवारों जैसे मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार, लकड़ी का काम करने वाले सुथार आदि के घरों पर कुछ घंटों तक उनके हुनर को सीखने की कवायद और शाम को गांव वालों के साथ एक-दूसरे की संस्कृति व देशकाल पर चर्चा इस यात्रा का महत्वपूर्ण अंग होते हैं.
सहज मोरारका टूरिज़्म इंडिया लिमिटेड ने विदेशी सरजमीं पर भारत की सोंधी माटी की महक को बिखेरने का प्रयास किया है. यही कारण है कि पिछले कुछ समय में ही फ्रांस, अमेरिका, स्विट्‌ज़रलैंड और इंग्लैंड जैसे देशों के पर्यटक ग्रामीण भारत की संस्कृति, सभ्यता एवं संयुक्त परिवार की परंपरा को देखने के लिए खिंचे चले आते हैं. सहज मोरारका के मैनेजर-कोआर्डीनेटर विजयदीप सिंह बताते हैं कि ग्रामीण पर्यटन को लेकर हमारा नज़रिया अन्य व्यवसायिक टूर ऑपरेटर्स से हटकर है. जीवन की सरलता गांवों में है और ग्रामीण नैसर्गिक वातावरण के स्वरूप को यथावत क़ायम रखते हुए पर्यटकों को भारतीय गांवों के यथार्थ स्वरूप का दर्शन कराना हमारा प्रयास है. वह यह भी कहते हैं कि पर्यटक आपके परिवेश को देखना और समझना चाहते हैं, लेकिन यह ज़रूरी नहीं है कि अपने कंफर्ट और लक्ज़री के साथ. इसके लिए नवलगढ़ की हवेलियां, जिन्हें हेरिटेज होटल की शक्ल दी गई है, उनके आतिथ्य के लिए हमेशा तैयार रहती हैं. औसतन क़रीब 50-60 पर्यटक प्रत्येक माह यहां आ रहे हैं.
लेकिन कुछ लोग गांव की आत्मा को देखना और समझना चाहते हैं, इसलिए उन्हें ग्रामीण परिवारों के साथ उनके झोपड़ों में भी ठहरने से कोई गुरेज नहीं होता. ग्रामीण परिवारों के साथ ठहर कर इन पर्यटकों को ग्रामीण जीवन की सहजता और प्रकृतिजन्य माहौल से सीधे रूबरू होने का मौक़ा मिलता है, जो किसी रिसोर्ट में देख पाना संभव नहीं है. शेखावटी के नवलगढ़, कटराथल, सिंहासन, बीदासर, बेरी एवं अजीतपुरा सरीखे गांवों में सहज मोरारका का ग्रामीण पर्यटन का यह प्रयोग सफल रहा है. शेखावटी के अलावा बीकानेर, जोधपुर, जयपुर, कोटा और दौसा के क़रीब 500 परिवारों को इस प्रकार की गतिविधियों से जोड़ा गया है. बकौल विजयदीप सिंह, हमारा प्रयास ग्रामीण समुदायों को पर्यटन का हिस्सा बनाकर उनके आर्थिक एवं शैक्षिक स्तर का विकास करना भी है, लेकिन पर्यटन को ग्रामीण सशक्तीकरण के वैकल्पिक साधन के तौर पर ही यहां प्रोत्साहित किया जाता है. यहां ग्रामीण पर्यटन को तीन भागों में बांटकर देखा जाता है. पहला तो यह कि किसान को आमदनी का एक अतिरिक्त विकल्प मिल जाए. दूसरा, दो संस्कृतियों का परस्पर सीधा संवाद. तीसरा, एक निश्चित क्षेत्र का इन गतिविधियों के माध्यम से विकास करना. यही नहीं, कुल आमदनी का 20 फीसदी हिस्सा सामाजिक कार्यों हेतु संबंधित ग्रामीण समुदाय को लौटा दिया जाता है. सहज मोरारका के निदेशक विज्ञान गड़ोदिया मानते हैं कि ग्रामीण जीवन के परंपरागत व्यवसाय बने रहें और साथ में लोगों को जीवन स्तर बेहतर बनाने का एक माध्यम मिल सके, इस बात को ध्यान में रखकर भू-पर्यटन का स्वरूप तैयार किया गया है.
पर्यटक को गांवों में ले जाना, ग्रामीण परिवार के साथ जोड़ना और फिर उसे ग्रामीण अंचल में पसरी नीरवता का हिस्सा बना देना निस्संदेह एक रोचक अनुभव होता है. जैसे कि सीकर के किसान नेकीराम गोदारा की चार वर्षीय पोती अनायास ही एक महिला पर्यटक को फिड़कली (रंग बिरंगी तितली) कह बैठी. फिर क्या था, ठेठ ग्रामीण अंदाज़ में फिड़कला-फिड़कली हर किसी की जुबां पर चढ़ गया. बीदासर गांव के नेकीराम गोदारा बताते हैं कि यहां पर्यटकों को घास-फूस की झोपड़ियों में ठहराया जाता है. हाल ही में फ्रांस से आए एक युगल को उन्होंने प्यार और मोहब्बत नाम दिया है. वह बताते हैं कि एक पर्यटक को ठहराने की एवज में हमें 500 रुपये मिल जाते हैं. जबकि ख़र्च कुछ नहीं होता, सब कुछ घर से ही मिल जाता है.
खेत-खलिहान, पगडंडियों की सैर के अलावा पर्यटक और ग्रामीण दोनों ही विचारों के स्तर पर लाभांवित हो सकें, इसके लिए उन्नत कृषि तकनीकों, जैविक खेती, केंचुआ खाद, हर्बल स्प्रे आदि पर होने वाली प्रायोगिक कक्षाओं का भी हिस्सा बना जा सकता है. पर्यटकों के लिए खेत से मूली और गाजर उखाड़ कर खाना एक रोमांचकारी अनुभव होता है. महिला पर्यटकों की मेहंदी एवं रसोई में रुचि स्वाभाविक है, इसलिए नियमित रूप से दोपहर के खाने की तैयारियों में उन्हें शामिल किया जाता है. पर्यटक महिलाएं ग्रामीण महिलाओं के साथ मिलकर चूल्हे पर खाना बनाती हैं. खाने का अंदाज़ भी ठेठ ग्रामीण होता है. दरी पर बैठकर पर्यटक सहजता से भोजन ग्रहण करते हैं. ढलती शाम का मनोरंजन ग्रामीण लोक कलाकारों द्वारा होता है तो रात की ख़ामोशी को तोड़ती है कोरस में गाने की होड़. पर्यटक एवं ग्रामीण युवक-युवतियां अपने गीतों को पूरे मन से गाते हैं और नाचते हैं.
विभिन्न प्रकार की गतिविधियां जैसे ग्रामीण खेल, घुड़सवारी, ऊंट की सवारी एवं डेजर्ट सफारी आदि पर्यटकों की यात्रा को रोचक बना देती हैं. अन्य आकर्षणों में शामिल है हेरिटेज ऑन व्हील्स. यह एक लक्ज़री टूरिस्ट ट्रेन है, जो शेखावटी को क़रीब से देखने का अवसर प्रदान करती है. इसके अलावा स्थानीय मेले, तीज त्योहार जैसे गणगौर, दशहरा, तीज एवं होली आदि यात्रा के आनंद को कई गुना बढ़ा देते हैं. यही नहीं, आसपास क़रीब 60 से 70 किलोमीटर की दूरी में अन्य कई स्थान हैं, जो पर्यटकों को लुभाते हैं. इनमें अरावली वैली, शाकंबरी देवी, लोहार्गल, जीर्णमाता, हर्षनाथ, मंशा माता, सालासर, राणी सती, खाटू श्याम और नाथ संप्रदाय के आश्रम जैसे धार्मिक स्थान शामिल हैं. शेखावटी शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है. पिलानी, लक्ष्मणगढ़ और नवलगढ़ ने शैक्षिक परिदृश्य को संवारने का काम किया है. राजस्थान के सबसे पहले महाविद्यालय पोद्दार कॉलेज की स्थापना यहां 1921 में हुई थी. स्वयं गांधी जी इस कॉलेज के ट्रस्टी थे. नवलगढ़ में सीबीएसई से मान्यता प्राप्त स्कूल के अलावा पॉलीटेक्निक एवं डुंडलोड इंजीनियरिंग कॉलेज भी है.
शेखावटी के राजपूत किलों एवं हवेलियों में बनी सुंदर फ्रेस्को पेंटिंग्स दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं. इसी के चलते शेखावटी अंचल को राजस्थान के ओपन आर्ट गैलरी की संज्ञा दी जाती है. 1830 से 1930 के दौरान व्यापारियों ने अपनी सफलता और समृद्धि को प्रमाणित करने के उद्देश्य से सुंदर एवं आकर्षक चित्रों से युक्त हवेलियों का निर्माण कराया. इनमें भगतों की हवेली, छोटी हवेली, परशुरामपुरिया हवेली, छाउछरिया हवेली, सेकसरिया, मोरारका की हवेली एवं पोद्दार हवेली आदि प्रमुख हैं. हवेलियों के रंग शानों-शौकत के प्रतीक बने. समय गुजरा तो परंपरा बन गए और अब तो विरासत का रूप धारण कर चुके हैं. कलाकारों की कल्पना जितना उड़ान भर सकती थी, वह सब इन हवेलियों की दीवारों पर आज देखने को मिल जाता है. रामायण-महाभारत की पौराणिक गाथाओं से लेकर रेल के इंजन तक. शेखावटी अंचल में राजपूत शेखावत राजाओं द्वारा बनवाए गए क़रीब 50 किले हैं. इनमें मंडावा, डुंडलोड, मुकुंदगढ़, दांता और महाणसर प्रमुख हैं. नवलगढ़ का किला, रूप निवास पैलेस, शीशमहल, पोद्दार कॉलेज टावर, लक्ष्मी नृसिंह मंदिर और गोपीनाथ जी मंदिर अन्य दर्शनीय आकर्षण हैं.
क़स्बानुमा नवलगढ़ शहर सीकर एवं झुंझनू ज़िला मुख्यालय से लगभग समान दूरी पर स्थित है. यह झुंझनू से क़रीब 39 किलोमीटर दूर है, जबकि सीकर से मात्र 30 किलोमीटर. जयपुर, दिल्ली, अजमेर, कोटा और बीकानेर से यह सड़क मार्ग से सीधे जुड़ा हुआ है. जयपुर यहां से क़रीब 160 किलोमीटर है, जबकि राजधानी दिल्ली क़रीब 225 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जयपुर-लोहारू मार्ग पर स्थित नवलगढ़ मीटर गेज रेल लाइन से जुड़ा हुआ है. शीघ्र ही इस लाइन के ब्रॉडगेज किए जाने की बात कही जा रही है. पर्यटक सर्दियों के मौसम को यहां आने के लिए चुन सकते हैं. सितंबर से मार्च तक का समय यहां आने के लिए अनुकूल माना जाता है. कालांतर में सिल्क रूट शेखावटी से होकर गुजरता था. इसी कारण ऊंची मीनारों वाले कुंए बनवाए गए, जिससे व्यापारियों का का़फिला दूर से ही पानी का अंदाज़ लगा सके. गऊघाट, गौशालाएं एवं धर्मशालाएं का़फी संख्या में बनवाई गईं. नवलगढ़ में ठहरने के लिए शानदार होटल एवं गेस्ट हाऊस उपलब्ध हैं. इनमें रूपनिवास पैलेस, होटल अपणी ढाणी, होटल सिटी पैलेस आदि प्रमुख हैं.
परंपरा और संस्कृति बची रहे
इस काम में ज़िम्मेदारी और स्पष्टता बेहद ज़रूरी चीजें हैं. इनके अभाव में समुदाय के लोग हतोत्साहित हो सकते हैं. पुष्कर को उदाहरण के तौर पर लिया जा सकता है. वहां अनियमितता के चलते लोगों के नैतिक स्वभाव पर भी असर पड़ा है. जज़्बात को व्यक्त करने के अंदाज़ तक बाहरी लोगों के आगमन से बदल जाते हैं. हम इस बात को जानते हैं और हमने ख़ुद को इस दृष्टि से तैयार किया है कि गांवों का वास्तविक स्वरूप क़ायम रखते हुए उन्हें सशक्त बनाया जा सके. इसलिए हम ग्रामीण पर्यटन को जियो टूरिज़्म कहते हैं. पर्यटकों के साथ-साथ आतिथ्यकर्ताओं को भी क्या करें और क्या न करें की सख्त हिदायत दी जाती है. इसमें ग्रामीणों को तो महज़ सा़फ-सफाई के बारे में बताया जाता है. जबकि विदेशी पर्यटकों को भारतीय संस्कृति के मूलभूत तत्वों के बारे में बाक़ायदा समझा कर यह बताया जाता है कि ऐसा कुछ न घटित हो, जो कि हमारी परंपरा और संस्कृति को दूषित करता हो.

-विजयदीप सिंह, मैनेजर कोऑर्डीनेटर, सहज मोरारका टूरिज़्म इंडिया लिमिटेड.

पर्यटन से कमाई भी और नुकसान भी
पर्यटन को एक हद तक हम बदल नहीं सकते. यह इसकी आधारभूत बुराई है. पर्यटन का वर्तमान स्वरूप सुखवादी एवं सतही है. हमारे यहां तो पर्यटन धार्मिक एवं सांस्कृतिक होता है. स्वाभाविक जीवन और वर्तमान बाज़ार आधारित पर्यटन में परस्पर कोई सरोकार नजर नहीं आता. डॉलर ज़रूर मिलते हैं, लेकिन ख़राबियां भी अवश्य आएंगी. एक हद तक इसे नियंत्रित ज़रूर किया जा सकता है. विडंबना यह है कि हमारे पर्यटन तंत्र का नज़रिया सांस्कृतिक नहीं है. इसके बाज़ारू रवैये और साधनविहीनता से भी समस्याएं पैदा हुई हैं. ज़्यादातर पर्यटक मौजमस्ती के मूड में आते हैं और स्थानीय सांस्कृतिक, सामाजिक एवं पारंपरिक सरोकारों से उनका कोई लेना-देना नहीं होता. गाइडों का सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से संबंध न होना भी चिंतनीय है. खुली छूट देने का नतीजा है कि जैसलमेर में एड्‌स फैल रहा है. मकानों की छतों पर बैठकर बीयर पीना क्या स्थानीय सभ्यता के खांचे में फिट बैठता है? डॉलर एवं यूरो मुफ्त में नहीं आते, इसकी क़ीमत हमें चुकानी पड़ रही है. आज स्वाभाविक वातारण में लक्ज़री का एक द्वीप खड़ा कर दिया गया है. यह एक चेन रिएक्शन है. इन सबके क्रम में लोककला का नाश हो रहा है. लोककला जो ज़िंदगी थी, उसे नाटक बना दिया गया. इन सबको रोकने वाला तंत्र पैदा करना होगा. यह सही है कि ग्रामीण पर्यटन से ग्रामवासियों को ऊपर उठने का अवसर मिलेगा, क्योंकि जब पैसा आता है तो लोग जातियां भूल जाते हैं. लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि ग़लत तरीक़े का पर्यटन ज़्यादा स्थायी होता है. इससे बचना होगा.

-विजय वर्मा, विशेषज्ञ-लोककला एवं सांस्कृतिक पर्यटन.

पर्यटन से नुकसान भी हुआ है
पर्यटन को संस्कृति से जोड़ने पर उसके दुष्परिणाम देखने को मिलते हैं. कालबेलिया नृत्य को जिस तरह से प्रचारित किया गया है, वास्तव में तो यह नृत्य है ही नहीं. इसी तरह खड़-ताल बजाने वाले लोगों से जबरन नाच भी कराया जाने लगा. यह पर्यटन की देन है, जिससे सांस्कृतिक एवं पारंपरिक बदलाव होने लगते हैं. हमारे यहां पर्यटकों को अतिथि देवो भव: की बात कहकर खुली छूट दे दी जाती है. जैसलमेर फोर्ट आज शहर का सबसे बड़ा सिट हाउस बन चुका है. जन हस्तक्षेप से इस सांस्कृतिक विरासत को नुक़सान पहुंचा है. ओमान में कोई भी पर्यटक होटल के बाहर निकलता है तो यह ज़रूरी होता है कि वह सभ्य एवं पर्याप्त पोशाक पहने हुए हो. लेकिन अपने यहां इस बात की परवाह नहीं की जाती. गोवा में इस बेपरवाही का असर देखा जा चुका है. जोधपुर से पाकिस्तान तक होने वाली कैमल सफारी में फ्रेंच लड़कियां थकान के कारण मसाज की मांग करती थीं. इसी आड़ में साथ रहने वाले गाइडों से असुरक्षित यौन संबंध बन जाने से एचआईवी का प्रसार उस इलाक़े में बढ़ गया है. हम क्या करना चाहते हैं, कहां जाना चाहते हैं? यह स्पष्ट ही नहीं है. दिखाना चाहें तो वे ऑफ लाइफ दिखाएं. सरकार की सख्त भूमिका इस संदर्भ में होनी चाहिए. पर्यटन इंडस्ट्री पैसा ज़रूर देती है, लेकिन इसके वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए कहा जा सकता है कि लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई.

-आर. सिंह, रंगकर्मी.

पर्यटक परिवार से जुड़ जाते हैं
पर्यटक हमारे परिवार से इस कदर जुड़ जाते हैं कि जाते समय उनकी आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं. पारिवारिक सुख के अनुभव से संवेदना के तार झनझना उठते हैं. ऐसे में भौतिक जीवन जीने और जीवनसाथी को कपड़े की तरह बदलने वाले पाश्चात्य पर्यटकों को भारतीय संस्कृति का बोध हो जाता है.

-ठाकुर गिरवर सिंह, सिंहासन गांव, नवलगढ़.

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