सरकारी व प्रशासनिक कार्य आम जनों की राहत के लिए होते हैं, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि ये विकास कार्य जनता की मुसीबतों को बढ़ाते ही हैं. कुछ ऐसा ही मामला सीतामढ़ी जिला में भी सामने आया है. भारत-नेपाल सीमा पर स्थित सीतामढ़ी जिला दो राष्ट्रीय उच्च पथों का संगम है. राष्ट्रीय उच्च पथ संख्या-77 एवं 104 शहर के बीच से होकर गुजरती है, जिसके कारण यहां वाहनों का परिचालन हमेशा प्रभावित रहता है. सड़क जाम का दूसरा कारण यह है कि दशकों से शहर में निजी बसों का परिचालन अघोषित बस पड़ाव के तौर पर एनएच 104 से होता रहा है. वर्ष 1994 में तत्कालीन समाहर्ता नागेंद्र सिन्हा ने मेहसौल ओपी के समीप से अस्थायी बस पड़ाव को हटा दिया और बाइपास रोड स्थित पूर्व सांसद स्व. नागेंद्र प्रसाद यादव के पैतृक गांव चकमहिला में स्थायी रूप दिया. 20 मार्च 1994 को बस पड़ाव के उद्घाटन के बाद यहां से नियमित बसों का परिचालन होना शुरू हुआ. हालांकि भिट्ठामोड़ व सुरसंड के अलावा सोनबरसा से आने वाली अधिकतर बसें मेहसौल ओपी के समीप एनएच 104 पर लगती रही है. सीतामढ़ी नगरपालिका बस पड़ाव में कर की वसूली तो करती रही, लेकिन यात्रियों की सुविधाओं के लिए कोई उपाय नहीं किए गए. हाल में सरकारी कोष से तकरीबन 3 करा़ेड 19 लाख की लागत से बाइपास बस पड़ाव के जीर्णोद्धार का कार्य शुरू हुआ. बस पड़ाव परिसर में भवन निर्माण का कार्य अंतिम चरण में है. वहीं परिसर में अब केवल ईंट सोलिंग का काम शेष रह गया है.
जिला प्रशासन जाम की समस्या से निजात के लिए बस पड़ाव को शहर से तकरीबन ढाई किलोमीटर दूर टंडसपुर में स्थानांतरण करने की कवायद में जुटी है. शहर से बस पड़ाव की दूरी बढ़ने से संभावित मुसीबतों को लेकर लोग अभी से परेशान हैं. लोगों का कहना है कि अब बस पड़ाव तक जाने के लिए उन्हें अतिरिक्त किराया देना होगा. साथ ही मेहसौल गुमटी पर रेलवेे ओवरब्रिज नहीं होने से लोगों का काफी समय बरबाद होगा. वहीं शहरी क्षेत्र से दूर बस पड़ाव होने पर देर रात अन्य स्थानों से आवागमन करने वाले यात्रियों की सुरक्षा एक गंभीर चुनौती होगी. वहीं बस पड़ाव स्थानांतरित किए जाने के मसले पर बस मालिकों का कहना है कि प्रशासन इसके लिए जहां स्थान निर्धारित करेगी, वहीं से परिचालन शुरू किया जाएगा. लेकिन इसमें एक बात पर ध्यान देना होगा कि आम यात्रियों को कोई परेशानी न हो. बस पड़ाव में महिला यात्रियों के लिए शौचालय, सुरक्षा समेत अन्य आवश्यक सुविधाओं की भी मुकम्मल व्यवस्था पर ध्यान देना होगा.
बस पड़ाव के स्थानांतरण पर सुरसंड के राम प्रकाश पंडित, रामाधार राय, कुमद झा, साकेत राम व अन्य लोगों का कहना है कि अगर जिला प्रशासन बस पड़ाव को शहर से दूर ले जाना चाहता है, तो फिर उसे यात्रियों की सुविधा के लिए बस पड़ाव से शहर के विभिन्न मार्गों के लिए नगर बस सेवा की व्यवस्था भी करनी चाहिए. इनका कहना है कि नगर में छोटी बसों के परिचालन से जाम की समस्या उत्पन्न होने की आशंका कम होगी. साथ ही आम लोगों को बस पड़ाव से आवागमन करने में टेंपो व रिक्शा चालकों की मनमानी का भी शिकार नहीं होना पड़ेगा. लेकिन क्या शहर से केवल बस पड़ाव हटा लेने से जाम की समस्या से निजात संभव है? जानकारों का कहना है कि जिला प्रशासन को जाम से निजात के लिए इसके अलावा कई अन्य पहलुओं पर भी गंभीरता से विचार करना होगा. पहला यह कि सीतामढ़ी शहर में रिक्शा, टैंपो के लिए पड़ाव का निर्धारण करना होगा. सड़क किनारे से लेकर लखनदेई पुल व मेहसौल चौक के अलावा गांधी चौक, महंत साह चौक, जानकी मंदिर के समीप स्थित चौक समेत कारगिल चौक पर लगने वाले दैनिक मीना बाजार को भी हटाना होगा. शहर में स्थायी दुकानों के अतिक्रमण व रेहड़ी-पटरी वालों को भी हटाना होगा. ट्रकों के शहर में प्रवेश पर रोक लगानी होगी. जर्जर बाइपास रोड के चा़ैडीकरण के साथ पुनर्निर्माण भी कराना होगा. अगर ऐसा होता है तभी बस पड़ाव के स्थान परिवर्तन का मकसद पूरा हो पाएगा. अन्यथा करोडों की लागत से निर्मित बस पड़ाव को हटाकर नये स्थान पर ले जाकर पुन: सरकारी कोष खर्च करने का कोई मतलब नहीं रह जाएगा.