शराबबंदी के बाद से बिहार राजस्व की राह देख रहा है. ऐसे में किसी भी अच्छी परियोजना के प्रस्ताव का स्वागत होना चाहिए. लेकिन सरकारी कर्मियों व उच्चाधिकारियों की नकारात्मक सोच के कारण बिहार इस मामले में आगे नहीं बढ़ पा रहा है. अधिकारियों की उदासीनता के कारण निवेश के इच्छुक लोग भी हाथ पीछे खींच लेते हैं. ऐसा ही एक मामला सामने आया है, बोधगया में. एक बड़ी परियोजना का प्रस्ताव बिहार के बोधगया में था, जो मगध विश्वमविद्यालय के पदाधिकारियों की नकारात्मक सोच के कारण अब खटाई में पड़ गया है.

पिछले 35 वर्षों से गरीबों के लिए नि:शुल्क आंख ऑपरेशन का कैम्प लगाने वाले देश के बड़े हीरा व्यवसायी और प्रसिद्ध गांधीवादी महेश भाई भंसाली ने बोधगया फाउंडेशन के तहत 155 करोड़ की लागत से अस्पताल व मेडिकल कॉलेज का प्रस्ताव मगध विश्व विद्यालय (मविवि) को दिया था. दिसम्बर 2015 में मगध विश्वगविद्यालय प्रशासन को दिए गए इस प्रस्ताव में करीब 25 एकड़ भूमि उपलब्ध कराने की बात कही गई थी. इसमें कहा गया था कि मविवि प्रशासन अगर अपने परिसर या फिर आसपास कहीं 25 एकड़ जमीन लीज पर भी उपलब्ध कराता है, तो दो चरणों में मेडिकल कॉलेज और अस्पताल की योजना को पूरा कर लिया जाएगा. इस योजना का डीपीआर बना कर राज्य सरकार और तत्कालीन कुलाधिपति रामनाथ कोविंद को भी भेजा गया था. तब कुलाधिपति ने इसे बिहार के लिए ड्रीम प्रोजेक्ट कहा था. बोधगया फाउंडेशन के इस प्रस्ताव को तत्कालीन कुलपति डॉ. एम इश्तेयाक ने बिहार सरकार के उच्च शिक्षा विभाग को भेजते हुए पीपीपी मोड पर इसके संचालन की अनुमति मांगी थी. लेकिन तत्कालीन कुलपति का कार्यकाल समाप्त होने के बाद इस योजना को खटाई में डाल दिया गया. 10 सितम्बर 2016 को मविवि के सिंडिकेट में इस प्रस्ताव को रखा गया था. तब सिंडिकेट के सदस्यों ने प्रस्ताव के अध्ययन के लिए समय मांगा था और अगली बैठक में इस प्रस्ताव को उपस्थापित करने का निर्णय लिया गया था. तब तक तत्कालीन कुलपति के नीतिगत फैसले पर राजभवन द्वारा रोक लगा दी गई. फाउंडेशन की ओर से मविवि के वर्तमान कुलपति प्रो. कमर अहसन को भी इस प्रस्ताव का डीपीआर कुछ महीने पूर्व सौंपा गया है. नव नियुक्त कुलपति को दिए गए प्रस्ताव पर मविवि के कुल सचिव डॉ. नलीन कुमार शास्त्री ने कहा कि प्रस्ताव के अध्ययन के बाद ही कुछ भी कहना श्रेयस्कर होगा. वैसे मामला मविवि की भूमि को लीज पर देने का है, इसलिए इसमें कुलाधिपति व राज्य सरकार के स्तर से दिशा निर्देश मिलने के बाद ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा.

बोधगया फाउंडेशन द्वारा तैयार प्रस्ताव में 300 बेड के अस्पताल के साथ-साथ मेडिकल कॉलेज, आई इंस्टीच्यूट, आईटीआई और रेन वाटर हार्वेस्टिंग प्लांट की स्थापना के अलावा मविवि परिसर स्थित उच्च विद्यालय और स्वास्थ्य केंद्र का उन्नयन भी शामिल है. उक्त पूरी व्यवस्था का संचालन चैरिटेबल ट्रस्ट या सोसाइटी के तहत किया जाना है. इसमें भंसाली ट्रस्ट, आरती फाउंडेशन व मगध विश्व विद्यालय को शामिल किया गया है. बोधगया फाउंडेशन द्वारा प्रस्तावित इस मेडिकल कॉलेज में एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, बायो कमेस्ट्री, पैथॉलाजी, माइक्रो बायोलॉजी, फारेसिंक मेडिसिन आदि विषयों की पढ़ाई होगी. पहले चरण में पांच वर्षीय एमबीबीएस पाठ्यक्रम के तहत 150 छात्रों के नामांकन का प्रस्ताव है. वहीं नर्सिंग कॉलेज में 60 छात्रों का नामांकन होगा. इसमें स्थानीय छात्रों को प्राथमिकता देने की बात कही गई है. अगर यह योजना क्रियान्वित होती है, तो इससे निश्चाय ही बिहार-झारखंड के लोगों को लाभ मिलेगा. अस्पताल में कैंसर सहित अन्य रोगों के निदान की भी व्यवस्था होगी. इसमें जरूरतमंदो के लिए नि:शुल्क चिकित्सा का भी प्रस्ताव है. बिहार-झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में ऐसे उच्चस्तरीय सुविधायुक्त अस्पताल व मेडिकल कॉलेज की कमी है.
गौर करने वाली बात ये भी है कि इससे पहले भी मविवि के समक्ष ऐसे कई प्रस्ताव आ चुके हैं, लेकिन प्रशासन की हीला-हवाली और उदासीनता के कारण कोई भी प्रस्ताव परवान नहीं चढ़ सका. जब देश के प्रमुख प्रबंधन संस्थान आईआईएम को बोधगया लाया जा रहा था, तब भी मविवि प्रशासन को इससे आपत्ति थी, लेकिन बिहार सरकार के कड़े रुख के कारण बोधगया में आईआईएम की स्थापना संभव हो सकी.

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