नई दिल्ली : अगर प्रशांत किशोर की कार्यप्रणाली को देखें, तो उनकी पूरी रणनीति में एक पैटर्न नजर आता है. वे कोई राजनीतिक सोच वाले व्यक्ति नहीं हैं. वे एक अच्छा पीआर कैंपेन चलाने के माहिर हैं. उनकी रणनीति किसी एक नेता की ब्रांडिंग तक ही सीमित है. राजनीति में नेता तो महत्वपूर्ण होता है, लेकिन सिर्फ किसी एक नेता के इर्द-गिर्द राजनीति सीमित नहीं होती है. प्रशांत किशोर की रणनीति का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा ये है कि उनके कैंपेन के केंद्र में एक नेता ही होता है. उसी नेता की छवि के इर्द-गिर्द वे प्रचार-प्रसार का तानाबाना बुनते हैं.
साथ ही फिल्मी अंदाज के दो तीन नारों के साथ वे अपनी रणनीति का ढांचा तैयार करते हैं. इस तरह की रणनीति से वे जनता में अपने क्लाइंट के परसेप्शन यानि अवधारणा को मजबूत करते हैं. यहां प्रशांत किशोर का ट्रिक समझना जरूरी है. व्यक्तिगत तौर पर इस तरह की रणनीति देख कर वो नेता खुश हो जाता है, क्योंकि हर नेता के अंदर महान बनने या महान दिखने की लालसा मौजूद होती है.
प्रशांत किशोर इसी का फायदा उठाते हैं. आज के दौर में तो कोई महात्मा गांधी या सरदार पटेल है नहीं, जिनका अपने सिद्धातों पर हिमालय की तरह अडिग विश्वास हो. आज का दौर अवसरवादी राजनीति और हीन भावना से ग्रसित राजनेताओं का है, जो पार्टी कार्यकर्ताओं से दूर और महिमामंडन करने वालों के नजदीक होना पसंद करते हैं. इसलिए प्रशांत किशोर की रणनीति हिट है. उनकी रणनीति पार्टी के शीर्ष में बैठे नेताओं का महिमामंडन करने वाली रणनीति होती है. इस तरह के प्रचार से नेता के अहम व अहंकार का पोषण तो होता ही है, साथ ही उन्हें खुद के महान होने का एहसास भी दिलाता है. वो नेता इतना खुश हो जाता है कि पीके उसके घर के बन जाते हैं.
यह कोई आश्चर्य नहीं है कि बिहार हो या गुजरात, प्रशांत किशोर हमेशा मुख्यमंत्री निवास में ही रहते थे. जब तक वे मोदी या नीतीश कुमार साथ रहे, सीधे उनके साये की तरह उनसे ही चिपके रहे. अब वे प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के साथ जुड़े हैं. इसलिए कांग्रेस का कोई भी नेता प्रशांत किशोर के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत नहीं करेगा.