IMG_0813उर्दू का एक शेर है, उसे अपनी तरह से कहने की कोशिश करते हैं, किस-किस पे खाक डालिए, किस-किस पे रोइए, आराम बड़ी चीज है, मुंह ढंक के सोइए. सचमुच मुंह ढंक के सोने की ख्वाहिश हो रही है. कांग्रेस ने इस देश को 60-65 सालों में जो दिया, उसे हम भुगत रहे हैं. पूरा देश आपसी रंजिश की कगार पर है, विघटन की कगार पर है, निराशा की कगार पर है. जब कांग्रेस के प्रवक्ता कहते हैं कि सरकार महंगाई घटाने के लिए कुछ नहीं कर रही है, तो हंसी आती है, क्योंकि बुनियादी तौर पर महंगाई कांग्रेस की ही देन है.
अभी मोदी सरकार की बात करें. पूरे चुनाव के दौरान ऐसा लगा, जैसे हमारे बीच अचानक एक अवतार आ गया. धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि कल्कि अवतार होगा कलयुग में. कल्कि अवतार होगा, जो देश को विनाश से बचाएगा. नरेंद्र मोदी कल्कि अवतार के रूप में दिखाई दिए और उन्होंने वैसे ही छाप सारे देश में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान छोड़ी. देश में महंगाई है, इलाज नरेंद्र मोदी के पास है. बेरोज़गारी है, इलाज नरेंद्र मोदी के पास है. भ्रष्टाचार है, इलाज नरेंद्र मोदी के पास है. लेकिन इलाज क्या है, यह नरेंद्र मोदी ने कभी नहीं बताया. फिर भी देश ने भरोसा किया और एक गुजरात मॉडल को अपने मन में एक काल्पनिक संभावनाओं का मॉडल बना लिया. क्या गुजरात मॉडल, कैसा गुजरात मॉडल, किसी को नहीं पता, पर लोगों के दिमाग में गुजरात मॉडल बस गया. नरेंद्र मोदी जी एक नए अवतार के रूप में कलयुग में तारणहार के रूप में प्रधानमंत्री बन गए.
प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने 100 दिनों के एजेंडे की बात की. अपने मंत्रियों से कहा कि वे उन्हें सौ दिनों का एजेंडा बनाकर दें और 100 दिनों के बाद वह उनसे उस एजेंडे पर क्या हुआ, इसकी जानकारी लेंगे. वैसे यही काम मनमोहन सिंह ने भी, जब वह 2009 में जीतकर दोबारा आए थे, तब किया था. न उनके किसी मंत्री ने 100 दिनों का एजेंडा बनाया, न उन्होंने कभी 100 दिनों की रिपोर्ट देश के सामने रखी. नरेंद्र मोदी जी के मंत्रिमंडल के सदस्यों ने भी कौन सा एजेंडा बनाया है, यह देश को नहीं पता. नरेंद्र मोदी जी की सरकार के पहले 30 दिन बीत गए. आने वाले साठ दिनों में किस एजेंडे पर काम होगा, यह देश को नहीं पता. देश के लोगों को स़िर्फ यह पता है कि उन्होंने जो आशाएं लगा रखी थीं, उनके ऊपर हल्की सी धूल की परत जम गई. धूल की परत इसलिए, क्योंकि देश के लोगों को लगता है कि अगर नरेंद्र मोदी को पूरे सौ दिन मिलें और उनकी आलोचना न हो, तो शायद उनकी समस्याएं हल करने में मोदी जी कामयाब होंगे. लेकिन पहला झटका लोगों को लगा, रेल के किराये में 14.20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हो गई, जो आज तक इतिहास में कभी नहीं हुई. चीनी के दाम में बढ़ोत्तरी हुई और ऐसा लगता है कि अब अनाज एवं दालों के दामों में भी बढ़ोत्तरी होगी और कालाबाज़ारी होगी, क्योंकि हमारे वित्त मंत्री दोहरा चुके हैं कि अगर जमाखोर यह सब सामान अपने यहां दबाकर रखेंगे, तो वह विदेशों से मंगा लेंगे. विदेशी कंपनियों की दौड़ हमारे देश में शुरू हो गई है, जो यहां अनाज और दालें बेचना चाहती हैं.
सरकार को राय कौन दे सकता है और सरकार किससे राय मांग सकती है. सरकार सार्वभौम है, सरकार सर्वगुण संपन्न है, सरकार के पास दिमाग ही दिमाग है, लेकिन इसके बावजूद न मनमोहन सिंह ने महंगाई घटाई और न अब नरेंद्र मोदी महंगाई घटाने की बात कर रहे हैं. वह कड़वे घूंट, कड़वी दवा की बात कर रहे हैं, कड़े क़दमों की बात कर रहे हैं. इन कड़वी दवाओं और कड़े क़दमों का भुगतान स़िर्फ देश के ग़रीबों को करना पड़ता है, अमीरों को नहीं. नरेंद्र मोदी की सरकार के भीतर क्या कोई समझदार आदमी नहीं है, जो मंत्रिमंडल में नए ढंग की सोच सामने रखे? मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं सोचने में सझम हैं, लेकिन क्या उन्हें सोचने का वक्त मिलता है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि देश की समस्याओं के हल के लिए बिल्कुल नए तरीके अपनाए जाएं, जिनसे समस्याएं बढ़ें नहीं, समस्याओं का ग्राफ वहीं रुक जाए और फिर धीरे-धीरे उन्हें नीचे लाने की कोशिश की जाए?
देश का बजट जुलाई में आने वाला है. यह बजट नरेंद्र मोदी की असली परीक्षा है, पर पहली परीक्षा में उन्होंने देश के लोगों को एक अलग तरह की निराशा दी. उनके रेल मंत्री और वित्त मंत्री ने कहा कि यह तो कांग्रेस सरकार का ़फैसला था, जिसे हमने लागू किया. क्या मजबूरी थी आपकी इसे लागू करने की? आप पंद्रह दिन इंतजार नहीं कर सकते थे? आप बजट में व्यापक दृष्टिकोण या समग्र दृष्टिकोण देश के सामने रखते कि विभिन्न समस्याओं को हल करने का आपका आर्थिक नज़रिया क्या है. लेकिन, ऐसा नहीं हुआ और जमकर रेल का किराया बढ़ाया गया. और, अपना दिवालियापन आपने बता दिया यह कहकर कि हमने तो कांग्रेस के फैसले को लागू किया. अगर कांग्रेस का ही ़फैसला लागू करना था, तो देश की जनता ने आपको क्यों जिताया? आपको लोगों ने इसलिए जिताया कि आपने कहा था कि आप सत्तर सालों से चल रही गड़बड़ियां ठीक करेंगे. आप देश को उसका सम्मान दिलाएंगे और लोगों की ज़िंदगी में कुछ खुशियां लाएंगे.
हम अपना कर्तव्य निभाने की कोशिश करते हैं. हम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से एक अनुरोध करना चाहते हैं. आपने 14.20 प्रतिशत किराया बढ़ाकर 8000 करोड़ रुपये साल में इकट्ठा करने का सुहावना लक्ष्य देश के सामने रखा यह कहकर कि रेलवे कमजोर है, खस्ताहाल है, घाटे में चल रही है, इसलिए आपको 8000 करोड़ रुपये सालाना चाहिए. आपके अधिकारी एवं रेल मंत्री यह क्यों भूल गए कि देश के हर रेलवे स्टेशन पर कुछ न कुछ स्टील जंक पड़ा हुआ है, स्क्रैप पड़ा हुआ है. चाहे वह पुराने डिब्बों की शक्ल में हो, पुराने लोहे के स्लीपर की शक्ल में हो, पुरानी रेलवे लाइनों की शक्ल में हो. एक मोटा अनुमान है कि 20 से 25 हज़ार करोड़ रुपये का स्क्रैप रेलवे के पास सारे देश में है. क्या आपके रेल मंत्री यह जानकारी मंगाने का आदेश नहीं दे सकते थे कि सारे देश में रेलवे के पास कितना स्क्रैप है? हो सकता है, वह 30 हज़ार करोड़ रुपये का भी हो. जब यह जानकारी आती, तो उस स्क्रैप को नीलाम कर देते. रेलवे का स्क्रैप खरीदने के लिए सारी दुनिया में होड़ मच जाती. आपको एक रात में 30 हज़ार करोड़ रुपये का मुनाफा हो जाता. आपने 8000 करोड़ रुपये के लिए, जो आपको साल भर में मिलेंगे, देश के लोगों की आशाएं तोड़ीं और यह बताया कि आपके सोचने का तरीका कांग्रेस से बिल्कुल भिन्न नहीं है. आप अगर नए सिरे से सोचते, तो लोगों के ऊपर बोझ नहीं पड़ता और आपके पास जगह घेरने वाला बेकार पड़ा स्क्रैप बाज़ार में रिसाइकिल होकर नए उत्पादन में इस्तेमाल होता. लेकिन, रेल मंत्री ने यह नहीं सोचा, तो प्रधानमंत्री जी, आपका तो कर्तव्य बनता है कि आप सोचें, आप मुखिया हैं. देश के लोगों ने रेल मंत्री के नाम पर वोट नहीं दिया, भारतीय जनता पार्टी के नाम पर भी वोट नहीं दिया. देश के लोगों ने नरेंद्र मोदी के नाम पर वोट दिया है, आपको 282 सीटें दी हैं.
इसी तरह एक दूसरा सुझाव है कि देश के नए उद्योगों के लिए क्या सेंट्रल एक्साइज हॉली-डे की घोषणा नहीं की जा सकती, जिसकी कम से कम अवधि दस साल हो. अगर आप इस बजट में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों, उग्रवाद प्रभावित क्षेत्रों, पंजाब के ड्रग्स (नशा) प्रभावित ज़िलों और पहाड़ी क्षेत्रों में टैक्स हॉली-डे, सेंट्रल एक्साइज हॉली-डे की घोषणा करें, तो वहां पर बहुत सारे उद्योग चले जाएंगे. ये उद्योग ज़िले या प्रदेश के आधार पर टैक्स हॉली-डे के लिए न चुने जाएं, बल्कि उन ब्लॉकों को चुना जाए, जो निहायत ग़रीब और पिछड़े हैं, जिनके आंकड़े भारत सरकार के पास हैं. उन ब्लॉकों-प्रखंडों में दस साल का टैक्स हॉली-डे अगर आप घोषित करें, तो वहां पर जो उद्योग जाएंगे, उनसे स्थानीय लोगों को रोज़गार मिलेगा. और, यह रा़ेजगार बढ़ाने का एक प्राथमिक तरीका हो सकता है. यह आपको तब तक सांस लेने का अवसर दे सकता है, जब तक आप रोज़गार की कोई व्यापक योजना सामने लाएं, जिसके लिए आपको कम से कम चार-पांच महीने का वक्त चाहिए. अगर आप ग्रामीण उद्योग आधुनिक तकनीक से लगाने का ़फैसला करते हैं, तब भी आपको पांच-छह महीने चाहिए, अन्यथा उद्योग या रोज़गार के अवसर सृजित करना आपकी सरकार के वश की बात होगी, इसमें संदेह है.
तीसरी चीज, जो बहुत महत्वपूर्ण है, वह यह कि हमारे देश में अन्न बहुत नष्ट होता है. खुले रूप में अनाज गोदामों में रखा जाता है. हमारे पास भंडारण की सुविधा नहीं है, कोल्ड स्टोरेज नहीं हैं. ऐसे स्थान नहीं हैं, जो टैम्प्रेचर कंट्रोल्ड गोदाम हों और वहां पर अनाज रखा जा सके. कोल्ड स्टोरेज की कमी देश के उन फसलों को नुक़सान पहुंचा रही है, जिन्हें हम साल भर तक स्टोर करना चाहते हैं. क्या यह नहीं हो सकता कि सरकार देश के लोगों से कहे कि आप इन-इन पैमानों पर कोल्ड स्टोरेज बनाएं, इस पैमाने के ऊपर आप टैम्प्रेचर कंट्रोल्ड गोदाम बनाएं और उनका किराया इस हिसाब से सरकार से लें. सारे देश के हर ब्लॉक में आप जितने चाहें, उतने भंडारण गृह खड़े कर सकते हैं. इसके लिए किसी लाइसेंस की ज़रूरत नहीं है. स़िर्फ एक शर्त लगाई जाए यानी जो स्पेशिफिकेशन सरकार या जिला अधिकारी दे, उसी के ऊपर ये भंडारण गृह और कोल्ड स्टोरेज बनें. आप घोषणा कीजिए कि हम उसका किराया देंगे. आपका वह पैसा बच जाएगा, जो गोदाम और कोल्ड स्टोरेज बनने में लगना है. लोग अपने आप खड़े हो जाएंगे और आपका सारा अनाज सुरक्षित हो जाएगा, लेकिन यह ़फैसला लेना आसान है क्या? यह ़फैसला लेना मुश्किल है, क्योंकि ऐसे कार्यों में कमीशन नहीं होते. आप अगर लोगों को रा़ेजगार देने की नज़र से ़फैसले करें, तो कमीशन नहीं मिलता.
देश में ऊर्जा की कमी है, क्या आप खुले तौर पर यह नहीं कह सकते कि जो कंपनी चाहे, वह देश में सौर ऊर्जा के बिजली घरों का निर्माण करे, अपना पैसा लगाए. सरकार एक रेट तय कर दे कि इस रेट से वह सौर ऊर्जा की बिजली खरीदेगी. कंपनियां हैं, लोग हैं, जो अपना पैसा लगाकर हर गांव को बिजली घर के रूप परिवर्तित कर सकते हैं या ज़िलों में दस, बीस, तीस, चालीस, पचास, सौ मेगावाट के विद्युत उत्पादन केंद्र बनाकर उस बिजली को सरकार के ग्रिड में डाल सकते हैं, लेकिन ऐसा होगा नहीं, क्योंकि हर जगह आपको लाइसेंस देना है. हर जगह परमीशन देने के नाम पर फाइल लटकानी है. नरेंद्र मोदी जी, दुर्भाग्य यह है कि सिस्टम के सामने देश नहीं है, सिस्टम के सामने पैसा है. इसलिए आपको कड़े ़फैसले नए नज़रिए से लेने पड़ेंगे. आपको बहुत सारी चीजों में लाल फीताशाही हटानी होगी और लोगों को उत्साहित करना होगा कि वे लाल फीताशाही के ख़िलाफ़ खड़े हों और भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ भी.
प्रधानमंत्री जी, आपने कहा था कि आप भ्रष्टाचार से टेक्नोलॉजी के जरिये लड़ेंगे. तीस दिन बीत गए, हमें टेक्नोलॉजी कहीं नज़र नहीं आई. हमारी साधारण समझ में टेक्नोलॉजी का मतलब पारदर्शिता है यानी जो ़फैसले हों, वे रिकॉर्ड हों, आडियो रिकॉर्ड हों या वीडियो रिकॉर्ड हों. और, एक समय रखा जाए, जिसमें वे सारी की सारी चीजें बाहर लाई जाएं. तभी फैसला लेने वालों के मन में डर होगा कि ़फैसला लेते समय उनकी बातचीत या उनके तर्क अगर देश के सामने आ गए, तो उनका जीना मुहाल हो जाएगा. इसी तरह से ज़िम्मेदारी तय कीजिए. आदमी रिटायर हो जाए, इसके बावजूद अगर उसके समय में लिया गया ़फैसला गलत है, तो उसके ऊपर ज़िम्मेदारी डालिए. यह देश आपकी तरफ़ बड़ी आशा से देख रहा है. अगर यह आशा टूटी, तो आप एक बहुत बड़े निगेटिव मूवमेंट के लिए तैयार रहिए, एक विध्वंसक आंदोलन के लिए तैयार रहिए, क्योंकि आपका असफल होना नक्सलवादियों, उग्रवादियों को नए तर्क देगा. और, अगर आप जनाभिमुख आर्थिक नीतियां नहीं लाए और कॉरपोरेट को फ़ायदा पहुंचाने वाली आर्थिक नीतियां इस बजट में आईं, तो प्रधानमंत्री जी, मुझे विनम्रता से यह कहने की इजाजत दीजिए कि इसी बात की प्रतीक्षा तो वे लोग कर रहे हैं, जिनका अहिंसा में विश्‍वास नहीं है. आपके सामने यक्ष प्रश्‍न जैसा सवाल है कि आप देश के लोगों को प्रमुख मानते हैं या अंतरराष्ट्रीय कॉरपोरेट बिरादरी को? प्रधानमंत्री जी, यहीं पर देश की परीक्षा है और यहीं पर आपकी परीक्षा है.

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