केंद्र सरकार ने अदालत को बताया है कि पीएमकेयर्स फंड सरकार का फंड नहीं है और इसमें जमा हुई धनराशि सरकारी खजाने में नहीं जाती है। ऐसे में इस फंड की वैधता और जनता के प्रति जवाबदेही को लेकर नए सवाल खड़े हो गए हैं। पीएमकेयर्स फंड की मार्च 2020 में एक पब्लिक चैरिटेबल ट्रस्ट के रूप में स्थापना की गई थी। तब से इसे स्थापित करने के उद्देश्य और इसके संचालन में पारदर्शिता की कमी को लेकर विवाद चल रहा है। कई लोगों ने सूचना के अधिकार के तहत आरटीआई आवेदन दे कर इसके बारे में जानकारी हासिल करने की कोशिश की, लेकिन पूरी तस्वीर अभी तक सामने नहीं आई है।
दरअसल इस फंड को लेकर दिल्ली हाई कोर्ट में वकील सम्यक गंगवाल ने एक याचिका दायर की है, जिसमें मांग की है कि पीएम केयर्स फंड को राज्य का घोषित किया जाय और पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इसे RTI के अंदर लाया जाए।
इस याचिका पर केंद्र सरकार और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दिल्ली उच्च न्यायालय में जानकारी दी कि, पीएम केयर्स फंड को न तो सूचना के अधिकार (आरटीआई) अधिनियम के दायरे में “पब्लिक अथॉरिटी” के रूप में लाया जा सकता है, और न ही इसे “राज्य” के रूप में सूचीबद्ध किया जा सकता है। पीएमओ में अवर सचिव प्रदीप श्रीवास्तव ने कोष को लेकर अदालत को जानकारी दी कि ट्रस्ट पूरी पारदर्शिता के साथ काम करता है और इसके फंड का ऑडिट एक ऑडिटर द्वारा किया जाता है। कोष में पारदर्शिता बनाए रखने के लिए इस ट्रस्ट को मिले धन और उसका सारा विवरण आधिकारिक वेबसाइट पर डाला जाता है।
उन्होंने याचिका के जवाब में कहा कि ट्रस्ट को जो भी दान मिले वो ऑनलाइन, चेक या फिर डिमांड ड्राफ्ट के जरिए मिले हैं। ट्रस्ट इस फंड के सभी खर्चों का ब्यौरा अपनी वेबसाइट पर अपडेट करता है।
सरकार के इस फंड को “थर्ड पार्टी” कहने से मामला और पेचीदा हो गया है गंगवाल पहले ही अदालत को बता चुके हैं कि फंड की वेबसाइट पर उससे संबंधित जो कागजात मौजूद हैं, उनमें यह बताया गया है कि ट्रस्ट की स्थापना ना तो संविधान के तहत की गई है और ना संसद द्वारा पारित किए गए किसी कानून के तहत। पारदर्शिता का सवाल इसके बावजूद सरकार के सबसे उच्च दर्जे के अधिकारियों का नाम इससे जुड़ा है। प्रधानमंत्री पदेन रूप से इसके अध्यक्ष हैं और रक्षा, गृह और वित्त मंत्री पदेन रूप से ही इसके ट्रस्टी हैं। इसका मुख्य कार्यालय पीएमओ के अंदर ही है और पीएमओ में ही एक संयुक्त सचिव स्तर के अधिकारी इसका संचालन करते हैं।
वेबसाइट पर सिर्फ वित्त वर्ष 2019-20 में इसमें आए अंशदान की जानकारी उपलब्ध है, वो भी सिर्फ 27 से लेकर 31 मार्च तक, यानी कुल पांच दिनों की। इन पांच दिनों में फंड को 3076 करोड़ रुपए हासिल हुए। लेकिन वेबसाइट के मुताबिक अभी तक फंड से 3100 करोड़ रुपए कोविड-19 प्रबंधन से संबंधित अलग अलग कार्यों के लिए आबंटित किए गए हैं। ऐसे में फंड को लेकर पूरी तस्वीर साफ नहीं हो पा रही है। अब देखना होगा कि अदालत इन याचिकाओं पर क्या रुख अपनाती है।