देश के लिए अच्छे दिन लाने का वादा करने वाली भारतीय जनता पार्टी के पास ही अच्छे दिनों का टोटा हो गया है. उत्तराखंड और बिहार के बाद अब पार्टी को उत्तर प्रदेश और राजस्थान में हार का मुंह देखना पड़ा है. इन राज्यों के अलावा गुजरात, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा, असम एवं सिक्किम में नौ विधानसभा सीटों और एक लोकसभा सीट पर उपचुनाव हुए थे. इनमें से अधिकांश सीटों पर भारतीय जनता पार्टी को पराजय का सामना करना पड़ा. भाजपा के लिए संतोष की बात यह रही कि वह कमजोर आधार वाले राज्यों असम एवं पश्चिम बंगाल में एक-एक सीट जीतने में कामयाब रही. उपचुनावों में भी छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमन सिंह का जादू चला. अंटागढ़ से भाजपा की जीत पहले से तय थी, क्योंकि कांग्रेस के प्रत्याशी मंतूराम पवार ने अचानक अपना नाम वापस ले लिया था. पार्टी ने कोई डमी उम्मीदवार खड़ा नहीं किया था, इसलिए भाजपा को सीधे तौर पर वॉकओवर मिल गया. एक निर्दलीय प्रत्याशी को छोड़कर अन्य 9 निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी अपना नामांकन वापस ले लिया था.
विधानसभा उपचुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया मोड़ लेकर आया. लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर बढ़त के बावजूद भाजपा को केवल दार्जिलिंग सीट पर सफलता हासिल हुई थी. पश्चिम बंगाल में दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे. बसीरघाट सीट से भाजपा उम्मीदवार ने जीत हासिल की, वहीं चौरंगी सीट पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार कामयाब रहा. लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद उपचुनाव के नतीजे भी वाम दलों के लिए निराशाजनक रहे. पश्चिम बंगाल के मुख्य विपक्षी दल के उम्मीदवार कहीं भी दौड़ में नज़र नहीं आए. बसीरघाट विधानसभा सीट से भाजपा के उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस के दीपेंदु विश्वास को 1,742 मतों से पराजित किया, वहीं कोलकाता की चौरंगी विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार नैना बंद्योपाध्याय ने भाजपा उम्मीदवार रीतेश तिवारी को 14,344 मतों से पराजित किया. मतलब यह कि भाजपा ने एक सीट पर सीधे तौर पर जीत हासिल की और दूसरी सीट पर प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरी.
विधानसभा उपचुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया मोड़ लेकर आया. लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर बढ़त के बावजूद भाजपा को केवल दार्जिलिंग सीट पर सफलता हासिल हुई थी. पश्चिम बंगाल में दो सीटों पर उपचुनाव हुए थे. बसीरघाट सीट से भाजपा उम्मीदवार ने जीत हासिल की, वहीं चौरंगी सीट पर सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस का उम्मीदवार कामयाब रहा. लोकसभा चुनाव के परिणामों के बाद उपचुनाव के नतीजे भी वाम दलों के लिए निराशाजनक रहे.
पश्चिम बंगाल में लगभग दो दशक बाद भाजपा उम्मीदवार को विधानसभा के लिए निर्वाचित होने का मौक़ा मिला. वर्ष 1999 में दक्षिण 24 परगना की अशोक नगर विधानसभा सीट पर बादल भट्टाचार्य ने जीत दर्ज की थी. उनके बाद भाजपा का कोई भी प्रतिनिधि पश्चिम बंगाल विधानसभा में नहीं पहुंच सका था. उपचुनाव में माकपा उम्मीदवार मिलान चक्रवर्ती तीसरे और चौरंगी विधानसभा उपचुनाव में माकपा के उम्मीदवार फैयाज अहमद खान चौथे स्थान पर रहे. माकपा का प्रतिनिधित्व दिनोंदिन घटता जा रहा है. विधानसभा उपचुनाव के परिणामों ने भी साफ़ कर दिया कि माकपा अब हाशिये पर जा रही है. माकपा के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर न रहकर तीसरे और चौथे स्थान पर जा रहे हैं. यानी माकपा विरोधी दल का तमगा गंवाती नज़र आ रही है. माकपा के वोट बैंक में किसी न किसी रूप में भाजपा अपनी पैठ बना रही है. पश्चिम बंगाल की राजनीति में भाजपा की घुसपैठ शुरू हो रही है. 2011 के विधानसभा चुनाव में बशीरहाट विधानसभा सीट पर माकपा ने जीत हासिल की थी. उसके उम्मीदवार के नारायण बंद्योपाध्याय इस सीट से निर्वाचित हुए थे. सारधा चिटफंड घोटाले में अपने नेताओं के नाम आने से तृणमूल कांग्रेस की जड़ें भी हिलती दिख रही हैं. तृणमूल ने अपनी सीट तो बरकरार रखी, लेकिन भाजपा उसके सामने प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरी है. उल्लेखनीय है कि गत लोकसभा चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की 42 में से 34 सीटें मिली थीं, जबकि कांग्रेस को चार, भाजपा और माकपा को दो-दो सीटें मिली थीं. भाजपा ने लोकसभा चुनाव में भले ही केवल दो सीटें जीतीं, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह आठ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी.
असम की तीन विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ), कांग्रेस एवं भाजपा के खाते में एक-एक सीट गई. एआईडीयूएफ के अध्यक्ष बदरुद्दीन अजमल के बेटे अब्दुर्रहीम अजमल ने जमुनामुख विधानसभा सीट पर कांग्रेस के बशीरुद्दीन लश्कर को 22,959 मतों से हराया. सत्तारूढ़ कांग्रेस ने लखीमपुर सीट बरकरार रखी. उसके उम्मीदवार राजदीप गोआला ने भाजपा प्रत्याशी संजय ठाकुर को 9,172 मतों से पराजित किया. सिल्चर में भाजपा उम्मीदवार दिलीप कुमार पॉल ने कांग्रेस उम्मीदवार अरुण दत्ता मजूमदार को पराजित किया. भाजपा के लिए असम एवं पश्चिम बंगाल में मिली जीत मरहम साबित हुई. सबसे बुरे दौर से गुज़र रहे वाम दलों के लिए सुखद समाचार त्रिपुरा से आया. त्रिपुरा में उनका जनाधार अभी बचा हुआ है. माणिक सरकार की लोकप्रियता की वजह से त्रिपुरा के किले में सेंध नहीं लग सकी. यहां की मानु विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के उम्मीदवार प्रवत चौधरी ने अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस उम्मीदवार मैलाफ्रू मोग को 16,000 मतों के अंतर से पराजित किया. सिक्किम की रंगाग-यागांग विधानसभा सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी एवं मुख्यमंत्री पवन कुमार चामलिंग के भाई आर एन चामलिंग ने जीत हासिल की. आंध्र प्रदेश की नंदीगामा विधानसभा सीट पर टीडीपी के उम्मीदवार टी सौम्या ने विजयश्री प्राप्त की. कुल मिलाकर उपचुनाव के नतीजे भाजपा को नींद से जगाने वाले कहे जा सकते हैं. इन नतीजों से किसी भी राज्य की सत्ता में कोई आमूलचूल परिवर्तन नहीं होने वाला था, लेकिन भविष्य में होने वाले चुनावों के संबंध में इन्हें आधार मानकर कोई ठोस योजना ज़रूर बनाई जा सकती है. हां, उक्त नतीजे कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हो सकते हैं. प