जम्मू-कश्मीर का जिला पुंछ सरहद पर होने की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहता है. यह जिला सीमावर्ती होने की वजह से आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यहां शिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य एवं सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव तो है ही, लेकिन जिले के कुछ इलाकों में पानी की समस्या भी विकराल रूप लिए हुए है. पुंछ की मेंढ़र तहसील से दस किलोमीटर की दूरी पर नाड़मनकोट नामक गांव है. हरे-भरे जंगल और आसमान से बातें करतीं पहाड़ियां इलाके की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. इस गांव में पानी की समस्या ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. 
11आज विश्‍व में जल का संकट कोने-कोने में व्याप्त है. जल ही जीवन है, जल के बिना जीवन की कल्पना अधूरी है. हम जानते हैं कि जल हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है, लेकिन इसका इस्तेमाल करते वक्त हम यह भूल जाते हैं कि इस्तेमाल कितनी मात्रा में करना है. जब तक हम जल का महत्व नहीं समझेंगे, तब तक इसी तरह इतना ही दोहन करते रहेंगे. इंसान खाने के बगैर तो तीन-चार दिन जिंदा रह सकता है, लेकिन पानी पिए बिना तीन-चार दिन से ज़्यादा जिंदा नहीं रह सकता. तमाम प्राणियों के लिए जल आक्सीजन की हैसियत रखता है. पानी का इस्तेमाल इंसान अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भिन्न-भिन्न तरीकों से करता है, जैसे पीने, खाना पकाने और नहाने-धोने में. जल का महत्व वही लोग समझ सकते हैं, जो इसकी कमी से दो-चार हैं. पानी और प्राणियों का चोली-दामन का साथ है.
जम्मू-कश्मीर का जिला पुंछ सरहद पर होने की वजह से हमेशा सुर्खियों में रहता है. यह जिला सीमावर्ती होने की वजह से आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित है. यहां शिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य एवं सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं का अभाव तो है ही, लेकिन जिले के कुछ इलाकों में पानी की समस्या भी विकराल रूप लिए हुए है. पुंछ की मेंढ़र तहसील से दस किलोमीटर की दूरी पर नाड़मनकोट नामक गांव है. हरे-भरे जंगल और आसमान से बातें करतीं पहाड़ियां इलाके की खूबसूरती में चार चांद लगाते हैं. इस गांव में पानी की समस्या ने लोगों का जीना मुहाल कर दिया है. यह गांव दस वार्डों में बंटा हुआ है, लेकिन स़िर्फ वार्डों में ही पानी के टैंक बने हुए हैं. जिन वार्डों में पानी के टैंक हैं, वहां के लोग भी पानी की कमी का रोना रोते रहते हैं.
स्थानीय लोगों के मुताबिक, पानी केवल पहले टैंक तक ही पहुंच पाता है, क्योंकि उसके आगे की पाइप लाइन खराब है, इसलिए दूसरे एवं तीसरे टैंक तक पानी पहुंचना संभव नहीं है. गांव निवासी रज़िया बी (30) कहती हैं, हम लोग हर रोज़ तक़रीबन आधा किलोमीटर पैदल चलकर चश्मों से पानी लेने जाते हैं और फिर सिर पर पानी के मटके उठाकर घर वापस आते हैं. पानी के मटके रखने की वजह से सिर में दर्द होने लगा है. वह कहती हैं, मैं हुकूमत से सवाल करती हूं कि यह नाइंसाफी हमारे साथ क्यों की जा रही है? क्या हमारे वोट की क़ीमत कम है? अफ़सोस की बात यह है कि 21वीं सदी के इस आधुनिक दौर में भी हमारे देश की महिलाओं को सिर पर पानी ढोकर लाना पड़ता है.
वार्ड नंबर पांच के पंच मोहम्मद सफीर कहते हैं कि इस इलाके की मस्जिद में भी पानी नहीं है. मस्जिद तक पानी पहुंचाने के लिए तक़रीबन 40 पाइपों की ज़रूरत है, लेकिन जब हम इस बारे में संंबंधित जूनियर इंजीनियर से कहते हैं, तो वह आज-कल कहकर टाल देते हैं. हमने कई बार वरिष्ठ अधिकारियों के भी दरवाज़े खटखटाए, लेकिन हमारी आवाज़ पर किसी ने कोई ध्यान नहीं दिया. सफीर कहते हैं कि सरकार की उपेक्षा के चलते हमारा जन्नतनुमा इलाका कर्बला का मैदान बना हुआ है. फरज़ाना बी (14) कहती हैं, सर्दियों के दिनों में हमें एक किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है, लेकिन गर्मी का मौसम आते ही चश्मों का पानी सूख जाने से हमारी मुश्किले और ज़्यादा बढ़ जाती हैं. तब हमें दो किलोमीटर दूर से पानी लाना पड़ता है.
सिंचाई विभाग ने पानी की समस्या से निपटने के लिए जो सुझाव दिए थे, उन पर जिले में कोई अमल नहीं हो रहा है. फरवरी, मार्च, जून एवं जुलाई में इलाके में इतना पानी होता है कि वह दूसरे इलाकों में सैलाब की स्थिति पैदा कर देता है. अगर सिंचाई विभाग वाटर शेड कायम करे और उस पानी को एकत्र कर लिया जाए तो उसका इस्तेमाल तब किया जा सकता है, जब इलाके में पानी की दिक्कत होती है. सरकार को ग्रामीण इलाकों के साथ- साथ सरहदी इलाकों की ओर भी जल्द से जल्द ध्यान देने की ज़रूरत है. ग्रामीण इलाकों में विकास के पहिए की गति बढ़ाए बिना हम शाइनिंग इंडिया-भारत निर्माण का सपना नहीं देख सकते, क्योंकि देश की तक़रीबन 70 प्रतिशत आबादी इन्हीं इलाकों में रहती है.

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