educationयूपी बेसिक एजुकेशनल प्रिंटर्स एसोसिएशन के मुताबिक बेसिक शिक्षा विभाग की कक्षा एक से आठ तक की पाठ्य-पुस्तकों के मुद्रण और आपूर्ति के लिए होने वाले टेंडर में 300 करोड़ रुपए से अधिक का घोटाला हुआ है. प्राइमरी स्कूलों की किताबों को लेकर होने वाले विलंब के पीछे बड़ा घपला है. यूपी बेसिक एजुकेशनल प्रिंटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र जैन और उपाध्यक्ष विवेक बंसल का कहना है कि शिक्षा सत्र 2017-18 में पिछले 15 वर्षों से चली आ रही व्यवस्था को भंग करते हुए शासन की चहेती कम्पनी को कॉपी किताबों की आपूर्ति का ठेका दिया जा रहा है. नोएडा स्थित बुर्दा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को शिक्षा विभाग ने ठेका दिलाने के लिए तरह-तरह के हथकंडे आजमाए हैं.
सरकार ने पुरानी व्यवस्था को तोड़ते हुए सिक्योरिटी मनी को 15 लाख रुपए से बढ़ा कर ढाई करोड़ कर दिया है. निविदा की अनुचित शर्त डाल कर एवं कार्टेल बना कर बुर्दा कम्पनी को काम दिए जाने का षडयंत्र रचा गया.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वादा करते हैं कि वे प्रदेश से भ्रष्टाचार समाप्त करके रहेंगे, लेकिन पुस्तकों की खरीद के लिए ई-टेंडर से सरकार कन्नी काट रही है. शिक्षा विभाग में पिछले 15 वर्षों से 35-40 मुद्रक काम करते आ रहे हैं, लेकिन इस बार मात्र 13 मुद्रकों का सिंडिकेट बना कर क्यों काम किया जा रहा है? इस सवाल का जवाब सरकार के पास नहीं है. इसमें भी 80 प्रतिशत काम बुर्दा कम्पनी को दिया जा रहा है. जब पिछले वर्ष 23 मुद्रक जुलाई की आपूर्ति को जनवरी तक पूरी नहीं कर पाए, तो इस बार मात्र 13 मुद्रक इस कार्य को कैसे पूरा कर पाएंगे? जबकि तथ्य यह है कि इन 13 मुद्रकों में 12 फर्में फर्जी हैं और ये बुर्दा कम्पनी की छद्म-नामी संस्था हैं.

बुर्दा कम्पनी शिक्षा सत्र 2016-17 में जनवरी तक किताबों की आपूर्ति नहीं कर पाई. इसके बावजूद तत्कालीन सचिव अजय सिंह यादव ने इलाहाबाद के जिलाधिकारी के मना करने के बावजूद बुर्दा को अतिरिक्त समय दिया और उसे ब्लैक-लिस्टेड भी नहीं किया. इस बार लगभग तीन सौ करोड़ रुपए का काम बुर्दा कम्पनी को दिया जा रहा है. जबकि यह काम 35-40 मुद्रकों को बांट कर दिया जाता, तो काम समय से होता और प्रदेश को 100 करोड़ रुपए की बचत भी हो जाती. जैन ने बताया कि शिक्षा विभाग की इस बड़ी धांधली को लेकर एसोसिएशन ने शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल और उप मुख्यमंत्री केशव मौर्या से मुलाकात की और जांच की मांग की. जांच का आश्वासन भी मिला, लेकिन यह केवल आश्वासन ही रह गया.

उल्लेखनीय है कि बुर्दा कम्पनी पिछले साल समय पर किताबों की सप्लाई नहीं कर पाई थी और देर से दी गई किताबें भी घटिया कागज पर छापी गई थीं. यह आधिकारिक तथ्य है, लेकिन इस पर शासन का ध्यान नहीं जाता. बीते 9 मई 2017 को बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेंद्र विक्रम सिंह ने बुर्दा कंपनी को टेंडर नहीं देने की सिफारिश शासन से की थी. लेकिन शासन की प्राथमिकताएं कुछ और हैं. एसोसिएशन का कहना है कि टेंडर में बुर्दा कम्पनी का रेट भी काफी अधिक है, इसके बावजूद उसे मंजूरी दी गई, जिससे विभाग को लगभग 55 करोड़ रुपए का नुकसान होगा.

बेसिक शिक्षा निदेशक ने यह भी कहा था कि इस साल मात्र 13 कंपनियां हैं और इतने कम समय में वे किताबें नहीं दे पाएंगी, इसलिए फिर से टेंडर कराया जाए. लेकिन शासन ने दबाव देकर उनका प्रस्ताव बदलवा दिया और उसी कंपनी को टेंडर थमा दिया, जिसका शासन पर उपकार था. बुर्दा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को पिछले साल बेसिक शिक्षा विभाग ने करीब 15 करोड़ का जुर्माना लगाया था. जानकारों का कहना है कि घटिया कागज पर किताबों के छपने, अशुद्धियां रहने और प्रिंटिंग की त्रुटियां रहने के बावजूद इस बार फिर बुर्दा कंपनी को दंडित नहीं किए जाने की अभी से योजना तैयार हो गई है.

बेसिक शिक्षा विभाग की तरफ से किताबें छपने के लिए 90 दिन का समय दिया गया है. इसके बाद ग्रेस पीरियड भी दिया जाता है. जानकारों का कहना है कि सितम्बर, अक्टूबर से पहले बच्चों को किताबें नहीं मिल सकतीं. कैग की रिपोर्ट में भी यह बात आई है कि पिछले सत्र में 97 लाख बच्चों को किताबें नही मिलीं. उस समय टेंडर का 90 प्रतिशत काम इसी बुर्दा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के पास था. यह भी सवाल उठता है कि बेसिक शिक्षा विभाग ने किताबों का जब पूरा पेमेंट किया था, तो फिर आधी से अधिक किताबों की सप्लाई क्यों नहीं हुई? इन किताबों के नाम पर 125 करोड़ से अधिक राशि किन-किन लोगों की जेब में गई? यह सवाल सामने है.

सरकारी किताबों की छपाई का टेंडर देने में की गई मनमानी के बारे में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ तक शिकायत पहुंच चुकी है. विश्व हिंदू महासंघ के नेता दिग्विजय सिंह राणा ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर बेसिक शिक्षा के विभाग के प्रमुख सचिव के इस भ्रष्टाचार में लिप्त रहने की शिकायत की है. अपनी शिकायत में उन्होंने कहा है कि प्राइमरी बच्चों को दी जाने वाली फ्री किताबों में बड़े पैमाने पर कमीशनखोरी हो रही है. उन्होंने आरोप लगाया है कि नोएडा की फर्म मेसर्स बुर्दा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को खासतौर पर फायदा पहुंचाने के लिए प्रमुख सचिव ने सारे नियम कानून ताक पर रख दिए.

वर्ष 2000 से 2016 तक यूपी सरकार प्रदेश में किताबों का टेंडर 40 फर्मों को देती थी, जिसके लिए बाकायदा सिक्योरिटी मनी जमा कराकर टेंडर निकाला जाता था. लेकिन 2016 में बेसिक शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव अजय सिंह ने इस शासनादेश को बदल दिया. उन्होंने 40 के बजाय सिर्फ एक फर्म को ठेका देने का निर्णय लिया. इतना ही नहीं, कागज मिलों से यह भी पत्र लिखवाकर मंगाया गया कि वे बुर्दा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड कंपनी को ही अपना माल सप्लाई करेंगे.

आरोप है कि मिलीभगत के तहत प्रमुख सचिव ने प्रदेश में किताबों की सप्लाई के लिए 158 करोड़ का ठेका बिना तकनीकी क्षमता की जांच किए कंपनी को दे दिया. जबकि कई अन्य फर्में कम रेट पर सप्लाई देने के लिए लाईन में थीं. लेकिन प्रमुख सचिव ने नियमों में बदलाव कर बुर्दा कंपनी को बिना कोई सिक्योरिटी-मनी जमा कराए ही ठेका दे दिया. यह सख्त नियम रहा है कि अगर कोई कंपनी समय से किताबों की सप्लाई नहीं दे पाती, तो उस पर जुर्माना लगता है. लेकिन किताबों की सप्लाई में महीनों देर करने के बावजूद फर्म पर जुर्माना नहीं लगाया गया और न उस पर कोई कार्रवाई की गई. जबकि इलाहाबाद के जिलाधिकारी संजय कुमार ने लिखित तौर पर कहा था कि उक्त फर्म पर 60 करोड़ रुपए का जुर्माना और उसे ब्लैक-लिस्ट करने की कार्रवाई करनी चाहिए.

लेकिन शासन ने उसे दरकिनार कर दिया. पूरे प्रदेश में यह सवाल उठते रहे कि ऐसे दागी फर्म को दोबारा ठेका क्यों दिया जा रहा है? फर्म पर लगाई गई पेनाल्टी की कार्रवाई आगे क्यों नहीं बढ़ी? उसे काली सूची में क्यों नहीं डाला गया? लेकिन इन सवालों के जवाब में यह परिणाम सामने आया कि दिसम्बर तक प्राईमरी स्कूलों में किताबें नहीं बंटीं और जो बंटीं वह भीषण अशुद्धियों के साथ. लेकिन विभाग आंख और कान दोनों में तेल डाले चुप बैठा रहा. अशुद्धियों का चरम यह रहा कि कक्षा सात और आठ की पुस्तकों का सिलेबस ही बदल दिया गया. इस अक्षम्य-चूक पर प्रदेश के पाठ्‌य पुस्तक अधिकारी ने भी उक्त फर्म के खिलाफ कार्रवाई के लिए शासन को लिखा, लेकिन वह नक्कारखाने में तूती की आवाज ही साबित हुई. विडंबना यह है कि उत्तर प्रदेश के राज्यपाल राम नाईक ने भी इस प्रकरण पर शासन को कार्रवाई के लिए लिखा था, लेकिन उसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया.

पुस्तक प्रकाशन और खरीद के नाम पर करोड़ों रुपए का वारा-न्यारा हर साल होता रहता है, लेकिन सरकार इस तरफ जानबूझ कर आंख मूंदे रहती है. यूपी में गरीब बच्चों को पढ़ाने और उनके भविष्य को उज्ज्वल बनाने के दावे वाला सर्व शिक्षा अभियान अब मृतप्राय ही है. इसमें भी किताबों का प्रकाशन पूरा का पूरा घोटाला ही है. प्रदेश के एक लाख से अधिक प्राइमरी और 35 हजार से ज्यादा उच्च प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने वाले गरीब बच्चों के नष्ट होते भविष्य को बचाने में सरकार की कोई रुचि नहीं. किताबों के अभाव में ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई ठप्प पड़ी है. राजधानी लखनऊ के कुछ स्कूलों में पुरानी किताबों के सहारे पढ़ाई कराई जा रही है.

यूपी के बेसिक स्कूालों में सत्र शुरू हुए करीब-करीब तीन महीना हो चुका है, लेकिन अभी भी स्कूलों तक नई किताबें नहीं पहुंच पाई हैं. कई सरकारी स्कूलों में स्थिति यह है कि एक ही किताब से दो या तीन बच्चे पढ़कर काम चला रहे हैं. कई स्कूलों में किताबों के पुराने सेट से ही पूरी क्लास पढ़ रही है. यह पहली बार नहीं है. पिछले साल अर्द्धवार्षिक परीक्षाओं तक 50 प्रतिशत किताबें ही स्कूलों में उपलब्ध हो पाई थीं. इस बार भी साढ़े बारह करोड़ पुस्तकों की छपाई के लिए 31 दिसंबर 2016 को टेंडर आमंत्रित किया गया था. टेंडर की आखिरी तारीख 6 फरवरी 2017 थी. करीब दो दर्जन से अधिक फर्मों ने आवेदन किया था. सात मार्च को टेक्निकल-बिड खोली गई, जिसमें 13 लोगों को योग्य (अर्ह) पाया गया था. लेकिन तीन मई तक फाइनेंशियल-बिड नहीं खोली गई.

घोटाले की बिसात बिछाई जा रही थी. छपाई का ठेका आवंटित करने में तगड़ा कमीशन चलता है. पिछले साल 13 करोड़ 21 लाख 86 हजार 5 सौ किताबों की छपाई के लिए निविदा आमंत्रित की गई थी. निजी पब्लिशर को फायदा पहुंचाने की नीयत से एक बार टेंडर आमंत्रित करने के बाद उसमें दो बार संशोधन किया गया. इस काम की लागत 450 करोड़ थी, जिसमें 250 करोड़ रुपए किताबों की छपाई पर और 200 करोड़ रुपए वाटरमार्क पेपर पर खर्च किए जाने थे. पिछले साल 1 रुपए 38 पैसे की दर से छपाई होनी थी. इसमें एक ऐसी कंपनी से कागज लिया गया, जो घाटे के चलते हड़ताल झेल रही थी और वाटरमार्क पेपर उत्पादन की क्षमता की शर्त को पूरा भी नहीं कर रही थी. जिस कंपनी को कागज सप्लाई करना था, उसकी प्रतिदिन की उत्पादन क्षमता न्यूनत 200 मीट्रिक टन दिखाई गई, जबकि उस कंपनी की प्रतिदिन की वाटरमार्क पेपर की वास्तविक उत्पादन क्षमता मात्र 60 मीट्रिक टन ही थी.

किताबों के साथ-साथ ड्रेस घोटाला, अब तो आ गया नया लूट-कोड
बेसिक शिक्षा विभाग के अधिकारी और शिक्षक आपस में साठगांठ करके बच्चों की किताबें तो ‘खा’ ही रहे हैं, उनके ड्रेस भी हजम कर जा रहे हैं. प्रदेश के कई जिलों से लगातार ऐसी शिकायतें शासन तक पहुंच रही हैं, लेकिन शासन उसे रद्दी के टोकरे में डाल देता है. ड्रेस घोटाले का ही एक रोचक वाकया बदायूं जिले का सामने आया, जहां बच्चों की ड्रेस बनाने के लिए आए साढ़े सात करोड़ रुपए सबने मिल कर ‘खा’ लिए. इस घोर घोटाले पर शासन की घनघोर चुप्पी है. बेसिक शिक्षा विभाग के माध्यम से सरकार बच्चों को दो जोड़ी ड्रेस देती है, जिसकी कीमत करीब चार सौ रुपए है.

बदायूं जिले को इसके लिए साढ़े सात करोड़ रुपए मिले, लेकिन वह हजम कर लिया गया. प्रावधान यह है कि प्रधान, प्रधानाचार्य और एनपीआरसी की देख-रेख में प्रत्येक स्कूल में जाकर दर्जी को प्रत्येक बच्चे का नाप लेना चाहिए और मानक के अनुरूप खरीदे गए कपड़े से बच्चों की ड्रेस बननी चाहिए. लेकिन बदायूं के पनबड़िया चौराहे पर स्थित एक घटिया दुकान से कुछ ड्रेस खरीद कर कुछ बच्चों को दे दिए गए और बाकी कागज पर ड्रेस-वितरण दिखा दिया गया. चार सौ रुपए की ड्रेस महज 60-70 रुपए में तैयार कराई गई, जिसे पहन कर कुछ बच्चे हीनता में और धंसते हैं, जबकि साहब लोग घोटाला करके भी नहीं फंसते हैं. घोटाले में जिला समन्वयक पीसी श्रीवास्तव और बीएसए प्रेमचंद यादव की भागीदारी की पूरे जिले में चर्चा है, लेकिन शासन इस चर्चा से बेखबर है.

ड्रेस घोटाले में लिप्त जिलों में बुंदेलखंड के सभी जिले, बुलंदशहर, कौशांबी, इलाहाबाद, अलीगढ़, मैनपुरी, इटावा, मुरादाबाद, बदायूं, शाहजहांपुर, सीतापर, लखीमपुर खीरी, गाजीपुर, सोनभद्र, बलिया, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज, गोंडा, बलरामपुर, भदोही, अंबेडकरनगर जैसे तमाम जिलों के नाम शामिल हैं. एक अधिकारी ने कहा कि यूपी के सारे जिलों को इसमें शुमार कर लीजिए, इस घोटाले से कोई जिला अछूता नहीं है, इसमें राजधानी लखनऊ भी शामिल है. अब तो योगी सरकार ने नया ड्रेस कोड भी जारी कर दिया है. भ्रष्ट अधिकारी और माफिया खुश हैं. उनके लिए यह है नया लूट-कोड.

लाइब्रेरियों में किताबें खरीदने के नाम पर भीषण घोटाला
उत्तर प्रदेश की विभिन्न लाइब्रेरियों और स्कूलों-कॉलेजों के पुस्तकालयों में किताबों की खरीद में शासन के अधिकारियों और सम्बन्धित स्कूल-कॉलेजों के प्रबंधन की मिलीभगत से भारी घोटाले हो रहे हैं, लेकिन इस पर कोई रोकथाम नहीं है. कमीशनखोरी के तहत घटिया किताबें सरकारी खरीद के लिए चयनित हो रही हैं. उत्तर प्रदेश सरकार की पुस्तक खरीद नीति नहीं, सरकारी धन की लूट-नीति है. उत्तर प्रदेश सरकार की पुस्तक खरीद नीति के जरिए हो रही लूट का खामियाजा आम पाठकों के साथ-साथ बड़ी तादाद में छात्रों को भुगतना पड़ रहा है. पचास-पचास प्रतिशत की छूट पर मिलने वाली किताबें स्कूल के पुस्तकालयों में ऊंची-ऊंची कीमतों पर खरीदी जा रही हैं.

प्रदेश के करीब 16 सौ सरकारी स्कूलों को वार्षिक विद्यालय अनुदान के रूप में प्रत्येक को 50-50 हजार रुपए केवल किताब खरीदने के लिए मिले. लाइब्रेरी के लिए जिन किताबों की खरीद के आदेश दिए गए वह राजधानी के खुले बाजार में उपलब्ध नहीं है. कई राजकीय स्कूलों के प्रिंसिपल ने जिला विद्यालय निरीक्षक को पत्र भी लिखा. लेकिन पता चला कि 80 प्रकाशकों की किताबें नोएडा के एक खास वितरक की ओर से मुहैया कराई गईं. वितरक ने 10 प्रतिशत की छूट देकर सरकारी स्कूलों को किताबों की सप्लाई की. जिन किताबों को सरकारी स्कूलों को 10 प्रतिशत की छूट पर बेचा गया, उन्हीं किताबों को निजी स्कूल संचालकों को 25 प्रतिशत की छूट पर दिया गया. दूसरे एक प्रकाशक ने 35 से 40 प्रतिशत की छूट पर निजी स्कूलों को किताबें दीं.

उत्तर प्रदेश के सार्वजनिक पुस्तकालयों के लिए पुस्तकें खरीदने की जिम्मेदारी प्रदेश सरकार की है. लेकिन सरकार की पुस्तक-खरीद योजना पर भ्रष्ट नेता, नौकरशाह, प्रकाशन-माफिया और दलाल काबिज हैं. पठनीय पुस्तकें खरीदी नहीं जा रहीं, क्योंकि उसके लेखक या प्रकाशक भ्रष्ट-तंत्र को घूस नहीं चढ़ाते, लिहाजा लाइब्रेरियों में घटिया पुस्तकें खरीद-खरीद कर रखी जा रही हैं. इस वजह से जागरूक पाठकों और पढ़ाकू छात्रों की आमद लाइब्रेरियों में कम होती जा रही है. अच्छी पुस्तकें और अच्छे लेखक हाशिए पर हैं. प्रकाशकों की तमाम जाली फर्में हैं, जो पुस्तकों की खरीद के गोरखधंधे में संलग्न हैं. शिक्षा माफिया सरकार पर हावी हैं.

सीतापुर के निजी स्कूल में बिक रही हैं सरकारी स्कूल की किताबें
सिक शिक्षा तंत्र के सारे यंत्र बेकार हैं. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने निजी स्कूलों की मनमानी पर नकेल कसे जाने की बात तो कही, लेकिन सरकारी तंत्र और उसके यंत्र को खरीदने का मंत्र जानने वाले निजी स्कूलों ने योगी सरकार के इस बयान को धराशाई कर डाला है. सीतापुर के महोली विधानसभा में महोली कस्बे का एक निजी स्कूल इसका जीता-जागता उदाहरण है. सरकारी मानकों की धज्जियां उड़ाने वाले इस विद्यालय में सरकारी विद्यालयों की नि:शुल्क पाठ्य पुस्तकें निजी स्कूल की मुहर लगाकर महंगी कीमत पर खुलेआम बेची गईं. यह जानते हुए भी विभागीय अधिकारी खामोश रहे. खास बात यह है कि विद्यालय का प्रबंधक खुद अर्धसरकारी विद्यालय का अध्यापक है. सत्ताधारी नेताओं के संरक्षण में रहने वाले प्रबंधक के विरुद्ध प्रशासन कुछ नहीं कर पा रहा है. एफआईआर दर्ज कर उसे गिरफ्तार करने की बात तो दूर रही.

महोली कस्बे में राष्ट्रीय राजमार्ग पर मूसाराम पेट्रोल पम्प के निकट मास्टर राम प्रताप बाल विद्या मंदिर नामक एक निजी स्कूल है. इस स्कूल में एक से आठ तक की कक्षाएं बेरोजगारों द्वारा संचालित की जा रही हैं. सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि विद्यालय की स्थायी मान्यता के लिए आवश्यक सरकारी मानकों एवं शर्तों को धता बताने वाले इस निजी स्कूल में सरकारी विद्यालयों की पाठ्य पुस्तकें स्कूल की मुहर लगाकर मोटी कीमत पर अभिभावकों को बेची जा रही थीं. इसके बावजूद प्रशासन विद्यालय प्रबंधन के कारनामों से अंजान बना रहा. एक अभिभावक ने वीडियो बना कर स्कूल प्रबंधन की हरकतों की पोल खोल दी.

स्कूल में पढ़ रहे बच्चों के परिजनों ने बताया कि कक्षा एक के बच्चों को 181 रुपए में, कक्षा चार के बच्चों को 546 रुपए में और कक्षा सात के बच्चों को 410 रुपए में किताबें बेची गईं. जबकि बच्चों को नि:शुल्क पुस्तकें उपलब्ध कराने का कानून है. भोले-भाले अभिभावकों के साथ फरेब करने के लिए प्रबन्धक के इशारे पर प्रधानाध्यापिका अनामिका गुप्ता उर्फ पूजा उन किताबों को खरीदने के बदले पाठ्यक्रम शुल्क के नाम से रसीदें भी दे रहीं थीं. अभिभावकों ने जब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी पन्नालाल को इसकी जानकारी दी, तो अगले दिन सुबह स्कूल में छापामारी हुई. छापेमारी के दौरान स्कूल के कक्षा एक से आठ तक के बच्चों के बस्तों से सरकारी किताबें बरामद हुईं. इस दौरान बीएसए ने प्रधानाध्यापिका पूजा गुप्ता की टेबल से 16 सरकारी कार्य-पुस्तिकाएं एवं इस विद्यालय की मुहर लगी विभिन्न कक्षाओं की सरकारी पुस्तकें भी बरामद की. बीएसए की छापेमारी से स्कूल में हड़कम्प मच गया.

बीएसए ने पहले प्रथम तल पर कक्षा एक से पांच तक के 140 बच्चों के स्कूली बैग चेक किए और उनसे पूछताछ भी की. बच्चों ने किताबें खरीदे जाने की बात कही. इन बच्चों की बैग से कलरव, गिनतारा, परख, हमारा परिवेश और रेनबो वर्कबुक नाम की वर्ष 2016-17 की सरकारी पुस्तकें बरामद हुईं. द्वितीय तल पर कक्षा छह, सात और आठ के बच्चों के बैग से मंजरी, गृहशिल्प, महान व्यक्तित्व, वर्तिका नाम की सरकारी पुस्तकें बरामद हुईं. पूछताछ के दौरान बच्चों ने बताया कि उनके अभिभावकों ने स्कूल से पुस्तकें खरीदी हैं. बीएसए ने बच्चों के बयान रिकॉर्ड कराए और उनके बस्तों से बरामद सरकारी किताबों की वीडियो रिकार्डिंग भी कराई.

इस दौरान स्कूल प्रबंधन बीएसए को यह कहकर बरगलाने का प्रयास करता रहा कि ये किताबें बच्चे कहीं अन्यत्र से लेकर आए हैं. लेकिन उन किताबों पर स्कूल की मुहर लगाकर काटी गई रसीदें भी बरामद हुईं, जो स्कूल प्रबंधन का पोल खोल रही हैं. बताया जा रहा है कि इस विद्यालय में लम्बे समय से सरकारी किताबें मुहर लगाकर छात्रों को कोर्स बताकर बेची जा रहीं थीं. बीएसए की जांच में वर्ष 2014-15 में भी ऐसी ही किताबें छात्रों के झोले से मिली थीं. छापेमारी के दौरान बीएसए पन्नालाल ने खंड शिक्षा अधिकारी को इसके लिए दोषी माना. छापेमारी के अगले दिन स्कूल के सभी बच्चों से उन्हें बेची गईं सारी पुस्तकें वापस ले ली गईं और अभिभावकों को यह बताया गया कि उनसे ली गई धनराशि स्कूल की फीस में एडजस्ट कर दी जाएगी. अब बच्चे किन किताबों से पढ़ेंगे, इसका निर्धारण बाद में होगा.
कहां से आईं सरकारी पुस्तकें!
निजी स्कूल की मुहर लगाकर मोटी कीमत पर बेची जाने वाली सरकारी किताबें किस ब्लॉक से या किस विद्यालय से आईं? विभागीय अधिकारी इस सवाल का जवाब नहीं दे पा रहे हैं. ये किताबें वर्ष 2016-2017 की हैं. गिनतारा नामक कक्षा चार की कार्य-पुस्तिका के पहले पृष्ठ पर प्राथमिक विद्यालय बड़ागांव की तस्वीर भी छपी हुई है. किसानों के ब्लॉक संसाधन केंद्र पर वित्तीय वर्ष 2016-17 की सरकारी पुस्तकों का कोई ब्यौरा उपलब्ध नहीं है. महोली के बीईओ वाईके मिश्रा ने भी महोली ब्लॉक संसाधन केंद्र पर संकुल प्रभारियों की मीटिंग बुलाकर सरकारी किताबों की बिक्री और उपलब्धता का पता लगाने का कोरम पूरा किया था.

बीएसए को एफआईआर पर नहीं नोटिस पर भरोसा
बीएसए बेसिक शिक्षा के जनपद के सबसे बड़े अधिकारी हैं. उनकी छापामारी में न सिर्फ प्रधानाध्यापिका की टेबल पर 16 सरकारी किताबें बिक्री के लिए रखी हुई थीं बल्कि स्कूली बच्चों ने भी प्रधानाध्यापिका द्वारा अलग-अलग कक्षाओं की पुस्तकों को अलग-अलग मूल्य पर बेचा जाने की बात कही थी. फिर भी बीएसए ने तत्काल स्कूल प्रबंधक के विरुद्ध प्राथमिकी दर्ज कराने की जरूरत नहीं समझी. उन्होंने विद्यालय के प्रबंधक को नोटिस भेजकर तीन दिन में जवाब मांगा. मौका मिलने पर प्रबंधक ने नोटिस का जवाब ना दे कर सियासी नेताओं की सिफारिश पर ज्यादा भरोसा किया. सपा से लेकर भाजपा के नेताओं तक की पैलग्गी की गई. तरह-तरह के प्रलोभन भी दिए गए. आखिरकार बीएसए पन्नालाल को कार्यालय, शिक्षा निदेशालय लखनऊ से सम्बद्ध कर दिया गया और महोली के बीईओ रहे वाईके मिश्रा को बीएसए का प्रभार दे दिए गया.

मलाईदार कुर्सी जाती देख बीएसए ने स्कूल प्रबंधक उमेश चंद्र मिश्रा के विरुद्ध सुसंगत धाराओं में एफआईआर दर्ज करने का आदेश महोली के खण्ड शिक्षा अधिकारी को दिया. चालाक बीईओ ने स्कूल प्रबंधक उमेश चंद्र मिश्रा को अभय दान देते हुए बीएसए के आदेश को महोली के खण्ड शिक्षा अधिकारी ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया. बीएसए के आदेश के 96 घंटे बाद भी स्कूल प्रबंधक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज नहीं कराई गई. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि छापामारी के दौरान बीएसए पन्नाराम ने जिस बीईओ को प्रथम द्रष्टया दोषी माना था, उसी बीईओ को प्रभारी बीएसए बनाया गया है.

प्रबंधक ने अपने बचाव में शुरू कर दी सियासत
महोली विधानसभा के ब्लाक पिसावां के राष्ट्रीय माध्यमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में तैनात उमेश चन्द्र मिश्रा ने खुद को बचाने के लिए सितापुर के जिलाधिकारी डॉ.सारिका मोहन को प्रार्थना पत्र देते हुए बीएसए पर ही पक्षपात का आरोप मढ़ दिया. पूरे मामले से खुद को अनभिज्ञ साबित करने का प्रयास करने वाला प्रबंधक प्रधानाध्यापिका को बलि का बकरा बनाने में लगा है.

स्कूल में सरकारी शर्तों का उल्लंघन
मोटी कीमत पर सरकारी पुस्तकें बेचने वाले मास्टर रामप्रताप बाल विद्या मंदिर स्कूल में जूनियर हाई स्कूल स्तर की मान्यता हेतु सरकारी नियमों एवं शर्तों का उल्लंघन किया जा रहा है. यह न तो नेशनल बिल्डिंग कोड 2005 में निर्धारित मानकों को पूर्ण करता है और न ही उक्त स्कूल पुस्तकालय, साज-सज्जा एवं उपकरण, विज्ञान सामग्री, शिक्षक-शिक्षण जैसी अन्य शर्तें ही पूरी कर रहा है. मान्यता के लिए प्राथमिक स्कूल के प्रत्येक कक्षा में कम से कम 20 बच्चों के बैठने की व्यवस्था अनिवार्य रूप से होनी चाहिए. नर्सरी से कक्षा आठ तक कक्षाएं संचालित करने के लिए स्कूल के पास मानक के अनुरूप हवा और पर्याप्त रौशनी वाले कमरे हैं. नियमानुसार मान्यता प्राप्त विद्यालय में परिषद द्वारा निर्धारित पाठ्यक्रम तथा पाठ्य पुस्तकों का उपयोग किया जाना चाहिए.

लेकिन जेबें भरने की लालसा में यहां मेरठ के साहित्य भंडार नामक प्रकाशक से प्रकाशित बालकीर्ति नाम की पुस्तक चलाई जा रही है. स्कूल में किताबें बेचे जाने की घटना के संदर्भ में जब महोली के विधायक शशांक त्रिवेदी मंच से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कोई भी अधिकारी भ्रष्टाचार करेगा, तो उसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा. त्रिवेदी ने कहा कि शासन ने स्कूल प्रबंधक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज नहीं कराया, तो उसे मैं दर्ज कराऊंगा.

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