PMप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सांसद आदर्श ग्राम योजना बडे जोर-शोर से शुरु की थी और इसकी शुरुआत करते हुए उन्‍होंने भविष्‍य के गांवों की जो तस्‍वीर लोगों को अपने भाषणों के जरिए दिखाई थी वो मनोहारी भी थी. लेकिन असलियत ये है कि देश के गांव वालों के हाथ केवल ये बातें ही आईं, ना तो उस पैमाने पर सांसदों द्वारा गांव गोद लिए गए और ना ही गांवों की तस्‍वीर बदली. अब आलम ये है कि चुनावी मौसम आते ही मोदी जी को फिर इस योजना की याद आ गर्इ. जिसके चलते हाल ही में उन्‍होंने इस योजना के तहत चौथा गांव गोद लिया है.

वैसे तो इस योजना के तहत हर सांसद को तीन गांव अपने संसदीय क्षेत्र में गोद लेने थे. लेकिन प्रधानमंत्री ने चौथा गांव गोद लेकर सभी सांसदों के सामने एक मिसाल पेश करने की कोशिश की. प्रधानमंत्री को ये बात इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि बहुत सारे सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने अभी तक तीन गांव का गोद लेने का टारगेट पूरा नहीं किया.

हमारे देश में (राज्यसभा और लोकसभा मिलाकर)  790 सांसद हैं. उसके हिसाब से 2370 गांव अभी तक गोद लिए जाने थे. क्योंकि हर सांसद को तीन गांव गोद लेने के लिए कहा गया था. लेकिन अभी तक जो गवर्नमेंट का आकंड़ा है, वो बताता है कि हमारे सांसदों ने मात्र 1448 गांव गोद लिए.

790 में से 202 सांसद ऐसे हैं, जिन्होंने तीन गांव का कोटा पूरा किया. बाकी सांसद अभी-भी तीसरा गांव या दूसरा गांव भी गोद नहीं ले पाए. इसके चलते ही प्रधानमंत्री जी ने अपने संसदीय क्षेत्र में चौथा गांव गोद लेकर सभी सांसदों के सामने एक मिसाल पेश करने की कोशिश की.

हकीकत ये है कि जब से सांसद आदर्श ग्राम योजना लागू हुई, तब से सांसदों के बीच में इस योजना को लेकर कंफ्यूजन है. क्योंकि इस योजना में अलग से कोई खास फंड नहीं है. केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जो योजनाएं चल रही हैं, उन्हीं में से गांव में योजना लागू कर उसे आदर्श बनाने का प्रयास किया जाता है.

कुल मिलाकर सांसद को गांव गोद लेने के बाद फिर अधिकारियों के सामने नतमस्तक होना पड़ता है, ताकि विभिन्न योजनाएं उस गांव में लागू की जाएं और उसे आदर्श बनाया जाए. दूसरी बड़ी समस्या यह है कि हर सांसद के लिए यह बहुत बड़ा संकट है कि वे कौन से तीन गांव अपने संसदीय क्षेत्र में चयन करें.

क्योंकि वो जो गांव लेते हैं, उसके बाद बचे हुए गांव उनसे नाराज होते हैं कि सांसद जी ने हमारे साथ नाइंसाफी की. सैकड़ों गांव में से तीन गांव लेना बहुत संकट का काम सांसदों के लिए हो गया है. जो गांव गोद लिए गए उसमें जो प्रोजेक्ट शुरू हुए वो इतनी धीमी गति पर हैं कि 50 प्रतिशत भी काम अभी तक पूरा नहीं हुआ और 2019 आने को है. प्रधानमंत्री ने अपने जो तीन गांव पहले गोद लिए थे, वहां भी स्थिति यही है. आदर्श ग्राम योजना बस एक बोर्ड तक सीमित रही है. गांव के बाहर वो बोर्ड लगता है और गांव के अंदर स्थिति वही होती है जो दूसरे गांव की है.

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