बाजार-दफ्तरों से नहीं, मंदिर-मस्जिद से है कोरोना खतरा!
भोपाल। कोरोना काल का डरावना समय गुजर चुका है। बीमारी काबू में आती दिखाई दे रही है और खतरे भी टलते हुए नजर आ रहे हैं। सुधरते हालात के बीच बाजारों की चहल-पहल शुरू हो चुकी है और ऑफिसों में भी आवाजाही होने लगी है। इन सबके बीच दो माह से ज्यादा समय से बंद पड़े मंदिर-मस्जिदों के द्वार खोलने से शासन-प्रशासन अब भी हिचकता नजर आ रहा है। जबकि हकीकत यह है कि इन्हीं दरवाजों के पीछे से की गई इबादत और प्रार्थना का असर है कि अब हालात सामान्य होने की तरफ बढऩे लगे हैं।

पं. पंकज शर्मा का कहना है कि किसी भी मुश्किल समय में इंसान को सबसे बड़ा सहारा ईश्वर-अल्लाह का ही होता है। ऐसे में सरकारों ने खतरे को इनके घरों के ही करीब पाया और यहां तालाबंदी का ऐलान कर दिया। हालात सुधरने के दौर में भी मंदिर-मस्जिदों में प्रवेश की पाबंदी बरकरार रखा जाना अब धर्मावलंबियों के लिए ज्यादती करने जैसा प्रतीत होने लगा है। पं. शर्मा कहते हैं कि कोविड नियमों का पालन अब लोगों की आदत में आ चुका है। मंदिर-मस्जिद प्रबंधन कमेटियां भी इसका पालन कराने के लिए राजी हैं। प्रशासन को चाहिए कि अब इन पाबंदियों को हटाकर लोगों को आसान दर्शन और इबादतों की अनुमति देना चाहिए।

ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड के अध्यक्ष काजी सैयद अनस अली नदवी कहते हैं कि पिछले दो माह से मस्जिदों के दरवाजे इबादतों के लिए बंद पड़े हुए हैं। महामारी के ऐसे दौर में जब ईश्वर-अल्लाह के करीब जाने और अपने गुनाहों की माफी मांगने तथा बेहतरी की दुआएं-प्रार्थना करने की जरूरत थी, यह पाबंदी धर्मावलंबियों को तकलीफ देने जैसी है। उन्होंने कहा कि पाबंदियों के दौर में मुस्लिम समुदाय के कई बड़े त्यौहार शब-ए-बरात, रमजान और ईद घरों में इबादत कर गुजर गए। इसी तरह हिन्दू धर्मावलंबियों को भी अपने कई महत्वपूर्ण त्यौहारों को घरों में ही मनाना पड़ गया। उन्होंने कहा कि अब जब सारे हालात काबू में बताए जा रहे हैं तो प्रशासन को मंदिर-मस्जिदों के दरवाजे खोलने में भी देर नहीं की जाना चाहिए। इस बीच यह जरूर किया जा सकता है कि जिस तरह बाजारों और दफ्तरों में कोविड नियमों के पालन की बाध्यता लगाई गई है, वैसे ही मंदिर-मस्जिद में प्रवेश पर भी इसकी अनिवार्यता कर दी जाए।

सूना सांई मंदिर, सूनी ताजुल मसाजिद

हर सप्ताह गुरूवार को पुतलीघर स्थित सांई मंदिर पर लगने वाला भक्तों का तांता पिछले दो माह से दिखाई नहीं दिया है। यहां देर रात तक चलने वाले भजन-कीर्तन और लोगों के दर्शन करने का सिलसिला थमा हुआ है। बंद पड़े मंदिर के पटों को दूर से निहारते भक्त दिल ही दिल में अपने सांई से यही प्रार्थना करते नजर आ रहे हैं कि ये हालात जल्दी खत्म हो जाएं और भक्त-भगवन का मिलाप जल्दी हो सके। ऐसे ही हालात एशिया की सबसे बड़ी मस्जिद ताजुल मसाजिद की भी बनी हुई है। जहां हर शुक्रवार को नमाज-ए-जुमा अदा करने वालों की बड़ी तादाद मौजूद रहा करती थी। कोविड हालात के चलते बंद किए गए दरवाजों के कारण लोगों को जुमा की नमाज घरों में अदा करने की मजबूरी बनी हुई है। जबकि इस्लामी मान्यता के मुताबिक जुमा की नमाज की अदायगी बिना खुतबा (धार्मिक उद्बोधन) के नहीं हो सकती।

यह अजीब विडंबना

आमतौर पर मंदिर-मस्जिद जैसे पवित्र स्थानों पर पहुंचने वाला व्यक्ति मानसिक संतोष और ताजगी लेकर लौटता है। लेकिन कोविड पाबंदियों के बीच अगर किसी व्यक्ति को मंदिर-मस्जिद में पूजा-इबादत करते पकड़ लिया जाए तो वह अपराधी की श्रेणी में खड़ा कर दिया जाएगा। हालांकि लोग कोविड अहतियात के चलते भीड़भाड़ से बचने के आदी होने लगे हैं, लेकिन अपनी अकीदत-आस्था को पूरा करने के लिए उनका मंदिर-मस्जिद जाना भी एक भय भरा अनुभव साबित होने लगा है।

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