पिछले हफ्ते का लेख मित्रों को इसलिए पसंद आया कि उसमें सोशल मीडिया पर मैंने विस्तार से बात करनी प्रारंभ की। मैंने संतोष भारतीय, फैजान मुस्तफा, पुण्य प्रसून वाजपेयी, अजीत अंजुम और ध्रुव राठी पर अलग से बात की। इनमें एक बहुत ही जरूरी नाम छूटा विनोद दुआ का।

विनोद दुआ टीवी की दुनिया के मंझे हुए खिलाड़ी हैं। एक लंबे अरसे तक उन्होंने दूरदर्शन में काम किया। कहना चाहिए कि जब से दूरदर्शन शुरू हुआ उसके कुछ ही समय बाद वे उससे जुड़े। और उन्होंने दूरदर्शन पर विभिन्न कार्यक्रम देकर अपनी जगह बनाई। लगभग चालीस – पचास वर्षों के लंबे अनुभव के बाद उन्होंने ‘द वायर’ से अपनी नई पारी की शुरुआत की। लेकिन ‘मीटू’ मूवमेंट के लपेटे में आये। वायर से अलग होना पड़ा। इन दिनों वे ‘HW नेटवर्क’ के साथ ‘विनोद दुआ शो’ के तहत मुस्तैदी से आधे घंटे के कार्यक्रम में अपनी बात खुल कर यानी बिना किसी लाग- लपेट के कहते हैं। विनोद दुआ सरकार की जायज आलोचना करते हैं। लेकिन मोदी सरकार और उसके नुमाइंदों को यह पसंद नहीं आता। इसीलिए पिछले दिनों उन पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। गनीमत है कि पाक साफ होकर कोर्ट से वे बरी भी हो गये। फिलहाल विनोद दुआ बीमार हैं। हाल ही में बीमारी के दौरान उनकी पत्नी का देहावसान हुआ। वे जल्द स्वस्थ होकर अपनी जगह मुस्तैद होंगे, हम आशा करते हैं।

सोशल मीडिया में इन दिनों ‘सत्य हिंदी’ प्लेटफार्म की अच्छी खासी चर्चा है। ‘सत्य हिंदी’ की नींव जिन चार लोगों ने मिल कर डाली उनमें से एक पत्रकार आशुतोष ही हैं जो इस प्लेटफार्म पर सबसे ज्यादा मुखर हैं। आप कह सकते हैं कि आशुतोष इन दिनों सत्य हिंदी के लिए इंजन का काम कर रहे हैं। इसके अलावा वे गोदी मीडिया के दूसरे चैनलों के एंकरों से अपने संपर्कों और दोस्ती के चलते वहां भी आते जाते रहते हैं। हालांकि वहां उन्हें कई बार निहायत ही वाहियात किस्म के लोगों से तू तू मैं मैं करनी पड़ती है या उलझना पड़ता है। जो कभी भी किसी सुलझे किस्म के व्यक्ति को पसंद नहीं आ सकता। इसका स्पष्ट प्रभाव आप आशुतोष पर देख भी सकते हैं जब वे सत्य हिंदी पर किसी भी चर्चा का संचालन करते हैं। उनके संचालन में धैर्य और संजीदगी नहीं रहती। हाबड़ ताबड़ रहती है। जबकि आशुतोष एक बेहद समझदार और गहरा अध्ययन करने वाले व्यक्ति हैं। इसीलिए उनकी यह हाबड़ ताबड़ कभी कभी समझ से परे होती है। खैर। वे सत्य हिंदी के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं इसमें दो राय नहीं।

गोदी मीडिया से मुकाबला करने के लिए जरूरी है कि एक ऐसा चैनल या प्लेटफार्म हो जिसकी ओर लोग आकर्षित हों और उसके कटेंट पर अपना विश्वास जाहिर करें। इस दिशा में एनडीटीवी चैनल के बाद सत्य हिंदी का ही नाम लिया जा सकता है इन दिनों। सत्य हिंदी पर चर्चाओं के अलावा दिन भर में तीन बुलेटिन और रात को ‘सुनिए सच’ (दिन भर की न्यूज़ का प्रोग्राम) प्रसारित होता है। इसके अलावा कई और, विभिन्न कार्यक्रम हैं जो सत्य हिंदी को एक चैनल की संपूर्णता प्रदान करते हैं। ‘द डेली शो’, ‘आज का एजेंडा’, ‘विजय त्रिवेदी शो’ के अतिरिक्त विभिन्न महत्वपूर्ण और चर्चित शख्सियतों के साथ इंटरव्यू आदि सब देखे जाने वाले कार्यक्रम हैं। लेकिन इन सबके बावजूद एक सवाल अपनी जगह कायम रहता है और रहेगा ही कि इसका प्रचार -प्रसार कितना और कहां तक है। इसमें दो राय नहीं कि सत्य हिंदी मध्य वर्ग को अच्छी खासी संख्या में समेट रहा है। लेकिन निम्न और निम्न मध्यवर्ग ? जहां गोदी मीडिया का भरपूर प्रचार प्रसार है। फिर भी कहा जा सकता है कि मध्यवर्ग के चटपटे (लेकिन जरूरी) विषयों को चटपटे तरीकों से उठाते रहना भी कम महत्व का काम नहीं। लेकिन सत्य हिंदी वालों को यह जरूर सोचना चाहिए कि चर्चा के पैनल में नये नये लोग निरंतर आने चाहिए वरना सब कुछ बड़ा बोर सा हो जाता है। और एक ही व्यक्ति का परिचय हर बार एक सा देते रहना भी देने वाले और सुनने वाले को झुंझलाहट पैदा करने वाला हो सकता है।

सत्य हिंदी से कई महत्वपूर्ण लोग जुड़े हैं और कई जुड़ भी रहे हैं। इनमें आलोक जोशी एक महत्वपूर्ण नाम हैं। इसलिए कि जोशी का विवेचन एक खास नजरिये से श्रोता को प्रभावित करता है। आलोक जी काफी अनुभवी और आर्थिक मामलों के अच्छे जानकार हैं। उनका अपना अलग से भी और सत्य हिंदी के साथ भी ‘वन आलोक जोशी’ के नाम से कार्यक्रम है। इसके जरिये वे आर्थिक विषय का अपना कार्यक्रम ‘माइंड योर बिजनेस’ भी करते हैं। जोशी की रुचि साहित्य में भी अच्छी खासी है इसलिए कभी कभी किताबों पर भी उनके दिलचस्प कार्यक्रम होते हैं। हर शनिवार को आशुतोष और आलोक जोशी ने लोगों के सवालों के जवाब देने का कार्यक्रम भी शुरू किया है। इन दोनों के अलावा महत्वपूर्ण नाम है विजय त्रिवेदी का। जो किसी भी चर्चा में विरोध का स्वर रखते हैं। हमारे विचार में वह स्वर ‘रखा’ जाता है। ताकि अपने ही भीतर का संतुलन भी बना रहे। शायद इसीलिए उन्हें संघ और बीजेपी का अध्येता बताया जाता है और जो वो हैं भी। मुकेश कुमार, नीलू व्यास, अंकुर जैसे अन्य भी विशेष लोग हैं जो निरंतर सक्रिय हैं। नीलू व्यास का ‘आज का एजेंडा’ और मुकेश कुमार का ‘द डेली शो’ गौरतलब कार्यक्रम हैं।

सौरभ द्विवेदी का शुरू किया हुआ ‘लल्लनटॉप’ भी सत्य हिंदी की भांति अपने पैर पसार रहा है। लेकिन जहां तक देश दुनिया की जानकारी और सामाजिक, आर्थिक मुद्दों और विषयों की जानकारी देने तक की बात सीमित है वहां तक सब ठीक और प्रशंसनीय है लेकिन जहां राजनीति और सरकार से सवाल करने की बात आती है वहां बेबाकी में संतुलन नहीं दिखता। सरकार की मुखर आलोचना से यहां बचा जाता है। इसलिए शक भी होता है,और यह भी लगता है कि सौरभ का बचपन संघ के स्कूलों में बीता शायद इसलिए उसके संस्कार भी उसे कटु आलोचना करने से बचाते हों। फिर भी ‘लल्लनटॉप’ ने अपना प्रचार प्रसार किया है और अच्छे से किया है।

इन दोनों से भी और कहना चाहिए कि सबसे ऊपर है ‘द वायर’ नाम की वेबसाइट। वायर द हिंदू अखबार के सिद्धार्थ वरदराजन और पत्रकार एम के वेणु के सम्मिलित प्रयास से शुरू की गयी विचारों की एक धारदार वेबसाइट का नाम है। जो सबसे पहले सरकार के निशाने पर आयी और आज तक बनी हुई है। वायर पर आप एक से एक चुनींदा प्रोग्राम देखेंगे। वायर एक ऐसी वेबसाइट का नाम है जो बेहद सम्मानित और जुझारू है। सरकार की गलत नीतियों और असफलताओं को उजागर करके धारदार सवाल करना, आज के समय में केवल वायर से ही आप यह उम्मीद कर सकते हैं। इन दोनों शख्सियतों के अलावा वायर में तीसरा महत्वपूर्ण नाम है आरफा खानम शेरवानी का। आरफा एनडीटीवी ,सहारा समय, rstv से होती हुईं वायर तक पहुंची हैं। मेरे विचार में सबसे ज्यादा कार्यक्रम इन दिनों वायर में आरफा के ही आप देखेंगे। वायर की विश्वसनीयता इस कदर आज की तारीख में बनी है कि यूट्यूब पर वायर नाम आते ही जरूरी और महत्व की चीज का अहसास होता है। वायर अपने नाम में ही ‘करेंट’ का अहसास कराता है।

आरफा की तरक्की का सबसे बड़ा राज उनकी बुद्धिमत्ता और स्पष्ट व साफगोई से की गयी प्रस्तुति है। उनकी बुद्धिमत्ता आपको उनके द्वारा लिए गये तमाम इंटरव्यूज़ में दिखाई देगी। कभी कभी लोग उन पर ‘विरोध के लिए विरोध’ का भी इल्जाम लगा सकते हैं। अगर ऐसा हो तो आरफा स्वयं इसे देखेंगी। अपूर्वानंद अधिकांशतः वायर पर ही अपने कार्यक्रम करते हैं। जो वायर की विश्वसनीयता में और इजाफा करता है। क्योंकि अपूर्वानंद स्वयं में ऐसी शख्सियत हैं जो बेबाक तो हैं ही, जिनका अध्ययन बहुत गहरा और सम्प्रेषनीयता बहुत साफ है। इस प्रकार वायर आज की सारी वेबसाइट्स के शीर्ष पर है। अगले हफ्ते हम कुछ और महत्वपूर्ण वेबसाइट्स की बात करेंगे।

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