महात्मा ज्योतिबा फुले जी की आज 130 वी पुण्य तिथि है ! इसलिए उनके स्मरण मे यह पोस्ट लिख रहा हूँ !
और भारत का किसान उत्तर भारत की कडाके की ठंड मे राजधानी के अंदर जाने को लेकर सरकार उन्हे रोक रही है कहने के लिये यह गरिब मजदूर,किसान,दलित,आदिवासी,महिलाओ कि चुनी हुई सरकार है और उन्हे ही राजधानी मे घुसने से मनाही !

याने जिन लोगो के पास मतो का कटोरा लेकर भीक माँग कर आज दिल्ली की गद्दि पर बैठने वाला जो अपने आप को प्रथम सेवक बोलने से थकता नही है लेकीन सेवक हो कर मालिक को उसके घर मे घुसने की मनाही ! वह भी लाठी,दंडे,आंसु गैस,पानीके फव्वारौ से रोका जा रहा है मेरे सार्वजनीक जिवन के पचास साल मे पहली बार इस तरह सरकार का रवैया देख रहा हूँ !

1974-75 के जयप्रकाश नारायण के आंदोलन मे वर्तमान सरकार मे बैठे हुये लोग भी थे एक तरह से रजनितिक मान्यता उसी आन्दोलन की कृपा से मिली ऐसा कहा तो गलत नही होगा इनके कुछ दिवंगत नेताओं के लिखित पत्र है कि आप समाजवादी जेपि की असली संतान हो इसलीये आप को उनके गोदमे बैठने का अधिकार है क्या हम पैरो के पास भी नही बैठ सकते ?

और पैरो के पास बैठने की भीक मांगने वालो ने कब उंट और तंबु की कहानी जैसा पुरा तंबू कब कब्जे मे कर लिया यह सभी समाजवादी देखते रह गये ! और जिन्हे उस तंबु मे घुसने की प्रबल इच्छा हुई वह अपना मान स्वभिमान और इमान की बली देकर घुसकर अपनी स्वामी भक्ति दिखाने की कोई भी कोर कसर ना रखते हुये उनके पापो को समर्थन देते हुये नजर आये है और आ रहे हैं !

मुख्य बात आज किसानो के चाबूक किताब 139 साल पहले लिखने वाले महात्मा फुले की 130 वी पुण्य तिथि के दिन मेरे आखो के सामने दिल्ली शहर के चारो दिशाओ मे देश भर से आये हुए किसान पुलिस की मार सहते हुये डटे हुये है और आज महात्मा फुले जी को इससे बेहतर अभिवादन और क्या हो सकता है ? ज्योतीबा फुले जी ने किसान का जीवन आज से डेढ दो सौ साल पहले का देखकर एक कविता लिखी है !

शरीर ढकने के लिये लंगोटी!घूमता है हलके पिछे!!
एक कंबल के बजाय! हमारी औरते सोती है!
ढोरोके पिछे सब समय!बच्चे हमारे घूमते है जंगल,पहाड!
छाछ भात पेटभर! तो संसार धन्य हुआ !
सरकार का होता है जुल्म!तो सब पुरखे याद आते है !
कर्ज के बोझ तले!बेरहम साहूकार की मार
अज्ञानी को कुछ नही समझता! पटवारी ने क्या लीखा !
वकील की महंगाई! न्यायाधीश को दया नही !
जहाँ पाप पुण्य नही! पैसेके लिये दादा भाई !

ज्योतीबा के सामने मुख्य सवाल था की दिनभर गर्मी,थंड मे पसिना बहाने वाले ,दूनिया का अन्नदाता दुखी और सरकार का कामचोर ,भ्रष्टाचारी नोकरशहा सुखी कैसा और वही शरीर उसके ही जैसे नाक नक्ष लेकीन यह गैरबराबरी कैसे ? इस सवाल को उन्होने गुलामगिरी,शेतकर्यचा आसुड और इशारा नामकी कितबो के द्वारा उठाये है ! साथियो यह लेखन का काम पूर्व के भारत मे जब ज्योतिबा कर रहे थे बिल्कुल उसी समय योरोप के जर्मनी और इंग्लंड मे कार्ल मार्क्स और एन्ग्ल्स वहाके औद्दोगिक क्रांती के बाद हो रहा कामगार,किसानो के हो रहा शोषण पर लिख रहे थे !

मार्क्स-एन्ग्ल्स की तुलना मे ज्योतिबा के पास अपने अगल-बगल की स्तिथी का निरिक्षण करके ही लिखना था मार्क्स-एन्ग्ल्स को तुलनामे काफी संसाधन उप्लब्ध थे उन्नीस्वी शतिके शुरुआत मे पेशवाई का खात्मा और अन्ग्रेजी हुकूमत की पकड़ मजबूत होनेके समय का महात्मा फुले का चिंतन क्लास से लेकर काष्ट (वर्ग और जाती)तक विलक्षण लगता है ! क्योकि हजारो सालो से चली आ रही भारतीय परिवेश मे पैदा होनेवाला या वाली ने इतना क्रांतिकारी सोचना यही एक बहुत बडी क्रांती है !

क्योकी कर्मविपाक के सिद्दांत ने किसान का,दलितो के,महिलाओ के दिमाग इतने कंडीशन्ड ( conditioning) हो गये थे और उस दिमाग में इस तरह के विचारो का उदगम एक चमत्कार लगता है ! क्योंकि गुलाम को गुलामी की आदत हो जाती है ! और उपरसे धर्म के नाम पर की यह तुम्हारे पूर्व जन्म का फल है ! और वह तुम्हे आज भुगतना होगा !और वह तुम ईमानदारी से करोगे तो तुह्मे अगले जन्म में बेहतर जिवन मिलेगा ! इतना क्लासिकल शोषणकारी तत्वग्यान दुनिया के किसी भी धर्म के नाम पर नहीं है जो सिर्फ महान हिन्दु धर्म के नाम पर कम्से कम पाँच हजार साल पहले से लगातार जारी है !

उसी के खिलाफ ढाई हजार साल पहले गौतम बुद्ध,महावीर ने बगावत की थी और कुछ हद तक उन्हे कामयाबी भी मिली थी ! लेकिन फिर हिंदू धर्म के सनातन तत्व पुनाह सक्रिय होकर संपुर्ण भारत से दोनो धर्म का पराजय करकेही दोबारा वही शोषणकारी व्यवस्था जारी हुई है !

और वह आज कल भी जारी है और वह आजकल भारत की राजनीति का प्रमुख होने के कारण वर्तमान समय में जितने भी कानुन बदलने का सिल-सिला जारी हुआ है और उसी के कारण भारत का किसान आज रस्तेपर जिवन-मरण की लढाई पर उतर आया है और जिसका मै तहे दिल से स्वागत करते हुए और आज अनायास महात्मा ज्योतिबा फुले जी की 130 वीं पुण्य तिथि का विषेश रूप से याद करते हुए उन्हे भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वर्तमान समय में चल रहे किसान,मजदूर,दलित हो या आदिवासी या महिलाये,अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के चल रहे सभी आन्दोलन को हार्दिक शुभेच्छा देता हूँ !

डॉ सुरेश खैरनार

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