नीतीश कुमार पिछले कुछ वर्षों से बिहार में उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए हरसंभव प्रयास करते दिख रहे हैं. देश-विदेश के नामी-गिरामी उद्योगपतियों, निवेशकों और वैश्विक बैंकों के सीईओ पटना का दौरा कर वस्तुस्थिति का जायजा ले रहे हैं. वैसे धरातल पर निवेश के कुछ स्पष्ट आसार अभी नहीं दिख नहीं रहे हैं, संभव हो इसका फायदा निकट भविष्य में दिखे.

यह दुर्भाग्य की बात है कि बिहार के एक जिला रोहतास के करवंदिया-बांसा खनन क्षेत्र में लाखों मजदूर सरकारी नीतियों के आगे घुटने टेकने को मजबूर हैं. एक तरफ सूबे के मुखिया द्वारा रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की वैश्विक कोशिश, तो वहीं अपने घर में बसे-बसाये स्थानीय पत्थर-बालू उद्योगों का पूरी तरह से सफाया करने पर आमादा सरकार.

यह एक स्याह सच है कि रोहतास जिले के खनन व्यवसायियों ने सारे नियमों, कायदे-कानूनों को ताक पर रखकर न सिर्फ अवैध खनन किया, बल्कि पर्यावरण के मानकों का भी जमकर उल्लंघन किया. लेकिन यह सच भी उतना ही कड़वा है कि पुलिस-प्रशासन व स्थानीय अधिकारियों ने पत्थर माफिया के साथ मिलकर इस प्राकृतिक संपदा को लूटने में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी. पर्यावरण एवं वनों को बचाने का जायज तर्क देकर सरकार अगर इस धंधे को बंद करना चाहती है, तो यहां सवाल यह भी उठता है कि इसे बंद करने के बाद उन सैकड़ों विस्थापित व्यवसायियों और मजदूरों का क्या होगा, जो इससे अपने परिवार का पेट पालते थे. आज उनमें से अधिकतर बेकार हैं.

पिछले 20 वर्षों से रोहतास के जिला पत्थर खदानों में चल रहे पत्थरों एवं सरकारी राजस्व की लूट को समझने के लिए थोड़ा फ्लैश बैक में जाना जरूरी है. अवैध खनन को लेकर विभिन्न मंचों पर गंभीर चर्चा होती रही है. विधानसभा-विधान परिषद में इसे लेकर कई बार हल्ला-हंगामा हुआ है. कैमूर पहाड़ी के 80 एकड़ में फैले करवंदिया खदान क्षेत्र में हो रहे अवैध खनन का मामला तब चर्चा में आया, जब 2001 में तत्कालीन वन एवं पर्यावरण मंत्री जगदानंद सिंह ने सेंचुरी एरिया को बचाने के लिए पहाड़ में खनन को बंद करने का फरमान जारी किया.

इसके बाद पूर्व विधायक रामेश्वर चौरसिया, प्रदीप जोशी, ज्योति रश्मि सहित कई विधायकों ने अवैध खनन के मामले को विधानसभा में बार-बार उठाया. स्थानीय प्रशासन, वन विभाग और पत्थर माफिया के नापाक गठजोड़ से चलने वाला यह गोरखधंधा राष्ट्र्‌ीय स्तर पर तब सुर्खियों में आया, जब अवैध खनन रोकने के क्रम में  2002 में युवा-जांबाज डीएफओ संजय सिंह पत्थर माफिया के शिकार हो गए.

उनकी मृत्यु के बाद आनन-फानन में सारे क्रशर और वैध खदान बंद कर दिए गए. लेकिन दो वर्ष बाद ही करवंदिया-बांसा का क्षेत्र बारूद की आवाज से एक बार फिर दहलने लगा. पुलिस और कुछ स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध खनन का कारोबार एकबार फिर फलने-फूलने लगा. आज हाल ये है कि सरकार और प्रशासन की लाख दबिशों के बावजूद खनन आज भी जारी है.

खान एवं भूतत्व विभाग के आदेश पर 2006 में एक बार फिर सख्त कायदे-कानूनों के साथ क्रशर चलने लगे. इसके तहत 20 वर्षों का कर चुकाने के बाद 387 क्रशर उद्यमियों को मशीन चलाने की अनुमति दी गयी. यह और बात है कि उन कठोर नियमों का पालन व्यवसायियों नेे मनमाफिक तरीके किया, फिर चाहे वह प्रदूषण विभाग हो या सेल टैक्स  या फिर खनन विभाग.

जाली चालान बनाकर यह धंधा बदस्तूर जारी रहा, जिसमें सरकारी राजस्व की जमकर चोरी की गई. स्थानीय अधिकारियों की मिलीभगत से अवैध खनन का धंधा इतना अधिक फला-फूला कि देखते-देखते कई लोग करोड़पति हो गए. इनमें से कइयों ने पैसे के दम पर विधानसभा और जिला परिषद का चुनाव लड़ा और जीता. यह और बात है कि इनमें से कइयों की आर्थिक स्थिति खराब होती जा रही है.

हालांकि एक दौर वह भी था, जब पूर्व विधायक सुनील पांडेय, हुल्लास पांडेय, प्रदीप जोशी, राज्यसभा सांसद गोपाल नारायण सिंह, डालमिया, टहलानी, अनिल यादव समेत कई लोगों ने सियासत चमकाने के लिए अवैध खनन से ना सिर्फ काली कमाई की, बल्कि इसे प्रोत्साहित भी किया. इनमें से राज्यसभा सांसद सहित कई लोगों पर आज भी आपराधिक मुकदमे चल रहे हैं. कई अधिकारियों को अदालती कार्रवाई के लिए प्रतिमाह किसी न किसी तारीख को सासाराम कोर्ट में हाजिरी लगानी पड़ती है.

खनन पट्टेधारियों की हिम्मत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस कार्य में सरकारी आदेशों की जमकर अवहेलना की गयी. खनन नियमों के तहत प्रावधान है कि आवंटित पट्टे में भूमि से 20 फीट तक ही खुदाई हो सकती है, लेकिन खननधारियों ने कई खदानों में 400 फीट गहराई तक खुदाई करवायी.

उस समय भी अवैध खनन से संबंधित खबरें लगातार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही, लेकिन सरकार ने कभी इसे गंभीरता से नहीं लिया. तब सासाराम के एक स्थानीय पत्रकार ने स्टिंग ऑपरेशन कर पहली मर्तबा अवैध डेटोनेटर के प्रयोग का खुलासा किया. उस वक्त सासाराम के कंचनपुर से भारी मात्रा में डेटोनेटर बरामद किया गया था.

उसके बाद से आजतक   हर महीने छापेमारी में अवैध डेटोनेटर सहित खनन से जुड़े अवैध उपकरणों, वाहनों की जब्ती एवं बरामदगी होती रही है. स्थानीय प्रशासन, खान एवं भूतत्व विभाग की छापेमारी और धरपकड़ की कार्रवाई आजतक बदस्तूर जारी है. लाख कोशिशों के बावजूद अवैध खनन नहीं रुका है. इस बहाने सरकार को करोड़ों रुपए राजस्व की क्षति जरूर हुई.

अहम सवाल यह उठता है कि अवैध खनन की कीमत पर विकास करना कहां तक जायज है और जब बात पर्यावरण की हो तो मामला और भी गंभीर हो जाता है. इससे जुड़े उन लाखों मजदूरों का क्या होगा जो बेरोजगार हो गए हैं. दूसरी बात यह कि योजनाओं को धरातल पर पहुंचाने के लिए गिट्टी और पत्थर कहां से मिलेगा?

कल तक स्थानीय प्रशासन तक सिमट कर रहनेवाला करवंदिया के अवैध खनन का मामला आर्थिक अपराध शाखा के पास चला गया है. आम जनता इस गलतफहमी में है कि पत्थर उद्योग से जुड़े लोग बड़े घराने से हैं, जबकि हकीकत यह है कि इस धंधे से अवैध कमाई करनेवालों की संख्या महज सौ-डेढ़ सौ है, जबकि करीब एक लाख मजदूर अपनी जीविका चलाने के लिए इस पेशे में आये थे.

2012 से जिले में  क्रशरों को बंद करने और लीज पर दिये गये पट्टों को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू हुई, 2014 आते-आते सभी क्रशर मशीनों को अवैध घोषित कर दिया गया. लेकिन हकीकत यह है कि खनन का यह खेल आज भी चोरी-छिपे रात के अंधेरे में प्रशासनिक संरक्षण में इत्मीनान से चल रहा है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हालिया निश्चय यात्रा और चेतना सभा की मीटिंग के दौरान नीतीश कुमार ने प्रशासन पर लगाम कसा है.

जोनल आईजी ने डेहरी में बैठक कर सभी पुलिस पदाधिकारियों को कड़ी कार्रवाई करने को कहा, नहीं करने पर अंजाम अंजाम भुगतने की चेतावनी भी दी. इसका नतीजा यह हुआ कि एक सप्ताह पूर्व ओवरलोडिंग एवं अवैध खनन से जुड़े 350 से भी अधिक गिट्टी-पत्थर लदे ट्र्‌कों को जब्त किया गया. साथ ही, अवैध खनन में संलिप्तता को लेकर जिले के एक वरीय पुलिस पदाधिकारी एवं चार थानाध्यक्षों पर विभागीय कार्रवाई शुरू की गई.

इन परिस्थितियों में हजारों विस्थापित मजदूरों के पुनर्वास के लिए सरकार के पास कोई योजना है भी या नहीं? इस पर स्थानीय प्रशासन समेत पटना के आला अधिकारी यहां तक कि विभागीय मंत्री भी कुछ बोलने से परहेज कर रहे हैं. ऐसे में सवाल यह है कि क्या सुशासन की सरकार में सबको जीने-कमाने का हक नहीं है.

अवैध खनन से संबंधित अधिकारियों की प्रतिक्रिया

अवैध खनन मामले में पर्यावरण की क्षति एवं राजस्व के भारी नुकसान के मद्देनजर क्रशर मशीनों का चलना अवैध कार्य का संकेत देता है. जबतक खनन पट्टों को लीज पर देन की प्रक्रिया नहीं होगी, तब तक यहां खनन अवैध कार्य माना जाएगा. क्रशर अनुज्ञप्तिधारक दूसरे स्थानों से रॉ मैटेरियल लाने, नियमों का पालन करने का भरोसा देकर क्रशर संचालित कर सकते हैं, उन्हें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मानक नियमों का पालन करना होगा.

-अनिमेश कुमार पाराशर, जिलाधिकारी, रोहतास.

रोहतास के करवंदिया-बांसा खनन क्षेत्र में नियमों के तहत क्रशर संचालक क्रशर मशीन चला सकते हैं. अवैध खनन में शामिल किसी व्यक्ति को बख्शा नहीं जाएगा, चाहे वह कितना भी प्रभावशाली क्यों न हो? कई मौकों पर नक्सलियों और पत्थर माफिया के सांठ-गांठ होने के सबूत मिले हैं. इस स्थिति में अवैध खनन को रोकने के लिए पुलिस प्रतिबद्ध है.

-मानवजीत सिंह ढिल्लो, पुलिस अधीक्षक, रोहतास.

2001 में वन भूमि, पहाड़, जंगलों को बचाने और सेंचुरी एरिया को संरक्षित रखने के लिए करवंदिया-बांसा क्षेत्र में अवैध खनन को बंद किया गया था. हाईकोर्ट के आदेश पर तत्कालीन डीएफओ संजय सिंह ने अवैध खनन पर शिकंजा कसना शुरू किया तो पत्थर माफिया ने उनकी हत्या करवा दी. उस समय खनन क्षेत्र से महज कुछ लाख ही सरकारी खजाने में आता था. इसमें सुधार होना चाहिए. कुछ पहाड़ी क्षेत्रों की कोई उपयोगिता नहीं है, जिन्हें लीज पर खनन को दिया जाना चाहिए, ताकि स्थानीय लोगों को  रोजगार मिल सके.

-जगदानंद सिंह, पूर्व मंत्री सह सांसद.

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