पांच मार्च, 1981 को कानपुर से 70 किलोमीटर दूर एक गांव में डाकू मुस्तकीम और उसके साथ जा रहे एक पूर्णतया निर्दोष युवक को पुलिस ने जिस तरह गिरफ्तार करके अदालत में पेश करने की पूरी सुविधा के बावजूद मार डाला, उससे तो यही लग रहा था कि उन दिनों हम एक जंगलराज में रह रहे थे. मुस्तकीम के पास उस समय ढेर सारा रुपया था, जिसे जब्त तो कर लिया गया, लेकिन पुलिस खाते में नहीं दिखाया गया. हमारी पुलिस व्यवस्था के नए चेहरे और डाकू स्थिति के एक नए आयाम का यह रोमांचकारी वृतांत है. जब मैं यह रिपोर्ट लिख रहा था, जिसमें मुस्तकीम की मौत की वास्तविकता दिखाई दे रही थी, तो मैं यह खतरा ज़रूर उठा रहा था कि कहीं डाकू को मैं हीरो जैसा तो नहीं बना रहा हूं? पर इस सच्चाई को न लिखना डेरापुर, पुखरायां, कालपी तथा रूरा क्षेत्र के उन हज़ारों आदमियों के साथ मज़ाक होता, जिन्होंने इस संपूर्ण घटना को अपनी आंखों से देखा था. आज भी इस रिपोर्ट को पढ़कर यह अवश्य लगता है कि क़ानून की रक्षा करने वाले और क़ानून को तोड़ने वालों के बीच आ़िखर अंतर है किस बात का?
मुस्तकीम मारा गया. मुस्तकीम ज़िंदा है. उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीहड़ों में जिसका राज चलता है, उस दस्यु सम्राट मलखान मिरधा के ठीक बाद जिसकी जगह थी, उस मुस्तकीम की मृत्यु सचमुच हो चुकी है या नहीं, इस बहस को फिलहाल उत्तर प्रदेश पुलिस के ज़िम्मे छोड़ देना चाहिए, क्योंकि मुस्तकीम पर घोषित इनाम की रकम, बीस हज़ार रुपये, उसे ही देनी है. यहां जो लिखा जाने वाला है, वह सच्चाई का एक और चेहरा है, जो बताता है कि हमारी समाज-व्यवस्था एक ऐसे बिंदु पर पहुंच गई है, जहां क़ानून और संविधान का कोई मतलब नहीं है. जहां पुलिस और प्रशासन की कार्य-पद्धति में कोई मूल्य और आदर्श नहीं बचे हैं. अब भयानक और ़खतरनाक माने जाने वाले डाकुओं के जीवन में भले ही कुछ सिद्धांत दिखाई पड़ जाएं, पर ग़ैर-ज़रूरी ढंग से और नीचतापूर्वक हत्या कर देने वाले हमारे कथित रक्षकों के जीवन में कोई आचार-संहिता नहीं है. मुस्तकीम और उसकी मौत की वास्तविकता लिखने में यह खतरा ज़रूर है कि वह डाकू कहीं हीरो जैसा न दिखाई देने लगे. लेकिन इस सच्चाई को न लिखना डेरापुर, पुखरायां, कालपी तथा रूरा क्षेत्र के उन हज़ारों आदमियों के साथ मज़ाक करना होगा, जिन्होंने इस संपूर्ण घटना को अपनी आंखों से देखा है.
स्त्री डकैत फूलन देवी ने बेहमई में जो कुछ किया, उसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक चुनौती के रूप में लिया, जिसका जायज नतीजा होना चाहिए था डाकुओं की बड़े पैमाने पर धर-पकड़, लेकिन जो दिखाई पड़ रहा है, वह यह है कि डाकू के नाम पर जिस किसी को मार दो और इस तरह मृत डाकुओं की सूची बढ़ाते रहो. पुलिस का कहना है कि चार मार्च की सुबह दो पुलिस दल गश्त से लौट रहे थे, तभी उनकी भेंट दो ऐसे आदमियों से हुई, जो उन्हें देखकर भागने लगे. पुलिस ने रोका, तो उन्होंने फायर किए. पुलिस ने भी फायर से जवाब दिया और उन्हें मार गिराया. बाद में पता चला कि उनमें से एक मुस्तकीम था, उसके साथ के व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकी. लेकिन, दूसरे दिन अ़खबारों में छपा कि उप-पुलिस महानिरीक्षक ने पहले से ही सारी योजना बना रखी थी.
स्त्री डकैत फूलन देवी ने बेहमई में जो कुछ किया, उसे उत्तर प्रदेश पुलिस ने एक चुनौती के रूप में लिया, जिसका जायज नतीजा होना चाहिए था डाकुओं की बड़े पैमाने पर धर-पकड़, लेकिन जो दिखाई पड़ रहा है, वह यह है कि डाकू के नाम पर जिस किसी को मार दो और इस तरह मृत डाकुओं की सूची बढ़ाते रहो. पुलिस का कहना है कि चार मार्च की सुबह दो पुलिस दल गश्त से लौट रहे थे, तभी उनकी भेंट दो ऐसे आदमियों से हुई, जो उन्हें देखकर भागने लगे. पुलिस ने रोका, तो उन्होंने फायर किए. पुलिस ने भी फायर से जवाब दिया और उन्हें मार गिराया. बाद में पता चला कि उनमें से एक मुस्तकीम था, उसके साथ के व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकी. लेकिन, दूसरे दिन अ़खबारों में छपा कि उप-पुलिस महानिरीक्षक ने पहले से ही सारी योजना बना रखी थी. अब झगड़ा लाजिमी था कि मुस्तकीम को मारने का श्रेय किसे है. बहरहाल, सच्चाई जो भी हो, पुलिस ने एक बड़ा काम किया था. लेकिन स्थानीय लोगों से बात करने पर जैसे-जैसे यथार्थ की परत-दर-परत खुलने लगी, वैसे-वैसे पुलिस का सारा छद्म स्पष्ट होता गया. पहली बात तो यही कि जिस जगह को पुलिस मुठभेड़ स्थल बता रही है, उसका भूगोल ऐसा है कि वहां केवल एक ही तऱफ से गोली चल सकती है. मुस्तकीम के गांव दस्तमपुर में जिन तथ्यों का पता लगा, उसकी पुष्टि के लिए पांच व छह मार्च को अकबरपुर, रूरा, गुलुआपुर, पुखरायां, मिट्टी, राजपुर, चांदापुर तथा कालपी जाने, इन गांवों के सैकड़ों आदमियों से बातचीत करने तथा सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल का, जिन्होंने मुस्तकीम को पकड़ने और मारने का दावा किया है, वक्तव्य सुनने के बाद पूरी स्थिति आईने की तरह स्पष्ट हो गई.
इन दिनों चंबल के डाकुओं में एक सहयोग वृत्ति-सी पैदा हुई है. छविराम, पोथी को छोड़कर इन सबमें आपसी समन्वय था. मलखान इन सबका समन्वयक है तथा उसका आदेश सभी मानते हैं. जमुना, चंबल, कुआंरी, पहुंज व सिंध का जालौन, उरई, दतिया, कालपी व कानपुर क्षेत्र मुस्तकीम का कार्यक्षेत्र था और राम औतार, मान सिंह, फूलन, रघुनाथ व बलवान गड़रिया उसी के निर्देशन में काम करते थे. बेहमई में फूलन, मान सिंह, राम औतार व भागीरथ द्वारा किए गए नरसंहार के बाद पुलिस का दबाव डाकुओं पर काफी बढ़ गया था. वस्तुत: मुस्तकीम इस प्रकार की हत्याओं का विरोधी था और उसकी ग़ैर जानकारी में ही यह कांड हुआ. ़खबर है कि इसके तत्काल बाद उसने फूलन को बहुत डांटा. भेंट होने पर मलखान ने मुस्तकीम और फूलन दोनों को डांटा. मलखान से मिलकर जब मुस्तकीम लौटा, तो उसे समाचार मिला कि मलखान घेर लिया गया है. उसने अपनी दाढ़ी बनवाई तथा पुलिस उप-अधीक्षक की वर्दी पहन कर मोटर साइकिल से सिपाही की वर्दी पहने एक डाकू को लेकर घेराबंदी वाली जगह पर पहुंच गया. वहां उसने एक तऱफ की पीएसी के सिपाहियों को आदेश दिया कि मलखान दूसरी तऱफ से निकला जा रहा है, अत: वे सब वहां जाएं. सिपाही उधर गए और मलखान इधर से निकल गया.
इसके बाद मुस्तकीम अपने गिरोह की तऱफ नहीं गया. कुछ दिन वह आगरा रुक कर कानपुर आ गया और एक सप्ताह वहीं रहा. वहां से मुस्तकीम ने बंबई जाने की योजना बनाई, लेकिन इसके पहले वह चाहता था कि एक बार अपने बड़े भाई से मिल लेता, जो दस्तमपुर गांव में, जहां उसकी ससुराल है, मेहनत-मज़दूरी करके दिन काट रहा है. तीन मार्च की रात मुस्तकीम मोटर साइकिल से कानपुर से अकबरपुर आया तथा सुबह चार बजे तक वहीं रुका रहा. वहां उसने अपने एक रिश्ते के भाई इमामुद्दीन को बुलवाया. इमामुद्दीन भी अकबरपुर के कसाई मुहल्ले में अपनी ससुराल में रह रहा था तथा नमक के बदले लोहा-टीन खरीदने की फेरी लगाता था.