इमामुद्दीन को लेकर मुस्तकीम सुबह पांच बजे अकबरपुर से रूरा आया, मोटर साइकिल से. यहां उसने मोटर साइकिल छोड़ दी तथा बस से डेरापुर पहुंचा. डेरापुर से उसने फिर बस पकड़ी, जिससे वह गलुआपुर उतरा. वहां उतर कर उसने मेवालाल के यहां से पान बंधवाया तथा स्कूल के नल से हाथ-मुंह धोया. गलुआपुर से दो फर्लांग की दूरी पर दस्तमपुर है, जहां से वह खडंजे के रास्ते चला. उन दोनों के पास सामान के नाम पर एक झोला था, जिसे मुस्तकीम लिए हुए था. सुबह के आठ बजे थे. झोला उसने इमामुद्दीन को दिया तथा स्वयं शौच के लिए चला गया. फारिग होकर मुस्तकीम फिर दस्तमपुर गांव की ओर बढ़ा. गांव से पहले महुए का एक पेड़ है, जहां से एक पगडंडी मुसलमानों के घर की तऱफ जाती है, जो मस्जिद के पास जाकर समाप्त होती है. मुस्तकीम के भाई मकबूल ने इसी मस्जिद के हाते में एक झोंपड़ी डाल रखी है. इमामुद्दीन को मुस्तकीम इसलिए ला रहा था कि वह उसे मकबूल का घर दिखा दे.
जब मुस्तकीम महुए के पेड़ से पगडंडी की तऱफ बढ़ा, तो उसे सामने के मुख्य रास्ते से साइकिल पर एक पुलिस सब-इंस्पेक्टर व एक सिपाही आते दिखाई दिए. उसने उन पर कोई ध्यान नहीं दिया, लेकिन उससे सौ गज पीछे आते इमामुद्दीन ने झिझक कर सड़क छोड़ दी. जब इमामुद्दीन झिझक कर रास्ते से कुछ हटा, तो आदत के मुताबिक सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल ने टोका, कहां से आ रहे हो? झोले में क्या है? जवाब मुस्तकीम ने दिया, हम लोग दस्तमपुर जा रहे हैं. इस पर श्री पाल ने गाली दी तथा तलाशी देने के लिए कहा. झोला इमामुद्दीन के हाथ में था. वह झोले से कपड़े निकाल रहा था कि सिपाही को रिवाल्वर दिखाई दे गई. उसने झपट कर झोला छीनना चाहा कि मुस्तकीम आ गया तथा उसमें व हरिराम पाल में कुश्ती शुरू हो गई. इधर सिपाही ने इमामुद्दीन को पकड़ लिया. मुस्तकीम ने हरिराम को बहुत मारा तथा बाद में बंदूक से भी उसकी पिटाई की. ज़मीन पर लगकर बंदूक का कुंदा टूट गया. सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल चीख-चीखकर गांव वालों को मदद के लिए पुकार रहे थे, पर गांव वाले दूर से ही तमाशा देखते रहे. तभी पास में ही शौच कर रहा दुबला-पतला गंगा चरण भागकर आया तथा मुस्तकीम से भिड़ गया. इसी समय इंटर कॉलेज में पढ़ने वाले लड़के शौच के लिए मैदान जा रहे थे. उन्हीं में गंगा चरण का लड़का रामपाल भी था. सभी दौड़कर आए और उन्होंने मुस्तकीम को बांध लिया. इसके बाद गांव वालों तथा सब-इंस्पेक्टर हरिराम पाल व सिपाही राजेंद्र सिंह सेंगर ने दोनों की जमकर पिटाई की. इसमें इमामुद्दीन का पैर टूट गया. जब इमामुद्दीन से बार-बार पूछने पर भी पता नहीं चला कि ये लोग कौन हैं, तो उसकी फिर पिटाई शुरू हुई. पर मुस्तकीम ने दारोगा को बुलाया तथा कहा, तुम असलियत जानना चाहते हो? मैं बाबा मुस्तकीम हूं. इतना सुनते ही गांव वाले और दारोगा सन्न रह गए. यह ़खबर आग की तरह चारों तऱफ फैली तथा आसपास के गांव वाले इकट्ठे होने लगे. लेकिन गांव के जो लोग देखने आए, उन्हें दारोगा ने मां-बहन की गाली देकर भगा दिया. इसी बीच उन्होंने गांव के एक आदमी को डेरापुर थाने भेजा. थाने वालों ने चार सिपाही भेज दिए. हालांकि, थानाध्यक्ष ने इसे मज़ाक ही समझा.
जब दारोगा गांव वालों को बताने लगा कि मुस्तकीम उसे मार डाल रहा था, तो मुस्तकीम ने दारोगा से कहा कि मैं तुम्हें मारना चाहता, तो पहले ही मार देता. मेरे पास ऑटोमेटिक रिवाल्वर थी. मैंने आज तक गड़रियों को नहीं मारा, पता लगा लो. वह बार-बार अपना ताबीज चूूम रहा था तथा कह रहा था, या अल्लाह! मुझसे क्या खता हो गई? मेरा वक्त आ गया, इसीलिए मैं यहां पकड़ा गया. जब दारोगा व सिपाही ने मुस्तकीम को वहीं मारना चाहा और इस इरादे से गांव वालों को भगाने लगे, तो मुस्तकीम ने कहा, देखने दो सबको, शेर मारा जा रहा है. मैंने आज तक ग़रीबों को नहीं सताया, बहू-बेटियों की इज्जत की है और जब भी लूटा है, अमीरों को लूटा है. लेकिन, उसी जगह मारने की दारोगा की कोशिश गांव वालों ने असफल कर दी.
अब मुस्तकीम पूरी तरह से पुलिस के कब्जे में था और उसने समझ लिया था कि अब उसका अंत निकट आ गया है. लेकिन, अब भी वह दहाड़ रहा था. उसने दारोगा से कहा कि मेरे साथ जो लड़का है, यह निर्दोष है, इसे मत मारिए. यह बाल-बच्चों वाला है, इसे मैं रास्ता दिखाने के लिए लाया हूं. उसने दारोगा को उसके बच्चों की कसमें दिलाईं. दारोगा हरिराम पाल ने कसम खाकर कहा कि वह न उस लड़के इमामुद्दीन को मारेगा और न मुस्तकीम को. मुस्तकीम ने बार-बार दोहराया कि उसे तो मार ही दिया जाएगा, पर लड़के को न मारा जाए. इसके बाद उसने दारोगा से कहा कि उसके पास रुपये हैं, जिन्हें वह ग़रीबों में बांटने के लिए रखे हुए था. उसने दारोगा से कहा कि इन्हें वह ग़रीबों में बांट दे. दारोगा ने मुस्तकीम की तलाशी ली, तो सौ-सौ के नोटों का क़रीब छह इंच मोटा बंडल मिला. गांव वालों के अंदाज़ से एक लाख से ज़्यादा रुपये थे. मुस्तकीम ने कहा कि अस्सी हज़ार हैं. उसके पास से चार अंगूठियां, एक घड़ी व एक गले की जंजीर भी निकली. इस सबको दारोगा ने रख लिया. सिपाही ने जब मुस्तकीम को गाली दी, तो उसने डपट कर कहा, गाली मत दो, जबान अपनी अंदर रखो और दारोगा से कहा कि असल खानदान के तुम भी हो, मैं भी हूं, मुझे मार दो, पर इसे मत मारो.
जब दारोगा गांव वालों को बताने लगा कि मुस्तकीम उसे मार डाल रहा था, तो मुस्तकीम ने दारोगा से कहा कि मैं तुम्हें मारना चाहता, तो पहले ही मार देता. मेरे पास ऑटोमेटिक रिवाल्वर थी. मैंने आज तक गड़रियों को नहीं मारा, पता लगा लो. वह बार-बार अपना ताबीज चूूम रहा था तथा कह रहा था, या अल्लाह! मुझसे क्या खता हो गई? मेरा वक्त आ गया, इसीलिए मैं यहां पकड़ा गया. जब दारोगा व सिपाही ने मुस्तकीम को वहीं मारना चाहा और इस इरादे से गांव वालों को भगाने लगे, तो मुस्तकीम ने कहा, देखने दो सबको, शेर मारा जा रहा है. मैंने आज तक ग़रीबों को नहीं सताया, बहू-बेटियों की इज्जत की है और जब भी लूटा है, अमीरों को लूटा है. लेकिन, उसी जगह मारने की दारोगा की कोशिश गांव वालों ने असफल कर दी. इधर सिपाही सेंगर घबरा रहा था कि और पुलिस अभी तक क्यों नहीं आई.