दशकों पुरानी जनता की मांग को पूरा करते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने न केवल खगड़िया-मुंगेर रेल सह सड़क पुल का निर्माण कराया, बल्कि अन्य इलाकों के साथ-साथ दियारा इलाके के विकास की नई गाथा भी लिख दी. विकास के साथ-साथ इस इलाके में हथियार तस्करों के द्वारा अपराध की नई गाथा भी लिखी जा रही है. वैसे हथियार तस्करी का खेल पहली बार नहीं शुरू हुआ है. दशकों से जल के रास्ते मुंगेर निर्मित हथियारों की तस्करी का खेल खेला जा रहा है, लेकिन रेल मार्ग अब हथियार तस्करों के लिए सुगम मार्ग बनकर रह गया है. हथियार तस्करी के बारे में शासन से लेकर प्रशासन तक को जानकारी है, लेकिन इस धंधे में लिप्त रसूखदारों की पहुंच इतनी दूर तक है कि शासन-प्रशासन चाहकर भी इन धंधेबाजों पर रोक लगा पाने में नाकाम है. हालात का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुलिस इस इलाके के न ही जलमार्ग और न ही रेल मार्ग की निगरानी कर पा रही है.
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जलमार्ग के जरिए रात्रि में हथियारों की तस्करी होती है, दिन के उजाले में भी नवनिर्मित मुंगेर रेल पुल हथियार तस्करी का सुरक्षित जरिया बन गया है. इतना ही नहीं इस रेल मार्ग पर नियमित चेकिंग की बात तो दूर टिकट चेकिंग की बात भी बेमानी साबित हो रही है, क्योंकि दशकों से अपराध प्रभावित इलाकों में शुमार मुंगेर में किसी भी तरह की चेकिंग करना रेलकर्मी गंवारा नहीं समझते. जलमार्ग के जरिए हो रही हथियारों की तस्करी रोकने की पुलिस ने जब भी कोशिश की तब ग्रामीणों के साथ मिलकर धंधेबाजों ने पुलिस का पुरजोर विरोध किया. मुंगेर रेल पुल के जरिए जिस तरह से हथियार तस्करी का खेल खेला जा रहा है, उसे देखकर यह कहने में शायद कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि मुंगेर रेल सह सड़क पुल कहीं तस्करी का पुल न बनकर रह जाए. यह बात अलग है कि अभी फिलहाल सड़क पुल चालू नहीं हुआ है, इसलिए सड़क मार्ग के जरिए हथियार तस्करी का खेल अभी शुरू नहीं हुआ है. अगर समय रहते पुलिस ने जलमार्ग के साथ-साथ मुंगेर पुल के जरिए हो रही है हथियारों की तस्करी पर विराम नहीं लगाया, तो अक्सर हिंसा की आग में जलने वाला यह इलाका कहीं किसी खूनी खेल का गवाह न बन जाए.
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मुंगेर निर्मित हथियारों की बढ़ती मांग को देखते हुए आस-पास के कई दियारा इलाके के गांवों में न केवल अवैध हथियारों का निर्माण हो रहा है बल्कि बिहार के कई जिलों के साथ-साथ अन्य राज्यों में भी इन हथियारों को भेजा जा रहा है. इस दौरान हथियार तस्करों के बीच कई बार हिंसक झड़पें भी हुई और इन झड़पों में कई लोगों को अपनी जान से भी हाथ धोना पड़ा. लगभग चौदह वर्षों के लंबे सफर के बाद ही सही लेकिन बीते 12 मार्च 2016 को मुंगेर रेल सह सड़क पुल की शुरुआत होते ही आम जनता चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, वहीं तस्करों की भी बल्ले-बल्ले हो गई. लेकिन इस पुल के निर्माण के बाद विकास के कई मार्ग भी खुल गए. इस रेल पुल को लेकर संसद से लेकर सड़क तक हंगामा हुआ. इस पुल के निर्माण के लिए कई तरह के आंदोलनों का भी इस्तेमाल किया गया. कई चुनाव तक यह पुल प्रत्याशियों के लिए चुनावी मुद्दा बना रहा. पुल के निर्माण कार्य का आगाज होने के बाद भी निर्माण कार्य में तेजी नहीं आने की वजह से आम जनता का गुस्सा एक बार फिर छलका और लोगों ने एक बार फिर आंदोलन की चेतावनी दी. तब जाकर उसके बाद सह रेल सड़क पुल के निर्माण कार्य में तेजी आई और पहले चरण में रेल पुल पर गाड़ियों के दौड़ने की शुरुआत भी हो गई.