जीतन राम मांझी सीएम हाउस पर जिस अवैध और अनैतिक तरीके से कब्जा जमाए हुए हैं, उससे कई सवाल खड़े होते हैं. मसलन, कोई महादलित किसी की हत्या कर दे और पुलिस उसे पकड़ने जाए तो क्या यह कह कर उस कार्रवाई को रोका जा सकता है कि वो महादलित है? क्या कोई महादलित भ्रष्टाचार करे तो उसकी जांच न हो? कोई महादलित कानून और नैतिकता की धज्जियां उड़ाए, तो उसके खिर्लों कार्रवाई न हो. कोई पूर्व मुख्यमंत्री सीएम हाउस पर अवैध और अनैतिक तरीक से कब्जा जमा कर वहां से पार्टी कार्यालय चलाए तो क्या सरकार को कार्रवाई नहीं करनी चाहिए? यहां सवाल पिछड़े, दलित, महादलित, सवर्ण या अल्पसंखयक वर्ग का नहीं है, सवाल नैतिकता और कानून का है, जिसके हिसाब से जीतन राम मांझी गलत करते हुए दिखाई दे रहे हैं.
विधानसभा चुनाव के ठीक पहले अगर आम और लीची सियासी मोहरे बन जाएं तो आसानी से इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि बिहार की राजसत्ता के लिए नेताओं का कितना कुछ दांव पर लगा है. सूबे के मुख्यमंत्री निवास यानी एक अणे मार्ग में आम और लीची पर सरकारी पहरे की खबर जैसे ही देश और दुनिया में सुर्खियां बनी, एक चर्चा साथ-साथ चल पड़ी कि लोकतंत्र में नैतिकता की जगह अब बची भी है या नहीं. नैतिकता की बहस ने इस बात को भी चर्चा में ला दिया कि आखिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सीएम के लिए आवंटित मकान एक अणे मार्ग और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी पूर्व सीएम के लिए आवंटित मकान 12 स्टैंड रोड में क्यों नहीं रह रहे हैं. इस चर्चा का भी विश्लेषण करेंगे, पर पहले आम और लीची के ताजा विवाद और उस पर हो रही राजनीति को समझने की कोशिश करते हैं. बकौल जीतनराम मांझी 5-6 दिन पहले पत्नी ने कहा था कि उसने लीची तोड़ने के लिए एक आदमी को भेजा था. जब वह लीची तोड़ने गया तो सुरक्षाकर्मियों ने उसे रोक दिया. सीएम हाउस में तैनात एक माली को इस बात का बुरा लगा. उसने सोचा कि मालकिन लीची मांग रही हैं और उसे नहीं मिले, यह अच्छा नहीं है. वह गया और जबरदस्ती लीची तोड़ लाया. बाद में मुझे पता चला कि उस माली को लीची तोड़ने के कारण सस्पेंड कर दिया गया है.
गौरतलब है की फरवरी में मुख्यमंत्री पद से हटाए जाने के बाद भी मांझी मुख्यमंत्री आवास में रह रहे हैं, जबकि नीतीश 7 सर्कुलर रोड स्थित एक सरकारी आवास में रह रहे हैं. अब ऐसे में फलों व सब्जियों की रखवाली के लिए एसपी स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों की तैनाती की, तो मामला तुल पकड़ लिया. हालांकि मुख्यमंत्री ने इस बात से इंकार किया है और कहा कि मुझे तो आवाम की चिंता है, आम की नहीं. अगर पता होता कि पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को आम की इतनी चिंता है, तो मैं कब का तोड़वा कर भिजवा देता. नीतीश ने कहा कि जिन्हें आम खाना है, वे खूब खाएं, कटहल पर पहरेदारी जैसी ओछी हरकत नहीं करता और मांझी आम और लीची तोड़ लें, मैं अपने वेतन से उसकी कीमत का भुगतान कर दूंगा.
विवाद बढ़ा, तो राज्य पुलिस ने आनन-फानन में आंतरिक जांच करवा डाली. एडीजी मुख्यालय सुनील कुमार ने जानकारी दी कि किसी सुरक्षाकर्मी ने पूर्व मुख्यमंत्री या उनके परिजन को आम और लीची तोड़ने से रोका नहीं है. वहां आम, लीची और कटहल की निगरानी के लिए सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं और यह कोई नई बात नहीं है. पिछले साल भी 11 मई से 31 जुलाई तक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए थे. इस साल यह काम 15 मई से शुरू हुआ है. एडीजी की सफाई के बाद तो यह साफ हो गया कि मामला प्रशासनिक नहीं, बल्कि राजनीतिक है और इसमें देर भी नहीं हुई. जीतन राम मांझी ने कहा कि इतने सुरक्षा बल अगर गांधी सेतू में लगाए जाते तो बिहार की जनता को जाम से मुक्ति मिलती. श्री मांझी ने महादलित कार्ड खेलते हुए कहा कि नीतीश कुमार नहीं चाहते हैं कि कोई महादलित अणे मार्ग में आम व लीची खाए. नीतीश कुमार को इस मानसिकता से ऊपर उठना चाहिए. दूसरी तर्रें नीतीश कुमार ने र्सों कहा कि हमें तो आम नहीं, अवाम की चिंता है. कुछ लोग मोह में फस गए हैं. इसका इलाज तो जनता ही करेगी. कुछ ही महीने की बात है, जनता जिसे चाहेगी, वही अणे मार्ग में रहेगा. सुशील मोदी ने भी मौका नहीं गंवाया और कहा कि नीतीश आम की चटनी तक के लिए श्री मांझी को तरसा रहे हैं. नीतीश को बर्दाश्त नहीं कि महादलित सीएम आवास में लगे फलों को चखें. इन सियासी बयानबाजियों से निकलें, तो इस ताजा विवाद के संदर्भ में यह कहा जा सकता है कि महादलितों के वोटों का कैसे ज्यादा से ज्यादा ध्रूवीकरण हो, इसका कोई भी मौका जीतन राम मांझी नहीं छोड़ रहे हैं. मुख्यमंत्री आवास छोड़ने की पहले उन्होंने शर्त रखी थी कि नीतीश कुमार सात सर्कुलर रोड वाला अपना बंगला हमें दे दें, तो मैं एक अणे मार्ग खाली कर दूंगा. उनका तर्क था कि चूंकि नीतीश कुमार उस बंगले में पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से रह रहे हैं और चूंकि वह अब मुख्यमंत्री बन गए हैं, इसलिए वह सात सर्कुलर रोड छोड़ दें और पूर्व मुख्यमंत्री की हैसियत से मैं उसमें चला जाता हूं, लेकिन सरकार ने उनके लिए 12 स्टैंड रोड का बंगला आवंटित कर रखा है, जिसको सजाने-संवारने में अभी तक लगभग एक करोड़ रुपये खर्च हो गए हैं. अब इस ताजा विवाद के बाद श्री मांझी ने कहना शुरू कर दिया है कि चूंकि 12 स्टैंड रोड वाल बंगला अभी तैयार नहीं हुआ है, इसलिए मैं अणे मार्ग में हूं, जिस दिन वह तैयार हो जाएगा, मैं उसमें चला जाऊंगा, लेकिन वह साथ ही साथ यह भी जोड़ दे रहे हैं कि नैतिकता के आधार पर नीतीश कुमार को भी सात सर्कुलर रोड वाला बंगला छोड़ देना चाहिए. जानकार बताते हैं कि चुनाव तक श्री मांझी मुख्यमंत्री आवास से हटने वाले नहीं हैं. उनको लगता है कि वह एक बार फिर मुख्यमंत्री बनने वाले हैं, इसलिए बंगला छोड़ना ठीक नहीं है. गौरतलब है कि जीतनराम मांझी की पार्टी हम का सारा काम इन दिनों मुख्यमंत्री आवास से ही हो रहा है. इसी आवास में पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं की बैठक होती है. हम के पोस्टर और बैनर से मुख्यमंत्री आवास के कई कमरे पटे पड़े हैं. जदयू के प्रवक्ता नीरज कुमार कहते हैं कि नैतिकता का तकाजा तो यही है कि जीतन राम मांझी को इर्स्तीेंा देने के बाद ही बंगला खाली कर देना चाहिए था. नीतीश कुमार ने ऐसा करके एक मिसाल कायम किया था, लेकिन श्री मांझी मोह में फंस गए हैं. उनको कम से कम मुख्यमंत्री निवास की गरिमा का तो ख्याल रखना चाहिए. मुख्यमंत्री आवास को तो उन्होंने हम का पार्टी कार्यालय बना कर रख दिया है. नीरज कहते हैं कि बिहार की जनता इन चीजों को बहुत ही गौर से देख रही है और उन्हें पूरा भरोसा है कि सूबे की जनता वोट के माध्यम से एक अणे मार्ग की गरिमा को बहुत जल्द बहाल करेगी. नीरज कहते हैं कि मांझी को कम से कम इस मामले में नीतीश कुमार का अनुसरण करना चाहिए था. खैर, आम और लीची का सीजन तो एक महीने में खत्म हो जाएगा और अगले साल उन पेड़ों पर फिर फल आ जाएंगे, लेकिन चुनावी फायदे के लिए ओछे विवाद पैदा करने से कहीं न कहीं बिहार की गरिमा को धक्का लगता है. पूरा देश बिहार के चुनावों पर पैनी नजर बनाए हुए है. ऐसे में अगर सियासी मोहरे आम और लीची बनेंगे, तो फिर जगहंसाई बिहार की ही होगी. इसलिए बिहार के राजनेताओं को इस चुनाव में ऐसी चीजों का तो ख्याल रखना ही होगा.