केदारनाथ आपदा के दौरान लापता लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए उनके परिवारीजनों को एक वर्ष बाद भी दर-दर भटकना पड़ रहा है. सरकारी आंकड़ों के अनुसार, कुल 3173 लापता लोगों में से अब तक केवल 2801 लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी हो सके हैं. मुख्यमंत्री हरीश रावत के तमाम प्रयासों और प्रशासन के होमवर्क के बाद भी एक बार फिर से कुछ मामलों में मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने में पेंच फंस गया है. उत्तर प्रदेश के दो दर्जन से अधिक मामले सामने आए हैं. इनमें वे लोग शामिल हैं, जिनके लापता होने की एफआईआर 30 जून, 2013 के बाद दर्ज की गई. इस संबंध में अब नए सिरे से मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने के लिए दिशा-निर्देश दिए जा रहे हैं. उत्तराखंड के भी क़रीब 41 लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र विभिन्न कारणों से जारी नहीं हो सके हैं. मेघालय एवं चंडीगढ़ ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने अब तक एक भी व्यक्ति की जांच रिपोर्ट नहीं भेजी है. राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर एवं असम ऐसे राज्य हैं, जिन्होंने तत्परता दिखाते हुए अपने लापता लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र हासिल कर लिए. ग़ौरतलब है कि 16-17 जून, 2013 को राज्य में आई इस आपदा में सर्वाधिक नुक़सान केदारनाथ में हुआ था. केदारनाथ में ही हज़ारों श्रद्धालुओं-पर्यटकों की मौत हो गई थी.
आज भी मिलने वाले दर्जनों नरकंकाल इस बात की गवाही देते हैं कि इस दैवीय आपदा में बड़ी संख्या में लोग मारे गए. सैकड़ों लोग, जो किसी तरह आपदा से बचकर जंगली पहाड़ियों पर चले गए थे, समय पर सरकारी मदद न मिलने के कारण दाना-पानी के अभाव में उन्होंने भी दम तोड़ दिया. देश के ़22 राज्यों से आए हज़ारों श्रद्धालु-पर्यटक लापता हो गए थे. केंद्र की पहल पर राज्य सरकार द्वारा उक्त लापता लोगों को मृत मानते हुए उनके मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने के निर्देश दिए गए थे. इस बावत उत्तराखंड सरकार ने सभी संबंधित राज्यों से अपने लापता लोगों के संबंध में विशेष जांच कराकर भेजने को कहा था, ताकि परिवारीजनों को उनके मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी किए जा सकें. इसके लिए 30 जून, 2013 तक उनके लापता होने की एफआईआर दर्ज कराए जाने के प्रमाण सहित अन्य कई बिंदु रखे गए थे. तय मानकों के अनुसार 22 राज्यों द्वारा भेजी गई जांच आख्या के आधार पर 2801 लापता लोगों के मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी कर दिए गए. बावजूद इसके अब भी 372 परिवार ऐसे हैं, जो अपने परिवारीजनों के मृत्यु प्रमाण-पत्र की बाट जोह रहे हैं, क्योंकि संबंधित राज्यों द्वारा जांच आख्या नहीं भेजी गई है. उत्तर प्रदेश के 193 परिवार आज भी अपने लापता परिवारीजनों के मृत्यु प्रमाण-पत्र नहीं पा सके हैं. इनमें 29 मामले ऐसे हैं, जिनकी जांच आख्या तय मानकों के अनुरूप नहीं है, जिसमें सबसे बड़ी वजह 30 जून, 2013 के बाद एफआईआर दर्ज होना है.
उत्तराखंड में भी 41 मामले ऐसे हैं, जिनमें मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने में दिक्कत आ रही है. इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग की ओर से मृत्यु प्रमाण-पत्र जारी करने के संबंध में नए दिशा-निर्देश के लिए मुख्य सचिव को पत्र लिखा गया है. संबंधित राज्यों को जिन बिंदुओं पर जांच करके भेजनी है, उनमें लापता शख्स के संबंध में परिवार द्वारा 30 जून, 2013 तक दर्ज कराई गई एफआईआर की प्रति, लापता शख्स के उत्तराखंड के प्रभावित क्षेत्रों में 16 जून से पूर्व यात्रा पर होने के साक्ष्य, अनुरक्षित डाटाबेस के आधार पर की गई जांच की पुष्टि का प्रमाण-पत्र आदि मूल राज्य के जांच अधिकारी द्वारा प्रभावित क्षेत्र के अधिकृत अधिकारी को सौंपने थे. उत्तर प्रदेश के जिन 29 मामलों में पेंच फंसा है, उनमें बिजनौर के चार, गाजीपुर के पांच, बरेली के तीन, वाराणसी के सात, लालगंज (रायबरेली) के दो और गोरखपुर, सहारनपुर, बाराबंकी, नोएडा, धामपुर, जौनपुर एवं इलाहाबाद के एक-एक मामले शामिल हैं.
मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए दर-दर भटक रहे लोग
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