इजरायल की ख़ु़फिया एजेंसी मोसाद की कहानी रहस्यों से भरी है. जितना यह रहस्यमयी है, इसके जासूसों की ज़िंदगी और कारगुज़ारी भी उतनी ही रहस्यों भरी है. यह एक ऐसे शख्स कहानी है, जिसके बारे में अंत तक रहस्य बना ही रहा. यह राज़ उसके मौत के बाद भी बरक़रार रहा कि वह इज़रायल का दुश्मन है या दोस्त. मोसाद का एजेंट है या मोहरा. उसकी ज़िंदगी से जुड़े कई पहलू हैं जो लोगों में और भी भ्रम पैदा करते हैं. जी हां, हम बात कर रहे अबू निदाल की. जिसके बारे में कई दिलचस्प और लोगों को अंधेरे में रखने वाली कहानियां मशहूर हैं. पहली बात तो यह कि 1948 में अरब-इज़रायल युद्ध में उसका पूरा परिवार नेस्तेनाबूत हो गया था. उसके बाद अबू की ज़िंदगी एक शरणार्थी शिविर में गुज़री. वहीं दूसरी ओर यह भी चर्चा रही कि वह अरब मां और यहूदी पिता की संतान था. भले ही उसकी पहचान दो हो, लेकिन उसके कारनामे काली करतूतों की पूरी दास्तां बयां करते हैं, जिससे यह अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं होगा कि अबू निदाल आख़िर कौन था?
1972 के म्यूनिख ओलंपिक की कड़वी यादें अभी भी लोगों की जेहन में ताजा है. इसकी ख़ौ़फनाक दास्तां भला कोई भूल भी कैसे सकता है? इस आतंकी वारदात में इज़रायल ने अपने 11 खिलाड़ियों को खो जो दिया था. खेलों के इतिहास में अब तक का यह सबसे बर्बर आतंकी हमला था. उसके बाद 1976 में एयर फ्रांस के जेट विमान का अपहरण हुआ, जिसमें अपहरणकर्ताओं ने यहूदी यात्रियों को छोड़कर सभी को आज़ाद कर दिया. उसके बाद इनका क़हर इन यहूदियों पर टूटा. हवाई जहाज के अपहरण की एक और वारदात हुई एथेंस में. साल था 1985. अपहरणकर्ताओं ने जहाज को अपने क़ब्ज़े में तो कर लिया लेकिन वह इस बात से अनजान थे कि जहाज में ईंधन बहुत ही कम है. नतीजतन, उन्हें माल्टा एयरबेस पर ईंधन भरने के लिए विमान को उतारना पड़ा. लेकिन माल्टा एयरबेस के अधिकारियों ने ईंधन भरने से मना कर दिया. फिर क्या था, आतंकियों की बंदूक़ें अब इन अधिकारियों से बातें करने लगीं. उन्होंने यात्रियों को भी नहीं बख्शा.
एथेंस की सरकार और आतंकियों के बीच के शह और मात का यह खेल 60 यात्रियों और दो आतंकियों की मौत के बाद ख़त्म हुआ. इस मिशन को ख़त्म होने में तक़रीबन 30 घंटे से भी अधिक का व़क्त लगा.
1985 में एकबार फिर ब्लैक सेप्टेंबर के आतंकियों ने मिस्र के एक समुद्री जहाज का अपहरण कर लिया. और इन तमाम वारदातों के पीछे जिस एक शख्स का दिमाग़ काम कर रहा था, वह शख्स कोई और नहीं ब्लैक सेप्टेंबर का सरगना और इसकी बुनियाद रखने वाला अबू निदाल ही था. इन सभी वारदातों में जो एक और समानता थी वह यह कि इन सभी आतंकियों को महफूज़ छोड़ दिया गया. सवाल उठता है, मोसाद ने इन आतंकियों के ख़िला़फ कुछ किया क्यों नहीं? जबकि उसके भी कई नागरिक इन वारदातों में मारे गए थे. एक बार फिर जवाब मिलता है कि वे मोसाद के एजेंट थे. सबसे दिलचस्प तो यह है कि म्यूनिख ओलंपिक के ग़ुनहगारों को मोसाद ने जिस तरह उनके अंजाम तक पहुंचाया यानी ब्लैक सेप्टेंबर के आतंकियों को मौत की नींद सुलाया, उसी मोसाद ने अबू निदाल पर हाथ डालने की ज़ुर्रत तक क्यों नहीं की? इशारा बिल्कुल सा़फ था, कहीं न कहीं अबू निदाल और मोसाद के तार जुड़े हुए थे.
अबू निदाल के मोसाद का मोहरा होने की जो सबसे बड़ी वजह नज़र आती है, वह है ख़ुद मोसाद की दहशत. मोसाद के दहशत से हर कोई वाक़ि़फ है. साथ ही इस बात से भी कि एक बार मोसाद जिस किसी को अपने निशाने पर ले लेता है, उसका एक ही अंजाम होता है. जी हां, उसका ख़ात्मा. मोसाद दुनिया से उसका नामोनिशान तक मिटा देता है. लेकिन अबू निदाल के मामले में ऐसा कुछ भी नहीं था.
अबू निदाल लगभग 30 वर्षों तक इस संगठन को चलाता रहा और इस दौरान उसने 900 से भी अधिक लोगों को मौत के घाट उतारे. मोसाद का एजेंट होने का शक़ उस पर इसलिए भी होता है कि यह कई फिलिस्तीनी नेताओं की हत्या की साज़िश में शामिल रहा है. साथ ही, अपहरण, बम-धमाके और हत्याओं के ज़रिए इसने अपना ख़ौ़फ क़ायम करने की कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. इसके जाल इराक, सीरिया, लीबिया और लेबनान तक फैले हुए थे. अबू निदाल की गतिविधियों की वजह से ही कई यूरोपीय देश उसे मोसाद का एजेंट मानते थे. ख़ु़फिया एजेंसियों पर पैनी नज़र रखने वाले मशहूर लेखक पैट्रिक सील की मानें तो अबू निदाल बिना किसी शक़ोशुबहा के मोसाद का एजेंट था, क्योंकि उसने जितने भी कारनामों को अंजाम दिया, उसका सबसे ज़्यादा ़फायदा यदि किसी को हुआ तो वह इज़रायल ही था. मध्य पूर्व एशिया में आतंकवादी संगठनों पर गहरी नज़र रखने वाले, यहां तक कि अबू निदाल के संगठन के ही कुछ सदस्य इस बात की तस्दीक करते हैं. उसने कई ऐसे फिलिस्तीनियों को मारा जो इज़रायल की आंखों की किरकिरी बने हुए थे. यह भी ध्यान देने वाली बात है कि उसने उन्हीं फिलिस्तीनियों को मौत के घाट उतारा जो इज़रायल के लिए सबसे ज़्यादा ख़तरा बने हुए थे.
यदि कहा जाए कि मोसाद अबू निदाल के ज़रिए अपने मंसूबों को अंजाम देता था तो कतई ग़लत नहीं होगा. बात 1986 की है. अबू निदाल के ब्लैक सेप्टेंबर ने जर्मनी के ला बेले डिस्को में बम प्लांट कर दिया. दरअसल, यह सारा कारनामा इज़रायली ख़ु़फिया एजेंसी मोसाद का था. इस दौरान मोसाद ने दो यूएस अधिकारियों को मार डाला, लेकिन इसका शक़ गया लीबिया पर और उसे इसका ख़ामियाज़ा भी भुगतना पड़ा. अमेरिका ने लीबिया पर हमला बोल दिया.
इस तरह देखा जाए तो मोसाद इज़रायल के हितों की रक्षा के लिए तरह-तरह के मिशन और कारनामों को अंजाम देता रहा है. यहां तक कि कई द़फा तो उसने अपने ही नागरिकों की हत्या करवाई ताकि इसका इल्ज़ाम फिलिस्तीन और दूसरे अरब देशों पर लगे और इज़रायल को उन पर हमला बोलने का एक मौक़ा मिल सके. मोसाद की इसी मिशन का एक पहलू अबू निदाल था, जिसने अमेरिका पर 9/11 के हमले के छह महीने बाद हमेशा-हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा बोल दिया. उसके साथ ही द़फन हो गया एक राज़. राज़ उसके असली पहचान की. आख़िर कौन था- अबू निदाल. ब्लैक सेप्टेंबर का सरगना या मोसाद का मोहरा!