तीन करोड़ जनसंख्या वाले आसाम के लोगों का अपनी जेब से एन आर सी के कागजातों को जमा करने के लिए 800 करोड़ खर्च हुआ 130 करोड़ का कितना होगा ? इसमे एन आर सी के दफ्तर,कर्मचारियो की तनखा,भत्ते,तथा उनके संसाधनों के खर्चों को नहीं जोडा गया है क्योंकि वो खर्चा सरकार जाहिर नहीं करना चाहती अन्यथा वह जोड़ेंगे तो हजारों करोड़ का घोटाला सामने आएगा ! इसलिए पहलेके एन आर सी के प्रमुख को सरकार को हटाना पड़ा !
मुख्य मुद्दा कुल मिला कर पूरे देश के एन आर सी,सी ए ए,और,अन्य प्रक्रियाएँ करनेमे कुल मिलाकर खर्चा कुछ लाख करोड़ रुपये का होनेका अनुमान है ! और सरकार कहती है कि हमारे पास पैसे नहीं हैं कई विभागों में तन्ख्वाह देने के लिए महीनों देरी हो रही है कई प्रोजेक्ट धनाभाव के कारण प्रलंबित पडे हैं ! रिझर्व बैंक के रिझर्व फंड को जोर जबरदस्ती ले लिया है सोना बेचना पड़ा है!कई प्रकार के मनमाने टैक्स वसूलनाजारी है लेकिन इसके बावजूद सरकार का दिवालियापन जारी है !
और अब बौद्धिक दिवालियापनके कारण एन आर सी जैसे मामले शुरू कर के पूरे देश में हिंसा-प्रतिहिंसा का तांडव जारी कर दिया है अबतक 15 से अधिक लोगों की जान ले ली है ! करोड़ों रुपये की सम्पत्तियों का नूकसान हो रहा है ! और ऊपर से गृह मंत्री पद पर बैठा हुआ अमित शाह कह रहे हैं कि जितना अधिक हिँसा का किचड फैलेगा उतनाही कमल खिलेगा !
मतलब कमल खिलाने के लिए पूरे देश में हिँसा का तांडव क्या यह सरकार की शहसे किया जा रहा है ? जैसा गोधरा कांड के बाद 56 अधजली लाशोका जुलुस निकाल कर पूरे गुजरातमे आजसे 17 साल पहले दंगेकी राजनीति करने के बाद राजनीतिक मुकाम हासिल किया और आज यहां तक पहुंचे हैं ! क्या ताऊम्र यही तरीका अपनाया जायेगा ?
क्या हमारे देश में यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण हैं या लोगों के आम जीवन से जुड़ी महंगाई,बेरोजगारी,किसान,गरीबी और आत्महत्या,आदिवासियों ,और,दलित,महिलाओं के प्रति होने वाले अन्याय,स्वास्थ,शिक्षा,और विकास जिसका झूठा सपना दिखाकर नरेंद्र मोदी सपका साथ सबका विकास,विदेश की बैंको में जमा काले धन को वापस लाने की बात और हर एक के अकाऊंट में 15 लाख रुपये जमा कराने के वादे के साथ ,हर साल दो करोड़ नये रोजगार देने के वादे देकर 2014 में सरकार बनाने का दावा किया था लेकिन इसमेसे कोई एक भी बात पूरी की है ?
और इसके अलावा नोटबंदी,जी एस टि,जैसे अजीबोगरीब फैसले लेने के बाद देश के सामने क्या आया?करोडो छोटे-छोटे करखनोको बंद करके उल्टा करोडो लोगो के रोजगार चले गए ! किसान आत्महत्या रोकनेकी कोई कोशिश नहीं की और आत्महत्या का दौर जारी है ! स्वास्थके क्षेत्रों में आम आदमी अपना ईलाज कर नहीं सकता क्योंकि प्रयावेट अस्पतालो का खर्चा सामान्य आदमीके बसका नही है ! वही हाल शिक्षाके क्षेत्र का जिस तरह बेतरतिब फिस बढा रहे हैं उससे सामान्य परिवारकी लड़की-लड़का पढ नही सकता !
और सरकार दोनों क्षेत्रों में प्रयावेट मास्टर्स को प्रोहत्सान देकर स्वास्थ और शिक्षासे पल्ला झाड़ कर अपनी जिम्मेदारी टालना चाहते हैं ! और वही हाल पब्लिक सेक्टर में चल रहे उद्दोग रेल,दूर संचार,रक्षा,हवाईजहाज और जहाज रानी विभागों में बडेबडे उद्दमीयोके हाथ में आवंने पावने दामोमे बेच रहे हैं काण्डला पोर्ट भारतीय पोर्टो मे पहला कदम है जो गौतम अदानीको सौप दिया गया है वैसे ही भारत की आधिसेभी ज्यादा बिजली अदानीको बनानेका काम दे दिया है !
जल,जंगल और जमीन और सभी तरह के संसाधनो को प्रायवेट क्षेत्रों के हवाले कर दिया गया है ! करोड़ों लोग विस्थापन के शिकार होकर दर दर की ठोकरे खा रहे हैं ! जिसमे सबसे बड़ी संख्या मे दलित और आदिवासी है ! लगभग दस करोड़ लोग विस्थापन के शिकार हुए हैं ! जो कई देशों की आबादीसे ज्यादा है !
और एन आर सी जैसे मामूली बात को लेकर पूरे देश को बेवजह की बहसबाजी में फंसा दिया है ! जिसकी कुल संख्या सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ तिस बत्तिस हजार ! ताकी देश के महत्वपूर्ण मुद्दों की ओर ध्यान भटकाने की साजिश के तहत मन्दीर-मस्जिद ,370,तलाक,गाय,पाकिस्तान और अब तथाकथित नागरिकता का सवाल जिसका कोई आधार नहीं है ! आसाम की बात अलग थी उसे ठीक धंगसे लागु करने का छोडकर पुरे देश में लागू करने का फैसला जानबूझ कर लिया है
और इसलिए एन आर सी का सबसे बडा विरोध उसी आसामसे हो रहा है ! उस 1979 के अन्दोलन को शुरू करने वाले खुद एन आर सी के खिलाफ हो गये हैं लेकिन उसेभि गुडगोबर करके पुरे भारत भर में अफरा तफरी का माहौल बना कर एक भावनाएं भड़काने वाली राजनिती करने वाले को भारत जलाओ पार्टी लालूप्रसाद यादव की भाषा में कहें तो क्या गलत है ?
और ऊपर से कह रहे हैं की जितना ज्यादा हिँसा का किचड फैलेगा उतनाही कमल खिलेगा ! तो भाई साहब आप के कमल के लिए पूरे देश में हिँसा फैलानेके लिये आप जानबूझ कर यह सब कर रहे हो तो आप होशमे आओ हम गाँधी के 150 वीं सालगिरह के अवसर पर पूरा भारत आपके नापाक इरादों के खिलाफ आवाज बुलंद करने के लिए प्रतिबद्ध होने का एलान करते हुए आपको कह रहे हैं की आप जो भी सोच रहे हैं वह नहीं होने देंगे और अब तो देश के बाहर भी लोग विरोध करने लगे हैं ! क्यौंकि महात्मा गाँधी जी के राजनीति में आने का मुख्य कारण इसी प्रकार के दक्षिण अफ्रीका के काले कानून का विरोध करने से ही शुरू हुआ और 1906 में सत्याग्रह या लोहिया की भाषा में सिविल नफरनामी का जन्म हुआ था ! जो आज भी प्रासंगिक हैं महात्मा गाँधी की 150वीं जयंती समारोह मनानेकी इससे अच्छी बात भला क्या हो सकती है ?
मन्दीर-मस्जिद के बाद अब नागरिकताका जैसे बँगला देश बननेके समय 1971 के जैसे करोडो विदेश से लोग आ गए हो ! छुटपुट संख्या सब मिलकर कुछ हजार भी नहीं होगी 135 करोड़ की आबादी में घुसपैठिया का राग अलाप रहे हैं ! असली बात 1925 को स्थापित संघ परिवार का मुस्लिम द्वेषमे अमित शाह और नरेंद्र मोदी बचपनसे पले बढे होनेके कारण यह लोग भागलपुर 1989,गुजरात 2002 जैसे दंगे करने के बाद भी देखा है की 30-35 करोड आबादीको नही मार सकते तो !
31 अगस्त 2019 के सर्वोच्च न्यायालय के आसाम नागरिकता को लेकर आये फैसले से अमित शाह के खुरापाति दिमागमे पुरे देश में एन आर सी और उसमेभी बेशर्म होकर मुसलमानों को लेकर खुलकर विरोध करने वाली मानसिकता संघ परिवार के अजेंडा को अमलमे लाने के सिवा कुछ नहीं है !
लेकिन सबसे बड़ी समस्या धारा 4 के तहत किसी भी तरह के भेदभाव धर्म,भाषा,लिन्ग,जाति और संप्रदाय के आधार पर भारतीय संविधान इजाजत नहीं देता है और 14-15 वी धारा में तो और साफ तौर से लिखा है इसलिए सर्वोच्च न्यायालय के सामने 70 याचिकाएं दायर की गई है लेकिन कश्मिरके मामले में जैसा प्रलन्बीत करके रखा है वैसे ही इसका भी हो रहा है अब फरवरी तक टाल दिया है ! क्यौंकि संविधानके अनुसारको सर्वोच्य न्यायालय अनदेखी नहीं कर सकता है !
देश को बेच रहे हैं लेकिन लोग अपने अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं ! एक तरह से देखा जाए तो आज की तारीख में पूरा देश जल रहा है और अमित शाह गृह मंत्रालय का प्रभार संभालने वाले होकर त्रिपुरा में अभी हाल ही में कहा कि जितना हिंसाका किचड देशमे फैलेगा उतनाही कमल खिलेगा ! यह बयान दे रहे हैं ! यह गृह मंत्री हैं या गृहयुद्घ मंत्रि है ? पूरे देश में युद्धरत स्तिथि बनाकरही कमल खिलाना चाहते हैं हाँ भई कमल की यात्रा पर गौर करें तो पता चलेगा कि अमित शाह जाने अनजानेमे सही बोल दिया क्योंकि राम मन्दिर अन्दोलन को लेकर अभितक बीजेपी का पूरा सफ़र को देखकर लगता है कि कमल की फसल हिंसा-प्रतिहिंसा फैला कर ही लह लहाई है लेकिन हर बात की सीमा होती हैं और वह अब बिलकुल पार होने के कगार पर पहुँच चुकी है ! अब कमल खिलेगा या मुरझानेके कगारपर आ गया यह बहुत जल्द से जल्द पता चल जाएगा ! 1975 में सिंहासन खाली करो कि जनता आती हैं वाला नारा अमित शाह को शायद ना मालूम हो पर प्रधान-मंत्री नरेंद्र मोदीजीको अच्छी तरह जानते हैं इसलिए इतिहास में बार बार झाकने वालों को हम अलगसे क्या कहेंगे ? समझदार को इशारा काफी है !
याने एक गृह मंत्री ना होकर पार्टी अध्यक्ष के रूप में देखा जाता है ! तो अविलंब गृह मंत्रालय से हटाना चाहिए क्योंकि यह अपने पार्टी को बढ़ावा देने के लिए पुरे देश को हिँसा की आगमे डालकर अपनी पार्टी के कमल खिलाने वाला विकृत मानसिकता का परिचय दिया है लेकिन हमारे देश में विभिन्न विरोधी दलों को क्या हो गया है पता नहीं कोई टिप्पणी नहीं कर रहा है !
बहुत हैरानी की बात है ! लेकिन देश की जनता इस बात का प्रतिकार करना अच्छी तरह जानते हैं और कर भी रहे है ! अब तक 15 से अधिक लोगों की जान ले ली है और शेकडौ की संख्या में जख्मी होने के बावजूद लोगों का जज्बों को मानना पड़ेगा क्योंकि डॉ राम मनोहर लोहिया की भाषा में जिन्दा कौमे पाँच साल इन्तजार नहीं करती !
जिंदा कौमे पांच साल इंतजार नहीं करती नारा बुलंद करने वाले डाक्टर राम मनोहर लोहिया ने ही आजसे पचहत्तर साल पहले गोवा की आजादी का बिगुल फुका था ! लेकिन प्रधानमंत्री 18 दिसंबर के दिन गोवा के आजादी के साठ साल के कार्यक्रम में जाकर जो अज्ञानता का परिचय दिया वह उनके हमेशा की तरह ही गलत बयानों का भौंडा प्रदर्शन था ! डॉ राम मनोहर लोहिया के नाम का सिर्फ़ एक बार जल्दबाजी में उल्लेख किया जो कि डॉ लोहियाजी को गोवा के लोग गोवा के आजादी के पिता मानते हैं ! और प्रधानमंत्री उत्तर भारत में डाॅ लोहियाजी को राजनीतिक रूप से खुब भुनाने की कोशिश करते रहे हैं ! नरेंद्र मोदी जी कब अपने आप को १३५ करोड़ जनसंख्या के प्रधानमंत्री मानेंगे ?
बारह महीने चौबीस घंटे सिर्फ चुनावी मोडपर रहते हैं और किसी भी कार्यक्रम में सिर्फ अपने सांप्रदायिक और जातीयता के दलदल में फंसे दलगत राजनीतिक मानसिकता का परिचय देते हुए बोलते रहते हैं ! और वह भी इतिहास को मोड़ – तोडकर !
किसानों के बिल को वापस लेने की मजबूरी शतप्रतिशत राजनीतिक मजबुरी के कारण यह कदम उठाया है ! लेकिन आने वाले उत्तर प्रदेश के और २०२४ के लोकसभा चुनाव के बाद वह फिर से अपने निर्णय को वापस लेने की पक्की संभावना है ! क्योंकि यह उनके पुंजिपतीयो के सरकार होने की मजबूरी है ! वह लाख गरीबी के खुद होने से लेकर देश के गरीबों को लुभाने के लिए बढ़चढ़कर बोलने मे माहिर हैं ! लेकिन उन्होंने सत्ता में आने के बाद शायद ही कोई फैसला गरीब के पक्ष में लिया हो ! वह धन्नासेठों के ही प्रधानमंत्री हैं !
डॉ सुरेश खैरनार २२ दिसंबर २०२१, नागपुर