क्या वाकई हमारे देश में इस समय एंटी इंकमबैंसी है या यह हमारी नजर और समझ का फेर है? इंडिया टुडे कांक्लेव में जिस किसी ने मोदी को सुना होगा उसने दो चीजों पर गौर जरूर किया होगा। एक काला टीका और 75 दिनों में सरकार की उपलब्धियों की लिस्ट। यह भी समझ आया होगा कि हर जगह के उद्घाटन और शुभारंभ के लिए सिर्फ मोदी ही क्यों जाते हैं ? पता नहीं कि इंडिया टुडे कांक्लेव में टेलीप्राम्पटर था या नहीं, यदि नहीं था तो आप कल्पना कर सकते हैं कि जब मध्य वर्ग यह भाषण सुनेगा तो तय मानिए आप नहीं कह सकेंगे कि अगर एंटी इंकमबैंसी है भी तो वह कुछ कर पाएगी । जब कोई इसी को अपना धर्म बना ले कि ‘हाथी अपनी मस्त चाल चलता है, कुत्ते तो भौंकते ही रहते हैं’ तो आप क्या कीजिएगा। पिछले नौ सालों से हम यही देख रहे हैं। हर बार हमें एंटी इंकमबैंसी नजर आती है और हर बार चुनाव नतीजे उसे बुरी तरह धो डालते हैं। इस बार हमें लग रहा है कि मोदी अडानी के मुद्दे पर फंस गए हैं। पर सच में ऐसा है क्या ? इस देश की जनता के बारे में सोचिए। यह वह जनता है कि जिसे जैसे हांक दो , बस हांकने का हुनर आना चाहिए । इंदिरा गांधी ने कहा ‘वो कहते हैं इंदिरा हटाओ मैं कहती हूं गरीबी हटाओ’ । जनता बह गयी। मोदी ने जनता की नब्ज को दूसरी तरह से पकड़ा। देश की जनता के लिए खेत में अन्न उपजाता किसान महत्वपूर्ण है या देश की सुरक्षा की खातिर सरहद पर खड़ा जवान । उन्होंने राष्ट्रवाद का बिगुल बजाया और जवान को अपना ही प्रतीक चिन्ह बना लिया। वे हर दीवाली पर सियाचिन जाने लगे । उन्होंने शास्त्री जी के नारे ‘जय जवान जय किसान’ को किस खूबसूरती से तिरोहित कर दिया कोई जान भी नहीं पाया। मोदी के दिमाग पर इंडिया टुडे के अरुण पुरी ने प्यार भरा कटाक्ष किया कि आपने हम मीडिया वालों के साथ अन्याय किया है कि पहले हमें पूर्व में सब कुछ पता चल जाता था पर अब तो कुछ पता नहीं चल पाता कि कब मंत्रिमंडल का विस्तार होने वाला है, कौन राष्ट्रपति बनने वाला है, कौन कहां का राज्यपाल बन रहा है। कुछ पता नहीं चलता। मोदी की मंद मंद मुस्कुराहट देखने वाली थी , जिसमें शायद गुमान भी होगा । तो हमारे कहने का आशय यह है कि हमें भ्रमों की दुनिया से बाहर निकलना चाहिए। राहुल गांधी के साथ सरकार जो कुछ कर रही है , उस पर सरकार के लिए हम कह सकते हैं ‘विनाश काले विपरीत बुद्धि’ । पर यह तो समय ही बतलाएगा। मोदी के पास सबसे बड़ी तोप उनका प्रचार तंत्र है । उनके आईटी सेल का भी आप किसी हद तक मुकाबला कर सकते हैं पर रोजाना शाम को चलने वाले मुख्य मीडिया के चैनलों का मुकाबला करने का कोई उपक्रम आपके पास नहीं है। आपके डिजिटल चैनल सिर्फ आपकी सोच के लोगों तक ही अपनी पहुंच बना रहे हैं। मोदी को पसंद करने वाला मध्य वर्ग आपको देखना भी नहीं चाहता बल्कि इस कदर चिढ़ता है जैसे आप ही हैं जो मोदी के बीच का रोड़ा हैं और आपको बुरी तरह कुचल डालना चाहिए। इसी के आलोक में मोदी जानते हैं कि ‘स्प्रिंग’ को जितना दबाओगे वह उतना ही ऊपर उछलेगा। अगर कहा जाए कि हमारे डिजिटल चैनल लगभग बेअसर हो रहे हैं और मायूस करने वाले ज्यादा हैं तो क्या वे गलत होगा। हर चैनल पर एक ही सोच के एक से लोग बैठ कर क्या करते हैं ये तो आप सत्यजीत राय की ‘शतरंज के खिलाड़ी’ फिल्म के दोनों नायकों से सीख सकते हैं। एक तरफ उनकी शतरंज और दूसरी तरफ दुश्मन की बढ़ती फौजें। तो आप कहिए कि आज की राजनीति ‘पॉपकार्न’ जैसी चटखारेदार है लेकिन भीतर ही भीतर माहौल में मायूसी है जो आपको पॉपकॉर्न राजनीति में नजर नहीं आती। राहुल गांधी को संसद में बोलने नहीं दिया जा रहा। इसने सब तरफ सनसनी फैला दी है आगे क्या होगा। सब आश्वस्त हो रहे हैं अडानी का मुद्दा मोदी को ले डूबेगा। मोदी अब फंस गए हैं। सब कुछ चटखारेदार हो रहा है।‌ लेकिन इतना जान लीजिए कि लोगों के लिए शानदार सड़कें, शानदार हाईवे, शानदार पुल वगैरह वगैरह बहुत मायने रखते हैं । इतना आप चाहें न चाहें और मोदी के कितने ही विरोधी हों ऐसी सड़कों और हाईवे से गुजरते हुए आप भी अभिभूत नहीं रह सकते। आगे आप समझ सकते हैं।
कभी कभी आप सब कुछ जानते हैं फिर भी वही चीजें और बातें जब कोई कहानी के रूप में आपको सुनाता है तो अच्छा लगता है। ‘सत्य हिंदी’ के किताब वाले अंक में इस बार पूर्व एंबैसेडर के सी सिंह की किताब पर चर्चा हुई। उनसे चर्चा करने वाले रहे आशुतोष और आलोक जोशी। सिंह काफी दिलचस्प लगे । उन्होंने भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और राजीव गांधी के बीच के मनमुटाव (कहिए दुश्मनी) और उस समय के राजनीतिक हालात पर यह पुस्तक लिखी । उनकी पुस्तक में लिखी गई बातों से आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि राजीव गांधी एक लल्लू प्रधानमंत्री थे जो मात्र चार छः विश्वसनीय लोगों के बल पर ही देश को चलाना चाहते थे। कदम कदम पर जैल सिंह का अपमान करना उनका शगल था । इसके बरक्स उन्होंने इंदिरा गांधी और तत्कालीन राष्ट्रपति के बीच के मनमुटाव को बताया कि इसके बावजूद कभी इंदिरा ने उनका सार्वजनिक अपमान नहीं किया बल्कि सम्मान ही किया । सिंह ने एक और महत्वपूर्ण बात बताई जिसे याद रखा जाना चाहिए कि हर प्रधानमंत्री संविधान के पालन की शपथ लेता है जबकि हर राष्ट्रपति संविधान की सुरक्षा की शपथ लेता है। …. इसी तरह ‘लल्लनटॉप’ पर सोनिया गांधी के निर्माण काल और उनके दौर की चर्चा हुई जिसमें रशीद किदवई, रेणु मित्तल और राजदीप सरदेसाई ने किस्से कोते सुनाए। दिलचस्प था । इसमें सोनिया और राहुल के बीच का सबसे बड़ा फर्क यह दिखा कि सोनिया जहां यह मान कर चलती थीं कि उन्हें कुछ नहीं मालूम है और सब कुछ समझना है वहीं राहुल मान कर चलते हैं कि उन्हें सब कुछ आता है कुछ सीखने की जरूरत नहीं है । दिलचस्प था यह जानना कि सोनिया ने कैसे स्वयं का निर्माण किया और कैसे उनकी सीताराम केसरी से ठनी और कैसे केसरी को ठिकाने लगाया गया। खैर।
अभय दुबे शो में इस बार वरिष्ठ पत्रकार वेद प्रताप वैदिक के आकस्मिक दुखद देहांत पर कुछ चर्चा हुई । अभय जी और संतोष भारतीय ने उनसे जुड़े किस्से सुनाते हुए उन्हें याद किया। अभय जी ने वैदिक के लेखन में छोटे छोटे वाक्यों के प्रयोग का दिलचस्प उदाहरण दिया। यह शैली वास्तव में किसी भी लेखन को आकर्षक और रोचक बनाती है । …. इन दिनों की राजनीति पर और फिलहाल राहुल गांधी के प्रकरण पर अभय जी का मानना था कि यह सरकार यह साबित करने पर माद्दा है कि राहुल गांधी राष्ट्रद्रोही हैं । उन्होंने विदेश में जाकर देश का अपमान किया है। इस पर यह अर्थ तो हम यह निकाल ही सकते हैं कि इस बार पुलवामा की जगह राहुल गांधी मिल गये। हा हा .. बहरहाल यह चर्चा लंबी है। और फिलहाल राजनीति के केंद्र में यही है, कितने दिन रहेगी यह देखना होगा।
विजय विद्रोही जब रोजाना कहते हैं, दोस्तो आठ बजे हैं और मैं लेकर हाजिर हूं आज के अखबार तो कई लोग चौंकते हैं। दरअसल कई लोग नौ दस या ग्यारह बजे किसी भी समय यह प्रोग्राम देखते हैं तो आठ बजे सुनकर चौंक जाते हैं। विद्रोही जी अपनी जगह ठीक हैं। पर अनुरोध किया गया है कि कि यदि आठ बजे वाली बात हटा दें तो अच्छा हो । जैसा वे चाहें । उनकी प्रस्तुति से लोग प्रसन्न हैं। समाचार बताते बताते हंस पड़ना भी लोगों को पसंद आता है।
मोदी ने इंडिया टुडे कांक्लेव में ‘गोल्डन मोमेंट’ पर भाषण दिया था। जी 20 सम्मेलन ग्लोबल लीडर और ग्लोबल इंडिया का सम्मेलन होगा । मोदी को यह देश ग्लोबल लीडर साबित करना चाहेगा । हम देखेंगे 2024 के लोकसभा चुनावों की पूर्व संध्या पर यह देश किस करवट बैठता है। मोदी के खिलाफ एंटी इंकमबैंसी जीतती है या मोदी की वाहवाही विरोधियों का बाजा बजाती है । कुल जमात सवा साल बाकी है।

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