वसिन्द्र मिश्रा
सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में दुनिया ने कई तानाशाह देखे हैं … खासकर लैटिन अमेरिकी, अफ्रीकी और मिडिल ईस्ट के देशों में ऐसी शख्सियतों ने सत्ता संभाली जिन्होंने लगभग एक जैसी नीतियां बनाईं … लगभग एक जैसे नारे दिए और इन सभी देशों का हाल लगभग एक जैसा ही हुआ … ज्यादातर देशों की अर्थव्यवस्था खोखली हो गई और आम लोगों का जीवन तहस नहस हो गया…..ऐसा ही एक नाम था मेनगिस्तु हाइले मरियम का … इथियोपिया फर्स्ट जैसे नारों के साथ सत्ता संभालने वाले मेनगिस्तो ना सिर्फ इथियोपिया बल्कि पूरे अफ्रीका के इतिहास में सबसे क्रूर शासकों में एक साबित हुआ … इथियोपिया के लिए ये एक ऐसा शासक साबित हुआ जिस पर नरसंहार के आरोप में मुकदमा चला … और सज़ा-ए-मौत का फरमान सुनाया गया …. मेनगिस्तु हाइले मरियम का नाम भले ही आज आम लोग नहीं जानते हों लेकिन इथियोपिया में लोग इसे कभी नहीं भुला पाएंगे ..
1937 में जन्मा मेनगिस्तु हाइले मरियम ने बहुत कम उम्र में अपनी मां को खो दिया था .. जिसके बाद अपने दो भाई बहनों के मेनगिस्तु का बचपन अपनी नानी के साथ बीता .. मेनगिस्तु के पिता आर्मी में थे और बहुत कम उम्र में मेनगिस्तु ने भी आर्मी ज्वाइन कर ली थी… जहां जनरल अमन एन्डम की नजर में आने के बाद मेनगिस्तु सार्जेन्ट बना दिया गया … मेनगिस्तु ने इथियोपिया के दो सबसे अच्छे मिलिट्री स्कूलों में शुमार होलेता मिलिट्री से ग्रेजुएशन किया था … सेना में अपने करियर की शुरुआत में जनरल अमन एन्डम के तौर पर मेनगिस्तु को गॉडफादर मिल गया था … 1964 में मेनगिस्तु को अमेरिका के इलियोनाइस स्टेट भेज दिया गया जहाँ से उसने मिलिट्री की एडवांस ट्रेनिंग ली थी ..इसके बाद 1970 तक मेनगिस्तु कई बार ट्रेनिंग के लिए अमेरिका आता जाता रहा … कहते हैं इस दौरान मेनगिस्तु हाइल मरियम को नस्लीय भेदभाव का शिकार होना पड़ा था .. इसी भेदभाव की वजह से उसकी मानसिकता अमेरिका के खिलाफ होती जा रही थी … मेनगिस्तु पर इसका असर हुआ था कि उसने इसे इथियोपिया में अमीर गरीब के भेदभाव से भी जोड़ा .. कहते हैं सत्ता संभालते ही उसने ये बात साफ कर दी थी कि इथियोपिया के कुलीन वर्ग के लोग काली रंगत और मोटे होंठ वाले लोगों को अपना दास समझते हैं… ऐसे लोगों को बहुत जल्द सबक सिखाया जाएगा …
मेनगिस्तु एक तरफ आर्मी में पावरफुल होता जा रहा था दूसरी तरफ देश में राजशाही के खिलाफ माहौल बनता जा रहा था .. इथियोपिया में सूखा पड़ा था …. अनाज की कमी हो गई थी .. भुखमरी बढ़ती जा रही थी… बादशाह हेली सेलसई की सरकार से जनता का भरोसा टूट चुका था … इथियोपिया में एक क्रांति का माहौल तैयार हो चुका था … उस वक्त कोई नहीं जानता था कि आने वाले वक्त मे क्या होने वाला है .,..
1974 में इथियोपिया में हुए तख्तापलट में में बादशाह हेली सेलसई को सत्ता से उखाड़ फेंका गया … और देश में अतनाफु अबाते नाम के एक सैनिक की अगुआई में सेना की सरकार बन गई … इथियोपिया की सेना को डर्ग कहा जाता था … 1975 में मेनगिस्तु अतनाफु अबाते की तरह सेना यानि डर्ग का डिप्टी चेयरमैन बन गया था हालांकि सेना में जनरल रैंक के कई लोग मेनगिस्तु को परेशानी खड़ा करने वाले सैनिक के तौर पर जानते थे… जो अनुशासन में रहना पसंद नहीं करता था … 1975 में इथियोपिया के सम्राट रहे हेली सेलसई की हत्या कर दी गई … कहा जाता है कि मेनगिस्तु ने ही तकिए से उनका दम घोंटकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया था …
मेनगिस्तु पर सम्राट रहे हेली सेलसई की हत्या के आरोप लगत रहे लेकिन मेनगिस्तु ने कभी भी इस अपराध को confess नहीं किया… उस वक्त इथियोपिया में कई तरह के समूह बने हुए थे … सब अपने अपने स्तर पर सम्राट हेली सेलसई के खिलाफ काम करते रहे थे लेकिन सत्ता डर्ग यानि मिलिट्री के हाथ में आ गई थी … डर्ग को सोवियत संघ का समर्थन मिला हुआ था लिहाजा इथियोपिया की सत्ता पर अब कम्युनिस्ट काबिज हो चुके थे .. डर्ग के सत्ता में आते ही मेनगिस्तु ने विरोधियों के खिलाफ काम करना शुरू किया … कहते हैं 1974 में मेनगिस्तु ने सम्राट के शासनकाल में अधिकारी रहे 61 लोगों की हत्या करा दी थी …इतना ही नहीं आने वाले सालों में मेनगिस्तु ने डर्ग के सहारे कई अधिकारियों और विरोधियों के मौत के घाट उतरवाया …. डर्ग के सैनिकों ने बाद में इस नरसंहार का खुलासा करते वक्त कहा था कि मेनगिस्तु हाइले मरियम ने पूरी प्लानिंग के साथ ये हत्याएं कराईं थीं . हालांकि मेनगिस्तु ने कभी भी ये कबूल नहीं किया..
मेनगिस्तु अभी तक डर्ग में नंबर 2 की तरह काम कर रहा था लेकिन इथियोपिया में सिविल वॉर जैसे हालात थे … एक तरफ थी इथियोपिया की नई बनी मिलिट्री जनता कम्युनिस्ट गवर्नमेंट तो दूसरी तरफ थे सरकार विरोधी विद्रोही … 1977 में ब्रिगेडियर रहे तफारी बंती की हत्या हो गई थी .. इस हत्या के बाद में डर्ग में आपस में संघर्ष हुआ … एक तरफ था मेनगिस्तु तो दूसरी तरफ था अब तक उसका करीबी अनताफु अबाते … ये दोनों ही डिप्टी चेयरमैन रहे थे … इस लड़ाई में मेनगिस्तु जीत गया जिसका नतीजा ये हुआ कि अनताफु अबाते और उसके वफादार रहे 40 लोगों की हत्या करा दी गई … अब इथियोपिया की मिलिट्री डर्ग का सबसे पावरफुल शख्स बन गया मेनगिस्तु हाइले मरियम … इसके बाद इथियोपिया में रेड टेरर का जन्म हुआ …
सिविल वॉर से जूझ रहे इथियोपिया में एरित्रिया विद्रोहियों से मेनगिस्तु को सबसे ज्यादा खतरा था… मेनगिस्तु ने डर्ग की मदद से के शिबिर (Qey Shibir) यानि रेड टेरर अभियान की शुरुआत की … इसका एक ही मकसद था विद्रोह करने वालों को हर मुमकिन तरीके से खत्म कर देना …ये भीषण लड़ाई मेनगिस्तु के देश छोड़कर भागने से पहले खत्म नहीं होने वाली थी| इथियोपिया से मोनार्की खत्म करने और लोकतंत्र की स्थापना करने जैसे इरादों के साथ 1972 में इथियोपियन पीपल्स रिवॉल्यूशनरी पार्टी का गठन किया गया था ….. सम्राट हेली सेलसई को सत्ता से हटाने में इस पार्टी की अहम भूमिका रही थी लेकिन सत्ता पर काबिज होने का इपीआरपी (EPRP) का सपना पूरा नहीं हो पाया था …. देश की सरकार मेनगिस्तु की अगुआई में डर्ग चला रही थी … EPRP ने देश के ग्रामीण इलाकों में गुरिल्ला वॉर के जरिए सरकार का विरोध जारी रखा … इस पर काबू पाने के लिए मेनगिस्तु ने रेड टेरर अभियान की शुरुआत की…. मेनगिस्तु को समाजवादी विचारधारा से जुड़े ऑल इथियोपिया सोशलिस्ट मूवमेंट का सपोर्ट हासिल हो गया था … 1976 आते आते देश में सिविल वॉर चरम पर था.. मेनगिस्तु और उसके समर्थकों को खत्म करने के लिए EPRP ने अहम लोगों, इमारतों को निशाना बनाना शुरू कर दिया … इसे व्हाइट टेरर का नाम दिया गया .. खिसियाए मेनगिस्तु ने एक पब्लिक स्पीच दी जिसमें उसने सबके सामने चिल्ला कर कहा …. Death to counterrevolutionaries! Death to the EPRP! य़ानि क्रांति के विरोध में अभियान चलाने वाले लोगों को मौत दो … EPRP को मौत दो … कहते हैं इसके साथ ही मेनगिस्तु ने एक के बाद एक तीन बोतलें ज़मीन पर पटक कर तोड़ दी थीं जिसमें लाल रंग भरा हुआ था .. इसके बाद अगले दो साल में इथियोपिया की सड़कों पर लाशें मिलती रहीं जो उसके विरोधियों की थीं …कहते हैं इन हत्याओं के पीछे वार्ड लेवल पर प्रशासन चलाने वाले मेनगिस्तु के लोग थे … इन्होंने ना सिर्फ हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतारा बल्कि इनका शव देने के लिए परिजनों से टैक्स भी वसूला जिसे नाम दिया गया था दी वेस्टेड बुलेट (the wasted bullet) .. 1977 में स्वीडन की सेव दी चिल्ड्रेन संस्था के मुताबिक इथियोपिया में उस दौरान 1000 से ज्यादा बच्चे भी मारे गए थे जिनके शवों को राजधानी अदीस अबाबा की सड़कों पर फेंक दिया गया था .. एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के मुताबिक इथियोपिया में मेनगिस्तु के चलाए रेड टेरर अभियान में 2 साल के अंदर 50 हज़ार से ज्यादा लोगों की हत्या कर दी गई थी |
70 के दशक में मार्क्सवाद और लेनिनवाद काफी लोकप्रिय हो चुका था … ज्यादातर देशों में राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी पार्टियां इनकी नीतियों के मुताबिक काम कर रही थी .. इथियोपिया में इसकी शुरुआत मेनगिस्तु हाइले मरियम ने की थी … सत्ता में आते ही उसने लैंड रिफॉर्म शुरू कर दिया … ग्रामीण इलाकों की जमीनों पर भी सरकारी कब्जा हो गया … देश विदेश की सारी कंपनियों पर भी सरकारी नियंत्रण हो गया …. यहां तक कि सरकार ने निजी व्यवसाय, बैंक, इंश्योरेंस कंपनियों, रीटेल बिजनेस पर भी सरकार ने कब्जा कर लिया … सरकार ने ये सारी संपत्ति ब्यूरोक्रेसी के नियंत्रण में दे दी.. एग्रीकल्चर प्रॉडक्ट भी अब फ्री मार्केट का हिस्सा नहीं रह गए थे …इनकी खरीद बिक्री का जिम्मा ने सरकार ने अपने नियंत्रण में कर लिया था ..सिविल वॉर, अनियंत्रित आर्थिक नीतियों ने 1983 में इथियोपिया में अकाल को जन्म दिया … ये अकाल इस सदी का सबसे भीषण अकाल साबित हुआ … लोग भूखों मरने लगे … दो वक्त के खाने के लिए जंग छिड़ गई … नतीजा ये हुआ 1985 तक इस अकाल ने लगभग 12 लाख लोगों की जान ले ली… चार लाख लोगों ने देश छोड़ दिया .. करीब 25 लाख लोग अपने ही देश में बेघर हो गए और करीब 2 लाख बच्चे अनाथ हो गए …
1984 में मेनगिस्तु की अगुआई में डर्ग ने वर्कर्स पार्टी ऑफ इथियोपिया बनाई थी … जिसके जरिए अब वो देश में सरकार चलाने वाला था … मेनगिस्तु इसका जनरल सेक्रेट्री बन गया… 1985 में इसने देश में सोवियत से प्रभावित नया संविधान लागू कर दिया और पार्टी का नाम बदलकर पीपुल्स डेमोक्रैटिक रिपब्लिक ऑफ इथियोपिया रखा .. मेनगिस्तु पार्टी प्रेसीडेंट बन चुका था और कहने को देश में लोकतांत्रिक सरकार थी … लेकिन मेनगिस्तु की तानाशाही का बहुत जल्द अंत होने वाला था
मेनगिस्तु को सोवियत का समर्थन मिला हुआ था .. उसने 1977 से 1984 के बीच 7 बार सोवियत संघ की यात्रा की थी … वो क्यूबा के तानाशाह फिदेल कास्त्रो और जिम्बाब्वे के तानाशाह रॉबर्ट मुगाबे से बहुत प्रभावित था … डेमोक्रैटिक सरकार के गठन के बावजूद उसने कार्यपालिका और विधायिका की तमाम शक्तियां अपने पास रखी थीं लेकिन ये ज्यादा दिन तक नहीं चलने वाला था
1989 में एरित्रियन वॉर ऑफ इनडिपेंडेंस शुरू हो गया… इस युद्ध में मेनगिस्तु की सेना हार गई .. 15 हज़ार लोग मारे गए … एक साल बाद एक और युद्ध हुआ इसमें मेनगिस्तु को हार मिली .. आंतरिक तौर पर मेनगिस्तु काफी कमजोर हो चुका था 1989 में इथियोपिया में तख्तापलट की असफल कोशिश हुई ….. आखिरकार दो साल बाद Ethiopian People’s revolutionary Front ने मेनगिस्तु को देश छोड़कर भागने पर मजबूर कर दिया … इथियोपिया फर्स्ट का नारा देकर देश में तख्तापलट के जरिए सत्ता में आए मेनगिस्तु हाइले मरियम को तख्तापलट के जरिए देशनिकाला मिल गया .. जिम्बाब्वे ने मेनगिस्तु को शरण दे दी … जहां उसे मारने की असफल कोशिश भी हुई … इथियोपिया की नई सरकार ने मेनगिस्तु को नरसंहार का दोषी माना.. उसपर मुकदमा भी चलाया गया .. 2006 में उसे दोषी मानते हुए इथियोपिया की अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई लेकिन जिम्बाब्वे से प्रत्यर्पण नहीं होने की वजह से बूढा हो चुका मेनगिस्तो हाइले मरियम अभी भी ज़िंदा है ..