योग गुरु बाबा रामदेव की मुक्तकंठ सराहना करके भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तराखंड में पार्टी संगठन के भीतर असंतोष को हवा दे दी. नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचाने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले उत्तराखंड के भाजपाई अपनी उपेक्षा किए जाने और रामदेव को राम-कृष्ण की संज्ञा देने से काफी खिन्न हैं. पार्टी के अंदरखाने अमित शाह के ख़िलाफ़ जबरदस्त नाराज़गी देखने को मिल रही है, जो आगे चलकर बगावत को जन्म दे सकती है.
ग़ौरतलब है कि भाजपा के मिशन 272 प्लस की कामयाबी में उत्तराखंड की अहम भूमिका रही. सूबे की जनता ने मोदी के व्यक्तित्व के चमत्कार को नमस्कार कर लोकसभा की सभी पांचों सीटें भाजपा की झोली में डाल दीं. लेकिन, पार्टी आलाकमान ने स्थानीय नायकों और कार्यकर्ताओं की मेहनत को नज़रअंदाज करते हुए सारा श्रेय बाबा रामदेव को दे दिया. राज्य भाजपा में पिछले दिनों एक नारा खासा चर्चित था, खंडूड़ी है ज़रूरी. रिटायर्ड मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी को अपना नायक मानते हुए कार्यकर्ताओं ने लोकसभा चुनाव में जमकर मेहनत की, जिसका नतीजा सभी पांच सीटों पर जीत के रूप में सामने आया. खंडूड़ी को नायक घोषित किए जाने से क्षुब्ध एक बड़े नेता ने उन्हें कोटद्वार में चुनाव हराने का काम किया, लेकिन शिकायत किए जाने के बावजूद राष्ट्रीय नेतृत्व ने उस नेता के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की. जानकार बताते हैं कि उसे नितिन गडकरी का वरदहस्त हासिल है.
नाराज़गी इस बात को लेकर भी है कि जब बाबा रामदेव पूरे लोकसभा चुनाव भर उत्तराखंड में थे नहीं, तो उन्हें जीत का श्रेय आख़िर क्यों दिया गया? जानकार कहते हैं कि कांग्रेस से पंगा लेने के बाद से ही रामदेव ने पूरी तरह से देवभूमि त्याग रखी थी. जब चुनाव संपन्न हो गए, नतीजे आ गए, उसके बाद वह हरिद्वार लौटे.
नाराज़गी इस बात को लेकर भी है कि जब बाबा रामदेव पूरे लोकसभा चुनाव भर उत्तराखंड में थे नहीं, तो उन्हें जीत का श्रेय आख़िर क्यों दिया गया? जानकार कहते हैं कि कांग्रेस से पंगा लेने के बाद से ही रामदेव ने पूरी तरह से देवभूमि त्याग रखी थी. जब चुनाव संपन्न हो गए, नतीजे आ गए, उसके बाद वह हरिद्वार लौटे. लेकिन, पातंजलि पीठ पहुंच कर अमित शाह ने जिस तरह रामदेव को महिमामंडित किया, उससे प्रदेश भाजपा में भूचाल आ गया है. यही नहीं, उन्होंने भगत सिंह कोश्यारी एवं भुवन चंद्र खंडूड़ी जैसे वरिष्ठ नेताओं को भी तवज्जो नहीं दी, जबकि महाकुंभ-2010 में हुए घोटाले के दागी लोगों से उन्होंने मुलाकात की. प्रदेश भाजपा और जनता में नाराज़गी इस बात को लेकर भी है कि सभी पांच सीटें जितवाने के बावजूद केंद्र सरकार में राज्य को प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया. जानकार कहते हैं कि अगर पार्टी आलाकमान प्रदेश के नेताओं, कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों की भावनाओं की इसी तरह अनदेखी करता रहा, तो आने वाले समय में यह असंतोष संगठन के लिए घातक साबित हो सकता है.