s2014091256715इट इज बेटर टू बी अन-पॉपुलर दैन टू बी अन-ट्रूथफुल यानी झूठ बोलने से बेहतर है, अलोकप्रिय होना. यह अंतिम पंक्ति थी उस शख्सियत के भाषण की, जिसे देश-दुनिया भर में विधि विशेषज्ञ और क़ानून के प्रकांड विद्वान के रूप में शोहरत हासिल है. और, जिसने अनगिनत उच्च पदों की शोभा बढ़ाकर देश की सेवा की. हम बात कर रहे हैं, वयोवृद्ध फाली एस नरीमन की. मौक़ा था, नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब एनेक्सी में गत 12 सितंबर को राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग द्वारा आयोजित वार्षिक कार्यक्रम का, जिसका विषय था-अल्पसंख्यक दोराहे पर: क़ानूनी निर्णयों पर टिप्पणियां. विभागीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला समेत तमाम दीगर हस्तियों की मौजूदगी में 86 वर्षीय फाली एस नरीमन ने अल्पसंख्यकों से जुड़े विभिन्न मुद्दों और समस्याओं पर बड़ी बेबाकी से रोशनी डाली. उन्होंने अल्पसंख्यकों की बदहाली के लिए राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग और सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया और कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग किसी सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं है. वह लोकसभा में पारित क़ानून के जरिये अस्तित्व में आया है, इसलिए उसे चाहिए कि वह अल्पसंख्यकों के हितों के लिए कार्य करे, उन्हें उनके संवैधानिक अधिकार दिलाए. उन्होंने कहा कि आयोग अल्पसंख्यकों में व्याप्त भय और चिंता के माहौल को ख़त्म करे. उनके मन में वंचित रहने का जो एहसास है, नफरत भरे भाषणों से उनमें जो डर पैदा हो गया है, उसे दूर करे.
इसके बाद उन्होंने अल्पसंख्यकों के संबंध में आज़ादी से लेकर अब तक आए तमाम अदालती फैसलों का विश्‍लेषण किया. अपने 17 पृष्ठीय वक्तव्य को पढ़ते समय उन्होंने कई बार वहां मौजूद ज़िम्मेदार लोगों, मेजबान की पेशानी पर बल आते-जाते देखा. बावजूद इसके उन्होंने पूरी साफ़गोई के साथ कहा कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग एक संवैधानिक एवं पूर्ण अधिकार प्राप्त संस्था है. इसलिए उसे बिना किसी हिचक के अल्पसंख्यकों के कल्याण, उनकी सुरक्षा, उनके विकास के लिए काम करना चाहिए. नरीमन ने कहा कि अल्पसंख्यक सब कुछ होते हुए भी कमजोर हैं, व्यवहारिक रूप से अपने मूलभूत अधिकारों से वंचित हैं, असुरक्षा की भावना के शिकार हैं, नफरत भरे बयानों-भाषणों से देश का माहौल दिनोंदिन खराब होता जा रहा हैऔर सत्तारूढ़ राजनीतिक समूह ने खामोशी अख्तियार कर रखी है. ऐसे में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को सख्त क़दम उठाने की ज़रूरत है.
नरीमन की बातों एवं नसीहतों को मेजबान राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने बहुत ध्यान से सुना. केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने कहा कि लोकतंत्र में हर व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की आज़ादी है. फाली एस नरीमन ने अपने उसी अधिकार का इस्तेमाल किया है. उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी के सत्तारूढ़ होने से पहले प्रोपेगंडा किया जा रहा था कि उनके आते ही अल्पसंख्यकों की खैर नहीं है, अल्पसंख्यक संस्थान ख़त्म कर दिए जाएंगे, लेकिन उसके ठीक विपरीत मोदी ने सबका साथ-सबका विकास का नारा दिया और सभी को, जिनमें अल्पसंख्यक भी शामिल हैं, विकास की दौड़ में शामिल करने की बात कही. इस पर सरकार अमल भी कर रही है. नजमा हेपतुल्ला ने बताया कि वह प्रधानमंत्री से मिलीं, तो सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर अमल का मामला भी सामने आया, जिस पर प्रधानमंत्री ने उनसे कहा कि इस पर अमल कराने की ज़िम्मेदारी आपकी है, आप इसे पूरा कीजिए. उन्होंने भरोसा दिलाया कि सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर बहुत जल्द अमल होगा.
इसके दो दिनों के बाद विभिन्न समाचार-पत्रों में पूरे पन्ने का इश्तेहार अल्पसंख्यक मंत्रालय की ओर से छापा गया, जिसमें पहली बार सच्चर कमेटी की सिफारिशों पर आधारित पिछली सरकार के दौर में शुरू किए गए मल्टी सेक्टोरल डेवलपमेंट प्रोग्राम को तेजी से आगे बढ़ाने की बात कही गई है. यही नहीं, 17 सितंबर को नजमा हेपतुल्ला ने शास्त्री भवन में एक प्रेस कंाफ्रेंस करके अपने मंत्रालय की गतिविधियों से राष्ट्र को अवगत कराया.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग की वेबसाइट पर कंस्टीट्यूशन क्लब एनेक्सी में फाली एस नरीमन के भाषण के तुरंत बाद यानी 12 सितंबर को एक प्रस्ताव पोस्ट किया गया, जिस पर कोई तिथि नहीं है और न किसी के हस्ताक्षर हैं. इस प्रस्ताव में आयोग ने कहा है कि वह देश में अल्पसंख्यकों के बीच उत्पन्न किए जा रहे सांप्रदायिक तनाव, असुरक्षा के एहसास और भय पर सख्त चिंता व्यक्त करता है. आयोग सांप्रदायिक बयानों की भी आलोचना करता है. प्रस्ताव में इस बात पर जोर डाला गया है कि ऐसी घटनाओं से देश के संविधान की अवहेलना होती है.
प्रस्ताव में कहा गया है कि सरकार की ओर से अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाते हुए एक बयान आए कि उनकी सुरक्षा-सलामती और क़ानून की नज़र में बराबरी के अधिकार से किसी भी क़ीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता. प्रस्ताव में मीडिया को लॉ एंड ऑर्डर बिगाड़ने वाली ख़बरों के संबंध में सचेत रहने के लिए कहा गया है और विभिन्न धर्मों के लोगों को एक-दूसरे की भावना को समझने और उसका आदर करने की अपील की गई है. राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग का यह प्रस्ताव बहुत उचित समय पर आया है, मगर आश्‍चर्य है कि इसे जारी करने की तिथि देने और इस पर किसी ज़िम्मेदार शख्स के हस्ताक्षर करने से बचा क्यों गया? भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में अल्पसंख्यकों के हितों के संबंध में ऐसी बातें एक अच्छा संकेत है. इसे और आगे बढ़ाया जाना चाहिए. आशा है, नरीमन के भाषण से शुरू हुई यह बहस स़िर्फ आगे ही नहीं बढ़ेगी, बल्कि वास्तव में अल्पसंख्यकों के अच्छे दिन आएंगे.

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