मायावती से सौदेबाजी की तमाम मशक्कतें करने और उसमें नाकाम होने के बाद भाजपा के शीर्ष नेताओं ने फिर से योगी को आगे कर चीनी मिल घोटाले की सीबीआई जांच शुरू करा दी. मीडिया ने भी कुछ ऐसा ही ‘प्ले’ किया कि भ्रष्टाचार के खिलाफ सरकार ने सीबीआई जांच कराई, लेकिन ऐसा कुछ नहीं है. सीबीआई की इस जांच का भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई से कुछ लेना-देना नहीं है. यह आने वाले लोकसभा चुनाव के पहले लिया गया एक अहम राजनीतिक फैसला है. यूपी की 21 चीनी मिलें बेचे जाने का घोटाला मायावती के कार्यकाल के दरम्यान वर्ष 2010-11 में हुआ था.
उसके बाद प्रदेश में सपा की सरकार आई और अब भाजपा की सरकार है. योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बने करीब सवा साल हो चुके हैं. इस बीच सीबीआई जांच क्यों नहीं शुरू हुई? योगी सरकार के छह महीने पूरे होने पर जो श्वेत-पत्र जारी हुआ था, उसमें भी चीनी मिल बिक्री घोटाले की जांच का उल्लेख था. सत्तारूढ़ होने के अगले ही महीने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोटाले की जांच कराने की घोषणा भी की थी. फिर जांच में देरी क्यों हुई? केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने इस मामले में रायता क्यों बिखेरा? फिर केंद्र ने दो-दो परस्पर विरोधी जांचें क्यों कराईं? ये ऐसे अहम सवाल हैं, जिनके बारे में भाजपाई अलमबरदारों से सवाल वही पूछ सकता है जो इसकी अंतरकथा जानता हो.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ चीनी मिल बिक्री घोटाले की सीबीआई से जांच कराना चाहते थे, लेकिन केंद्र की सत्ता पर विराजमान भाजपा के कुछ शीर्ष नेता ऐसा नहीं चाहते थे. यही कारण है कि मुख्यमंत्री जब-जब सीबीआई जांच की बात कहते, तब-तब केंद्र कुछ ‘फर्जी’ जांचें करा कर लीपापोती कर देता. घोटाले की सीबीआई जांच की गंभीरता को फिस्स करने के लिए ऐसी हरकतें की जाती रहीं. इसके पीछे क्या चल रहा था? इसके पीछे सियासत और सौदेबाजी चल रही थी.
मायावती को ‘रास्ते पर लाने’ के लिए ‘साम-दाम-दंड-भेद’ की नीति अपनाई जा रही थी. ‘साम-दाम-भेद’ का फार्मूला फेल होने पर अब ‘दंड’ का फार्मूला आजमाया जा रहा है. ‘दंड’ फार्मूले के तहत सीबीआई ने चीनी मिल बिक्री घोटाले की जांच शुरू कर दी है. सीबीआई को जांच सौंपे जाने के बारे में उत्तर प्रदेश सरकार ने बाकायदा अधिसूचना भी जारी कर दी और इसे सीबीआई को हस्तगत भी करा दिया. इस मामले में जो भी एफआईआर दर्ज की गई थी, उसकी प्रतियां सीबीआई को औपचारिक रूप से ‘हैंडओवर’ कर दी गई हैं.
केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय ने चीनी मिल बिक्री घोटाले से मायावती को बचाने के लिए सारे अवांछित तिकड़म किए. जेटली वित्त के साथ-साथ कॉरपोरेट अफेयर विभाग के भी मंत्री हैं. चीनी-मिल बिक्री घोटाले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को प्रभावित करने के इरादे से कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग (कम्पीटीशन कमीशन ऑफ इंडिया) ने कानूनी रोड़े खड़े किए, जिससे घोटाला साबित होने में मुश्किल खड़ी हो. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने मई 2017 में ही अपना फैसला सुना दिया था कि मायावती सरकार ने चीनी मिलों की बिक्री में कोई गड़बड़ी नहीं की.
आयोग ने चार मई 2017 को दिए अपने फैसले में कहा कि ऐसा कोई भी सबूत नहीं मिला जिसमें कहीं कोई गड़बड़ी पाई गई हो. इस फैसले पर राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के चेयरमैन देवेंद्र कुमार सीकरी और सदस्य न्यायमूर्ति जीपी मित्तल, यूसी नाहटा और ऑगस्टीन पीटर के हस्ताक्षर हैं. शर्मनाक यह है कि उसी राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के महानिदेशक (विजिलेंस) की जांच रिपोर्ट चीनी मिल बिक्री में महाघोटाले की पुष्टि करती है.
लेकिन आयोग ने अपने ही विजिलेंस महानिदेशक की रिपोर्ट दबा दी और मायावती को क्लीन-चिट दे दी. इसके पहले महालेखाकार (सीएजी) की जांच में भी चीनी मिल बिक्री प्रकरण में घनघोर अनियमितता की आधिकारिक पुष्टि हो चुकी थी. राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग का 103 पेज का फैसला ‘चौथी दुनिया’ के पास है. इस फैसले को पढ़ें तो आप इसमें कानूनी त्रुटियों और विरोधाभासों का मलबा पाएंगे. आयोग के डीजी विजिलेंस की जांच रिपोर्ट भी ‘चौथी दुनिया’ के पास है. सीएजी और आयोग के डीजी विजिलेंस, दोनों की जांच रिपोर्टें बताती हैं कि चीनी मिलों की बिक्री में शामिल नौकरशाहों ने पूंजीपतियों के दलालों की तरह काम किया.
निविदा शुरू होने के पहले ही यह तय कर लिया गया था कि चीनी मिलें किसे बेचनी हैं. निविदा में भाग लेने वाली कुछ खास कंपनियों को सरकार की बिड-दर पहले ही बता दी गई थी और प्रक्रिया के बीच में भी अपनी मर्जी से नियम बदले गए. मिलों की जमीनें, मशीनें और उपकरणों की कीमत निर्धारित करने में मनमानी की गई. बिक्री के बाद रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प ड्यूटी भी कम कर दी गई. कैग का कहना है कि चीनी मिलें बेचने में सरकार को 1179.84 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान हुआ. यानि, उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की चालू हालत की 10 चीनी मिलों को बेचने पर सरकार को 841.54 करोड़ का नुकसान हुआ और उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद 11 चीनी मिलों को बेचने की प्रक्रिया में 338.30 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ.
राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग के तिकड़मी फैसले और उसके बरक्स आयोग के डीजी विजिलेंस की रिपोर्ट के ‘चौथी दुनिया’ के नौ से 14 अक्टूबर 2017 के अंक में उजागर होते ही केंद्र ने एक नया कानूनी पैंतरा अख्तियार किया. अरुण जेटली के जिस कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा आयोग ने मायावती को बेदाग बताया, उसी मंत्रालय के एक अन्य विभाग ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ (सीआईएफओ) को चीनी मिलों की बिक्री मामले की फिर से जांच सौंप दी गई. मंत्रालय के ही एक अधिकारी ने तब बताया था कि यह जांच ‘बलि का बकरा’ तलाशने के लिए है ताकि मायावती को बचाया जा सके.
जब दो-दो जांचें घोटाले की पुष्टि कर चुकी हैं, फिर तीसरी जांच की क्या जरूरत थी? ‘चौथी दुनिया’ ने यह सवाल कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के एक आला अधिकारी से पूछा. उन्होंने बड़ी साफगोई से ‘ऑफ रिकॉर्ड’ कहा था कि सीबीआई से मामले की जांच न हो, इसके लिए सारी पेशबंदियां हो रही हैं. कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ को चीनी मिल बिक्री प्रकरण की जांच दिए जाने के विषय पर केंद्र सरकार ने गोपनीयता क्यों बरती? जब कॉरपोरेट अफेयर मंत्रालय के ही एक महकमे ने मायावती को क्लीन-चिट दे दी थी, फिर उसी मंत्रालय के दूसरे विभाग को जांच क्यों दी गई? उक्त अधिकारी ने इन बेहद जरूरी सवालों के सांकेतिक जवाब दिए, जो केंद्र के कुछ नेताओं की संदेहास्पद मंशा जाहिर कर रहे थे. उक्त अधिकारी के उस समय के सांकेतिक जवाब कुछ ही दिनों बाद यथार्थ होते दिखने लगे. ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ ने अपनी जांच में मात्र दो कम्पनियों को चीनी मिल बिक्री मामले में दोषी पाया.
जबकि आम लोगों को भी पता है कि चीनी मिल बिक्री प्रकरण में शराब माफिया पौंटी चड्ढा की कंपनी ने कुछ अन्य कंपनियों के साथ सिंडिकेट बना कर घपला किया था. लेकिन ‘सीरियस फ्रॉड इन्वेस्टिगेशन ऑफिस’ ने केवल नम्रता मार्केटिंग प्राइवेट लिमिटेड और गिरियाशो कंपनी प्राइवेट लिमिटेड को दोषी बताया और इस आधार पर राज्य चीनी निगम लिमिटेड के प्रधान प्रबंधक एसके मेहरा ने आनन-फानन लखनऊ के गोमतीनगर थाने में एफआईआर दर्ज करा दी.
तिकड़म से बिकी थीं यूपी की 21 चीनी मिलें
उत्तर प्रदेश राज्य चीनी निगम लिमिटेड की 10 चालू हालत की चीनी मिलों की बिक्री प्रक्रिया में पहले 10 कंपनियां शरीक हुई थीं. लेकिन आखिर में केवल तीन कंपनियां वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड, पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड और इंडियन पोटाश लिमिटेड ही रह गईं. उन तीन कंपनियों में पहले से ‘पैक्ट’ था. जिन मिलों को खरीदने में पौंटी चड्ढा की कंपनी ‘वेव’ की रुचि थी, वहां अन्य दो कंपनियों ने कम दर की बिड-प्राइस भरी और जिन मिलों में दूसरी कंपनियों को रुचि थी, वहां वेव ने काफी दम दर की निविदा दाखिल की.
इस तरह बहराइच की जरवल रोड चीनी मिल, कुशीनगर की खड्डा चीनी मिल, मुजफ्फरनगर की रोहनकलां चीनी मिल, मेरठ की सकोती टांडा चीनी मिल और महराजगंज की सिसवां बाजार चीनी मिल समेत पांच चीनी मिलें इंडियन पोटाश लिमिटेड ने खरीदीं और अमरोहा चीनी मिल, बिजनौर चीनी मिल, बुलंदशहर चीनी मिल व सहारनपुर चीनी मिल समेत चार चीनी मिलें वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड को मिल गईं.
दसवीं चीनी मिल की खरीद में रोचक खेल हुआ. बिजनौर की चांदपुर चीनी मिल की नीलामी के लिए इंडियन पोटाश लिमिटेड ने 91.80 करोड़ की निविदा दर (बिड प्राइस) कोट की. पीबीएस फूड्स ने 90 करोड़ की प्राइस कोट की, जबकि इसमें वेव कंपनी ने महज 8.40 करोड़ की बिड-प्राइस कोट की थी. बिड-प्राइस के मुताबिक चांदपुर चीनी मिल खरीदने का अधिकार इंडियन पोटाश लिमिटेड को मिलता, लेकिन ऐन मौके पर पोटाश लिमिटेड नीलामी की प्रक्रिया से खुद बाहर हो गई. लिहाजा, चांदपुर चीनी मिल पीबीएस फूड्स को मिल गई. नीलामी प्रक्रिया से बाहर हो जाने के कारण इंडियन पोटाश की बिड राशि जब्त हो गई, लेकिन पीबीएस फूड्स के लिए उसने प्रायोजित-शहादत दे दी. जांच में यह भी तथ्य खुला था कि पौंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड और पीबीएस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, दोनों के निदेशक त्रिलोचन सिंह हैं.
त्रिलोचन सिंह के वेव कंपनी समूह का निदेशक होने के साथ-साथ पीबीएस कंपनी का निदेशक और शेयरहोल्डर होने की भी आधिकारिक पुष्टि हुई. इसी तरह वेव कंपनी की विभिन्न सम्बद्ध कंपनियों के निदेशक भूपेंद्र सिंह, जुनैद अहमद और शिशिर रावत पीबीएस फूड्स के भी निदेशक मंडल में शामिल पाए गए. मनमीत सिंह वेव कंपनी में अतिरिक्त निदेशक थे तो पीबीएस फूड्स में भी शेयर होल्डर थे. इस तरह वेव कंपनी और पीबीएस फूड्स की साठगांठ और एक ही कंपनी का हिस्सा होने का दस्तावेजी तथ्य सामने आया. यहां तक कि वेव कंपनी और पीबीएस फूड्स द्वारा निविदा प्रपत्र खरीदने से लेकर बैंक गारंटी दाखिल करने और स्टाम्प पेपर तक के नम्बर एक ही क्रम में पाए गए. जांच में पाया गया कि दोनों कंपनियां मिलीभगत से काम कर रही थीं.
उत्तर प्रदेश राज्य चीनी एवं गन्ना विकास निगम लिमिटेड की बंद पड़ी 11 चीनी मिलों की बिक्री में भी ऐसा ही ‘खेल’ हुआ. नीलामी में कुल 10 कंपनियां शरीक हुईं, लेकिन आखिरी समय में तीन कंपनियां मेरठ की आनंद ट्रिपलेक्स बोर्ड लिमिटेड, वाराणसी की गौतम रियलटर्स प्राइवेट लिमिटेड और नोएडा की श्रीसिद्धार्थ इस्पात प्राइवेट लिमिटेड मैदान छोड़ गईं. जो कंपनियां रह गईं, उनमें पौंटी चड्ढा की कंपनी वेव इंडस्ट्रीज़ के साथ नीलगिरी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, नम्रता, त्रिकाल, गिरियाशो, एसआर बिल्डकॉन और आईबी ट्रेडिंग प्राइवेट लिमिटेड शामिल थीं. इनमें भी आपस में ‘पैक्ट’ था.
नीलगिरी फूड्स ने बैतालपुर, देवरिया, बाराबंकी और हरदोई चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिर में बैतालपुर चीनी मिल छोड़ कर उसने अन्य से अपना दावा वापस कर लिया. इसके लिए उसे जमानत राशि भी गंवानी पड़ी. बैतालपुर चीनी मिल खरीदने के बाद नीलगिरी ने उसे भी कैनयन फाइनैंशियल सर्विसेज़ लिमिटेड के हाथों बेच डाला. इसी तरह त्रिकाल ने भटनी, छितौनी और घुघली चीनी मिलों के लिए निविदा दाखिल की थी, लेकिन आखिरी समय में जमानत राशि गंवाते हुए उसने छितौनी और घुघली चीनी मिलों से अपना दावा हटा लिया. वेव कंपनी ने भी बरेली, रामकोला और शाहगंज की बंद पड़ी चीनी मिलों को खरीदने के लिए निविदा दाखिल की थी. लेकिन उसने बाद में बरेली और रामकोला से अपना दावा छोड़ दिया और शाहगंज चीनी मिल खरीद ली.
बाराबंकी, छितौनी और रामकोला की बंद पड़ी चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी गिरियाशो और बरेली, हरदोई, लक्ष्मीगंज और देवरिया की चीनी मिलें खरीदने वाली कंपनी नम्रता में वही सारी संदेहास्पद-समानताएं पाई गईं जो वेव इंडस्ट्रीज़ और पीबीएस फूड्स लिमिटेड में पाई गई थीं. यह भी पाया गया कि गिरियाशो, नम्रता और कैनयन, इन तीनों कंपनियों का दिल्ली के सरिता विहार में एक ही पता है. बंद पड़ी 11 चीनी मिलें खरीदने वाली सभी कंपनियां एक-दूसरे से जुड़ी थीं, खास तौर पर वे पौंटी चड्ढा की वेव इंडस्ट्रीज़ प्राइवेट लिमिटेड से सम्बद्ध पाई गईं.