मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने अपने भविष्य को लेकर अटकलों के बीच बिहार सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश करके अपनी पीठ खुद ही खूब थपथपाई है. सरकारी घोषणाओं को उपलब्धि के तौर पर पेश करने की यह परंपरा बिहार में नौ साल पहले शुरू हुई थी. नवंबर 2005 के इन्हीं मुलायम दिनों के गुनगुने माहौल में नीतीश कुमार तत्कालीन एनडीए के मुख्यमंत्री बने थे और उपलब्धि, उम्मीद एवं घोषणाओं से भरे एक साल का पहला रिपोर्ट कार्ड उन्होंने अगले नवंबर में पेश किया था. तबसे यह रस्म चली आ रही है. हां, रिपोर्ट कार्ड की प्रस्तुति को लेकर दो बड़े राजनीतिक बदलाव आए हैं, जिनसे सूबे के भाग्य निर्धारण और विकास की राजनीति का विमर्श काफी हद तक प्रभावित हुआ है. नवंबर 2012 तक रिपोर्ट कार्ड पेश करते समय तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के साथ भाजपा नेता एवं उस सरकार के उप-मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी हुआ करते थे. एनडीए से जद (यू) के अलग हो जाने के बाद नवंबर 2013 में सरकार का आठवां रिपोर्ट कार्ड पेश करते समय नीतीश कुमार के दाएं-बाएं उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी थे. और, इस बार नीतीश कुमार के स्थान पर जीतन राम मांझी रहे.
दूसरी बात, बिहार में रिपोर्ट कार्ड की प्रस्तुति सत्ता और सत्तारूढ़ दल (दलों) के लिए उत्सव का अवसर होती रही है. सरकार के सभी मंत्री, सत्तारूढ़ दल अथवा दलों के वरिष्ठ पदाधिकारी, राज्य के विभागीय प्रधान एवं वरिष्ठ नौकरशाह इस उत्सव में शामिल होते रहे हैं, पर इस साल माहौल थोड़ा बदला हुआ था. मंत्री तो क़रीब-क़रीब सभी हाजिर हो गए (वे भी, जिनकी निष्ठा केवल सुप्रीमो नीतीश कुमार के प्रति है), पर कई विभागीय प्रधान सचिव- वरिष्ठ नौकरशाह इस बार आयोजन में देखे नहीं गए. अगर जद (यू) संगठन की बात की जाए, तो अध्यक्ष सहित दल के अधिकांश महत्वपूर्ण पदाधिकारी इस उत्सव से गायब रहे. दल के नेताओं एवं नौकरशाहों के ऐसे आचरण को जद (यू) के आंतरिक विवाद और विभाजित नौकरशाही की खुली अभिव्यक्ति के तौर पर लिया जा रहा है. यह और ऐसे कई प्रसंग पूरे आयोजन को उदासीन बनाने के लिए काफी थे. फिर भी ऊपर-ऊपर सब कुछ खुशनुमा था और मुख्यमंत्री मांझी ने इस अवसर का लाभ उठाकर कुछ घोषणाएं सरकार की तरफ़ से कीं और कुछ बातें अपने दिल की कीं.
मांझी ने आने वाले साल में युवाओं, किसानों, महिलाओं एवं किसानों को एक बार फिर अपनी सरकार की प्राथमिकता के केंद्र में रखा है. अनुसूचित जाति-जनजाति के सभी छात्र-छात्राओं और अन्य सभी सामाजिक समूहों की छात्राओं की एमए तक की शिक्षा नि:शुल्क करने की घोषणा इस सालगिरह पर की गई. मुख्यमंत्री ने अनुसूचित जाति-जनजाति आवासीय विद्यालयों की मौजूदा क्षमता 28 हज़ार छात्र-छात्राओं से बढ़ाकर एक लाख करने की घोषणा की. राज्य सरकार के विभिन्न विभागों में रोज़गार के नए अवसरों की घोषणा की गई. सरकार ने मुंगेर में एक फॉरेस्ट्री कॉलेज खोलने की घोषणा की है. धान की सरकारी खरीद में किसानों को घोषित खरीद मूल्य के ऊपर तीन सौ रुपये प्रति क्विंटल बोनस रकम देने की भी घोषणा की गई. सरकार ने तय किया है कि एक अभियान चलाकर कृषि कार्यों के लिए किसानों को छह महीने के अंदर बिजली कनेक्शन दिया जाएगा. राज्य के किसानों के लिए यह दूसरी राहत भरी ख़बर है. मांझी ने पुलिस-होमगार्ड के जवानों को देश के कुछ अन्य राज्यों की तरह बिहार में साल में एक महीने का अतिरिक्त वेतन देने की घोषणा की है. राज्य सरकार ने यह फैसला उनकी कठिन ड्यूटी के मद्देनज़र उन्हें प्रोत्साहन देने के ख्याल से लिया है. सरकार ने राज्य में यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए एक लाख से अधिक आबादी वाले प्रत्येक शहर में यातायात थाना की स्थापना और दो लाख से अधिक की आबादी वाले प्रत्येक शहर में यातायात डीएसपी के पद-स्थापन की घोषणा की है.
मांझी ने आने वाले साल में युवाओं, किसानों, महिलाओं एवं किसानों को एक बार फिर अपनी सरकार की प्राथमिकता के केंद्र में रखा है. अनुसूचित जाति-जनजाति के सभी छात्र-छात्राओं और अन्य सभी सामाजिक समूहों की छात्राओं की एमए तक की शिक्षा नि:शुल्क करने की घोषणा इस सालगिरह पर की गई. मुख्यमंत्री ने अनुसूचित जाति-जनजाति आवासीय विद्यालयों की मौजूदा क्षमता 28 हज़ार छात्र-छात्राओं से बढ़ाकर एक लाख करने की घोषणा की.
मांझी सरकार की उर्दू पर नज़र गई, तो उर्दू अकादमी के सालाना अनुदान को बढ़ाकर एक करोड़ रुपये से अधिक कर दिया गया. इसी तरह सरकारी अधिकारियों एवं कर्मचारियों के लोक व्यवहार को लेकर सरकार की फज़ीहत कम करने के लिए लोक संवेदना नामक अभियान चलाने का ़फैसला लिया गया है, जिसके तहत जनता और उसके प्रतिनिधियों को सरकारी कार्यालयों में उचित सम्मान दिलाने की चेतना जगाई जाएगी. ये नौंवे साल की इस सरकार की नौ घोषणाएं हैं. लेकिन, इस रिपोर्ट कार्ड से आपको पता नहीं चलेगा कि बिहार में किसानों के खेत तक पानी पहुंचाने के विभिन्न कार्यक्रम किस हाल में हैं, उनमें कहां बाधा आती है और उन्हें दूर करने के क्या उपाय किए गए हैं. राज्य में बिजली की उपलब्धता बढ़ी और घरों में लट्टू जल रहे हैं. लेकिन, यह पता नहीं चलेगा कि सूबे में ट्रांसमिशन की गड़बड़ी के कारण कितनी बिजली बेकार चली जाती है और उसमें सुधार के लिए अब तक कौन से क़दम उठाए गए हैं. आपको यह जानकारी भी नहीं मिलेगी कि बिहार के विभिन्न हिस्सों में बेकार घोषित हज़ारों ट्रांसफॉर्मर कब बदले जाएंगे. इस रिपोर्ट कार्ड से आप यह भी नहीं जान पाएंगे कि राज्य में औद्योगिक विकास के कार्यक्रमों की क्या स्थिति है और यहां जो इकाइयां लगी हैं, उनमें कितने लोगों को रोज़गार मिल रहा है.
नीतीश राज की कुछ उपलब्धियों को देश भर में प्रशंसा मिली. इनमें राज्य की विधि व्यवस्था में आशातीत सुधार, बदहाल सड़कों का कायाकल्प, विकास का माहौल आदि प्रमुख रहे. आज के बिहार की हालत क्या हो गई है या क्या होती जा रही है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है. विधि व्यवस्था और सड़क के मोर्चे पर बिहार पुराने दिनों की ओर लौटता दिख रहा है. चीनी सहित अन्य सभी उद्योग और औद्योगिककरण स़िर्फ चर्चा तक सीमित हैं. भूमि सुधार के सवाल को लेकर गठित बंदोपाध्याय समिति की रिपोर्ट पर कोई बात नहीं करता. बंदोपाध्याय समिति की सिफारिशों के ख़िलाफ़ राज्य में महीनों अभियान चलाने वाले राजनेता आज मंत्री हैं और मांझी के तो नहीं, लेकिन नीतीश के खास हैं. वस्तुत: सवा सौ पृष्ठों का यह रिपोर्ट कार्ड नीतीश कुमार की सरकार से लेकर मांझी सरकार तक की घोषणाओं का एक पुलिंदा है. इसमें उपलब्धियों की खोज करने पर जितने पृष्ठ हैं, शायद उतने तथ्य भी न मिलें. ऐसे अवसरों का इस्तेमाल राजनेता अपनी राजनीति के लिए करते हैं, मांझी ने भी वही किया. अगले साल विधानसभा चुनाव है. ऐसे में वोटों का जुगाड़ भी ज़रूरी है. इसलिए अगले साल उन्होंने राज्य सरकार में लगभग एक लाख नई नौकरियां देने का वादा किया. लेकिन, सवर्णों को विदेशी बताकर विवाद में फंस गए.
मांझी ने कहा कि वह तो ग़रीब सवर्णों को बसने के लिए ज़मीन और उनके बच्चों को छात्रवृत्ति देना चाहते हैं. फिर उन्होंने हर चालीस परिवारों पर एक प्राथमिक विद्यालय और तीन प्राथमिक विद्यालयों पर एक मध्य विद्यालय खोलने की ज़रूरत बताई. इसके अलावा उन्होंने अब केवल प्लस-2 विद्यालय खोलने की बात कही. शिक्षा, कृषि, पुलिस और शहरों की हालत सुधारने आदि को चुनावी घोषणा बताए जाने पर उन्होंने कहा, हम माला खटखटाने तो नहीं बैठे हैं. इस पूरे कार्यक्रम के दौरान सबसे राजनीतिक बात उन्होंने यह कही कि बिहार में ग़रीबों के कल्याण के लिए नीतीश राज में कई महत्वपूर्ण कार्यक्रम तैयार किए गए, उन्हें लागू करने के नियम-कायदे भी बने, लेकिन नौकरशाही की बेरुखी ने सब गुड़-गोबर कर दिया, कोई भी कार्यक्रम लागू नहीं हो सका. लेकिन, बीते छह महीनों में हालात बदले हैं, अब काम हो रहे हैं. चूंकि मांझी छह महीने पहले ही सत्ता पर काबिज हुए हैं, लिहाजा अब हालात बदलने लगे हैं. इसे आप क्या कहेंगे, नीतीश राज की तारीफ़ या उसका सेंसर फैसला आपको करना है. इसका मतलब आप जो भी निकालें, पर जान लीजिए कि यह कहने के कुछ ही देर बाद मांझी नीतीश कुमार की संपर्क यात्रा में शामिल होने जहानाबाद पहुंच गए.