Untitled-1महाराष्ट्र के 8.28 करोड़ मतदाता आगामी 15 अक्टूबर को सिंगल फेज़ और एकदिवसीय मतदान में तेरहवीं 288 सदस्यीय विधानसभा एवं 18वें मुख्यमंत्री के चुनाव के लिए मतदान करेंगे. उसी दिन भाजपा नेता स्वर्गीय गोपीनाथ की हाल में हुई मृत्यु के कारण रिक्त हुई लोकसभा सीट पर भी उपचुनाव होगा. इस बार हाल के लोकसभा चुनाव की तरह मतदाता अपना मत देने में नोटा, अर्थात उपरोक्त में से किसी को भी नहीं अधिकार, का इस्तेमाल करेंगे. इस बार मतदाताओं को वीवीपीएटी अर्थात वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल जैसी व्यवस्था का भी सामना करना प़डेगा. ये ऐसी व्यवस्था है जिसमें मतदाता राज्य में तेरह सीटों के कमोबेश 3,942 मतदान केंद्रों में इस बार इस बात जांच कर पाएंगे कि क्या उनके वोट ठीक से दिए जा सके हैं? इसके द्वारा मतदाताओं को ये जानकारी एक स्लिप के द्वारा तुरंत ही मिल जाएगी कि सबंधित व्यक्ति ने किस उम्मीदवार और किस पार्टी को वोट दिया है. इससे चुनाव में धांधली को रोका जा सकेगा. इसी के साथ-साथ स्टोर किए हुए इलेक्ट्रानिक परिणाम को ऑडिट करने में भी इससे सहायता मिलेगी. महाराष्ट्र में तेरहवी असेंबली के चुनाव इस लिहाज से बहुत ही महत्वपूर्ण है कि इसमें यह निर्णय सामने आएगा कि गत प्रंद्रह वर्षों में तीन बार से राज्य पर कब्जा जमाए कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन एक बार और सत्ता में रहेगा या नहीं? क्या इस राज्य के विधानसभा चुनाव पर गत संसदीय चुनाव के प्रभाव पड़ेंगे एवं केंद्र की तरह यहां भी एनडीए सरकार सत्ता में आ जाएगी या इसके विपरित राष्ट्र के अन्य राज्यों में लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा उपचुनाव में दिखाई पड़ा भाजपा/एनडीए विरोधी रूझान यहां भी बढ़ेगा और फिर लगातार चौथी बार भाजपा/शिवसेना गठबंधन बहुमत नहीं ला पाएगा एवं सत्ता से वंचित रहेगा?
दरअसल ये वह प्रश्‍न हैं जिनके उत्तर की सभी को प्रतीक्षा है. दिलचस्प बात तो ये भी है कि राज्य में एक दूसरे के विरुद्ध संघर्ष करते कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन एवं भाजपा-शिवसेना गठबंधन दोनों ही अलग-अलग आपसी मतभेद एवं कश्मकश के शिकार हैं. दोनों गठबंधनों में इस बात की लड़ाई है कि जो भी गठबंधन सफल हो उस स्थिति में मुख्यमंत्री किस पार्टी का हो और कौन हो? अर्थात अगर कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन जीतता है, तो मुख्यमंत्री कांग्रेस का हो या एनसीपी का? इसके अलावा सीटों को बंटवारा कैसा हो? और भाजपा-शिवसेना गठबंधन सफल होता है, तो मुख्यमंत्री भाजपा का हो या शिवसेना का? इसके अलावा समस्या सीटों के बंटवारे को लेकर यहां भी समस्या मौजूद है.
जहां तक आम मतदाता का मामला है, लोकसभा चुनाव में भाजपा की सफलता का असर उन मतदाताओं पर निश्‍चय ही पड़ा था मगर देखना ये है कि क्या गत 6 महीने में मतदाता का मूड बदला है और क्या राज्य के मतदाता इस दौरान विभिन्न राज्यों में संपन्न हुए विधानसभा उपचुनाव में दिखाई पड़े भाजपा के कम होते हुए प्रभाव से प्रभावित होंगे? मामला जहां आम मतदाताओं का है वहीं इस राज्य में मुस्लिम मतदाताओं की भी भूमिका बहुत अहम है. कोई जरूरी नहीं कि मुस्लिम मतदाता गत लोकसभा या विधानसभा उपचुनाव में से किसी से भी प्रभावित हों, क्योंकि उनकी अपनी सोच है एवं उनकी अपनी समस्याएं भी हैं. राज्य में मुसलमान कुल आबादी के 15 प्रतिशत हैं एवं कुल 288 विधानसभा क्षेत्रों में 30 ऐसे क्षेत्र हैं जहां उनकी जनसंख्या घनी है. मगर इसके बावजूद उन्हें शिकायत है कि उनकी विधानसभा एवं लोकसभा में उचित नुमाइंदगी नहीं है. एक करोड़ मुस्लिम जनसंख्या के बावजूद 2009 से लोकसभा में एक भी मुस्लिम नुमाइंदा मौजूद नहीं है. ये नुमाइंदगी विधानसभा और लोकसभा में लगातार कम होती जा रही है.
मुंबई में एक नेशनलाइज बैंक से स्वयं रिटायरमेंट लिए और फिर वकालत कर रहे मुगिस गौहर जो कि सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं, चौथी दुनिया से बात करते हुए कहते हैं कि मुंबरा भिवंडी, औरंगाबाद, मालेगांव, नांदेड़, अकोला और प्रभनी के अलावा केवल मुंबई सिटी में 16 मुस्लिम बहुल संख्या वाले विधानसभा क्षेत्र हैं. उनका विचार है कि मुंबई एवं इसके अधीन शहरी क्षेत्रों में अबु आसिम आज़मी के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी का काफी प्रभाव है, लेकिन इस शंका को बिल्कुल रद्द नहीं किया जा सकता है कि अधिक मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों में ज्यादा मुस्लिम उम्मीदवारों के खड़े हो जाने के कारण उत्तरप्रदेश की तरह यहां भी जीतने वाले मुस्लिम उम्मीदवार सफल नहीं हो पाएंगे. इसी प्रकार नैनी, इलाहाबाद की रहने वाली मुंबई की बहु निशात के अनुसार, इसमें कोई संदेह नहीं है कि मुसलमान राज्य में मौजूदा कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन सरकार से प्रसन्न नहीं हैं, क्योंकि वो हिन्दू वोट को अपने ही मुस्लिम उम्मीदवारों के हित में ट्रांसफर नहीं करा पाते हैं एवं मुसलमानों को अधिक टिकट भी नहीं देते हैं. वह कहती हैं कि उदाहरण के तौर पर मराठवाड़ा, जहां बड़ी संख्या में मुसलमान रहते है, में कांग्रेस एवं एनसीपी के मात्र दो मुसलमान ही नामांकित किए गए हैं. इस सिलसिले में जब आल इंडिया मजलिस इत्तेहादुल मुस्लेमिन जो कि इस बार नांदेड़ निगम चुनाव में सफलता से जोश में आकर इस राज्य में विधानसभा का चुनाव लड़ रही है, के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी से पूछा गया कि आखिर उनकी पार्टी ने राज्य में लोकसभा चुनाव क्यों नहीं लड़ा था और अब विधानसभा चुनाव क्यों लड़ रही है, तो उन्होंने कहा कि उस समय हम लोग भाजपा एवं शिवसेना को रोकना चाहते थे, अतएव ऐसा किया गया था लेकिन इस बार विधानसभा चुनाव में परिस्थिति बदली हुई है एवं उनकी पार्टी यहां अपने उम्मीदवार बड़ी संख्या में पहली बार खड़ी कर रही है. निशात की बात को आगे बढ़ाते हुए उनके पति आफताब का कहना है कि मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमिन के महाष्ट्र विधानसभा चुनाव लड़ने के निर्णय से सत्तासीन कांग्रेस एवं एनसीपी दोनों ही नर्वस हो गए हैं, क्योंकि इससे मुस्लिम एवं सेक्युलर वोट में विभाजन होना अवश्यंभावी है.
वैसे ये भी खबर है कि कुछ प्रख्यात दलित एवं ओबीसी पार्टियां मजलिस का समर्थन कर रही हैं. निशात और आफताब को ये शंका है कि महाराष्ट्र में मजलिस की उपस्थिति से भाजपा-शिवसेना गठबंधन लाभ उठा सकता है. मजलिस मुंबई एवं थाने से दस सीटों पर चुनाव ल़ड रही है और यहां ये मुस्लिम एवं दलित वोटों को निशाना बनाएगी. गौरतलब है कि 1928 में स्थापित हुई मजलिस इत्तेहादुल मुस्लिमिन हैदराबाद ही में अब तक सीमित थी. इसका हैदराबाद से बाहर कोई प्रभाव नहीं था और इसीलिए इसने इससे पहले कभी भी राज्य के और भाग या बाहर से चुनाव लड़ा भी नहीं है. अतएव इस बार पहली बार राज्य से बाहर इसके चुनाव लड़ने का निर्णय विवाद का विषय बना हुआ है देखना ये है कि क्या ये नांदेड़ के निगम चुनावों की तरह विधानसभा चुनाव में कोई प्रभाव दिखा पाएगी? वैसे ये बात भी बहुत महत्वपूर्ण है कि इस बार राज्य में विधानसभा चुनाव अन्य मुस्लिम पार्टिया इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग, आवामी विकास पार्टी एवं वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया भी लड़ रही हैं. इसके अलावा यहां मुस्लिम मत का हकदार होने का दावा अबु आसिम आजमी की समाजवादी पार्टी भी करती है. अभी तक इन पार्टियों में कोई चुनावी समझौता भी नहीं हुआ है. समाजवादी पार्टी एंव मजलिस में गठबंधन की फिलहाल कोई संभावना भी नहीं है, लेकिन इन तमाम बातों को बावजूद इन पार्टियों में गठबंधन हो भी जाता है तब भाजपा-शिवसेना गठबंधन की तुलना में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को अधिक मुकसान होगा, क्योंकि सांप्रादायिक तौर पर संवेदनशील कहे जाने वाले इस राज्य में मुसलमान पहले ही से भाजपा एवं शिवसेना से कुछ दूर है. अतएव इस स्थिति में कांग्रेस- एनसीपी को नुकसान हो सकता है मगर भाजपा एवं शिवसेना को नहीं. इस संबंध जो सूचना मिल रही है उसके अनुसार मजलिस के उम्मीदवारों के अलावा वेलफेयर पार्टी के अस्सी उम्मीदवार, मुस्लिम लीग के बीस उम्मीदवार इस राज्य से चुनाव लड़ेंगे. इसी प्रकार पूर्व पुलिस कमीश्‍नर शमशेर खान की आवामी विकास पार्टी मुंबई की तमाम सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़ी करेगी.
इस प्रकार इतनी बात तो तय हैं कि विभिन्न मुस्लिम राजनीतिक पार्टियों के चुनावी दंगल में उपस्थिति के कारण राज्य में सत्तासीन कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन खतरे में हैं, क्योंकि विभाजित मुस्लिम मत इस गठबंधन को कमजोर करेगा एवं इसका लाभ भाजपा-शिवसेना गठबंधन को स्वयं हो जाएगा, लेकिन प्रश्‍न ये है कि भाजपा गोपीनाथ मुंडे एवं शिवसेना बालठाकरे की मृत्यु के बाद कोई बड़ा शो कर पाएगी?अतएव परीक्षा तो कांग्रेस-एनसीपी एवं भाजपा-शिवसेना दोनों गठबंधनों के लिए है. अब आने वाला समय ही बताएगा कौन गठबंधन बाजी मारता है.

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