अभि – अभि खबर पता चली ! “कि महाराष्ट्र फौंडेशन अमेरिका के संस्थापकों में से एक ! प्रमुख साथी सुनिल देशमुख अब नही रहे !” मैं बहुत स्तब्ध होकर उनसे संबंधित ! एक ही संस्मरण मेरे मन में बहुत दिनों से दिल के कोने में था ! तो आज आप सभी साथियों के साथ बाट रहा हूँ !


मुझे मेरे सांप्रदायिकता के विषय पर काम करने को लेकर ! आजसे पंद्रह साल पहले (2008) ! महाराष्ट्र फौंडेशन अमेरिका ने अपने खुद होकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है ! सामान्यतः ज्यादा तर पुरस्कार पाने के लिए अर्जी दाखिल करने से लेकर लॉबिंग भी करने के जमाने में ! शायद यह अपवादात्मक पुरस्कार है ! जहाँ पर किसी को भी कोई फॉरमॅलिटी किए बगैर ! फौंडेशन खुद ही अपनी ओर से ढूंढने के बाद किसी को पुरस्कृत करते हैं ! अन्यथा पद्म पुरस्कार से लेकर ! मॅगसेसे, नोबेल पुरस्कार तक कि एकही कहानी है ! और गलिकूचो के पुरस्कारों के बारे में सुना है ! “कि लोगों को अपने खुद के पैसों को खर्च करने के बाद !” यहां तक कि उसके उपर किया गया मिडिया कवरेज के खर्च को मिलाकर ! देने के किस्से हैं !
और मैंने भी इसी कारण, इस पुरस्कार को स्वीकार करने का निर्णय लिया ! तो उसे लेने के लिए, मुंबई के शिवाजी मंदिर नाट्यगृह दादर में कार्यक्रम में मैं गया था ! और श्यामको पुरस्कार वितरण समारोह में, पुरस्कार पूर्व मंत्री मधुकरराव चौधरी के हाथ से देने का पहले से ही तय था ! लेकिन सुबह हम सभी पुरस्कार से सम्मानित होने वाले लोगों को अपनी मन की बात कहने का कार्यक्रम ! सुबह से दोपहर के खाने के समय तक था ! उसमें ज्यादा तर लोगों ने अपनी जीवन यात्रा के बारे में बोला !

मेरी बारी आने के बाद ! मैंने “कहा कि सामने बैठे हुए, ज्यादातर लोगों को मेरी जीवन यात्रा मालूम है ! इसलिए मै सिर्फ वर्तमान समय में भारत की ‘सांप्रदायिक स्थिति’ पर रोशनी डालने की कोशिश करने जा रहा हूँ !” और जो भी कुछ बोला, उसके कुछ समय के बाद ! सुनिल देशमुख मुझे हाथ पकडकर अलग से लेकर कहने लगे ” कि आप के मनोगत को सुनने के बाद, हमें लगा ! “कि आपको किसी उचित व्यक्ति के हाथों पुरस्कार से सम्मानित करना चाहिए ! तो हम सभी ने मिलकर सोचा कि ! शहिद हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे के हाथों ! आप अकेले को अलग पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा ! और अन्य लोगों को पहले से ही तय, मधुकरराव चौधरी के हाथों !”
तो मैंने सुनिल देशमुखजी को कहा ” कि अभी हमारे देश की राष्ट्रपती प्रतिभाताई पाटील है ! और आपने मुझे पुछा होता की ! आपको प्रतिभाताई और कविताताई मे से किस के हाथ से पुरस्कृत किया जाय ? तो मैंने कहा होता की कविता करकरे !” लेकिन ऐन समय पर कविताजी कैसे आ सकती है ? तो सुनिल देशमुख ने कहा “कि हम उनके साथ जब आप बोल रहे थे ! उसी क्षण तय कर के ! तुरंत उनसे फोन पर बात की !


और वह भी बोली की ! “डॉ सुरेश खैरनार मेरे पति के प्रिय लोगों में से एक है ! और उसकी वजह, उन्होंने महाराष्ट्र के तीन आतंकवादी घटनाओं का, सब से पहले जांच करने का काम किया है ! सबसे मुख्य बात हेमंत को एटीएस की जिम्मेदारी सौपने के पिछे के कारणों में से एक वजह, डॉ. सुरेश खैरनार ने सबसे पहले, महाराष्ट्र के हाल के दिनों के तीनों ! ( 6 अप्रैल 2006, 1 जून 2006 नागपुर संघ मुख्यालय को उडाने की कोशिश और 2006 और 2008 के मालेगांव के दोनों विस्फोट! ) आतंकवादी घटनाओं की प्राथमिक जांच करने के कारण ! सब से पहले नांदेड़ और मालेगाँव के दोनों बमविस्फोटो की, और नागपुर के संघ बिल्डिंग के सो कॉल्ड फिदायीन हमले की, जांच उन्होंने सबसे पहले की है !


और इस कारण हेमंत बहुत ही प्रभावित थे ! तो ऐसे व्यक्ति को मेरे हाथ से पुरस्कृत करना मुझे खुशी होगी !” यह कविता करकरे की प्रतिक्रिया सुनिल देशमुख के मुहँसे सुनकर ! और उन्होेंने आगे जाकर कहा कि ” मैं बहुत खुश हूँ कि सचमुच ही हमनें, सही व्यक्ति को पुरस्कार से सम्मानित करने का फैसला किया है !” तो मैंने कहा कि ! ” मुझे मालूम है कि, अभी हमारे सभी पुरस्कार से सम्मानित किए जाने वाले लोगों के सभी के भाषण हो गए हैं ! लेकिन मुझे कविता करकरे के हाथ से पुरस्कृत करने के बाद सिर्फ दो मिनट का समय देना है !” तो सुनिल देशमुख मुस्कुराते हुए अंगुठा दिखाते हुए, बोले” कि डन”!
और श्यामको शिवाजी नाट्यसभागृह के मुख्य हॉल में ! आयोजित कार्यक्रम में ! कविताजी के हाथ से पुरस्कार से सम्मानित करने के बाद ! मैंने अपने दो मिनट के संबोधन में कहा ” कि इस दशक के मेरे दो हिरो है ! जिन्हें मैं सॅल्युट करना चाहता हूँ ! एक इराक के पत्रकार जिसने हालही में, अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश के उपर ! बगदाद के प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने पैर से जूता निकाल कर, फेक कर मारने वाले पत्रकार ! और दुसरी कविताजी, जिन्होंने हेमंत करकरे जी की 26/11 के दिन हत्या के बाद ! तत्कालिन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कविताजी के घर आकर, कुछ बड़ी रकम देने की पेशकश की थी ! और कविताजी ने बड़ी ही विनम्रतापूर्वक, साफ मना कर दिया ! ऐसी स्वाभिमानी महिला को मेरा सॅल्युट ! समस्त हॉल तालियों से गुंज रहा था ! और सबसे हैरानी की बात मेरे बचपन से राष्ट्र सेवा दल की बैचमेट ! मेधा पाटकर तो तुरंत सामने की खुर्चीयो की लाईन से उठकर ! मेरे दोनों हाथों को पकडते हुए बोली “कि आपके सुबह के भाषण से यह दो मिनट का संबोधन भन्नाट है !” और भी काफी लोगों ने सराहा है !


सबसे आस्चर्य की बात, कार्यक्रम के बाद ! सुनिल देशमुख ने मुझे अलग से पकड़ा ! और सिधा कहा “कि अब इसके आगे महाराष्ट्र फौंडेशन पुरस्कार समिति की जिम्मेदारी आप को सम्हालना है !” मैंने हाथ जोड़कर कहा कि “मेरा टेंपरामेंट किसी आर्थिक व्यवहार करने वाली संस्थाओं को चलाने का नही है ! और पुरस्कार देने जैसा ! विवादास्पद मामले में तो बिलकुल भी नहीं ! बहुत धन्यावाद आपका ! लेकिन महाराष्ट्रमे एक-से-बढकर – एक लोग हैं ! उनमे से आप और किसी को भी यह जिम्मेदारी दे सकते हो ! लेकिन मुझे इससे अलग ही रखिए!”
विदेशों में बहुत लोग पैसा कमाने के लिए विशेष रूप से जाते हैं ! और सुनिल देशमुख भी गए थे ! और अमेरिका के शेयर बाजार में प्रवेश कर के ! उनकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी होने के बाद ! उन्होंने अपने मातृभूमि के लिए ! अपने अमेरिका के अन्य मित्रो के साथ बातचीत करने के बाद यह फैसला लिया था !
विशेष रूप से महाराष्ट्र में विभिन्न क्षेत्रों में ! और वह भी, गैर आर एस एस के लोगों को ! क्योंकि आर एस एस की अपनी अलग परिपाटी है ! आपातकाल के समय भी ! उन्होंने अपने जेल में बंद लोगों के परिवार के लिए ! अलग आर्थिक मदद देने के लिए, विशेष व्यवस्था की थी ! वैसे ही वह अपना तथाकथित सेवा कार्य करने वाले अपने सेवकों का अलग सत्कार समारोह करते हैं ! और गलती से भी किसी गैर आर एस एस के कार्यकर्ताओं को नही पुरस्कृत करते हैं !
इसलिये सुनिल देशमुख ने महाराष्ट्र फौंडेशन अमेरिका के पुरस्कार के द्वारा महाराष्ट्र के सभी गैर आर एस एस और परिवर्तनवादी लोगों को ढूंढ – ढूंढ कर ! पुरस्कृत करने का काम और उन लोगों के कामों को प्रोत्साहन देने के लिए ! उनके कुछ दोस्तों ने मिलकर ! यह फौंडेशन बनाने के बाद ! पुरस्कार देने का सिलसिला 28 सालों से जारी है ! और लगभग हर समारोह के दौरान ! अमेरिका से वह खुद आकर ! पुरस्कार से सम्मानित करने का कार्यक्रम करते थे !


महात्मा गाँधी महाराष्ट्र के सार्वजनिक जीवन में, काम करने वाले लोगों को ! सार्वजनिक जीवन के मधुमक्खी के छत्ते की उपमा देकर ! कहते थे कि ! “भारत के अन्य राज्यों की तुलना में ! महाराष्ट्र में सार्वजनिक क्षेत्र में काम करने वाले ! और उनके काम को मदद करने की पुरानी परंपरा है !” महात्मा गाँधी जी ने बिल्कुल सही कहा है !
क्योंकि गत पचास वर्षों से, मै लगभग भारत के सभी प्रदेशों में आना-जाना कर रहा हूँ ! मुख्य रूप से सबसे ज्यादा बिहार में ! बिहार में सार्वजनिक जीवन में ! काम करने वाले लोगों की संख्या बहुत है ! लेकिन उनके पास संसाधन के अभाव में ! और मुख्यतः आर्थिक रूप से, बहुत ही अभावों में रहते हुए ! कई लोगों को भिषण बिमारीयो से ग्रस्त होकर ! इस दुनिया से विदा होते हुए ! देखकर लगता है ! “कि क्यों हमारे बिहार के भी बहुत लोग देश – विदेशों में जाकर अच्छा – खासा पैसा कमाने के बावजूद ! किसी को भी नहीं लगता ! ” कि हमारे अपने ही भाई – बहन, बिहार को बेहतर बनाने के लिए ! अपने जीवन के बेहतरीन समय को देकर ! और भिषण अभावों में काम कर रहे हैं ! तो उन्हें कुछ मदद की जाए ?


और यह चिंता जेपी से लेकर ! वर्तमान समय में, जस की तस बनी हुई है ! क्यों नहीं कोई सुनिल देशमुख, बिहार में पैदा हो रहा ? इतनी उर्वरक भूमि का बिहार ! और इतना रुखापन ? पैसे कमाने वाले साथियों का ? देखकर मुझे बहुत ग्लानि होती है ! जबतक सुरेंद्र मोहन, कुलदीप नायर, बैरिस्टर वी एम तारकुंडे जैसे लोग थे ! तब बिहार के सभी साथियों के लिए कुछ तरिकेका ! आर्थिक प्रबंधन हमेशा के लिये किया जाना चाहिए ! यह बात मेरे साथ तीनों महानुभाव बोलते थे ! हालांकि हम चारों गैरबिहारी ! कोई साधन संपन्न बिहारी क्यों नहीं आगे आ रहे हैं ? यह सवाल आज पुनः सुनिल देशमुखजी के चले जाने के कारण ! विशेष तौर पर उभर कर सामने आया है ! अगर मेरे मुक्त चिंतन से, किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो मुझे माफ करेंगे !
सुनिल देशमुख की स्मृति को विनम्र अभिवादन !
डॉ. सुरेश खैरनार 5 जनवरी, 2023, नागपुर

Adv from Sponsors