आज मेरी श्री एम जे अकबर से मुलाकात हुई. एम जे अकबर अभी कुछ दिन पहले भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए और भारतीय जनता पार्टी ने तात्कालिक प्रभाव से उन्हें अपना प्रवक्ता नियुक्त कर दिया. अकबर साहब पत्रकारिता के बड़े आदर्शों में रहे हैं और संभवत: उन कुछ जीवित आदर्शों में हैं, जिन्हें देखकर अंग्रेजी और कुछ हिंदी के पत्रकार भी अपना करियर वैसा ही बनाना चाहते हैं. मेरे मन में सवाल था कि आख़िर एम जे अकबर ने क्यों भारतीय जनता पार्टी में जाना पसंद किया. मैं जिन एम जे अकबर को जानता हूं, उनके सिखाए हुए रास्ते पर मेरे सहित चलने वाले बहुत सारे लोग हैं और बहुतों के मन में यह सवाल खड़ा हुआ कि एम जे अकबर क्या भारतीय जनता पार्टी में स़िर्फ राज्यसभा में जाने के मोह में शामिल हुए, क्या वह मोदी सरकार में मंत्री बनना चाहते हैं, क्या उनके मन की ये दोनों ख्वाहिशेंे दबी रह गईं, जिनमें से एक ख्वाहिश राजीव गांधी ने पूरी नहीं की और उसके बाद राजीव गांधी की जगह संभालने वाले नरसिम्हाराव और सोनिया गांधी ने एम जे अकबर जैसे व्यक्तित्व को बिल्कुल किनारे कर दिया. सवालों की शृंखलाएं कभी ख़त्म नहीं होतीं, लेकिन जब एम जे अकबर ने मुझे कॉफी पीने के लिए आमंत्रित किया, तो मेरे सामने इस सत्य को जानने का एक अवसर हाथ आ गया.
मैं एम जे अकबर से जब मिला और अकबर साहब के सवाल के जवाब में मैंने सवाल किया कि मेनस्ट्रीम पॉलिटिक्स में आकर आपको कैसा लग रहा है? एम जे अकबर ने अपने उसी अंदाज में, जिसमें वह हमेशा मिलते हैं, मुस्कराते हुए, बल्कि लगभग हंसते हुए बताया कि वह क्यों भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुए. दरअसल, हिंदुस्तान के मुसलमान परंपरागत रूप से अतिवादी हिंदू ताकतों के ख़िलाफ़ रहे हैं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं भारतीय जनता पार्टी अतिवादी हिंदू शक्तियों के प्रतीक बन चुके हैं. आज़ादी के बाद से कभी मुसलमानों ने भारतीय जनता पार्टी को वोट नहीं दिया. आज़ादी के बाद जनसंघ बना. जनसंघ 1977 में जनता पार्टी में शामिल हो गया और 78-79 में जब जनता पार्टी टूटी, तो जनसंघ भारतीय जनता पार्टी की शक्ल में सामने आया और तबसे अब तक भारतीय जनता पार्टी के रूप में काम कर रहा है. मान्यता या प्रत्यक्ष दर्शन के अनुसार, न तो भारतीय जनता पार्टी अपने साथ मुसलमानों को लेना चाहती है और न मुसलमान भारतीय जनता पार्टी के साथ जाना चाहते हैं. भारतीय जनता पार्टी ने हमेशा कुछ मुस्लिम चेहरों को अपने यहां प्रमुखता दी, लेकिन वह स़िर्फ इसलिए कि कोई भी उस पर सौ प्रतिशत हिंदूवादी होने का आरोप न लगा सके. सिकंदर बख्त, आरिफ बेग और अब शाहनवाज हुसैन और मुख्तार अब्बास नकवी, ये नाम देश में भारतीय जनता पार्टी के मुस्लिम चेहरे के रूप में प्रचलित रहे हैं. पहली बार एक ऐसा शख्स भारतीय जनता पार्टी में शामिल हुआ है, जिसका नाम एम जे अकबर है. एम जे अकबर भारतीय जनता पार्टी के कभी प्रशंसक नहीं रहे. उनकी दंगों की रिपोर्ट में हमेशा यह सत्य उद्घाटित हुआ कि दंगों के पीछे आरएसएस का हाथ रहा है.
एम जे अकबर से बातचीत के बाद मुझे लगा कि उनके तेवर में कोई भी परिवर्तन नहीं आया है और वह इस बात पर बिल्कुल साफ़ हैं और मानते हैं कि उनके आने से मुसलमानों का वोट भारतीय जनता पार्टी को नहीं मिलने वाला. वह यह भी मानते हैं कि मुसलमान उन पर हमले करेंगे, जिस तरह सोशल मीडिया में हमले हो रहे हैं. उन पर सार्वजनिक रूप से भी हमले हो सकते हैं, लेकिन एम जे अकबर इस बात के लिए तैयार हैं. मेरी बातचीत में मुझे यह लगा कि एम जे अकबर ने यह ़फैसला इसलिए लिया, क्योंकि वह चाहते हैं कि मुसलमानों का संवाद भारतीय जनता पार्टी के साथ हो सके. साथ ही भारतीय जनता पार्टी को मुसलमानों के असली सवालों के बारे में भी पता चल सके. यह विडंबना की बात है कि भारतीय जनता पार्टी के मुस्लिम चेहरों ने उसे मुसलमानों के असली सवालों से कभी रूबरू नहीं कराया. उन्होंने मुसलमानों की बातचीत भी भारतीय जनता पार्टी से नहीं कराई. वे जिस तरह की राजनीति चाहते हैं, वैसी बात उन्होंने भारतीय जनता पार्टी से की और इस पूरी तस्वीर में एक नया किरदार सामने आया है, जिसका नाम एम जे अकबर है. एम जे अकबर इतिहास समझते हैं, एम जे अकबर मुसलमानों की समस्याओं को समझते हैं और एम जे अकबर मुसलमानों के दर्द को भी समझते हैं.
सारी बातचीत के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि पहली बार नरेंद्र मोदी के पास एक ऐसा शख्स गया है, जो भारत के मुसलमानों के इतिहास में दिखाए गए किरदारों को नरेंद्र मोदी को समझा सके और किस तरह उच्च वर्ग के लोगों की आपसी लड़ाई में सामान्य लोगों को शामिल कर लिया गया, यह भी बता सके. साथ ही मुसलमान किस तरह की ज़िंदगी जी रहे हैं और किस तरह की ज़िंदगी जीने की चाह रखते हैं, उनके अंतर्विरोधों को भी नरेंद्र मोदी को समझा सके. नरेंद्र मोदी एम जे अकबर पर बहुत भरोसा करते हैं. नरेंद्र मोदी शायद इसलिए एम जे अकबर पर भरोसा करते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि एम जे अकबर न तो कभी चापलूस हो पाएंगे, न किसी के प्रभाव में आकर उन्हें गलत जानकारी देंगे. इसके पीछे नरेंद्र मोदी और एम जे अकबर के बीच पिछले दस सालों के बीच हुई मुलाकातें हैं, जिनमें एम जे अकबर के रवैये ने, रुख ने और उनके विश्लेषण ने शायद नरेंद्र मोदी को प्रभावित किया. अब नरेंद्र मोदी मुसलमानों के लिए किस तरह अपनी समझ विकसित करते हैं, यह सवाल है.
भारतीय जनता पार्टी के बाहर लोगों का यह मानना है कि नरेंद्र मोदी मुसलमानों के बारे में कोई अलग समझ नहीं बनाएंगे और उनके इस रुख का पता अमित शाह की बातों एवं व्यवहार से लगता है. अमित शाह का मानना है कि हम मुसलमानों को अलग ढंग से नहीं देखेंगे, बल्कि हिंदुस्तान के ग़रीब तबके के रूप में देखेंगे और जो योजनाएं ग़रीबों के लिए बनाई जाएंगी, उन्हीं में मुसलमानों को हिस्सा मिलेगा. जबकि मुसलमान यह चाहता है कि उसके लिए वैसी ही विशेष योजनाएं बनें, जैसी दलित वर्ग और पिछड़े वर्ग के लिए बनी हैं. अमित शाह इससे इंकार करते हैं. मेरा भी यह मानना है कि नरेंद्र मोदी इससे इंकार करेंगे, लेकिन अब एम जे अकबर के रूप में मुसलमानों की आवाज़ भारतीय जनता पार्टी में पहुंच गई है.
भारतीय जनता पार्टी के लोग अगर यह मानते हैं कि एम जे अकबर उनकी पार्टी में आकर अपनी उस समझदारी से अलग हट जाएंगे, जिसके लिए वह मशहूर हैं, तो मुझे लगता है कि यह भारतीय जनता पार्टी की गलतफहमी है. सच तो यह है कि भारतीय जनता पार्टी को एम जे अकबर के रूप में एक सशक्त, समझदार व्यक्ति मिला है, जो न केवल मुसलमानों के सवालों को, बल्कि ग़ैर मुसलमानों के सवालों को भी बहुत अच्छी तरह समझता है. एम जे अकबर ने टाइम्स ऑफ इंडिया में जो काम किया, वह उनके अपने लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन उन्होंने संडे, रविवार और टेलिग्राफ में जो काम किया, उसका जवाब कहीं है ही नहीं. हम जिस एम जे अकबर को जानते हैं, वह संडे, रविवार और टेलिग्राफ के एम जे अकबर हैं, जिनकी बेबाक लेखनी ने हिंदुस्तान में उसे नहीं बख्शा, जो गुनहगार था. इसीलिए एम जे अकबर का भाजपा में जाना एक शुभ संकेत है.
एम जे अकबर को भारतीय जनता पार्टी में जाता देख सेक्युलर फोर्सेज परेशान हुई हैं, लेकिन देश को इससे एक फ़ायदा होने की संभावना है. कम से कम भारतीय जनता पार्टी को भारतीय समाज के एक दबे-कुचले और लगभग दलितों की स्थिति में पहुंच गए मुस्लिम समुदाय को समझने में आसानी होगी. अगर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आती है और एम जे अकबर उस सरकार में नरेंद्र मोदी के साथ मंत्रिमंडल में शामिल होते हैं, तो इसमें कोई शंका नहीं होनी चाहिए कि मुस्लिम समुदाय के सवाल नरेंद्र मोदी के सामने बेबाकी और हिम्मत से रखने वाला एक शख्स वहां पर है और वह कम से कम अब दंगों की राजनीति से भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस को दूर रखने में अपनी सारी ताकत लगा देगा. मेरा अपना मानना है कि भारतीय जनता पार्टी में एम जे अकबर का शामिल होना एक समझदार, बेबाक, बेखौफ इंसान का शामिल होना है और यह देश के हित में माना जाना चाहिए.
एम जे अकबर का भाजपा में जाना एक शुभ संकेत
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