साठ के ही दशक के एक और चर्चित व्यक्ति थे, नेविल मैक्सेल, जिन्होंने हाल में सुर्खियां बनाईं. उन्हें 1967 में की गई उनकी उस भयानक भविष्यवाणी के लिए याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह भारत का आख़िरी लोकतांत्रिक चुनाव होगा, लेकिन उसी समय यह भुला दिया जाता है कि उन्होंने भारत-चीन विवाद के बारे में क्या लिखा. उनका लिखा हुआ भारतीय पाठकों के लिए रुचिकर नहीं हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने जो लिखा, वह गलत था. अब हाल में उन्होंने 1962 के युद्ध के बारे में एक रिपोर्ट लीक की है, जिसमें शायद ही कोई नई जानकारी है.
indiamapदो नामों ने बीते सप्ताह अतीत की याद दिला दी. पचास सालों से लगातार सांसद रहे टोनी बेन का निधन हो गया. वह एक अच्छे एवं दयालु व्यक्ति थे. 1960 के दशक के दौरान वह लेबर पार्टी के प्रमुख सदस्य थे और तकनीक प्रेमी व्यक्ति थे. उन्होंने देश में शांति के लिए काम किया. उन्होंने यूके का पोस्टल कोड बनाया, जो अंकों की बजाय अक्षरों से बना था. सत्तर के दशक में उनका झुकाव वामदलों की तरफ़ हो गया, जिसकी वजह से लेबर पार्टी में पर्याप्त बिखराव हो गया. इसका नतीजा यह हुआ कि अगले चार चुनावों तक हमें हार का सामना करना पड़ा. समाजवाद के लिए उनका आदर्शवाद उनके शिष्यों के लिए तो मधुर संगीत की तरह था, लेकिन यह वोटरों पर कोई असर नहीं छोड़ पा रहा था. यह टोनी ब्लेयर ही थे, जिन्होंने पुराने नियमों को छोड़ा, जिसकी वजह से लेबर पार्टी एक बार फिर सत्ता में आ सकी.
यहां पर एक संदेश है कि आपके पुरजोर समर्थक आदर्शवादी होते हैं, लेकिन अगर आप उनकी सलाहों पर काम करते रहे, तो आपको विपक्ष में ही बैठना पड़ेगा. जब आप हार जाते हैं, तब वे चाहते हैं कि विवादों को और जोर से उठाया जाए, जिससे जनता उनकी आवाज़ सुन सके. आप कह सकते हैं कि सभी चीजों का राष्ट्रीयकरण किया जा सकता है या इस बात का वादा भी कर सकते हैं कि प्रत्येक मस्जिद की जगह मंदिर बनवा देंगे, लेकिन वोटर आपको इसके लिए अपना वोट नहीं देगा. जीतने के लिए वोटरों की वास्तविक समस्याओं को समझना होगा.
साठ के ही दशक के एक और चर्चित व्यक्ति थे, नेविल मैक्सेल, जिन्होंने हाल में सुर्खियां बनाईं. उन्हें 1967 में की गई उनकी उस भयानक भविष्यवाणी के लिए याद किया जाता है, जिसमें उन्होंने कहा था कि यह भारत का आख़िरी लोकतांत्रिक चुनाव होगा, लेकिन उसी समय यह भुला दिया जाता है कि उन्होंने भारत-चीन विवाद के बारे में क्या लिखा. उनका लिखा हुआ भारतीय पाठकों के लिए रुचिकर नहीं हो सकता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उन्होंने जो लिखा, वह गलत था. अब हाल में उन्होंने 1962 के युद्ध के बारे में एक रिपोर्ट लीक की है, जिसमें शायद ही कोई नई जानकारी है. सभी को यह मालूम है कि नेहरू से गलत निर्णय हो गया था और उन्होंने सेना को यह आदेश दिए थे कि चीनी सेना को खदेड़ दिया जाए. जबकि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि सेना पूरी तरह से तैयार नहीं है. सेना की सालों से अनदेखी का नतीजा सामने आ गया था. स़िर्फ वीरता ही काफी नहीं होती है, बंदूकों में गोलियों की भी ज़रूरत होती है और ऐसे कपड़ों की भी, जो ठंड से हमारी रक्षा कर सकें.
भारत-चीन के बीच का सीमा विवाद भारतीयों के दिल तक जाता है. भारतवर्ष का प्राचीन इतिहास चाहे जो भी हो, लेकिन इसकी सीमाओं का निर्धारण तब तक नहीं हो पाया, जब तक अंग्रेजों ने इस काम को पूरा नहीं किया. इसी कारण से भारत की सभी सीमा रेखाओं के नाम ब्रिटिश में ही हैं. भारत-अफगानिस्तान के बीच डूरंड रेखा, तिब्बत-भारत के बीच मैकमोहन रेखा और पाकिस्तान-भारत के बीच रेडक्लिफ रेखा. चीनियों ने अंग्रेजों द्वारा खींची गई रेखा को नहीं माना और इस बात की उम्मीद की कि भारत भी आज़ाद होने के बाद उन रेखाओं को नहीं मानेगा. लेकिन, नेहरू अडिग रहे और नए आज़ाद भारत ने उन्हीं सीमाओं को माना, जिन्हें अंग्रेज बनाकर गए थे.
चीन का ऐसा मानना है कि इन रेखाओं को थोपा गया था, इस वजह से ये रेखाएं साम्राज्यवादी हैं.
मुद्दे को देखते हुए इस बात की उम्मीद कम है कि यह शांतिपूर्ण ढंग से हल हो पाएगा. देश अपनी सीमाओं को लेकर वैमनस्य रखते हैं. विशेष रूप से वे देश, जो गुलामी के बाद आज़ाद हुए हैं. वे अपनी सीमाओं में अपना स्वाभिमान देखते हैं. ऐसे देश, जिनमें कई भाषाएं एवं कई क्षेत्र हैं, सीमाएं उन्हें बांधने का काम करती हैं. जरा अपने राष्ट्रगान के बारे में विचार करिए, यह भी पूरे देश की भौगोलिक दृष्टि से व्याख्या करता है. ऐसा लगता है कि भारत सरकार ने उस अध्याय से कोई सीख नहीं ली. हमारे गुटनिरपेक्ष सहयोगी हमें बचाने के लिए नहीं आए और न सोवियत रूस ही आया. जब समस्याएं बहुत बढ़ गईं, तो हमें अमेरिका के पास जाना पड़ा. हाल में जब रूस ने जनमत संग्रह के नाम पर क्रीमिया को मिला लिया, तो भारत उसे समर्थन देने का इच्छुक नज़र आया.
ध्यान देने वाली बात यह है कि अगर चीन भी अरुणाचल में जनमत के नाम पर ऐसा ही करे, तो भारत को इसके लिए सावधान रहना चाहिए. ऐसा भी नहीं है कि यह नहीं हो सकता. इसके लिए मैक्सवेल ने भारत-चीन सीमा के बारे में क्या लिखा है, उसे पढ़िए. इसके अलावा हाल में ए जी नूरानी ने क्या कहा है, उसे भी पढ़ना चाहिए. जब सीमाएं विवादित हों, तो यह बेहतर होता है कि उन्हें अंतरराष्ट्रीय नियमों के आधार पर मिला लीजिए और अपनी सीमाएं सुरक्षित कीजिए. अगर चीन पर्वतों को पार करते हुए भारत में घुस आए, तो रूस हमें बचाने के लिए नहीं आएगा. हाल में अमेरिका के साथ हुए विवाद के बाद तो इस बात पर और भी विचार किया जाना चाहिए.
 

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