मंगलोर देवदास माल्या, देश में बैंकिंग क्षेत्र का ऐसा नाम, जो अपनी लगनशीलता, दूरदर्शिता और बाज़ार के मामलों की व्यापक समझ जैसे गुणों के बूते सफलता की नई-नई कहानियां लिख रहा है. पिछले क़रीब तीन सालों से बैंक ऑफ बड़ौदा में चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर कार्य करते हुए माल्या ने नई और दूरदर्शितापूर्ण नीतियों के बल पर इस बैंक को उपभोक्ता व्यवहार के मामले में निजी बैंकिंग कंपनियों से भी दो क़दम आगे खड़ा कर दिया है. बाज़ार की नब्ज़ को समझते हुए नीतियों का निर्माण और तकनीक के साथ उनका मेल कर माल्या ने बैंक ऑफ बड़ौदा को उन बुलंदियों पर पहुंचा दिया है कि आज वह देश के शीर्ष चार बैंकों में शामिल है.
इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिग्री एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से मार्केटिंग और फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा प्राप्त करने वाले माल्या ने अपना करियर कॉरपोरेशन बैंक के साथ बतौर ऑफिसर ट्रेनी शुरू किया था. इतनी छोटी शुरुआत के साथ 27 साल बाद जब उन्होंने कॉरपोरेशन बैंक को छोड़ा तो वह क्रेडिट ऑफिसर के पद तक का सफर तय कर चुके थे. इसमें उनकी अन्य योग्यताओं के अलावा तकनीकी ज्ञान की भी बड़ी भूमिका रही. 1990 में बैंक की नेपथाया शाखा में जब वह ब्रांच मैनेजर थे, तो यह शाखा सार्वजनिक क्षेत्र की किसी भी बैंक की पहली ऐसी शाखा बनी, जो पूरी तरह कंप्यूटरीकृत थी. उनका अगला पड़ाव मुंबई था, जहां पहले उन्हें कॉरपोरेशन बैंक के ट्रेजरी विभाग में तैनात किया गया और फिर वर्ष 2001 में उन्हें जनरल मैनेजर (आईटी) नियुक्त किया गया. वर्ष 2005 में माल्या ने ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स में एग्ज़ीक्यूटिव डायरेक्टर का पदभार संभाला. ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स के लिए यह समय काफी चुनौतीपूर्ण था. ग्लोबल ट्रस्ट बैंक का अभी-अभी विलय हुआ था और कर्मचारियों से संबंधित समस्याओं के अलावा तकनीक के इस्तेमाल से संबंधित समस्याएं भी मुंह बाए खड़ी थीं, लेकिन माल्या ने बिना घबराए इन मुश्किलों का बख़ूबी सामना किया और ओबीसी को अनिश्चितता के भंवर से बाहर निकालने में अपना योगदान दिया. नौ महीनों के भीतर ही वह बैंक ऑफ महाराष्ट्र के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए, जहां वह क़रीब दो साल तक रहे. बीमा और म्यूचुअल फंड क्षेत्र की कंपनियों के साथ नए करारों के चलते उनके कार्यकाल के दौरान बैंक ऑफ महाराष्ट्र का कुल लाभ 51 करोड़ से 271 करोड़ रुपये के आंकड़े तक पहुंच गया और सेल्स का सालाना टर्नओवर 44 हज़ार करोड़ से 66 हज़ार करोड़ रुपये के पार पहुंच गया. 2008 में माल्या बैंक ऑफ बड़ौदा के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर बन गए. यहां उनके पास करने के लिए काफी मौक़ेथे और बैंक ऑफ बड़ौदा का नेटवर्क पूरे देश में मौजूद था. उन्होंने इसका भरपूर फायदा उठाया और आज यह बैंक कुल परिसंपत्तियों, मुना़फा और लोन उपलब्ध कराने के लिहाज़ से देश का चौथा सबसे बड़ा, जबकि कुल व्यापार और जमा के लिहाज़ से तीसरा सबसे बड़ा बैंक बन चुका है. देश के सभी क्षेत्रों में फैली इसकी सभी 3200 शाखाओं में कोर बैंकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है.
इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग में डिग्री एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से मार्केटिंग और फाइनेंस में पोस्ट ग्रेजुएशन की शिक्षा प्राप्त करने वाले माल्या ने अपना करियर कॉरपोरेशन बैंक के साथ बतौर ऑफिसर ट्रेनी शुरू किया था. इतनी छोटी शुरुआत के साथ 27 साल बाद जब उन्होंने कॉरपोरेशन बैंक को छोड़ा तो वह क्रेडिट ऑफिसर के पद तक का सफर तय कर चुके थे. इसमें उनकी अन्य योग्यताओं के अलावा तकनीकी ज्ञान की भी बड़ी भूमिका रही. 1990 में बैंक की नेपथाया शाखा में जब वह ब्रांच मैनेजर थे, तो यह शाखा सार्वजनिक क्षेत्र की किसी भी बैंक की पहली ऐसी शाखा बनी, जो पूरी तरह कंप्यूटरीकृत थी.
बैंक ऑफ बड़ौदा को सफलता के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए माल्या ने होलसेल बैंकिंग और रिटेल बैंकिंग के लिए अलग-अलग तरीक़ा अख्तियार किया. होलसेल बैंकिंग के क्षेत्र में उनकी नई पहलों का नतीजा यह है कि आज देश की 20 से ज़्यादा बड़ी-बड़ी कंपनियां इस बैंक के साथ जुड़ चुकी हैं. होलसेल बैंकिंग से मिलने वाले कुल राजस्व में पिछले साल के मुक़ाबले 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि कुल लाभ में 88 प्रतिशत वृद्धि के साथ यह 1585 करोड़ रुपये के आंकड़े को छू चुका है. रिटेल बैंकिंग में उनकी रणनीति का केंद्र बिंदु होम लोन है. एक सोची-समझी रणनीति के तहत रिटेल क्षेत्र में कुल अग्रिम का आधा हिस्सा होम लोन के लिए आरक्षित रखा गया है, जबकि बाक़ी का आधा हिस्सा ऑटो और एजुकेशन लोन के लिए आरक्षित है. माल्या का मानना है कि रिटेल बैंकिंग में ज़्यादा जोखिम ज़रूर है, लेकिन यह ज़्यादा मुना़फा भी देता है. रिटेल क्षेत्र में बैंक ऑफ बड़ौदा की पकड़ मज़बूत करने के लिए उन्होंने उपभोक्ता सेवाओं के विस्तार और ब्रांड के निर्माण पर सबसे ज़्यादा जोर दिया. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के लिए उपभोक्ताओं से अपने स्तर पर संपर्क साधना और मदद के लिए पूछना भारत में अनोखी बात थी, लेकिन माल्या ने ऐसा ही किया. मेट्रो शहरों में बैंक की शाखाओं में बिरला सन के लोगो की जगह बड़ौदा नेक्स्ट के लोगों लगाए जा रहे हैं. अगले एक साल में मेट्रो और अन्य शहरी क्षेत्रों की 1200 से भी ज़्यादा शाखाएं बड़ौदा नेक्स्ट नेटवर्क के अंदर में आ जाएंगी. नए ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए भी माल्या ने अनोखी रणनीति अपनाई. उन्होंने दवा कंपनियों द्वारा मेडिकल रिप्रेंजेटेटिव भेजने की तर्ज पर सिटी सेल्स आउटलेट्स की योजना बनाई, जहां बैंक के प्रतिनिधि संभावित ग्राहकों से संपर्क साधकर उन्हें अपनी योजनाओं और उपलब्ध कराई जाने वाली सेवाओं से परिचित कराते हैं. अब तक ऐसे 15 आउटलेट्स खोले जा चुके हैं और जल्द ही यह संख्या 50 के आसपास पहुंच जाएगी.
माल्या के नेतृत्व में बैंक की क्रेडिट कार्ड सेवा उपलब्ध कराने वाली बॉबकार्ड योजना भी दोबारा पटरी पर लौटने लगी है. बॉबकार्ड देश में शुरू की गई सबसे पहली क्रेडिट कार्ड योजनाओं में शामिल है, लेकिन लगातार घाटे के चलते यह खटाई में पड़ गई थी. माल्या के कुशल दिशानिर्देशन का नतीजा यह है कि कई सालों बाद बैंक पहली बार 25 हज़ार नए कार्ड बेचने की योजना बना रहा है. नई योजनाओं के साथ तकनीक को जोड़ते हुए माल्या ने कई ऐसी चीजों की शुरुआत की है, जो भारत में पहले नहीं हुईं, लेकिन अब दूसरे बैंक भी उसी रास्ते पर चल पड़े हैं. समय की नब्ज़ को पहचानना तो जैसे माल्या की फितरत का एक हिस्सा है. बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स स्थित नौवीं मंजिल के अपने जिस ऑफिस में वह बैठते हैं, उसके ठीक सामने आईसीआईसीआई और सिटी बैंक का मुख्य कार्यालय भी स्थित है. उसे देखते हुए माल्या अक्सर बैंक ऑफ बड़ौदा के सुनहरे भविष्य के सपने देखते थे, साथ ही इससे उन्हें बाज़ार की प्रतियोगिता का एहसास भी होता था. मंदी के दौर में जब आईसीआईसीआई और सिटी बैंक की माली हालत कमज़ोर पड़ी, माल्या ने मौक़ा ताड़ा और नए उपभोक्ताओं को आकर्षित करने के लिए नई योजनाएं शुरू कर दीं. उनका यह तीर निशाने पर बैठा और केवल देश ही नहीं, विदेशों में भी बैंक ऑफ बड़ौदा आज इस हालत में है कि अपने उपभोक्ताओं का चुनाव कर सके. विदेशों में अपने पैर पसारने के मामले में यह बैंक वैसे भी कभी पीछे नहीं रहा है. इसी का परिणाम है कि आज 26 देशों में इसकी 81 शाखाएं काम कर रही हैं. फिजी जैसे देशों में तो इसे स्थानीय बैंक का दर्जा हासिल है, जबकि यूगांडा में यह शेयर मार्केट का एक हिस्सा है. इस साल जुलाई में लंदन स्थित कार्यालय से माल्या ने एक साल, तीन साल और पांच साल की अवधि वाली ऑनलाइन टर्म डिपोजिट स्कीम की शुरुआत की, जिस पर मिलने वाला ब्याज लिबोर से निर्धारित होता है. भारतीय बैंकों में इससे पहले केवल आईसीआईसीआई बैंक ने ही इस क्षेत्र में क़दम रखा था, लेकिन बैंक ऑफ बड़ौदा की इस योजना के अंतर्गत पहले सप्ताह में ही 720 करोड़ रुपये की राशि जमा हो गई और दो महीनों के अंदर यह आंकड़ा 2100 करोड़ रुपये के पार पहुंच गया.
माल्या की एक और बड़ी खासियत है, भविष्य पर नज़र टिकाए रखना. उन्हें पता है कि 2015 तक आते-आते बैंक के टॉप मैनेजमेंट का करीब आधा हिस्सा सेवानिवृत्त हो चुका होगा. बैंक के प्रबंधन में नेतृत्व का संकट न पैदा हो, इसके लिए उन्होंने उड़ान नामक एक लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम की शुरुआत की है. इसमें यह व्यवस्था है कि छोटे स्तर के कर्मचारियों की प्रतिभा की भी पहचान संभव हो सकेगी. जब नेतृत्व इतना दूरदर्शी हो और अपने कर्मचारियों का इतना ध्यान रखता हो, तो फिर ऐसे किसी संस्थान की कामयाबी पर कोई संदेह नहीं किया जा सकता.