हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भाजपा का प्रचार कर रहे हैं. जाहिर है, भाजपा के पास वास्तव में और ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो देश की जनता को अभिभूत कर सके. अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी का नाम लेकर उस पर हमला नहीं कर रहे हैं. हरियाणा में जवाहर लाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी के नाम पर उन्होंने सकारात्मक बातें कीं और सफाई को लेकर जनता का आह्वान किया.
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जब दो सेनाएं लंबी अवधि तक आमने-सामने तैनात हों, फायरिंग चल रही हो, तो कोई भी पक्ष युद्ध विराम उल्लंघन का दोषी ठहराया जा सकता है. हालांकि, इस तरह के मामलों को फील्ड में हल किया जाता है. पहले भी ऐसे मामलों को मिलकर संतोषजनक ढंग से हल किया गया है. लेकिन, अब जो हो रहा है, वह काफी अलग है. कुछ महीने पहले जो घटनाएं हुई थीं, वे जानबूझ कर भड़काने के लिए हुईं, लेकिन पिछले कुछ हफ्तों से जो हो रहा है, वह यूनाइटेड नेशन्स में झेली गई और अमेरिका के साथ विभिन्न वार्ताओं में महसूस की गई असफलता से उपजे ऩुकसान की भरपाई के लिए हो रहा है. सरकार इसे हल्के में नहीं ले सकती. राजनयिक स्तर पर दबाव डालने के अलावा, सरकार को उच्च स्तर पर इस पूरे मामले को ले जाना चाहिए और फील्ड लेवल पर कड़ा जवाब देना चाहिए.
यह धारणा कतई नहीं बननी चाहिए कि वे जो चाहें, कर सकते हैं और सरकार चुपचाप रहकर उन्हें संघर्ष विराम के उल्लंघन की आड़ में अपनी मर्जी चलाते रहने देगी और हम जवाब नहीं देंगे. तीन दिन पहले, उन्होंने सीमा पर मोर्टार, 120 एमएम मोर्टार का इस्तेमाल किया. पांच किलोमीटर दूर सीमा से सटे गांव पर हमला किया. अब सवाल यह है कि ऐसा हमला रूटीन नहीं हो सकता, यह आकस्मिक नहीं हो सकता, यह क्षम्य नहीं है. यह युद्ध शुरू करने की एक प्रारंभिक चेतावनी है. सेना आम तौर पर 80-85 एमएम मोर्टार का इस्तेमाल करती है.
इस मामले को उनके राजदूत/उच्चायुक्त के माध्यम से या इस्लामाबाद में हमारे राजदूत के माध्यम से ले जाना चाहिए. और, जैसा कि मैंने कहा, हमारी सेना और सुरक्षा बलों को उन्हें मुंह तोड़ जवाब देने के लिए पूरी तरह से सुसज्जित रहना चाहिए. बेशक, देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि उन्होंने इस मामले को ध्यान में लिया है और यह हल हो जाएगा. मुझे लगता है कि वह यह खुलासा नहीं करना चाहते कि इस बारे में उन्होंने क्या क़दम उठाए हैं. उम्मीद करता हूं कि दोनों पक्ष इस बात को समझेंगे कि इस बेकार के मसले पर इतना अधिक पैसा खर्च करना ग़ैर ज़रूरी है.
हरियाणा और महाराष्ट्र में चुनाव होने हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भाजपा का प्रचार कर रहे हैं. जाहिर है, भाजपा के पास वास्तव में और ऐसा कोई चेहरा नहीं है, जो देश की जनता को अभिभूत कर सके. अच्छी बात यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी किसी का नाम लेकर उस पर हमला नहीं कर रहे हैं. हरियाणा में जवाहर लाल नेहरू एवं इंदिरा गांधी के नाम पर उन्होंने सकारात्मक बातें कीं और सफाई को लेकर जनता का आह्वान किया. मुझे लगता है कि यह बहुत अच्छा संकेत है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर लाल किले से देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का नाम लेते, तो ज़्यादा अच्छा होता. उन्होंने महात्मा गांधी का नाम लिया, लेकिन वह जवाहर लाल नेहरू के नाम का उल्लेख नहीं कर सके. कोई जवाहर लाल नेहरू की नीतियों से भले सहमत न हो, लेकिन आज भारत के एक क्रियाशील लोकतंत्र होने के पीछे जवाहर लाल नेहरू के योगदान को नहीं नकारा जा सकता है. भारत और पाकिस्तान एक ही दिन आज़ाद हुए थे, लेकिन पहले 11 सालों में पाकिस्तान में सात प्रधानमंत्री हुए और बाद में सेना ने सत्ता हथिया ली. 1958 में अयूब खान सत्ता पर काबिज हुए और तबसे आज तक पाकिस्तान में एक बहुत ही अस्थिर लोकतंत्र देखने को मिला है.
हम सब बदनामी से बचे रहे, तो इसके पीछे केवल एक व्यक्ति यानी जवाहर लाल नेहरू ही हैं. उन्हें इसके लिए श्रेय मिलना चाहिए. बेशक, वह अचूक नहीं थे, इसलिए कश्मीर मामले में गलत निर्णय हो गया था, चीन मामले में भी गलती हो गई, लेकिन इस सबसे नेहरू के योगदान को भूला नहीं जा सकता. मसलन, लोकतंत्र की नींव को मजबूत करने में उनकी उपलब्धियों, परमाणु ऊर्जा और अन्य आधुनिक विचारों के संबंध में उनके योगदान को नहीं भुलाया जा सकता है. यह अच्छी बात है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संघ परिवार की उस मानसिकता से बाहर निकल रहे हैं, जिसके तहत संघ परिवार केवल चुनावी लाभ के लिए नेहरू परिवार पर आरोप लगाता है. महाराष्ट्र और हरियाणा में जो भी चुनाव परिणाम आएं, चाहे जो भी पार्टी या गठबंधन सत्ता में आए, लेकिन यह खुशी की बात है कि देश में लोकतंत्र मजबूती से स्थापित हो रहा है.

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