जनता परिवार की भूमिका भी तभी सार्थक मानी जायेगी जब वह एक मजबूत विपक्ष के रूप में संसद से सड़क तक सक्रियता से काम करेगा. जनता परिवार को बदलते राजनीतिक माहौल में खुद को भी ढालने की जरूरत होगी. नई पीढ़ी को साथ लाने के लिए उसे नई पीढ़ी के लोगों की आकांक्षाओं को समझना होगा. पुराने फॉर्मूले के साथ-साथ इसे नये जमाने की आहट को भी सुनना-समझना होगा. तभी ये जनता का विश्‍वास जीतने में सफल होंगे. जनता परिवार को एक पार्टी, एक झंडे और एक निशान के साथ खुद को जनता के सामने भाजपा के मुकाबलेे मजबूत विकल्प के रूप में पेश करना होगा.

J1क्रिकेट, राजनीति और भारत के मौसम के बारे में एक चीज सामान्य है. आप इन तीनों के बारे में कोई सटीक पूर्वानुमान नहीं लगा सकते. क्रिकेट में अंतिम गेंद फेंके जाने तक जीत-हार का फैसला आप नहीं कर सकते. भारत के मौसम के बारे में भविष्यवाणी करने में मौसम विज्ञानी भी फेल हो जाते हैं, रही बात राजनीति की तो चुका हुआ तीर भी कुछ समय बाद तुरुप का इक्का बनकर सामने आ जाता है. इस तरह के कई उदाहरणों से भारतीय राजनीति का इतिहास भरा पड़ा है. इन बातों का उल्लेख करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जैसे ही बात जनता परिवार की आती है तो सबसे पहले इसमें शामिल दलों के लिए ये लोग चूके हुए तीर हैं जैसे जुमले का इस्तेमाल किया जाता है. अब भला इनसे क्या निशाना लगेगा. बदलते सामाजिक-राजनीतिक मुहावरे और खास कर युवा भारत की आकांक्षाओं को देखा जाये तो इस तरह के आरोपों को सिरे से खारिज भी नहीं किये जा सकते हैं. लेकिन, यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या संसदीय राजनीति में सत्ता पर अंकुश लगाने के लिए एक मजबूत विपक्ष की आवश्यकता देश को नहीं है? देश को सही ढंग से चलाने के लिए जितनी आवश्यकता एक मजबूत सरकार की है ठीक उतनी ही आवश्यकता एक मजबूत विपक्ष की भी है. इस वक्त संसद में विपक्ष बिखरा हुआ है. सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस हतोत्साहित है. उसके 44 सांसद हैं. याद करने वाली बात यह है कि जब नेहरू सत्ता में थे तब भी किसी एक विपक्षी पार्टी के पास इतना संख्या बल नहीं होता था कि उसे लीडर अपोजीशन यानी नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल सके. लेकिन उस दौर में भी विपक्ष में ऐसे लोग मौजूद थे जो अपने तर्कों और आंकड़ों के आधार पर सरकार को को घेर लेते थे. आज कांग्रेस के पास न वैसा कोई नेता है और न ही कांग्रेस ऐसा उत्साह भी प्रदर्शित नहीं कर रही है जिससे लगे कि वह संसद के भीतर और बाहर सरकार के गलत निर्णयों की आलोचना कर सके, उसका विरोध कर सके.
ऐसे में यदि मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, एचडी देवेगौड़ा जैसे नेता एक मजबूत विपक्ष बनाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? अब इस पहल का अंजाम क्या होगा, यह प्रयोग कितना सफल होगा, यह तो बाद की बात है,यदि इस तरह की कोई पहल हो रही है तो इसमें बुराई क्या है? ये सभी नेता मिलकर अगर एक पार्टी और एक निशान के साथ एक झंडे के तले आना चाहते हैं तो इसमें किसका नुक़सान है? दरअसल, जनता परिवार से जुड़े छह दल समाजवादी पार्टी (एसपी), समाजवादी जनता पार्टी, इंडियन नेशनल लोक दल(इनेलो), राष्ट्रीय जनता दल (राजद), जनता दल (युनाइटेड)और जनता दल (सेेकुलर) बिखरे हुये जनता परिवार को एकबार फिर से एक करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं. तकरीबन बीस साल बाद लालू यादव और नीतीश कुमार फिर से एक साथ आगे बढ़ रहे हैं. मुलायम सिंह के घर पर हुई दो बैठकों के बाद इनलोगों ने 22 दिसंबर को दिल्ली के जंतर-मंतर पर एक महाधरना किया. संख्या के लिहाज से यह सफल रहा क्योंकि इस धरना में सपा के कार्यकर्ता भारी संख्या में पहुंचे थे. मंच पर जनता परिवार के तकरीबन सभी बड़े नेता उपस्थित थे. पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा ने लोगों को संबोधित करते हुए कहा कि आज देश के हालात ऐसे हो गये हैं जिसकी वजह से जनता परिवार के सभी दलों के एकजुट होने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं है. नीतीश कुमार ने

जब नेहरू सत्ता में थे तब भी किसी एक विपक्षी पार्टी के पास इतना संख्या बल नहीं होता था कि उसे लीडर अपोजीशन यानी नेता प्रतिपक्ष का दर्जा मिल सके. लेकिन उस दौर में भी विपक्ष में ऐसे लोग मौजूद थे जो अपने तर्कों और आंकड़ों के आधार पर सरकार को को घेर लेते थे. आज कांग्रेस के पास न वैसा कोई नेता है और न ही कांग्रेस ऐसा उत्साह भी प्रदर्शित नहीं कर रही है जिससे लगे कि वह संसद के भीतर और बाहर सरकार के गलत निर्णयों की आलोचना कर सके, उसका विरोध कर सके.

भारतीय जनता पार्टी को उसके वादों की याद दिलाई और कहा कि अब तक लोगों के खातों में कालाधन के हिस्से का पंद्रह लाख रुपये नहीं पहुंचे हैं? नीतीश कुमार ने तो बकायदा आडियो क्लिप सुनाकर यह साबित करने की कोशिश की कि भाजपा सत्ता में आते ही उन वादों को भूल गई है जो उसने जनता से चुनाव प्रचार के दौरान किये थे. लालू प्रसाद यादव अपनी शैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते नज़र आये और कहा कि मैंने अपने बेटे तेजस्वी यादव से कहा कि बाबा रामदेव को ट्वीट करो और बताओ कि मोदी जी का हिसाब गड़बड़ हो गया है. काले धन पर बाबा कुछ कह रहे थे और अब सरकार कुछ और कह रही है. नीतीश कुमार समेत सभी नेताओं ने नरेंद्र मोदी पर वादाखिलाफी करने का आरोप लगाया. इनके मुताबिक जनता ने नरेंद्र मोदी के वादों पर पूरा विश्‍वास किया था. लेकिन, किसानों को उपज का लाभकारी मूल्य दिलाने, काला धन वापस लाने, सबका विकास करने और सुशासन देने जैसे नारों के साथ सत्ता में आई भाजपा जनता से जुड़े कई मुद्दों पर अब तक ठोस पहल नहीं कर सकी है. महाधरना में इस बात की भी घोषणा की गई कि जनता परिवार से जुड़ी सभी पार्टियों का विलय समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव की अगुवाई में हो रहा है.
बहरहाल, ऐसे समय में यह महाधरना अयोजित हुआ जब देश में कुछ संगठन धर्मांतरण और घर वापसी जैसी बहसों को जन्म दे रहे थे, और प्रधानमंत्री इस पर संसद में कुछ नहीं बोल रहे थे. ऐसे में सपा, जदयू, राजद, जद (सेकुलर), इनेलो और सजपा के संसद से सड़क तक विरोध प्रदर्शन को एक सकारात्मक राजनीतिक कदम कहा जा सकता है. जनता परिवार से जुड़े नेता यह समझ रहे हैं कि यदि हिंदू वोटर एक होकर बीजेपी की ओर चले जाएंगे तो यह उनके राजनीतिक अस्तित्व के लिए खतरनाक है. इसलिए इनकी कोशिश होगी कि बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में वे किसी भी तरह अपने जातीय गणित को फिर से जोड़कर नरेंद्र मोदी के विजय रथ को रोक दें.
लेकिन इस महा-गठबंधन को लेकर कुछ सवाल भी खड़े किये जा रहे हैं. मसलन, क्या यह अवसरवादी गठबंधन है, इसका नेतृत्व जो कोई भी करे, क्या वह सबको स्वीकार्य होगा? मसलन, क्या बिहार में लालू यादव नीतीश कुमार की लीडरशीप मानेंगे आदि. एक सवाल यह भी कि जब 1977 में इस तरह का प्रयोग सफल नहीं हुआ तो क्या गारंटी है कि इस बार यह प्रयोग सफल होगा? 1977 में जनता पार्टी, 1989 में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार, 1996 में एचडी देवेगौड़ा और इंदर कुमार गुजराल की सरकारें बनी और गिरी. कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी. इस वजह से भी जनता परिवार की विश्सनीयता पर लोग शक करते रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं.
बहरहाल, 2014 के आम चुनाव में मिले झटके के बाद जनता परिवार के ये नेता सीख लेंगे और आगे उन गल्तियों को दोहराने से बचेंगे जो वे अतीत में कर चुके हैं. जनता परिवार की भूमिका भी तभी सार्थक मानी जायेगी जब वह एक मजबूत विपक्ष के रूप में संसद से सड़क तक सक्रियता से काम करेगा. जनता परिवार को बदलते राजनीतिक माहौल में खुद को भी ढालने की जरूरत होगी. नई पीढ़ी को साथ लाने के लिए उसे नई पीढ़ी के लोगों की आकांक्षाओं को समझना होगा. पुराने फॉर्मूले के साथ-साथ इसे नये जमाने की आहट को भी सुनना-समझना होगा. तभी ये जनता का विश्‍वास जीतने में सफल होंगे. जनता परिवार को एक पार्टी, एक झंडे और एक निशान के साथ खुद को जनता के सामने भाजपा के मुकाबलेे मजबूत विकल्प के रूप में पेश करना होगा. इन्हें महज जातीय राजनीतिक खांचे से आगे निकल कर युवाओं और जन आकांक्षाओं को समझते हुए नई नीतियां और नए कार्यक्रम पेश करने होंगे. इसके साथ जनता परिवार को अपनी ताकत बढ़ाने के लिए अन्य छोटे दलों, यहां तक कि वामदलों से भी सहयोग लेने की कोशिश करनी चाहिए. आज जरूरत है कि समान सोच वाले लोग और सभी बड़ी-छोटी पार्टियां एक साथ एक दिशा में आगे बढ़ें, ताकि देश को एक मजबूत सरकार के साथ-साथ एक मजबूत विपक्ष भी मिल सके.


इस महा-गठबंधन को लेकर कुछ सवाल भी खड़े किये जा रहे हैं. मसलन, क्या यह अवसरवादी गठबंधन है, इसका नेतृत्व जो कोई भी करे, क्या वह सबको स्वीकार्य होगा? मसलन, क्या बिहार में लालू यादव नीतीश कुमार की लीडरशीप मानेंगे आदि. एक सवाल यह भी कि जब 1977 में इस तरह का प्रयोग सफल नहीं हुआ तो क्या गारंटी है कि इस बार यह प्रयोग सफल होगा? 1977 में जनता पार्टी, 1989 में विश्‍वनाथ प्रताप सिंह की सरकार, 1996 में एचडी देवेगौड़ा और इंदर कुमार गुजराल की सरकारें बनी और गिरी. कोई भी सरकार अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकी.  इस वजह से भी जनता परिवार की विश्सनीयता पर लोग शक करते रहे हैं और अभी भी कर रहे हैं.


इस सरकार ने युवाओं, किसानों और आम आदमी के साथ वादाखिलाफी की है. आज यहां भारी संख्या में युवा आये हैं. युवा अगर एक साथ आगे आयें तो कोई सरकार मनमानी नहीं कर सकती. मैं चाहता हूं कि युवा गांव-गांव जाकर सरकार की इस वादाखिलाफी के बारे में लोगों को बतायें.
– मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष, समाजवादी पार्टी.

एक दल बनाने की शुरुआत है यह कार्यक्रम. सरकार ने लोगों के साथ धोखा किया है. जनधन योजना में 8 करोड़ खाते खुले हैं जिसमें से 5 करोड खातों में अब तक कोई ट्रांजेक्शन नहीं हुआ है. अब ये कह रहे है कि जिस खाते में ट्रांजेक्शन नहीं हुआ है उनको दुर्घटना बीमा का लाभ भी नहीं मिलेगा.
– नीतीश कुमार, पूर्व मुख्यमंत्री, बिहार और जद(यू) नेता.

सबका साथ-सबका विकास का नारा देने वाली पार्टी धर्मांतरण करवा कर किसका और कैसा विकास करना चाहती है. क्या तब तक विकास नहीं होगा जब तक सब के सब हिंदू न बन जाये. सरकार अगर ऐसा करना चाहती है तो फिर से इसी मुद्दे पर चुनाव लड़कर दिखाये.

– शरद यादव, राष्ट्रीय अध्यक्ष, जद(यू)

सोशल मीडिया के जरिए युवाओं को अच्छे दिन का प्रलोभन दे कर सरकार बना ली. कहा दो करोड़ नौकरी देंगे. युवा भुलावे में आ गये. अब नौकरी देने की जगह सरकार स्किल सिखाने की बात कह रही है.

– लालू यादव, अध्यक्ष, राष्ट्रीय जनता दल

न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाकर हम सबको एक साथ आगे आना चाहिए.

– रघुवंश प्रसाद सिंह, नेता, राजद

पहले नौकरी दो, रोटी दो फिर धर्मांतरण की
बात करना. – आजम खान, नेता, समाजवादी पार्टी

 

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