भोपाल। पेट्रोल टैंक पर लगने वाली कतारें नदारद हैं… कर्मचारियों की भागदौड़ गुम हो चुकी… इक्का-दुक्का आते ग्राहकों से काम चलाते पंप पर पहले की तुलना में एक चौथाई बिक्री के हालात भी बाकी नहीं हैं। इसके विपरीत संचालन के लिए होने वाले खर्च की रफ्तार पहले ही की तरह है। आवक-जावक के इस अंतर ने पंप संचालकों को हताश करना शुरू कर दिया है।

जानकारी के मुताबिक राजधानी भोपाल में भारत पेट्रोलियम, हिन्दुस्तान पेट्रोलियम और रिलायंस कंपनी के ढ़ाई सौ से ज्यादा पेट्रोल पंप मौजूद हैं। इनमें से अधिकांश बड़े पेट्रोल पंप से हरदिन 10 हजार लीटर तक बिक्री का रिकार्ड हुआ करता था। जबकि छोटे टैंक भी 4-5 हजार लीटर पेट्रोल-डीजल बेचने की तसल्ली साथ रखते थे। पिछले एक महीने से ज्यादा समय से जारी लॉक डाउन के हालात ने बिक्री के इन आंकड़ों को लगातार नीचे गिराया है। बंद पड़े वाहनों के कारण पेट्रोल-डीजल बिक्री का आंकड़ा 30 फीसदी से भी नीचे आ गया है।

न बाहर की दौड़, न शहर भ्रमण

शहर से विभिन्न मार्गों के लिए सफर करने वाले वाहनों की आवाजाही थमी हुई है। परिवहन के लिए भारवाहकों की दौड़ भी बहुत हद तक कम हो चुकी है। इसके अलावा शहर में चलने वाले लोक वाहनों की आवाजाही भी थमी हुई है, जिसका नतीजा यह है कि राजधानी के पेट्रोल टैंक से होने वाली डीजल की बिक्री नीचे आ गई है। इसी तरह छोटे दो पहिया-चार पहिया वाहनों के पहिए भी पिछले एक महीने से ज्यादा समय से थमे हुए हैं, जिसके कारण पेट्रोल खपत भी नीचे की तरफ आ गई है। एक आंकलन के मुताबिक राजधानी भोपाल में पिछले एक माह में पेट्रोल खपत महज 30-35 प्रतिशत रह गई है। जबकि डीजल की बिक्री मात्र 25-30 प्रतिशत पर आ गई है।

सबसे ज्यादा बिक्री का तमगा, अब आधे से नीचे

भोपाल में सबसे ज्यादा बिक्री का आंकड़ा रखने वाले राजधानी पेट्रोल पंप को सबसे अधिक बिक्री के लिए आईएसओ अवार्ड हासिल है। इस अवार्ड के लिए उनके यहां शुद्धता और उचित माप की ईमानदारी को भी परखा गया है। वे बताते हैं कि आम दिनों में उनके यहां 7.5 केएल प्रतिदिन बिक्री होती है। लेकिन लॉक डाउन के हालात ने इस बिक्री को 3 केएल पर पहुंचा दिया है। इसी तरह अल्पना तिराहा पर स्थित एक पेट्रेाल टैंक के कर्मचारियों का कहना है कि जहां पहले उनके यहां हरदिन एक टैंकर बिक्री के लिए पहुंचता था, वहीं अब एक टैंकर का उपयोग 15-20 दिन तक हो रहा है।

खर्च पहले की तरह बरकरार

पेट्रोल पंप संचालकों की व्यथा यह है कि उनकी आमदनी पहले से आधी से भी कम हो गई है। जबकि उनके खर्च की रफ्तार पहले की ही तरह बरकरार है। जानकारी के मुताबिक कर्मचारी, बिजली और अन्य खर्चों पर पेट्रोल पंप संचालकों को महीनेभर में करीब 2.50 लाख रुपए खर्च करना पड़ता है। लेकिन पिछले एक माह में उन्हें खर्च के बदले उचित प्राप्ति नहीं हो पा रही है।

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