ललित मोदी प्रकरण से मोदी सरकार और भारतीय जनता पार्टी की छवि खराब हुई है. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि ललित मोदी पर इंडियन प्रीमियर लीग(आईपीएल) को लेकर कई आरोप हैं. उन पर पैसों की हेराफेरी करने का आरोप है. यह बात भी छिपी नहीं है कि कांग्रेस, भाजपा और अन्य पार्टियों के  बहुत से लोग ऐसे हैं जिनके रिश्ते ललित मोदी के  साथ रहे हैं. ललित मोदी के  ख़िलाफ जो आरोप लगे वो कांग्रेस सरकार द्वारा लगाए गए थे. साल 2010 में जब ललित मोदी पर टैक्स चोरी और मनी लॉन्डरिंग का आरोप लगा था, तब वह देश से भाग कर लंदन चले गए. यह बात भी सही है कि तब हाईकोर्ट ने ललित मोदी के  पक्ष में निर्णय दिया था लेकिन हैरानी इस बात की है कि उस वक्तकांग्रेस की सरकार हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गई. एक बार फिर इस मामले को मीडिया में उठाया गया है. इस मसले भूतपूर्व इनकम टैक्स कमिश्नर विश्वबंधु गुप्ता ने चौथी दुनिया के  साथ एक्सक्लूजिव बातचीत में एक हैरतअंगेज खुलासा किया है.

lalit-gateविश्वबंधु गुप्ता का दावा है कि जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे, तब कांग्रेस पार्टी के एक नेता ने उनकी मुलाक़ात ललित मोदी के पिता के के मोदी से करवाई थी. उस नेता ने के के मोदी को उनसे यह कहकर मिलवाया था कि विश्वबंधु की वित्त मंत्रालय में गहरी पैठ है. इस मुलाकात के दौरान के के मोदी ने कहा कि ललित मोदी को भारत लाना है. उनका सीधा मतलब था कि ललित पर लगे सारे आरोपों को कैसे खत्म किया जाए. विश्वबंधु गुप्ता को यह भली-भांति पता था कि ललित मोदी ने आईपीएल में क्या-क्या किया है. विश्वबंधु पहले भी क्रिकेट में मैच फिक्सिंग की जांच कर चुके थे. उन्होंने के के मोदी से कहा कि यदि आपको कोई राहत चाहिए तो वह आपको सिर्फ इस देश की अदालतें दे सकती हैं. इस मामले में और कुछ नहीं हो सकता. विश्वबंधु गुप्ता से के के मोदी ने साफ-साफ कहा कि वह कोर्ट जाने में यकीन नहीं रखते हैं. कोई ऐसा रास्ता बताइए जिससे कि ढाई-तीन सौ करोड़ रुपये देकर मामली निपट जाये. मतलब यह कि के के मोदी ने विश्वबंधु गुप्ता को ललित मोदी मामले को खत्म करने के लिए तीन सौ करोड़ रुपये की पेशकश की थी. विश्वबंधु गुप्ता कहते हैं कि के के मोदी शायद देश के पहले बिजनेसमैन हैं जो तीन सौ करोड़ रुपये रिश्वत के रूप में देने लिए तैयार थे, क्योंकि उन्हें मालूम है कि यह मामला तीन सौ करोड़ रुपये का है.
कांग्रेस सरकार और आईपीएल से जुड़े लोगों को ललित मोदी के बारे में सबकुछ मालूम था, कि वह क्या कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस सरकार ने ललित मोदी के खिलाफ एक भी निर्णय नहीं लिया. लेकिन यह मामला बीजेपी में नंबर दो का नेता बनने की होड़ में एक हथियार की तरह इस्तेमाल हुआ. इसका इस्तेमाल एनडीए की एक वरिष्ठ महिला केंद्रीय मंत्री के लिए किया गया था. लेकिन जिस बड़े नेता ने इस खेल को अंजाम दिया उन्हें यह नहीं पता था कि जितना बड़ा पलीता वो लगा रहे हैं उससे पूरी सरकार और भाजपा के लिए समस्या खड़ी हो जाएगी. दरअसल, ललित मोदी पर जितनी भी रिपोर्टिंग हुई, वह खबर किसी ने सीधे या किसी बिचौलिये के जरिए वित्त मंत्रालय से मीडिया तक पहुंचाई. प्रवर्तन निदेशालय(ईडी) ललित मोदी पर बहुत पहले से नज़र रखे हुए था. बीजेपी के ये जो नेता हैं उनका प्रेस के अंदर बहुत ज्यादा प्रभाव है. वे जब प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं, तो 150 से 200 पत्रकारों को अपने घर पर बुला लेते हैं. वो अखबार वालों को बड़ी लजीज़ दावतें देते हैं. बड़े-बड़े न्यूज चैनलों और अखबारों के संपादकों से उनकी दोस्ती है. भारतीय जनता पार्टी में मीडिया के साथ उस नेता की नजदीकी भी एक चिंता का विषय है. बीजेपी की आंतरिक कलह की जड़ में नंबर दो नेता बनने की होड़ है. इस होड़ में सुषमा स्वराज, राजनाथ सिंह, अरुण जेटली और अब अमित शाह शामिल हो गए हैं. ललित मोदी प्रकरण का निशाना विदेश मंत्री सुषमा स्वराज थीं लेकिन अब यह आग बढ़कर राजस्थान तक पहुंच गई है.

कांग्रेस सरकार और आईपीएल से जुड़े लोगों को ललित मोदी के  बारे में सबकुछ मालूम था, कि वह क्या कर रहे हैं. लेकिन कांग्रेस सरकार ने ललित मोदी के  खिलाफ एक भी निर्णय नहीं लिया. लेकिन यह मामला बीजेपी में नंबर दो का नेता बनने की होड़ में एक हथियार की तरह इस्तेमाल हुआ. इसका इस्तेमाल एनडीए की एक वरिष्ठ महिला केंद्रीय मंत्री के  लिए किया गया था. लेकिन जिस बड़े नेता ने इस खेल को अंजाम दिया उन्हें यह नहीं पता था कि जितना बड़ा पलीता वो लगा रहे हैं उससे पूरी सरकार और भाजपा के  लिए समस्या खड़ी हो जाएगी.

हकीकत यह है कि सुषमा स्वराज से इस्तीफा नैतिकता के आधार पर मांगा जा रहा है. सुषमा स्वराज ने ऐसा कोई काम नहीं किया है जिसे अपराध की श्रेणी में गिना जा सके.. लेकिन यहां समझने वाली बात यह है कि मीडिया में यह बात फैलाई जा रही है कि ललित मोदी एक भगोड़ा हैं यह गलत है. न ही ललित मोदी के खिलाफ कोई अपराधिक मामला दर्ज है और न ही वो भगोड़ा हैं. इस प्रकरण के दौरान ऐसी कई बातें हुई हैं जो अनावश्यक थीं. जैसे कि सुषमा स्वराज के परिवार के सदस्यों को मामले में घसीटने या फिर वसुंधरा के बेटे की कंपनी को घसीटने का मतलब साफ है कि बीजेपी की अंदर की लड़ाई ऐसे स्तर पर पहुंच चुकी है जहां लोगों ने मर्यादा को भी ताक पर रख दिया है. सुषमा स्वराज के खिलाफ जब स्टोरी आई तो बीजेपी में एक तरह की खामोशी थी. सबसे पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ(आरएसएस) ने सुषमा का समर्थन किया. इसके बाद अमित शाह और राजनाथ सिंह सुषमा के बचाव में सामने आए. लेकिन जिन्हें सामने आना था, वे इस पूरे प्रकरण के दौरान पार्टी या सरकार को बचाने टीवी पर नहीं आए और न ही प्रधानमंत्री ने इस मामले में कोई बयान दिया. सुषमा स्वराज के खिलाफ जितने भी आरोप हैं वो पूरी तरह से नैतिक ही हैं. यहां यह समझना भी जरूरी है कि यह मामला यहीं पर खत्म नहीं होने वाला है. शायद विदेश मंत्री और विदेश मंत्री के परिवार से जुड़े और किस्से बाहर आएंगे. यह भी समझना जरूरी है कि पहली बार मीडिया और विपक्ष ने किसी मंत्री का इस्तीफा सिर्फ इस बात पर मांगा है क्योंकि उनके परिवार के सदस्य किसी आरोपी के वकील हैं. पलीता लगाने वाले वरिष्ठ बीजेपी नेता को शायद यह लगा था कि नरेंद्र मोदी अपनी और सरकार की छवि को बचाने के लिए एक्शन लेंगे, लेकिन नरेंद्र मोदी की खामोशी ने सुषमा स्वराज और उनके समर्थकों को एक जुट होने का मौका दे दिया. सुषमा स्वराज के जो समर्थक हैं उनमें राजनाथ सिंह, मुरली मनोहर जोशी, लाल कृष्ण आडवाणी और आरएसएस शामिल है. उन्होंने बोल दिया कि सुषमा स्वराज को विदेश मंत्री के पद से नहीं हटाया जा सकता है. ऐसे नाजुक मोड़ पर आडवाणी जी का इंटरव्यू भी सामने आ गया कि दिशाहीन और कमजोर नेतृत्व की वजह से भविष्य में आपातकाल की आशंका को टाला नहीं जा सकता है. मतलब यह कि पार्टी के अंदर शीत युद्ध(कोल्डवार) शुरु हो गया है. ऐसी स्थिति में नरेंन्द्र मोदी के हाथ पूरी तरह बंध गए हैं.
इसके बाद यह मसला राजस्थान पहुंच गया. वसुंधरा राजे की हैसियत भारतीय जनता पार्टी के अंदर एक क्षत्रप की है. पार्टी का कोई भी नेता राजस्थान के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है. चाहे वो नरेंद्र मोदी हों, दिल्ली के वरिष्ठ नेता हों या फिर पार्टी अध्यक्ष अमित शाह हों. जब राजस्थान में भाजपा विपक्ष में थी. तब भी वसुंधरा राजे को नेता प्रतिपक्ष के पद से हटाने की पहल हुई थी, लेकिन केंद्रीय नेताओं को घुटने टेकने पड़े. लेकिन, ललित मोदी प्रकरण में वसुंधरा राजे का नाम घसीटने को भी पार्टी के अंदर चल रही कोल्ड वार के चश्मे से देखा जा सकता है. यहां भी मीडिया को सारे कागजात प्रवर्तन निदेशालय(ईडी)की तरफ से सीधे या किसी बिचौलिये के जरिए से मुहैया कराये जाने की बात हो रही है. जिस तरह सुषमा स्वराज के परिवार के सदस्यों को इस मामले में घसीटा गया उसी तरह वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत को भी घसीटा जा रहा है. खुलासा यह हुआ है कि ललित मोदी ने दुष्यंत की कंपनी में पैसा लगाया था. जिस कंपनी के जरिए ललित मोदी ने पैसा भिजवाया वह मॉरीशस की एक फेक कंपनी है. यह खुलासा भी हुआ कि दुष्यंत की कंपनी में वसुंधरा राजे और वसुंधरा राजे की बहु के शेयर भी हैं. अभी और भी किस्से राजस्थान से आएंगे. लेकिन भारतीय जनता पार्टी के सामने समस्या यह है कि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के पद से इसलिए नहीं हटाया जा सकता क्योंकि उन्होंने साफ-साफ यह संदेश दिल्ली पहुंचा दिया है कि यदि उन्हें हटाया गया तो राजस्थान में पार्टी टूट जाएगी. ज्यादातर विधायक वसुंधरा के साथ हैं. ललित मोदी प्रकरण नरेंद्र मोदी के लिए सरकार, पार्टी और खुद की साख बचाने की चुनौती बन गया है.
पिछले एक महीने में भारतीय जनता पार्टी के चार नेताओं पर आरोप लगे हैं. सुषमा स्वराज, स्मृति ईरानी, वसुंधरा राजे और पंकजा मुंडे. इन सभी पर आरोप मीडिया ने लगाये हैं. ज्यादातर आरोप नैतिकता के आधार लगे हैं. क़ानून की नज़र में भले ही ये कोई अपराध न हो, लेकिन राजनीति में इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. राजनीति साख पर चलती है. राजनीति नैतिक आधार पर चलती है न कि कोर्ट के फैसले पर. बोफोर्स घोटाले में राजीव गांधी को कभी कोई सजा नहीं मिली. वीपी सिंह के पास राजीव गांधी के खिलाफ क्या सबूत था? लेकिन 1989 में वी पी सिंह बोफोर्स के आधार पर प्रधानमंत्री बन गए. नरेंद्र मोदी ने चुनाव से पहले कहा था कि न गलत काम करूंगा और न ही करने दूंगा. न खाऊंगा न खाने दूंगा. लेकिन पिछले एक महीने से लगातार हो रहे हमले से सरकार की छवि पर असर पड़ा है. नरेंद्र मोदी चुप हैं और पार्टी के अंदर घमासान चल रह है. लाल कृष्ण आडवाणी नाराज हैं. मुरली मनोहर जोशी नाराज हैं. अरुण शौरी नाराज हैं. सुब्रामन्यम स्वामी नाराज हैं. यशवंत सिन्हा नाराज हैं. बाबा रामदेव नाराज हैं. कई मंत्री नाराज हैं. आरएसएस नाराज है. ललित मोदी प्रकरण की वजह से जहां पार्टी में मोदी विरोधी गुट को बल मिल रहा है वहीं आम जनता के बीच सरकार के खिलाफ एक माहौल बन रहा है. किसी भी सरकार के लिए खराब छवि कैंसर की तरह होती है. समय पर इलाज न हो तो सरकार, पार्टी और नेताओं का इकबाल खत्म हो जाता है. नरेंद्र मोदी जितना चुप रहेंगे क्षति उतनी ज्यादा होगी.

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