क्या मोदी सरकार ने भारत-पाक बॉर्डर पर पाक प्रायोजित आतंकी गतिविधियों को लेकर भारत ने जो सख्ती दिखाई है, उससे पाकिस्तान तिलमिला गया है? क्या लखवी की रिहाई के पीछे भारत में किसी बड़े आतंकी हमले की साजिश है? आखिर क्यों लखवी की रिहाई की खुशी में पाक में उसके घर पर पाकिस्तानी अधिकारियों और आतंकवादियों के बीच जमकर पार्टी हुई? मसला चाहे जो भी हो, लेकिन लखवी की रिहाई पर पाक सरकार के नापाक इरादे को लेकर भारत सहित अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जबरदस्त आलोचना हुई है.
अभी लश्कर-ए-तैयबा के ऑपरेशन कमांडर और 2008 के मुंबई हमलों का मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी की रिहाई हुई ही थी कि उसके तुरंत बाद ही सुरक्षा एजेंसियों ने मुंबई सहित देश के कई शहरों में आतंकी हमले का अलर्ट जारी कर दिया. आईबी ने अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि एक लेटर मिला है, जिसके अनुसार दो से तीन महीने के अंदर मुंबई में बड़े पैमाने पर हमला हो सकता है. बड़ा सवाल यह है कि भारत के तमाम ऐतराजों के बावजूद खूंखार आतंकी लखवी जेल से बाहर आ कैसे गया? लखवी की रिहाई को भारत सरकार द्वारा पाकिस्तान सरकार की आतंक पर लगाम लगाने की असफलता नीति के रूप में भी देखा जा रहा है. लखवी की रिहाई के पीछे आनेवाले दिनों में पाकिस्तान द्वारा भारत में किसी बड़े हमले की योजना भी हो सकती है. हालांकि भारत के सुरक्षा तंत्र ने एक आंकलन तैयार किया है, जिसकी समीक्षा जारी है. सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि पाकिस्तान लखवी को गुड टेररिस्ट की श्रेणी में रखता है और उसके खिलाफ वह कोई कार्रवाई नहीं करना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान भारत विरोधी अपनी मंशा को इतनी आसानी से पूरा कर ले, ये इतना आसान भी नहीं है, क्योंकि फ्रांस, अमेरिका और इजरायल की तरफ से लखवी की रिहाई के मुद्दे पर पाकिस्तान को मिली फटकार के बाद भारत उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की अपनी कोशिशों को और तेज करेगा. एक खास बात यह है कि इस बार कोशिश सिर्फ विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के स्तर पर नहीं होगी, बल्कि विदेश मंत्री और प्रधानमंत्री के स्तर पर भी पाक के दोहरे चरित्र को बेनकाब किया जाएगा. एक बात और ध्यान देने लायक है कि हो सकता है पाकिस्तान लखवी पर भारत से और अधिक सबूत की मांग करे, लेकिन भारत को यह बात ध्यान देना होगा कि वह किसी भी कीमत पर पाकिस्तान को अब लखवी के मसले पर कोई सबूत न दे, क्योंकि भारतीय अधिकारियों का भी कहना है कि लखवी के मसले पर पाक सरकार को काफी सबूत दिए जा चुके हैं. ऐसे में अगर भारत फिर से कोई सबूत सौंपने की कोशिश करता है, तो वह भारतीय विदेश नीति को कमजोर ही करेगा और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत की किरकिरी ही होगी.
मुंबई आतंकवादी हमले के मास्टरमाइंड जकीउर रहमान लखवी की रिहाई को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी आलोचना शुरू हो गई है. लखवी की रिहाई पर अमेरिका ने भी चिंता व्यक्त की. अमेरिका का कहना है कि आतंकवादी हमले सभी देशों की सामूहिक सुरक्षा व बचाव पर एक हमला है. हालांकि पाकिस्तान के प्रति अमेरिका का यह नाटक कोई नया नहीं है. नाटक इसलिए कि जब अमेरिका से पूछा गया कि क्या उसके विरोध का असर पाकिस्तान पर किसी भी प्रकार से पड़ सकता है? इस पर उसका जवाब था कि उसने पाकिस्तान के समक्ष अपनी चिंता व्यक्त की है, लेकिन वह किसी तरह के परिणामों और नतीजों का अनुमान नहीं लगा सकते. फ्रांस ने भी भारत के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि लखवी की रिहाई न तो भारत के लिए ठीक है और न ही दुनिया के लिए. फ्रांस ने यह स्टेटमेंट उस समय दिया, जब भारतीय पीएम फ्रांस के दौरे पर थे. यही बात भारत को समझनी होगी कि किसी देश का चेहरा देख कर या उस देश की नीति के अनुसार भारत अपनी नीति न बनाए, जैसा कि भारत शुरू से ही करता आ रहा है. आजभारत की विदेश नीति की सबसे बड़ी खामी यही है कि उसका खुद का कोई स्टैंड नहीं है और वह पाकिस्तान या अन्य देश के मसले पर अमेरिका या अन्य देशों की प्रतिक्रिया आने का इंतजार करता है और उसके बाद हो-हल्ला मचाता है. यही कारण है कि भारत को पाकिस्तान जैसे देशों पर कुछ खास सफलता हासिल होती नहीं दिखती. क्या अमेरिका भारत से या किसी अन्य देश से यह पूछने आता है कि पाकिस्तान में छिपे ओसामा बिन लादेन पर कार्रवाई करे या नहीं.
भारत ने लखवी की रिहाई को मुंबई हमले के पीड़ितों का अपमान बताया है. उसने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से पाकिस्तान के दोहरे मानदंड की ओर ध्यान दिलाया है. भारत यहीं गलत करता है. एक बात आज तक समझ में नहीं आई कि भारत इस बात को समझने में देर क्यों कर रहा है कि उस पर आतंकी हमलों का असर विदेशों पर नहीं पड़ता. खासतौर पर उस समय तक जब तक कि वह देश भी पाकिस्तानी या अन्य तरह के आतंकवाद का निरंतर भुक्तभोगी न हो. अगर यह बात सच नहीं होती तो आखिर अमेरिका हाल ही में पाकिस्तान को एक बिलियन अमेरिकी डॉलर की सैन्य सहायता क्यों देता? भारत को यह नहीं भूलना चाहिए कि सऊदी अरब को भी यमन में जारी कार्रवाई के लिए पाकिस्तान की जरूरत है. इसलिए सभी देश अपने हक में ही पाकिस्तान के पक्ष या विपक्ष में फैसला लेंगे. जब तक भारत अन्य देशों का मुंह देखता रहेगा, उसे पाकिस्तान के प्रति सख्त रवैया अपनाने में कभी सफलता नहीं मिलेगी और न ही अन्य देशों की तरफ से पाकिस्तान पर कोई सख्त कार्रवाई का भरोसा ही मिलेगा. भारत को चाहिए कि वह आतंकवाद के मुद्दे पर सीधे और प्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान से निपटे, क्योंकि पाक आतंकवाद का असली भुक्तभोगी भारत ही है. बर्लिन में प्रधानमंत्री मोदी ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल के साथ संयुक्त प्रेस वक्तव्य के दौरान पूछे गए प्रश्नों के जवाब में जो कहा, वह भारतीय पीएम की आतंकवाद के मुद्दे पर चिंता को व्यक्त करता है. उन्होंने कहा कि जितनी सेंसिटिविटी न्यूक्लियर वेपन को लेकर के है, उतनी ही आतंकवाद को पनाह देने वाले देशों के प्रति भी होनी चाहिए. गृहमंत्री राजनाथ सिंह कहते हैं कि भारत पाक के साथ बातचीत करना चाहता है, लेकिन लखवी की रिहाई बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निराशाजनक है. ऐसे कदमों से दोनों देशों के आपसी रिश्तों पर असर पड़ता है. सवाल यह उठता है कि क्या पाकिस्तान को भारत के साथ अपने रिश्ते की परवाह है? क्या पाकिस्तान आतंक के रास्ते से हटकर भारत के साथ अपने रिश्ते पर गंभीरता से विचार कर रहा है? इसका जवाब न में ही होगा, क्योंकि अगर पाकिस्तान को भारत के साथ अपने रिश्तों के बनने या बिगड़ने की परवाह होती, तो वह भारत द्वारा दिए गए सबूत चाहे वह कसाब के बयान हों, डेविड हेडली या फिर अबू जिंदाल के बयान हों, की परवाह जरूर करता, लेकिन इसके उलट पाकिस्तान ने भारत द्वारा दिए गए किसी भी सबूत को तरजीह नहीं दी.
लखवी की रिहाई का विरोध सिर्फ भारत में ही नहीं, भारत के पड़ोसी मुल्क और लखवी के अपने ही देश पाकिस्तान में भी हो रहा है. पाकिस्तान के पंजाब प्रांत की सरकार ने लखवी की रिहाई को पाक सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और कहा है कि लखवी की रिहाई से उसके लिए मुश्किल बढ़ गई है. सरकार ने अपनी दलील में यहां तक कहा है कि लखवी की रिहाई से मुंबई हमले मामले की जांच भी प्रभावित हो सकती है. पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि लाहौर हाई कोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए लखवी को फिर से सिक्योरिटी ऐक्ट के तहत हिरासत में लिया जाए.